किस्मत सौरभ पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान है, शायद इसलिए रितिका उसे फंडरेज़र इवेंट में मिलती है। इस मौके का पूरा फायदा सौरभ उठाता भी है। सौरभ धीरे-धीरे रितिका के लिए अपना जाल बुनना शुरू कर देता है। वह अपना पहला पासा इवेंट में और दूसरा पांसा कैफे में फेंकता है। रितिका को घर ड्रॉप करने के बाद उसे एक कॉल आता है, जिसे रिसीव करते ही सौरभ का पूरा मूड खराब हो जाता है।

इस कॉल के बाद, अपने खराब मूड को ठीक करने के लिए, वह दोबारा बार में जाता है और व्हिस्की ऑन द रॉक्स के चार पेग लगाता है। हालाँकि इतना ज़्यादा पीना सौरभ के लिए कोई नई बात नहीं थी, मगर टेंशन के चलते पीना उसके ड्रिंकिंग रूल्स के सख्त खिलाफ था। हाँ, यह वही लड़का है, जिसकी ज़िंदगी में रूल्स थोड़े हिले हुए हैं।

यह तो सच है कि खोखला आदमी अपने आपको बड़ा और महान दिखाने के लिए क्या-क्या नहीं करता। वह लड़कियों को नीचा दिखाता है। उनके प्यार पर इतने सवाल उठाता है कि फिर वे किसी पर भरोसा ही नहीं कर पाती। घंटों तक कॉल नहीं करता। जब लड़की कॉल का इंतज़ार करते-करते थक जाती, तो धीरे धीरे उम्मीद हो देती है। वो दोबारा किसी से बात करने में भी हिचकिचाती है।

खोखले आदमी की एक पहचान यह है कि वह सब कुछ छुपाकर करता है—चाहे कोशिशें हो या झूठा प्यार। ऐसी शख्सियत वाले लोग अपनी टॉक्सिसिटी सामने वाले में ट्रांसफर करते हैं। खुद बेयर मिनिमम एफर्ट्स करते हैं और जब सामने वाला रिएक्शन देता है, तो उसे झेल नहीं पाते।

सौरभ ने न जाने कितनी लड़कियों के साथ अलग-अलग तरीकों से यह सब दोहराया था और अब यही सब वह रितिका के साथ भी करना चाह रहा था। सौरभ का औरतों के प्रति यह रवैया समझ से परे था। सौरभ को उनके आँसू, उनकी तकलीफ़ें, उनका चीखना सब कुछ पसंद था। ये सब उसकी नज़रों में मर्दानगी की निशानी था।

सौरभ जैसे ही सुबह उठता है, वह अपने सी-फेसिंग फ्लैट की बालकनी में खड़ा होकर अरब सागर में उठ रही लहरों को देखता है। एक चालाकी भरी मुस्कान के साथ खुद से कहता है, "इस बार, इस सागर से जो मछली निकली है, वह खरा सोना है।"

सौरभ के शब्द उसकी नीयत साफ़ ज़ाहिर करते हैं। वह अपनी जालसाजी के इस काम में इतना रम गया था कि अब उसे सही और गलत में कोई फर्क नज़र नहीं आता था।

सौरभ अपना "मी टाइम" बिताने के बाद फोन उठाता है। वह रितिका की प्रोफाइल ओपन करता है, जहाँ उसे रितिका का नया पोस्ट देखकर यकीन हो जाता है कि रितिका पर उसके झूठ का असर हो रहा है।

दरअसल, रितिका ने अपनी और सौरभ की पहली मुलाकात की फोटो डाली थी, जिसमें वे कैफे में बैठे कॉफी के सिप्स को इन्जॉय कर  रहे थे। अपनी पोस्ट के नीचे रितिका ने लिखा था, "विद द बेस्ट कंपनी।"

अब यह बात कॉफी और सौरभ दोनों के लिए लागू होती थी। इस पोस्ट को देखकर सौरभ पूरी तरह श्योर हो गया कि रितिका को अपने जाल में फँसाना आसान है।

जैसे ही सौरभ ने रितिका का कैप्शन पढ़ा, उसे लाइक और कमेंट करने का मन हुआ, लेकिन उसने खुद को रोक लिया।

वो ये बात अच्छे से जानता था कि किसी को आकर्षित करने का सबसे आसान तरीका है—इग्नोर करो। वही सौरभ ने किया, ताकि वह जान सके, उसके नए शिकार के डेली थॉट्स और रितिक को ये भी न पता चले कि सौरभ उसको स्टॉक कर रहा है।

उसने लगभग 2 घंटों तक उसकी प्रोफाइल स्टॉक की, कहाँ कहाँ ट्रैवल किया है? दोस्त कौन-कौन है? उसका लोगों में टेस्ट कैसा है? उसने किस फोटो को लाइक किया हुआ है और किस पर कमेन्ट? उसने किस तरह के पेजेस और पर्सनालिटीज़ को फॉलो किया है?

ये सारी चीजें उसे अपने शिकार की साइकोलॉजी समझने में हेल्प करती थी, जिससे उसकी प्लानिंग को वो और फूल प्रूफ कर पाता था।  

प्रोफाइल स्टॉक करने के बाद वह समझ चुका था कि रितिका का इंटरेस्ट वह खुद में और कैसे जगा सकता है। उसने बिना एक भी मिनट गँवाए, रितिका को फोन किया और उसे 12 बजे आर्ट गैलरी में मिलने को कहा। इस बार बहाना था कि वो वहाँ जाकर आइडिया लेना चाहता है, जिससे एनजीओ के बच्चों की एक पेंटिंग एक्सज़ीबिशन ऑर्गनाइज़ कर सके और फंडरेज़ कर सके।  

सौरभ इतनी बारीकी से अपने झूठ पर काम करता था कि कोई भी उस पर भरोसा कर लेता।

वैसी भी रितिक को कहाँ पता था की न तो उसका कोई एनजीओ है न ही वो कोई साइकेट्रिस्ट।

सौरभ ठीक 12 बजे आर्ट गैलरी के सामने था। उसके आने के 10 मिनट बाद रितिका भी कैब से आ गई। रितिका को कैब से आते देख, सौरभ समझ चुका था कि आज फिर उसे ही रितिका को घर ड्रॉप करना पड़ेगा। यानि ब्राउनी पॉइंट्स कमाने का एक और मौका।

दोनों साथ ही आर्ट गैलरी में एंटर करते हैं और सारी पेंटिंग्स को गौर से देखना शुरू करते हैं तभी सौरभ एक पेंटिंग के पास रुकता है और रितिका से कहता है, ‘’सिर्फ कुछ रंगों में आर्टिस्ट ने हिस्ट्री को कैप्चर कर दिया है। है ना?''

RITIKA: सही कह रहे हो। यहाँ आने के बाद लग रहा है कि यहाँ की दीवारें तक कहानियाँ सुना रही हैं। देखो इस पेंटिंग को, कितनी फिनिशिंग और डेप्थ है इसमें। जैसे, अभी पेंटिंग में बना यह खंडहर अपनी खुद की कहानी सुनाने लगेगा।

SAURABH: तुम्हें हिस्ट्री बहुत पसंद है, ना?

RITIKA: हाँ, तुमने गेस किया? या मुझे स्टॉक?

SAURABH: न गेस किया, न स्टॉक! तुम्हारी आँखें बता रही हैं। जिस पैनी नज़र से तुम इस पेंटिंग की डिटेल्स देख रही हो और समझने की कोशिश कर रही हो, उससे लगा। वैसे और क्या क्या पसंद है तुम्हें?

RITIKA: हिस्ट्री, आर्ट्स, क्रीऐटिवटी और भी बहुत कुछ!!! पर मैं इस बात से इम्प्रेस्ड हूँ कि तुम्हें आँखों की भाषा पढ़नी आती है। चलो अब जल्दी से बताओ कि और क्या बता रही हैं मेरी आँखें, तुम्हें?

SAURABH: यही कि इनमें अतीत के कुछ ऐसे गहरे राज़ छुपे हैं, जो तुम्हारे सामने आए, तो तुम खुद को संभाल नहीं पाओगी।

सौरभ की बातें सुनकर, रितिका को यकीन ही नहीं हुआ कि आखिर सौरभ आँखों को इतनी गहराई से पढ़ना कैसे जानता है? फिर वो मन ही मन ये कहते हुए खुद पर हंस पड़ी कि उसे कैसे नहीं पता होगा, साईकेट्रिस्ट है वो।

सौरभ ने उसे उसके थॉट्स से बाहर निकालने के लिए एक VIP सेक्शन की ओर इशारा किया और बिना कुछ कहे ही उसका हाथ पकड़ते हुए वहाँ की पेंटिंग्स देखने लगा।

जैसे ही सौरभ ने रितिका का हाथ पकड़ा, रितिका भूल गई कि उसे पेंटिंग्स भी देखनी हैं। उसके गाल गुलाबी हो गए थे और चाल इठलाती सी, उसका दिल धड़कने लगा और दिमाग कहने लगा “शायद यही है वो, जो तुझे अच्छी तरह से जनता है। तेरे बिना कुछ बोले सब समझ लेता है और तुझ पर खुद का हक बड़े ही प्यार से जताता है, जैसे अभी हाथ पकड़ते हुए जताया।”

उफ़ भोली सी रितिक, ये नहीं जानती थी कि दुनिया की आधी से ज़्यादा लड़कियों को फँसाने का पैटर्न सेम है। उनको समझो और बस उस टाइम कुछ क्यूट सी हरकत कर दो, जो उन्होंने एक्सपेक्ट नहीं की हो।

बहरहाल पूरी आर्ट गैलरी देखते हुए सौरभ और रितिका एनजीओ के लिए कई चीज़े डिसकस कर रहे थे, फन्डिंग, इवेंट्स, सोशल मीडिया कैमपैंस वागेर-वागेर।

उनका आर्ट डेट डे अब खत्म हो चुका था, वही पास ही उन्होंने चाय पी और लाइफ की बातें करने लगे। रितिका का इंटरेस्ट जैसे-जैसे सौरभ में बढ़ता जा रहा था वो उसको ज़्यादा नोटिस करने लगी थी। उसकी हल्की बियार्ड, उसका ड्रेसिंग सेंस, उसकी हंसी, उसके बाल और उसकी आँखें। वो जैसे ही चाय पीकर कार में बैठे, रितिका ने सौरभ की तरफ देखते हुए कहा, ‘’तुम दूसरों की आँखें पढ़ते हो और अपनी आँखें चुराते हो? क्या है इन आँखों में छुपा हुआ राज़।''

SAURABH: दूसरे जब आँखें पढ़ने जाते हैं, तो तमाशा बहुत बनाते हैं। वैसे भी दूसरों को पढ़ना आसान होता है, खुद को नहीं।

RITIKA: तुम्हें जो कहना है, वह तुम कह सकते हो, बिना यह सोचे कि मैं क्या सोचूँगी। हमारी इतनी तो वाइब मैच हो ही गई है।

SAURABH: वो तो है, पर मुझे नहीं लगता मुझे कोई समझेगा। मेरे थोड़े ट्रस्ट इशूज़ है। वैसे भी मैं नहीं चाहता तुम मुझे जज करो।

RITIKA: किसके नहीं होते, और जब तक खुद को समझाने की कोशिश नहीं करोगे तो कौन समझेगा तुम्हें? और पक्का प्रामिस की मैं तुम्हें जज नहीं करूंगी।

SAURABH: हम्म!!! तो मैडम को सब जानना है मेरे बारे में।

RITIKA: सब तो नहीं, पर मुझे लगता है कि जो बात मन का बोझ बढ़ा दे, उस बात को मन से निकाल देना चाहिए।

SAURABH (गहरी साँस छोड़ते हुए): हम्म! मुझे न आज ठाकुदा याद आ गए। बचपन में वह भी हाथ पकड़कर मुझे और मेरी बहन को ऐसे ही मेला घुमाने ले जाते थे। वहाँ हम दोनों जिस भी खिलौने पर हाथ रखते, वह सारे खिलौने हमें दिलाते। वह जब से हमें छोड़कर गए हैं, तब से मैं और श्रुति कभी मेला गए ही नहीं। तुम्हें पता है उन्हें भी रंगों से बहुत प्यार था, वो मुझे पेंटिंग की डेप्थ के बारे में बताते थे, रंगों के मायने समझाते थे। उनके दो ही पसंदीदा कलर्स थे ब्लैक एण्ड व्हाइट, और उन्होंने अपनी लाइफ भी ऐसे ही जी। नो ग्रे एरिया। मुझे भी ऐसी ही लाइफ पसंद है। क्लेरिटी वाली ।

RITIKA:यू आर डिफरेंट! आज कल लड़के अपनी फैमिली को इतना मिस नहीं करते न ही इतनी जल्दी ओपन उप होते न और कनफ्यूज़ड़ तो 200% होते है।

SAURABH (शरमाते हुए): स्टॉप इट!!! मुझे शर्म आ रही है अपनी तरीफ़े सुनकर।

इस बात पर दोनों मुस्कुरा दिए। सौरभ की कहानी सुनकर, वैसे रितिका थोड़ी मायूस हो गई थी। एक बार को उसके मन में आया कि वह सौरभ को गले लगा ले, पर दूसरी ही मुलाकात में सीधे गले लगाना उसे ठीक नहीं लगा। इसलिए उसने खुद को रोक लिया।

वहीं दूसरी तरफ, सौरभ रितिका के चेहरे को देखकर समझ गया था कि उसका झूठा किस्सा लड़की के दिल में घर कर गया है। उसके पास ऐसे कई और किस्से थे, जो पिटारे से निकलना बाकी थे। जिसे उसने कई अलग अलग लड़कियों पर आजमाया था।

क्या वक़्त रहते रितिका सौरभ की सच्चाई जान पाएगी, या एक बार फिर तोड़ बैठेगी अपना दिल? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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