डिस्क्लेमर: "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएँ पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।"
हर हर महादेव की आवाज़ से लोगों का दिन शुरू हो चुका था। आज की सुबह बहुत ही ख़ूबसूरत थी, क्योंकि सुबह बनारस की थी। गंगा घाट के किनारे की हल्की-हल्की ठंडी हवा मन में जैसे कोई जादू घोल रही थी। गंगा किनारे नहाते साधु अपनी जटाओं से गंगा को पवित्र कर रहे थे।
बनारस शास्त्रीय संगीत का भी एक प्रमुख केंद्र है। यहाँ के घाटों पर अक्सर शहनाई या तबले की धुन सुनाई देती है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की धरती पर, कुछ लोग गंगा किनारे बैठे शहनाई बजा रहे थे। रोज़ की तरह घाटों पर लाखों श्रद्धालु गंगा आरती देखने के लिए इकट्ठा हुए थे। गंगा का पानी भी उसी शहनाई की धुन पर सवार होकर, बार-बार किनारे को आता। बनारस का संगीत, बनारस की धड़कन की तरह है।
बनारस की उन्हीं गलियों से गरमागरम सब्ज़ी की ख़ुशबू आ रही थी। उस कचौड़ी की दुकान में भीड़ इस कदर थी, मानो कचौड़ी फ्री में बंट रही हो। या उसको खाते ही स्वर्ग की सीढ़ियाँ मिल जाएंगी। जो भी था, लोग खा रहे थे। साँवले चेहरों के साथ-साथ इस भीड़ में गोरे भी लाइन में लगे हुए थे। फूड व्लॉगर्स कचौड़ियों और अपने कैमरे में इन पलों को क़ैद करने के लिए उतने ही उत्सुक थे।एक विदेशी सैलानी भी बनारस के इस रस को चखने के लिए हाथ में पैसे लिए खड़ा था। भीड़ इतनी थी कि दुकानदार अपने दोनों हाथों से प्लेट्स लगा रहा था।
सुबह का समय था। दुकान के सामने खड़े होकर लोग हाथों में पत्ते लेकर खा रहे थे। उस विदेशी ने भी पत्ते की बनी कटोरी में दो जलेबियाँ लीं और जलेबी के रस में गोते लगाने लगा। उसके चेहरे का रिएक्शन ऐसा था, मानों इससे बेहतर चीज़ उसने कभी खाई ही न हो। खाते-खाते उसने दुकानदार को एक और प्लेट का इशारा भी कर दिया।
एक विदेशी को इतने शौक से जलेबी खाते देख, लोग चकित थे। मगर यह बनारस है, भैया! यहाँ की बात ही अलग है।
जैसे ही वह विदेशी दूसरी प्लेट के लिए दुकान की तरफ़ बढ़ा, अचानक वह मुँह के बल गिर पड़ा। भीड़ इतनी थी कि शायद उसका पैर कहीं फँस गया होगा। खा रहे लोग उसे उठाने के लिए दौड़े। गोरा रंग, नीला हाफ़ पैंट, काली टी-शर्ट, और 6 फीट का आदमी नीचे गिरा पड़ा था।
लोगों ने मिलकर उसे उठाया। उसकी आँखें बंद थीं, जैसे कि वह सो रहा हो। लाख उठाने के बाद भी वह उठ नहीं रहा था। भीड़ में से एक आदमी ने उसकी नब्ज़ को चेक किया। अचानक उसके चेहरे की रौनक गायब हो गई। दुकान में अजीब-सी शांति छा गई। लोगों ने चौराहे पर खड़ी पुलिस की गाड़ी को तुरंत बुलाया और सारा माजरा बताया। पुलिस ने उसे अपनी गाड़ी में डाला और ले गए।
अचानक चौक का माहौल शांत हो गया। पुलिस की गाड़ियों के सायरन लोगों के शोर को अपने साथ ले जा रहे थे। बनारस की संकरी गलियों में सायरन की तेज़ आवाज़ें गूँजने लगीं। जैसे वह शहर की नींद तोड़ रही हों।
गलियों में लोग अपने-अपने दरवाज़ों से बाहर झाँकने लगे। हर चेहरा उस पुलिस की गाड़ी को गली के अंतिम छोर तक छोड़ने आ रहा था। शहर की वह शांति, जिसे गंगा की लहरों और मंदिरों की घंटियों की गूँज में हर रोज़ महसूस किया जाता था, आज जैसे किसी ने छीन ली। विदेशी की मौत की बात पूरे शहर में शांति की तरह फैल गई थी।
बनारस, जो अपने आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण माहौल के लिए जाना जाता था, आज एक अलग ही रूप में नज़र आ रहा था। बनारस के पुलिस स्टेशन में पुलिस की गाड़ी रुकती है। इंस्पेक्टर हर्षवर्धन, 38 साल के क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर हैं। लंबी कद-काठी, मज़बूत शरीर, हल्की दाढ़ी, आँखों में ठहराव और जिनके चेहरे पर हमेशा एक सख्त भाव रहता है।
बीएचयू से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने क़ानून और अपराध के क्षेत्र में अपनी दिशा तय की। हर्षवर्धन, जो काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं, उनके जीवन का लक्ष्य सच्चाई को उजागर करना और न्याय के दरवाज़े तक आकर ख़त्म हो जाता है।
इंस्पेक्टर: "कभी किसी के साथ अन्याय मत होने देना, चाहे कीमत कुछ भी हो।"
यही सोच हर्षवर्धन के काम में झलकती है। हर्षवर्धन ने अपनी जाँच चालू कर दी थी। वह अभी-अभी उसी अस्पताल से आया, जहाँ वह विदेशी भर्ती था। डॉक्टर ने उसे बताया कि उसकी मौत वहीं दुकान के पास हो गई थी। डॉक्टर ने बताया कि विदेशी लोग यहाँ आकर सिर्फ़ बाहर का खाना खाते हैं, जिसकी उन्हें आदत नहीं होती। इस केस में भी यही हुआ होगा। उसकी मौत ज़रूर फूड पॉइज़निंग से हुई होगी। इंस्पेक्टर को भी यही लग रहा था। मगर उसने अपनी टीम से फॉरेंसिक के लिए सैंपल भेज दिए थे। मामला विदेशी नागरिक का था, इसलिए दबाव ज़्यादा था। हर्षवर्धन कोई भी ग़लती अफ़ोर्ड नहीं कर सकता था। बनारस में घूम रहे फूड व्लॉगर्स ने मामले को और वायरल कर दिया था। इंस्पेक्टर हर्षवर्धन ने मौत की जगह पर जाकर जांच शुरू की। उन्होंने दुकानदार से सीधे सवाल किया...
इंस्पेक्टर: "वो आदमी यहीं आया था, ना?"
दुकानदार घबराया हुआ था। उसने अपना दुकान का लाइसेंस दिखाया। हर्षवर्धन ने देखा कि सब कुछ एकदम ठीक था। बनारस की यह फेमस दुकान, जहाँ आज भी हज़ारों लोग खाने के लिए लाइन में खड़े होते हैं।
दुकान में साफ-सफाई भी सही थी। बासी खाने का तो सवाल ही नहीं उठता। हर्षवर्धन ने दुकान के सभी सीसीटीवी फुटेज चेक किए। फुटेज में कुछ भी असामान्य नहीं दिखा।
आसपास के दुकानदारों से भी पूछताछ की गई। सभी ने वही कहा, जो कैमरे में दिख रहा था।
इंस्पेक्टर को लगने लगा कि यह मौत किसी प्राकृतिक या स्वास्थ्य संबंधी कारण से हुई होगी। ज़रूरी नहीं कि हर बार मौत के पीछे कोई अपराध खड़ा हो।
हर्षवर्धन का सोचना सही भी लग रहा था। वह अपनी गाड़ी में बैठा और जैसे ही जाने को तैयार हुआ, उसका फोन बजा। उसने फोन उठाया और कहा...
इंस्पेक्टर: "हाँ...ठीक है, आ रहा हूँ।"
हर्षवर्धन अस्पताल पहुँचता है। वह एक केबिन में जाकर बैठता है। तभी दरवाजा खुलता है और अनीता अंदर आती है।
अनीता, एक फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जो दिल्ली से बनारस आई थीं। उन्हें यहाँ काम करते हुए तीन साल हो चुके थे। हर्षवर्धन, अनीता के साथ पहले भी कई केसों में काम कर चुका था।
अनीता के काम की परफेक्शन उनके प्रोफेशन को और ज़्यादा प्रभावी बनाती है। इस केस को वही हैंडल कर रही थीं। अनीता ने अपने हाथ के ग्लव्स उतारते हुए कहा...
अनीता:"सॉरी, हर्ष। आपको अर्जेंट बुलाना पड़ा। बात ही कुछ ऐसी है।"
हर्षवर्धन एक अनुभवी पुलिस अधिकारी था। उसके लिए किसी राज का खुलना अब रोज़ की बात थी। उसने सहजता से जवाब दिया...
इंस्पेक्टर:"कोई बात नहीं। यह तो हमारा काम है। बताइए, क्या बात है?"
अनीता ने अपनी डेस्क का ड्रॉर खोला और रिपोर्ट निकाली। उन्होंने वह रिपोर्ट हर्षवर्धन के सामने रख दी।
हर्षवर्धन ने रिपोर्ट बड़े ही आराम से उठाई और पढ़ना शुरू किया। लेकिन जैसे-जैसे वह पढ़ता गया, उसका चेहरा चिंतित होता गया। उसने अनीता से सवाल किया...
इंस्पेक्टर: “मतलब, यह उतना सिंपल नहीं है?”
अनीता ने तुरंत जवाब दिया...
अनीता: "नहीं। यह कोई फूड पॉइज़निंग नहीं है। इसकी मौत एक रेयर ज़हर से हुई है।"
हर्षवर्धन ने ग़लत सोचा था। इस मौत के पीछे भी कोई अपराध खड़ा था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने केस का पूरा एंगल ही बदल दिया था।
जैसे ही यह खबर शहर में फैली, माहौल पूरी तरह से बदल गया।
क्या विदेशी सैलानी के खाने में ज़हर था?
या फिर उसे किसी ने जानबूझकर ज़हर दिया था?
क्या यह एक साजिश थी?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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