डिस्क्लेमर: "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएँ पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।"
बनारस के घाटों पर सुबह की हलचल अब पहले जैसी नहीं थी। गलियों का शहर कहे जाने वाले बनारस की गलियों में अब लोगों के साथ डर भी घूम रहा था। एक हफ्ता पहले, एक विदेशी सैलानी की मौत ने सभी को चौंका दिया था। सवाल यह था कि उसके साथ आखिर क्या हुआ? पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा था कि उसकी मौत किसी दुर्लभ ज़हर से हुई थी।
उसकी मौत जलेबी खाने के बाद हुई थी। बनारस की इतनी मशहूर दुकान, जहाँ रोज़ हज़ारों लोग खाते हैं। वहाँ के खाने में ज़हर कैसे हो सकता है? और अगर ज़हर होता, तो सिर्फ वही विदेशी क्यों मरता? इस घटना के बाद बाहर से आए पर्यटक डरे हुए थे। उन्हें कहीं भी कुछ खाने से डर लगने लगा था।
सुबह-सुबह चाय के ठेले की भीड़, जहाँ पहले संगीत, मनोरंजन, राजनीति और बनारस की रंगीनियों की चर्चा होती थी, अब केवल उस रहस्यमयी मौत की चर्चा कर रही थी। अखबार के फ्रंट पेज पर लिखा था: "एक सैलानी की रहस्यमयी मौत।"
इंस्पेक्टर हर्षवर्धन मामले के हर पहलू पर नज़र रख रहा था। वह कुछ फाइलों के साथ व्यस्त था, तभी उसका फोन बजा। उसने चाय की एक सिप लेते हुए फोन उठाया और कहा...
हर्षवर्धन: "हाँ...क्या बात है?"
हर्ष ने जो सुना, वह बिल्कुल चौंका देने वाला था। कॉल किसी हवलदार का था। उसने कहा, “आज फिर वही हुआ। बिल्कुल वही जगह, वही दुकान, खाने की वजह से एक और सैलानी की मौत हो गई है।” हर्षवर्धन ने ऐसा बिल्कुल उम्मीद नहीं की थी। उसने फोन रखने से पहले हड़बड़ी में कहा...
हर्षवर्धन: "आ रहा हूँ।"
यह खबर आग की तरह फैल गई। बनारस के हर कोने में हलचल थी। लोग सड़कों पर बातें कर रहे थे। पुलिस की टीमें हर दिशा में दौड़ लगा रही थीं। इंस्पेक्टर हर्षवर्धन के लिए यह मामला एक और चुनौती बन गया था। एक ही अपराध का दो बार होना, पुलिस के लिए बड़ी बात थी। या यूँ कह सकते हैं कि पुलिस की लापरवाही की वजह से ऐसा हुआ।
हर्षवर्धन फिर से उसी दुकान के पास पहुँच गया था। दोपहर की गर्मी कुछ ज़्यादा ही महसूस हो रही थी। उस दूसरे विदेशी की लाश ठीक उसी जगह पड़ी थी, जहाँ पहली थी। दुकान के चारों ओर पुलिस ने पीले फीते से नाकाबंदी कर दी। लाश को देखकर बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग रहा था कि उसमें जान नहीं है। वह किसी चैन से सो रहे इंसान की तरह, कभी ना खत्म होने वाली नींद में सो रहा था।
हर्षवर्धन ने गाड़ी से ही फॉरेंसिक एक्सपर्ट अनीता को कॉल कर दिया। कुछ ही देर में वह भी वहाँ पहुँच गई। शव को एम्बुलेंस में डालकर अस्पताल ले जाया गया। फॉरेंसिक टीम ने अपनी जाँच शुरू की और ज़रूरी सबूत इकट्ठे किए। सड़क के दोनों ओर एम्बुलेंस की आवाज़ ने लोगों के दिलों में डर पैदा कर दिया। घूमने आए पर्यटक भी सहमे हुए थे। दुकान के सामने खड़ा हर्षवर्धन, जाती हुई एम्बुलेंस और दुकान के गिरते शटर को देख रहा था। अपने विचारों में खोए हुए उसने धीरे से कहा...
इंस्पेक्टर: "फिर से वही दुकान...वही लक्षण? मामला तो गंभीर है।"
हर्षवर्धन ने बिना देर किए अपने विभाग को अलर्ट किया और तुरंत कार्रवाई के आदेश दिए। इस दूसरी मौत ने पूरे पुलिस विभाग को हिला दिया था। अब यह सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं लग रहा था। यह एक सोचा-समझा अपराध था।
अचानक मीडिया की गाड़ियाँ अपनी-अपनी छतरियाँ लगाकर वहाँ पहुँच गईं। हर्षवर्धन भी जवाब देने के लिए तैयार हो रहा था। मीडिया के कैमरों ने तस्वीरें लेना शुरू कर दिया। मीडिया के सवालों से पहले ही हर्ष ने बयान दिया...
हर्षवर्धन: "पुलिस की जाँच चालू है। बनारस जैसी शांतिप्रिय जगह में, ऐसे हादसे होना, अच्छा नहीं है। आप लोग थोड़ा समय दें। कुछ अपडेट मिलते ही आप सबसे शेयर करूँगा।"
अब बनारस में हर कोई जानना चाहता था कि आखिर हो क्या रहा है। लोग डरे हुए थे और पुलिस भी सवालों के घेरे में थी। हर्षवर्धन के दिमाग में कई सवाल उठ रहे थे। दो मौतें, एक ही जगह, एक ही हालात। यह कोई साधारण घटना नहीं थी। वह समझ चुका था कि यह किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा है। उसने अपनी टीम को हर एंगल से जाँच करने के आदेश दिए। लेकिन इस बार, उसने खुद इस केस को अपने हाथ में लेने का फैसला किया।
पुलिस स्टेशन के बाहर इस बार मीडिया नहीं, उन विदेशियों के रिश्तेदार खड़े थे। वे गुस्से और दुःख से भरे हुए थे।
हर्ष ने उन्हें अंदर बुलाया। अंदर आते ही एक रिश्तेदार ने गुस्से से कहा...
रिश्तेदार: “आप लोगों को क्या लगता है? हमारा बेटा यहाँ सिर्फ घूमने आया था और अब वह इस दुनिया में नहीं है। आपको इसका जवाब देना होगा।”
हर्ष ने उनकी बात को गंभीरता से सुना और शांत स्वर में जवाब दिया...
इन्स्पेक्टर : मैं समझ सकता हूँ। आप लोग चिंता ना करें। हमारे लोग जाँच कर रहे हैं।"
लेकिन उनके दुख और गुस्से को यह जवाब संतोषजनक नहीं लगा। उन्होंने फिर से कहा...
रिश्तेदार: "हम यहाँ सिर्फ़ छुट्टियाँ मनाने आए थे और अब हमें अपने परिवार के सदस्य की लाश लेकर वापस जाना है। ये कैसी सुरक्षा है? पुलिस क्या कर रही है?"
परिवार का गुस्सा और दुःख अब पूरे शहर की चर्चा बन चुका था। बनारस के लोग पुलिस से जवाब मांग रहे थे। लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था। हर्षवर्धन के लिए यह मामला अब और भी पेचीदा हो चुका था, लेकिन उसने हार मानना नहीं सीखा था। उसने इस रहस्य को सुलझाने की ठान ली थी।
हर्षवर्धन ने अपनी कुर्सी से उठकर गहरी सांस ली। दूसरे सैलानी की मौत के बाद हालात और भी गंभीर हो चुके थे। हर सुराग पर बारीकी से नज़र डाली जा रही थी। हर्ष ने उस दुकान के मालिक को सीधे पूछताछ के लिए बुलाया, जहाँ से दोनों ने आखिरी बार खाना खाया था।
हर्षवर्धन ने सिपाही को इशारा किया और दुकानदार को अंदर बुलाने का आदेश दिया। कुछ ही देर में दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई और एक भारी-भरकम आदमी अंदर आया। उसकी चाल में हल्की घबराहट थी। वह दुकान का मालिक था, जिसने शायद कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी मशहूर दुकान दो मौतों के रहस्य का केंद्र बन जाएगी।
दुकानदार ने अंदर आते ही इंस्पेक्टर को नमस्कार किया और बैठने की अनुमति मांगी। हर्षवर्धन ने सिर हिलाकर उसे बैठने का इशारा किया। दोनों के बीच माहौल भारी था। एक ओर जहाँ इंस्पेक्टर की नज़रें गंभीर थीं, वहीं दुकानदार के चेहरे पर बेचैनी साफ झलक रही थी।
हर्षवर्धन ने बातचीत की शुरुआत करते हुए कुछ साधारण सवाल पूछे। उसने दुकानदार से उसकी दुकान के रोज़मर्रा के कामकाज के बारे में जानकारी मांगी। कितने लोग रोज़ आते हैं, क्या बेचा जाता है, और कौन-कौन काम करता है। दुकानदार की आवाज़ में हल्की कंपन थी, जैसे वह जानता हो कि कुछ गड़बड़ हो चुकी है।
इंस्पेक्टर ने सीधे-सीधे पूछा कि क्या दुकानदार को किसी अजीब व्यक्ति या घटना का अंदेशा हुआ था? क्या उसे किसी ऐसी हरकत का पता चला था जो सामान्य दिनों से अलग हो? दुकानदार ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया। उसकी घबराहट ने हर्षवर्धन के शक को और गहरा कर दिया।
हर्ष ने इस बार थोड़ा सख्त होकर पूछा कि उसने आखिरी बार दोनों पर्यटकों को क्या बेचा था। दुकानदार ने धीरे से बताया कि उसने वही सामान्य खाना दिया था, जो वह हर रोज़ अपने ग्राहकों को देता है। कोई खास चीज़ नहीं थी। लेकिन हर्ष को एहसास हुआ कि दुकानदार के शब्दों के पीछे कुछ छुपा हुआ है।
अचानक हर्षवर्धन ने अपना रुख बदलते हुए उसे चेतावनी भरे लहज़े में समझाया, "अगर कुछ भी छुपाया गया तो नतीजे बेहद गंभीर हो सकते हैं।" उसने तुरंत दुकानदार को हिदायत दी कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, वह शहर से बाहर न जाए। दुकानदार ने सहमति में सिर हिलाया और चुपचाप बाहर चला गया।
अब हर्षवर्धन यह समझने लगा था कि मामला सिर्फ़ एक साधारण हादसे का नहीं, बल्कि किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा था।
हर्ष वहीं से अनीता के पास गया। उसे अब मामले की तह तक जाना था। दबाव इतना बढ़ गया था कि पुलिस के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा था।
अचानक अनीता ने हर्ष को सामने देखा, तो वह चौंक गई। थोड़ी देर पहले ही उसने हर्ष से जांच के लिए थोड़ा समय मांगा था। लेकिन अनीता समझ रही थी कि हर्ष इतनी जल्दी में क्यों है। उसने हर्ष से कहा...
अनीता:"हर्ष, हमने दोनों के खून में एक रसायन के निशान पाए हैं। ये कोई सामान्य ज़हर नहीं है। यह किसी कीटनाशक जैसा रसायन है।"
हर्ष ने उसकी बात को समझते हुए कहा...
इन्स्पेक्टर : “कीटनाशक? इसका मतलब...ये कोई साधारण हादसा नहीं है। ये ज़हर कहाँ से आ रहा है?”
अनीता ने हर्षवर्धन की ओर देखा। दोनों की आँखों में एक ही सवाल था। "ये ज़हर आखिर आ कहाँ से रहा है?"
क्या कोई जानबूझकर इस ज़हर को फैला रहा है?
शहर में अब हर जगह इसी बात की चर्चा थी। लोग डर में थे। बनारस की गलियों में इस बार डर सिर्फ बाहरी लोगों का नहीं था, बल्कि अब स्थानीय लोग भी शक के घेरे में आ गए थे।
इस बीच, मीडिया ने इस मामले को उठाया और पुलिस पर दबाव और बढ़ गया। हर न्यूज़ चैनल पर यही चर्चा थी कि क्या बनारस की पवित्रता को किसी ने ज़हर से दूषित कर दिया है?
फॉरेंसिक टीम ने दोनों पीड़ितों के खून में वही रसायन पाया था, जो किसी कीटनाशक जैसा था।
शहर में कीटनाशक कहाँ से आ रहे थे?
क्या दोनों के खून में मिला रसायन कोई बड़े खतरे की घंटी तो नहीं है? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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