डिस्क्लेमर: “यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएँ पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।”
 

सुबह का समय था, और दशाश्वमेध घाट पर हमेशा की तरह हलचल थी। बनारस के घाटों का यह नज़ारा देखने लायक था। जहाँ काम और मोक्ष दोनों एक साथ बहते हैं। घाट पर लोग गंगा स्नान कर रहे थे, धूप और चंदन का तिलक लगाए साधु मंत्रोच्चार कर रहे थे। चारों ओर शंखनाद की मधुर आवाज़ से घाट गूंज उठा था।

फूल बेचने वाले घाट के किनारे अपनी टोकरियाँ सजा कर बैठे थे। वहीं दूसरी ओर नाविकों की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं, जो लोगों को गंगा की सैर कराने के लिए बुला रहे थे। इस रोज़मर्रा की चहल-पहल के बीच, आज कुछ अनहोनी की आहट थी। दशाश्वमेध घाट से निकलते ही रामू की मशहूर मिठाई की दुकान थी। वहीं दुकान, जहाँ से दोनों विदेशी सैलानियों ने आखिरी बार मिठाई खाई थी।

आज भी वहाँ लोगों की भीड़ लगी हुई थी। इंस्पेक्टर हर्षवर्धन ने रामू को पहले थाने बुलाकर पूछताछ की थी। लेकिन आज पुलिस उसकी दुकान पर पूरी टीम के साथ आ गई थी। लोग पुलिस की रेड देखकर घबरा गए थे। जहाँ घाट पर हर दिन आस्था और श्रद्धा की धारा बहती थी, आज वहाँ तनाव का माहौल बन गया था। भीड़ धीरे-धीरे पुलिस की तरफ़ इकट्ठा हो रही थी। हर कोई जानना चाहता था कि आखिर आज ये रेड क्यों हो रही है।

दशाश्वमेध घाट की शांति आज डर में बदल गई थी। गंगा किनारे की हवा पुलिस के आने के बाद भारी हो गई थी। स्थानीय लोग नाराज़ थे, खासकर जब उन्होंने देखा कि उनका जाना-पहचाना मिठाई वाला रामू पुलिस के घेरे में है। पुलिसवालों ने रामू की दुकान में घुसकर छानबीन शुरू कर दी। हर्षवर्धन ने बिना वक़्त गँवाए रामू से सवाल पूछने शुरू कर दिए...

इन्स्पेक्टर: “रामू, उन विदेशी सैलानियों की बॉडी में ज़हर मिला है। कुछ कहना चाहोगे?”

रामू गुस्से में था। ग्राहकों के सामने पुलिस की रेड पड़ना उसकी दुकान की प्रतिष्ठा के लिए सही नहीं था। उसने गुस्से को दबाते हुए जवाब दिया...

रामू: “साहब, मैं कौन सा ज़हर खिलाऊंगा अपने ग्राहकों को? सालों से मेरे बाप-दादा ने यही दुकान चलाई है। अब मैं भी वही काम कर रहा हूँ। ये मेरी रोज़ी-रोटी है। आप मुझ पर इल्ज़ाम क्यों लगा रहे हो?”

रामू का चेहरा लाल हो गया था। आँखों में आँसू आ गए थे। दुकान की सालों पुरानी इज़्ज़त पर आज दाग़ लग गया था। वहाँ खड़ी भीड़ ने भी रामू का साथ दिया। सबको विश्वास था कि रामू निर्दोष है, लेकिन हर्षवर्धन के पास और कोई रास्ता नहीं था। जाँच होनी थी, और वह करना ज़रूरी था।

इन्स्पेक्टर: “फॉरेंसिक टीम को अंदर भेजो। पूरी दुकान की जाँच होनी चाहिए। कुछ ना कुछ सुराग़ ज़रूर मिलेगा।”

फॉरेंसिक एक्सपर्ट अनीता ने जाँच शुरू की। उसकी निगाहें हर कोने को बारीकी से परख रही थीं। हर मिठाई का सैंपल, खाने की हर चीज़ का सैंपल लिया जा रहा था। रामू ने हर्षवर्धन से कहा...

रामू: “आप मुझे दोबारा थाने बुला लेते। मैं खुद आ जाता। लेकिन आपको मेरी दुकान पर ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे मेरी दुकान बंद हो सकती है।”

हर्षवर्धन उसकी बात समझ रहा था। उसने शांत स्वर में जवाब दिया...

इन्स्पेक्टर: “रामू, आपको हमारे साथ सहयोग करना होगा। दो लोगों की जान चली गई है। उनकी बॉडी में ज़हर कहाँ से आया, यह पता लगाना ज़रूरी है। पुलिस का जो काम है, वह तो करना पड़ेगा।”

जाँच जारी थी। अब यह मामला बड़ा मुद्दा बन गया था। दुर्लभ ज़हर का पता लगाना बेहद ज़रूरी था। अनीता ने रसोई के हर मसाले और खाने की हर चीज़ की जाँच की। काफी देर तक उसे कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला। उसने हर्षवर्धन को इशारा करते हुए कहा...

अनीता:  “यहाँ कुछ भी नहीं है, हर्ष। ना कोई संदिग्ध चीज़ मिली, ना कोई सबूत जो यह साबित करे कि यहाँ से ज़हर फैला था।”

यह सुनते ही हर्षवर्धन चिंता में पड़ गया। अगर यहाँ कुछ नहीं है, तो फिर ज़हर आया कहाँ से? हर बार, जब वह एक कदम आगे बढ़ते, कुछ न कुछ उलझन सामने आ जाती। यह केस देखने में ओपन एंड शट लग रहा था, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं था। चौंका के इलाके में भीड़ का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था। हर कोई पुलिस की ओर सवाल भरी निगाहों से देख रहा था।

इन्स्पेक्टर:  “रामू, मुझे बताओ कि तुम्हारा कोई दुश्मन है? कोई ऐसा इंसान जो तुम्हें नुकसान पहुँचाना चाहता हो?”

रामू ने हर्षवर्धन की ओर सोचते हुए देखा और जवाब दिया...

रामू: “साहब, मैं एक मामूली इंसान हूँ। ना मेरी कोई दुश्मनी है, ना ही किसी से लड़ाई। मैं बस अपना काम करता हूँ। सुबह घर से दुकान की चाबी लेकर आता हूँ, दिनभर दुकान में काम करता हूँ, और रात को घर चला जाता हूँ। यही मेरी रोज़ की ज़िंदगी है।”

रामू की आवाज़ में तकलीफ थी। इज्ज़त पर दाग लगने के बाद जो दर्द होता है, वही उसकी आवाज़ में साफ झलक रहा था। यह दर्द उस खड़ी भीड़ तक पहुँच रहा था। सबको यक़ीन था कि रामू बेकसूर है। हर्षवर्धन के मन की उलझनें बढ़ रही थीं। एक के बाद एक, हर रास्ता बंद हो रहा था। तभी उसके दिमाग़ में तुरंत कोई बात आई। उसने अपनी टीम से कहा...

इन्स्पेक्टर: “यहाँ जितने भी लोग काम करते हैं, सबको बुलाओ।”

रामू की दुकान बड़ी थी। वहाँ करीब 30 कर्मचारी थे। एक बार को हर्षवर्धन को लगा कि इतने लोगों से पूछताछ करना यहाँ कैसे मुमकिन होगा। लेकिन उसने फिर भी उनसे सवाल पूछने शुरू किए।

इन्स्पेक्टर: "क्या आप लोग दोनों दिन दुकान पर मौजूद थे?"

स्टाफ भीड़: "हाँ, हम मौजूद थे।"

इन्स्पेक्टर: "उनकी मौत ज़हर से हुई है। क्या आप लोगों को कुछ भी पता है कि ज़हर कहाँ से आया होगा?"

स्टाफ भीड़: “नहीं, हमें कुछ भी पता नहीं।”

हर्षवर्धन को पता था कि ऐसे कुछ भी सामने नहीं आने वाला। एक साथ 30 लोगों से पूछताछ करना आसान नहीं था। उसने आखिरी बार सख्ती से कहा...

इन्स्पेक्टर: “जब तक इस केस की जांच चल रही है, आपमें से कोई भी शहर छोड़कर नहीं जाएगा।”

फिर उसने अपनी टीम को आदेश दिया...

इन्स्पेक्टर: “इन सभी की आईडी के नंबर नोट करो। जितने लोग दोनों मौत के दिन मौजूद थे, उनके नाम लिखो। अगर कोई छुट्टी पर था, तो उसकी जानकारी रामू से लो और उसे थाने बुलाओ।”

हवलदार ने हर्षवर्धन की बातों को नोट किया और तुरंत काम पर लग गया। हर्षवर्धन एक भी सुराग़ नहीं छोड़ना चाहता था। यह बनारस की एक मशहूर दुकान थी, जहाँ रोज़ हज़ारों लोग खाना खाते हैं। इस दुकान पर सवाल उठाना हज़ारों लोगों के विश्वास पर सवाल उठाने जैसा था,मगर सवाल तो उठ चुका था।

भीड़ के स्थानीय लोग रामू का समर्थन कर रहे थे, लेकिन बाहर से आए पर्यटकों का विश्वास डगमगा गया था। जिनके हाथों में नाश्ते की प्लेट्स थीं, उन्होंने उन्हें तुरंत डस्टबिन में फेंक दिया। रामू, जो अब तक हर्षवर्धन के सामने रो रहा था, अपनी सालों की कमाई हुई इज्ज़त मिट्टी में मिलते देख रहा था। हर्षवर्धन को भी उसकी हालत देखकर बुरा लग रहा था, लेकिन वह कानून के हाथों मजबूर था।

इन्स्पेक्टर: “हिम्मत रखिए।”

हर्षवर्धन दुकान से बाहर निकलकर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ा। उसके मन में कई सवाल थे। दुकान की जाँच के बाद भी कुछ ठोस हाथ नहीं लगा था। अपनी गाड़ी में बैठकर वह भीड़ को देख रहा था। तभी भीड़ में से एक आदमी उसके पास आया और धीरे से उसके कान में कहा...

गवाह: “सर, मैंने एक अजीब आदमी को देखा था। मौत से पहले वह यहाँ घूम रहा था। लोग तो बहुत घूमते हैं, लेकिन उसमें कुछ गड़बड़ थी।”

हर्षवर्धन, जो अब तक अपने विचारों में खोया हुआ था, अचानक सतर्क हो गया। उसने उस आदमी को ध्यान से देखा। वह एक आम बनारसी आदमी लग रहा था। मुंह में पान, हाथ में चुने की डंडी, पीला कुर्ता, और सादी धोती। कुर्ते पर पान के दाग थे। हर्षवर्धन ने तुरंत उससे कहा...

इन्स्पेक्टर: “जल्दी गाड़ी में बैठो।”

पुलिस के हाथ जैसे कोई बड़ा सुराग़ लग गया था। भोलेनाथ ने शायद उनकी प्रार्थना सुन ली थी, लेकिन क्या यह गवाह सच बोल रहा था या यूं ही कहानी बना रहा था? हर्षवर्धन ने उसे अपने साथ थाने ले जाने का फैसला किया।

बनारस की गलियों में इस केस का रहस्य और गहरा हो चुका था। कौन था यह संदिग्ध व्यक्ति? क्या उसने सच में कातिल को देखा था? मौत के पीछे कौन सा चेहरा छिपा था? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

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