कितने दिनों से काव्या एक ही नॉवेल हाथ में लिए घूम रही थी, लेकिन उसे पूरा पढ़ पाने का वक़्त ही नहीं मिल पा रहा था। हर बार वो कहानी को उसी चैप्टर पर छोड़ देती, जहां नॉवेल की हिरोइन का ब्रेक-अप होने वाला था। ब्रेक-अप जैसा शब्द सुनते ही काव्या का दिल सहम जाता और वो उसे वापस शेल्फ में रख देती। आज भी वो नॉवेल पढ़ने के लिए गाड़ी में ले आई थी। वो आगे पढ़ना भी चाहती थी, लेकिन उसे आने वाले पन्नों पर लिखी कहानी से अपने ज़ख्म हो जाने का डर भी था। आगे लिखे पन्नों को पढ़ने के बाद उसका मन भारी होने लगा और जैसे ही उसे लगा उसकी आंखें बहने को तैयार हैं। तभी ड्राइवर ने कहा।
ड्राइवर : “मैम! आप यहीं उतर जाइए, आगे जाम लगा है, रेस्टोरेंट सामने ही है।”
काव्या के आंसू तुरंत वापस चले गए और उसने नॉवेल बंद किया और सीट के कोने में रख कर वो गाड़ी से उतर गई। वो दिल्ली में कनॉट प्लेस के एक रेस्टो-बार के सामने खड़ी थी। जहां उसकी कॉलेज की बेस्ट फ्रेंड निकिता के बॉयफ्रेंड, विवेक की बर्थडे पार्टी थी।
उसने एक बार अपने लॉक्ड फ़ोन की स्क्रीन में अपना चेहरा देखा, गहरी सांस ली और बार के अंदर चली गई। अंदर बार में अलग ही चकाचौंध थी, तेज़ वाल्यूम में बज रहे बॉलीवुड म्यूज़िक के बीच काव्या अपनी दोस्त निकिता को भीड़ में ढूंढने लगी। इतनी भीड़ में काव्या के जान पहचान का कोई नहीं था वो सिर्फ निकिता को ही जानती थी। काव्या ने निकिता का फ़ोन भी ट्राई किया लेकिन इतने शोरगुल में कहां किसी को फोन की घंटी सुनाई देने वाली थी। थोड़ी देर बाद काव्या की नज़र विवेक पर पड़ी, जो अपने दोस्तों के साथ शॉट्स पर शॉट्स मारे जा रहा था।
काव्या ने उसके पास जा कर उसको विश किया।
काव्या: “हैप्पी बर्थडे विवेक! ये निकिता कहां पर है कहीं दिख नहीं रही?”
विवेक ने काव्या के पास कान में आ कर कहा,
विवेक: “एक्चुअली वो तो अभी जस्ट पार्टी से निकल गई। उसे तबियत ठीक नहीं लग रही थी। और वैसे भी तुमको पता है न, निकिता को पार्टी करना पसंद नहीं है, शी इज़ वेरी ओल्ड स्कूल गर्ल !”
ये सुन कर काव्या को झटका लगा। विवेक और निकिता एक दूसरे को पांच साल से डेट कर रहे हैं। फिर भी विवेक, निकिता के बिना अपना बर्थ डे सेलिब्रेट कर रहा था। ये कैसा प्यार है? जहां एक इंसान को न दूसरे की परवाह है और न ही उसकी फीलिंग की क़द्र।
अब बिना निकिता के काव्या उस पार्टी में क्या ही करेगी? ये सोच कर उसने वहां से तुरंत डिसाइड कर लिया कि अब वो वहां नहीं रुकेगी। तभी विवेक ने रोक कर कहा,
विवेक: “हेय, वेयर आर यू गोइंग? अभी तो पार्टी शुरू हुई है। मीट माय फ्रेंड्स।”
काव्या ने न चाहते हुए भी सबकी तरफ देखा। तभी उसकी नजर पड़ी कोने में खड़े एक लड़के पर जो सबके सामने ही अपनी जींस की चेन बंद करने की कोशिश में लगा हुआ था।
विवेक ने उसको छेड़ते हुए कहा,
विवेक: “अबे! सामने लड़की खड़ी है, और तू ये क्या हरकतें कर रहा है! छोड़ न चेन!”
ये कहने के बाद ही उस लड़के की नज़र काव्या पर गई काव्या को देखते ही उसके चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल आ गई। और उसने हाथ आगे काव्या की तरफ बढ़ाकर कहा,
आर्यन: “हाय! माइसेल्फ आर्यन!”
उसके अचानक से बढ़ाए हाथ को देख कर काव्या थोड़ा हिचकी। विवेक और उसके साथियों ने आर्यन के जज़्बे को देख कर उसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया।
काव्या नहीं चाहती थी कि उसका और मजाक बने उसने भी हाथ बढ़ा कर आर्यन से हाथ मिलाते हुए कहा
काव्या: “हाय! मेरा नाम काव्या है!”
इतने शोरगुल में आर्यन को सच में काव्या का नाम नहीं सुनाई दिया, या शायद उसने न सुनाई देने का नाटक किया और उसने काव्या के और करीब आ कर पूछा,
आर्यन: “सॉरी क्या नाम बताया आपने, आलिया? अगर आपको दिक्कत न हो तो इस शोरगुल से थोड़ा बाहर चलें?”
काव्या को शुरू में अजीब सा लगा पर उसे आर्यन बाकि लड़कों से थोड़ा अलग नज़र आया। उसने बाहर चलने के लिए हां में सिर हिला दिया। वो दोनो वहां से निकले तो विवेक और उसके दोस्तों ने अजीब आवाजें निकालना शुरू कर दिया था, लेकिन काव्या उन पर ध्यान न देते हुए बार से बाहर आ गई।
आर्यन ने बाहर निकलते ही सवाल किया,
आर्यन: “तो आलिया? तुम क्या काम कर करती हो?”
इस पर काव्या ने मुंह बनाते हुए जवाब दिया,
काव्या: “आलिया नहीं काव्या! मैं इंटीरियर डिज़ाइनर हूं। मकान को घर बनाने का काम करती हूं।”
आर्यन को ये सुन कर बहुत अच्छा लगा उसने कहा,
आर्यन: “वाह! तुम राइटर भी हो क्या?”
काव्या इस पर जोर से हंसी और उसने कहा,
काव्या: “नहीं पर मुझे पढ़ना अच्छा लगता है। मुझे फिक्शन नोवेल्स पसंद हैं।”
आर्यन अचानक से एक्साइटेड होकर बोला,
आर्यन: “वॉव! तुम्हें एक्शन पसंद है या फैंटेसी?”
काव्या ने जवाब दिया,
काव्या: “रोमान्स!”
ये सुन कर आर्यन ने गर्दन हिलाते हुए कहा,
आर्यन: “ओहो! मुझे लगता है रोमांस वो पढ़ते हैं, जिनका या तो दिल टूटा होता है या कभी किसी से दिल लगा नहीं होता।”
ये सुनकर काव्या एकदम ठहर सी जाती है। नॉवेल के पन्नों की तरह उसका गुज़रा हुआ कल, उसकी आंखों के सामने आ जाता है। उसे समेटकर वो आर्यन को कहती है,
काव्या: “आई थिंक, मुझे अब चलना चाहिए। वैसे भी निकिता है नहीं, और तुम अंदर जा कर पार्टी एंजॉय करो।”
अचानक बिना जवाब दिए वहां से जाने की बात को सुनकर आर्यन ने उसे रोकते हुए कहा,
आर्यन: “अरे! मेरा अब अंदर जाने का मन नहीं है। पास में ही एक आर्ट एग्जिबिशन है। क्यों न वहां चलें?”
काव्या को भी आर्टिस्टिक चीजें काफी पसंद थीं। उसने थोड़ी देर सोचने के बाद चलने के लिए हां कह दिया।
उसके बाद, दोनों पास ही में बनी आर्ट गैलरी में पहुंच गए। वहां पहुंचते ही काव्या ने आर्यन से पूछा...
काव्या: “वैसे तुम क्या करते हो?”
आर्यन ने बताया कि वो मार्केटिंग डायरेक्टर है और उसके बहुत बड़े सपने हैं। वो अपना खुद का एक बिज़नेस करना चाहता है। आर्यन जब भी अपने सपनों के बारे में बात करता था, तो उसकी आंखों में एक ऐसी चमक दिखती थी, जो काव्या कॉलेज के वक्त अपने अंदर महसूस करती थी। जॉब मिलने के कुछ साल बाद काव्या बिल्कुल बदल गई। धीरे-धीरे उसका कुछ कर दिखाने का जोश गायब हो गया था।
आर्यन से बात करके उसे ऐसा लगा जैसे उसने अपने सपनों के तहखानों को फिर से खोला हो। आर्यन से बात करते-करते, काव्या अपनी ही किसी दुनिया में गुम गई। उसे पता ही नही चला कि वो अचानक आर्यन से कब अलग हो गई। उसने जब आंख उठाकर देखा तो वो एक पेंटिंग के सामने खड़ी थी। आर्यन और वो रास्ते में कब अलग हुए उसे पता ही नहीं चला। उसने आस-पास आर्यन को ढूंढा तो वो एक झूमर के नीचे खड़ा हुआ मिला। आर्यन वहां खड़े होकर झूमर को एक टक ऐसे देख रहा था, जैसे उसने कोहिनूर हीरा देख लिया हो।
काव्या ने पास आ कर कहा,
काव्या: “ये वही झूमर है क्या? जिसके नीचे शांतिप्रिया की लाश मिली थी।”
ये सुनकर आर्यन चौंक गया और उसने पूछा,
आर्यन: “हां? लाश? कौन शांतिप्रिया?”
काव्या ने हैरानी से पूछा।
काव्या: “तुम शांतिप्रिया को नहीं जानते, तुमने ओम शांति ओम नहीं देखी?!”
आर्यन ने कहा,
आर्यन: “ओह! मूवी! नहीं यार मैंने नहीं देखी। मैं शाहरुख का फैन नहीं हूं।”
ये सुनकर काव्या ने बड़ा सा लेक्चर दे डाला।
काव्या: “हाउ इज़ इट पॉसिबल? क्या ऐसे भी लोग हैं, जो शाहरुख की मूवीज नहीं देखते! शाहरुख की तो सारी फिल्में मैंने फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखी हैं। चाहे वो ज़ीरो हो या फ़ैन। मैं तो उसकी सबसे बड़ी फ़ैन हूं। अगर कभी मुंबई जाना हुआ न, तो शाहरुख़ से मिले बिना वापस नहीं आउंगी।”
काव्या को लगातार बोलते हुए देख कर आर्यन के चेहरे का रंग लाल होता चला गया, तभी उसका फोन बजा।
उसने काव्या की तरफ देखते हुए कहा-
आर्यन- "काव्या, तुम प्लीज़ पेटिंग्स देखो। मैं ये कॉल अटेंड करके आता हूं।”
काव्या ने हां में सिर हिलाया। और उस झूमर को मुस्कुराते हुए देखने लगी। कितने समय बाद काव्या इतना खुलकर किसी से मिली थी। अपने अंदर की ये पर्सनेलिटी तो जैसे वो भूल ही चुकी थी।
वो वही खड़े आर्यन के आने का इंतजार करने लगी। लेकिन इंतजार करते-करते काव्या को अचानक लगा कि काफ़ी वक़्त गुजर चुका था लेकिन आर्यन वापस नहीं आया था।
काव्या ने आस-पास हर जगह देखा लेकिन उसे आर्यन नज़र नहीं आया। उसके पास आर्यन का कॉन्टैक्ट नंबर भी नहीं था।
काव्या को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? उसे वहीं खड़े आधा घंटा हो गया था और उसे कितनी देर तक इंतजार करना पड़ेगा? आर्यन अचानक कहां गया? कहीं वो उसकी बातों से बोर हो कर चला तो नही गया।
ऐसा सोच कर काव्या का मुंह लटक गया। दरअसल ना जाने कितने टाइम के बाद उसे कोई ऐसा शख्स मिला था, जो उसे पसंद आया था।
अपने आपको कोसते हुए उसने अपने ड्राइवर को कॉल किया और वहां से निकल गई। रास्ते में उसने इंस्टाग्राम पर आर्यन का नाम भी सर्च किया। पर क्या फायदा ऐसे इंसान को ढूंढने का जो बिना बताए वहां से अचानक गायब हो गया।
वो रास्ते भर आर्यन के बारे में सोच रही थी। तभी बाहर ज़ोर की बारिश होने लगी। कार की विंडो को नीचे करके काव्या ने बारिश की बूंदों को अपने चेहरे पर आने दिया। उसे बारिश बहुत पसंद थी। बारिश की बूंदों के साथ खेलते हुए उसका मूड ठीक हो गया था।
घर पहुंचने में उसे काफी देर हो गई थी। घर में घुसते ही उसकी मॉम उसके सामने थी। जो बाहर हाल में बैठी काव्या का इंतजार कर रही थीं। काव्या को देखते ही उन्होंने सवालों के तीर छोड़े।
काव्या की मॉम: “टाइम का कोई अंदाजा है कि नहीं? पापा ने कितनी बार मना किया है कि इतनी देर रात तक बाहर मत रहा करो। गुस्से में बिना खाए सो गए हैं वो। और ये कहां भीग के आ रही हो?”
काव्या जानती थी ये बखेड़ा होगा। उसने सांस लेते हुए कहा,
काव्या: “मम्मा! बारिश हो रही है बाहर। और पापा को बता कर ही गई थी। ड्राइवर अंकल को भी साथ ले कर गई थी। नितिका के दोस्त का बर्थडे था न।”
इस पर काव्या की मम्मी ने झल्ला कर कहा,
काव्या की मॉम: “बर्थडे पार्टी में आना जाना अब बंद करो। बहुत हो गया ये सब। कॉलेज खत्म हो गया है। अब तुम्हें अपने कैरियर और शादी के बारे में सोचना चाहिए। अभी भी उस पीयूष के प्यार में तो नहीं हो न?”
पीयूष का नाम सुनते ही काव्या के चेहरे का रंग उड़ गया। और वो बिना कुछ बोले अपने कमरे में आ गई। घरवालों को अच्छे से पता होता है कि बच्चों को चोट कहां पहुचानी है।
कितने हफ्तों से काव्या पीयूष को भुलाने के लिए कई कोशिश कर रही है। लेकिन बार-बार उसका नाम लेकर घर में कोई न कोई उसके जख्मों को ताजा कर देता था।
काव्या अपने बिस्तर पर लेटकर खुद से बड़बड़ाती हुई बोली,
काव्या: “क्या सच में मुझे अब शादी कर लेनी चाहिए। जैसे पीयूष ने कर ली।”
ये कहते हुए उसकी आंख भर आईं। तभी काव्या के पास निकिता का टेक्स्ट आया। दरअसल काव्या ने निकिता को टेस्ट करके उसका हाल पूछा था। उनकी बातों में काव्या ने अपने घर का सारा हाल बताया सिवाय आर्यन से हुई मुलाकात के बारे में छोड़कर।
निकिता ने समझाया कि काव्या को सबसे पहले घर से बाहर निकलने की जरूरत है। घरवालों के साथ रहकर वो कभी भी अपनी life को अपनी तरह से नहीं जी पाएगी। घरवाले उसे रोज़ शादी के लिए फोर्स करेंगे और उसे अपनी चीजों के लिए रोज़ एक लड़ाई लड़नी होगी।
काव्या को निकिता की बात अच्छी लगी। बचपन से काव्या ने अपने मां-बाप की बात मानकर उनकी बताई हर चीज की थी। लेकिन वो अब उनकी बनाई दुनिया से निकलकर अपने लिए एक अलग रास्ता तय करना चाहती थी। और उस रास्ते में शादी की मंजिल अभी कोसों दूर थी। उसने अपने घर के आस पास पीजी और फ्लैट्स देखना शुरू कर दिया था और अगले दिन सुबह उठते ही सबके सामने कह दिया।
काव्या: “मैं अब इस घर में नहीं रह सकती। मैं ये घर छोड़ कर जा रही हूं।”
काव्या की बात सुनकर ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठे सभी लोगों का मुंह खुला का खुला रह गया। काव्या की मां ने गुस्से में काव्या को देख कर कहा,
काव्या की मॉम: “लगता है कल का नशा अभी उतरा नहीं है। चुपचाप बैठ कर पराठे खा। ये डायलॉगबाजी अपने ऑफिस में किया कर। बड़ी आई घर छोड़ने वाली।”
पीछे से उसकी बहन चंचल ने भी अपनी मॉम की बातों पर हंस दिया। काव्या के पापा तो बिना किसी रिएक्शन के बस न्यूज़पेपर की तरफ देखे जा रहे थे।
काव्या ने जोर देकर कहा,
काव्या: “मैंने कोई नशा नहीं किया। मैं सीरियस हूं, और मैंने आप लोगों से अलग रहने का डिसीज़न ले लिया है।”
तभी चंचल ने मजे लेते हुए जवाब दिया,
चंचल: “अच्छा है निकल जा। तेरा कमरा मैं ले लूंगी।”
कोई भी काव्या की बात को सीरियसली नहीं ले रहा था। जिससे परेशान हो कर काव्या अंदर सामान पैक करने चली गई। जब वो सामान पैक करके बाहर आई तब घरवाले लंच करने में लगे थे। उसे सुबह से दोपहर हो गई थी ये कपड़े डिसाइड करने में। लेकिन वो इस फैसले के लिए सीरियस थी, जब घरवालों ने उसे जाते हुए देखा, तब जा कर काव्या के पापा पीछे से बोले,
काव्या के पापा: “अभी भी कोई सामान लेना हो तो चेक कर लो। क्योंकि यहां से निकलने के बाद वापस आने का रास्ता बंद है!”
काव्या के पापा ये बोल कर अंदर कमरे में चले गए। काव्या की जिंदगी सच में बदलने वाली थी। उसने ठान लिया था कि वो अकेले, परिवार से अलग अपनी जिंदगी जिएगी।
अपने कदम पीछे लेने के बजाय, काव्या गेट की तरफ़ आगे बढ़ी। तभी पीछे से मां की आवाज़ आई।
काव्या की मॉम: “फिर सोच ले! अकेले जिंदगी बताना आसान नहीं होता! और वो भी एक लड़की का?”
काव्या सिर्फ ये कहकर घर से बाहर निकल आई।
काव्या: “सी यू सून मॉम!”
क्या काव्या बिना पेरेंट्स की हेल्प के अपनी जिंदगी अपनी तरह से बिता पाएगी? क्या होगा जब काव्या और आर्यन की मुलाकात दोबारा होगी? क्या आर्यन का काव्या को मिलना महज इत्तेफाक था या फिर नियति ने उसकी ये मुलाकात पहले से ही तय कर रखी थी? जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड।
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