‘कुड़िया घाट’ लखनऊ की एक बस्ती जहाँ के घरों में लोग दिन भर की मेहनत के बाद मछरों और गर्मी से लड़ते हुए कुछ पलों के लिए अपने सपनों में सुकून खोजने की कोशिश करते हैं. चौबीस घंटों में ये वही 2 घंटे हैं जब इस बस्ती की गलियां कुछ देर के लिए आराम कर पाती हैं लेकिन आज इस रात के अँधेरे में भी इन्हें चैन नहीं है.
क़दमों की धीमी धीमी आहट और एक कोमल हाथों से टपक रहे खून ने इन गलियों को आधी नींद से जगा दिया है. उन तंग गलियों में गाढ़े पीले रंग की साड़ी में लिपटी एक लड़की अपने धीमे क़दमों के साथ आगे बढ़ रही है. वो लड़की जिसके रूप की चमक इतनी तेज है कि देवता भी उसे देख मोहित हो जाएं. मगर इस समय अप्सराओं सी वो लड़की मौत की देवी से कम नहीं लग रही. फैले हुए काजल से रंगी उसकी आँखों में जैसे खून उतर आया हो, उसके रेशमी बालों को जैसे किसी तूफ़ान ने उजाड़ने की कोशिश की हो, उसके मखमली गोरे गालों पर खून के छींटे जैसे किसी ने दूध में चुटकी भर सिंदूर छींट दिया हो.
उस मौत की देवी की आहट से बस्ती के कुत्तों ने भी भौंकना बंद कर दिया था, मानों जैसे इस आहट से उनकी पुरानी पहचान हो. एक काला कुत्ता इस लड़की के पीछे ऐसे चल रहा था जैसे उसकी सुरक्षा का जिम्मा उसी के हाथ में हो.
लड़की के कदम बस्ती के एक कच्चे से मकान के आगे आकर रुक गए थे. उसने अपनी नाजुक हथेलियों में कुछ दबाया था जिसे उसके पीछे चल रहा कुत्ता कुछ ऐसे देख रहा था मानों उसे उसी का इंतज़ार हो. उसने अपनी हथेलियों से उस खून से सनी चीज़ को आज़ाद कर दिया और उस कुत्ते ने उसे ज़मीं पर गिरने से पहले ही लपक लिया. ये खून से सना एक मांस का टुकड़ा था. जो अब उस कुत्ते की खुराक बन चुका था.
लड़की ने उस कच्चे से मकान की दीवार से एक ईंट खिसकाई और वहां से एक चाबी निकाली. मकान का दरवाज़ा इतना बूढा हो चुका था की एक लात की ज़ोरदार मार से ज़मीन चूमने लगे मगर लड़की ने उस बूढ़े दरवाज़े का मान रखते हुए उस पर लटके ताले में चाबी लगा दी. वो पुराना जंग खाया ताला इतना ज़िद्दी था कि एक दो कोशिशों में खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था. लड़की भी उसकी अकड़ तोड़ना अच्छे से जानती थी. उसने तो बड़े बड़े इंसानों की अकड़ तोड़ दी थी तो भला ये ताला क्या चीज़ थी. उसने ताले को दरवाज़ें में दे पीटा और चाबी ने ताले की ज़िद्द तोड़ दी।
वो छोटा सा कमरा जिसके एक कोने में एक छोटी सी रसोई थी. बस्ती ऐसी जहां औरतों को नहाने धोने के लिए यहाँ के दो कॉमन बाथरूम के आगे लाइन लगानी पड़ती थी. वो सुंदरता की मूरत जो आम जिंदगी में अपनी अदाओं से किसी का भी दिल जीत ले इस समय इतनी भयानक लग रही थी कि उसे देख किसी की भी चीख निकल जाए. लेकिन उस लड़की को इस समय खुद को देख कोई अफ़सोस नहीं था. जिस शरीर से उसे घिन होती जा रही थी आज उसे उसी खून से सने शरीर में सुकून आ रहा था.
उसने अपने दिल पर जमी गंदगी उतार फेंकी थी अब उसे शरीर पर लगी गन्दगी उतारनी थी. उसने दरवाज़ा बंद किया और कोने में पड़ी पानी की बाल्टी को एक नज़र देखा, आगे बढ़ी और पूरी बाल्टी खुद पर उड़ेल ली, वो पानी उसके मखमल से बदन से खून निचोड़ रहा था. पूरे कमरे का फर्श उस खून सने पानी से लाल हो चुका था. जैसे जैसे उसके शरीर पर लगा खून पानी के साथ बह रहा था वैसे वैसे बाहर से आ रही पुलिस सायरन की आवाज़ तेज़ होती जा रही थी. मानों इस सायरन का शोर उसे चेतावनी दे रहा था कि मैं तेरी मौत हूँ और तेरे पास पास आ रही हूँ.
सर से पैर तक भीगी उस लड़की की आंखें दरवाज़े पर टिक गयीं, मानों जैसे सायरन की चेतावनी का जवाब देते हुए कह रही हो आजा, मैं अब वो खिलौने जैसी नाज़ुक रेशमा नहीं, मैं मौत की देवी हूँ. तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. इसी के साथ दरवाज़े पर तेज दस्तक हुई. उस पार कोई था जो दरवाज़े को पीट रहा था. लड़की दरवाज़े की तरफ देख ऐसे हंसी जैसे मौत अपने शिकार को देख कर हंसती है. पूरे कमरे में उसकी भयानक हंसी का शोर था
रेशमा: “हा हा हा हा हा”
हर लड़की लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में ही पैदा होती है मगर समय की क्रूरता उसे चंडी और काली भी बना सकती है. हमारी रेशमा भी एक मासूम कोमल लड़की ही थी, जिसके पास अप्सराओं सा रूप सरस्वती सी बुद्धि और लक्ष्मी से गुण थे. अगर रतौली गाँव के लोगों ने उसे अच्छे से पहचाना होता तो उसे पा कर खुद पर गर्व करते. वो लड़की किसी दिन एक बड़ी अधिकारी बन कर अपने इस छोटे से गाँव का नाम देश भर में रोशन कर सकती थी लेकिन इस गाँव ने उसे इतने घाव दिए कि अपने अंदर की मासूमियत को मार कर उसने चंडी का रूप धर लिया.
उत्तर प्रदेश का एक गाँव रतौली, जहाँ सरकार की एक दो योजनाओं ने इसे विकसित गाँवों की लिस्ट में तो ला दिया था मगर यहाँ के लोगों की सोच आज भी जात-पात, अमीरी गरीबी और लड़कियों को घरों में कैद रखने तक ही सिमटी हुई थी. बेटियां पैदा होना यहाँ आज भी एक मातम जैसा ही था, जिनके यहाँ पैदा हो गयीं वहां इनकी दुनिया अपने घर की दहलीज तक ही सिमट कर रह जाती. लड़कियों के लिए पढ़ाई तो किसी परी कथा की तरह थी यहाँ . जिस किसी ने अगर थोड़ी हिम्मत कर के अपनी बेटियों को पढ़ाना चाहा, पूरा गाँव उसके खिलाफ हो गया. लड़कियों को लेकर यहाँ के लोगों की एक ही सोच थी कि, जितनी जल्दी हो सके इनकी शादी करा दो. हाल ही में सबरी की 12 साल की बेटी की शादी 30 साल के दुल्हे से हुई है.
इसी कीचड़ में वो सीप की मोती रहती थी. नाम था रेशमा, उसके बाबु जी ने रखा था. हरि राम, जो अपने शुरूआती दिनों में दिल्ली कमाने गए थे. 4 साल एक स्कूल में गार्ड की नौकरी करने के बाद वो कुछ मजबूरीयों के चलते गाँव लौटे लेकिन वहां से एक नयी सोच, 12 हज़ार रुपये और अपनी 5 साल की बेटी झुनकी के लिए नया नाम लेकर वापस लौटे थे. जिस स्कूल में वो गार्ड थे वहां एक प्यारी सी बच्ची पढ़ती थी, जिसे देख उन्हें लगता की उनकी झुनकी को भी अगर स्कूल ड्रेस पहना दे तो वो भी हूबहू ऐसी ही दिखेगी. वो उस लड़की में झुनकी को देख लिया करते थे. उसका नाम था रेशमा और वहीं से वो इस नाम को अपनी बेटी झुनकी के लिए चुरा लाये थे.
आते ही उन्होंने सबसे पहला काम यही किया कि अपनी बेटी का दाखिला स्कूल में करा दिया और नाम लिखवाया रेशमा. जो उसे झुमकी पुकारता बाबू उसको खूब डांट लगाते. रेशमा बचपन में जितनी प्यारी दिखती थी उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत हो गयी है. उसने अपने 18वें साल में कदम रख लिया है. उसके नाम पर ये शर्तें लगती थी कि पास 20 गाँवों में सुंदरता का कंपटीशन रख दिया जाए तो कोई लड़की रेशमा के नाख़ून बराबर भी नहीं पायी जाएगी. तभी तो उसके चर्चे 20 गाँवों के नए पुराने सभी लड़कों में आम थे. रतौली को तो दूरे गाँव वाले रेशमा का रतौली कह के पुकारते थे.
उसे स्कूल भेजने पर पूरे गाँव ने हरि राम को खूब सुनाया लेकिन हरि ने एक ना सुनी. दो बेटों को खोने के बाद पैदा हुई रेशमा को उसने मन से पढ़ाया. वो गाँव के स्कूल में अकेली लड़की थी जो पढने जाती थी. रेशमा भी कभी इस बात से नहीं डरी कि वो अकेली है. उसके साथ उसका दोस्त मृदुल जो था. मृदुल के होते हुए किसी लड़के की मजाल नहीं थी कि वो रेशमा के आस पास भी मंडरा सके. बाबू जी की दिलेरी और मृदुल के साथ के सहारे रेशमा ने फर्स्ट डिविजन से बारहवीं पास कर ली थी.
रेशमा की पढ़ाई में उसके बाबू जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। हरि ने शहर छोड़ने के बाद अपनी थोड़ी सी ज़मीन पर खेती और दूसरों के खेतों में मजदूरी कर के अपना घर चलाया है लेकिन उन्होंने रेशमा की पढ़ाई में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. वो चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ लिख कर टीचर बने जिससे कि वो अपने जैसी गाँव की और लड़कियों को भी पढने के लिए प्रेरित कर पाए.
रेशमा भी बचपन में ही अपने पिता के त्याग को समझ गयी थी. वो भी अपनी पढ़ाई में कोई कमी नहीं छोडती थी. तभी तो उसने बाहरवीं में पूरे जिले में टॉप किया. जिसके बाद दिल के अमीर हरि राम ने पूरे गाँव में मिठाई बंटवाई थी.
वैसे तो हर कहानी में एक राम और एक रावण होता है मगर इस गाँव में सिर्फ रावण था, नाम था छुन्नू सेठ. उम्र में 45 की गिनती पूरी कर चुका छुन्नू उन मर्दों में से था, जिनका पेट घर की एक रसोई से नहीं भरता, जिन्हें रोजाना अलग अलग होटलों के खाने का स्वाद चखने की आदत थी. कहने को घर में एक बीवी ज़रूर थी मगर छुन्नू के लिए उसकी हैसियत एक नौकरानी से ज्यादा नहीं थी. उसे हर रोज़ किसी नयी तितली की तलाश रहती थी. उछल कूद करती खुश लड़कियां उसके मन में एक गुस्सा पैदा करती थीं. वो उन्हें अपनी बाहों में भर कर उनकी ख़ुशी कुचल देना चाहता था.
अगर छुन्नू सेठ से लिए कर्ज और उसकी क्रूरता का डर भूल कर लोग उसके खिलाफ बोलने लगें तो आसपास के गाँवों समेत शायद ही कोई घर ऐसा होगा जिस घर की बेटी पर उसने हाथ डालने की कोशिश ना की हो. ये तो उसका खौफ कहिये कि कोई अपनी ज़ुबान नहीं खोलता था. उसके डर से कई घर वालों ने जल्दबाजी में अपनी लड़कियों की बिना सोचे समझे शादी करा दी थी. लड़कियां उसके बुलेट की आवाज़ सुनते खौफ से भर जाती थीं. उसके आते ही हल्ला उठ जाता था, “भागो, कमीना छुन्नू आ गया”
अब ऐसी वहशी नज़रों से किसी आम लड़की का बच पाना मुश्किल था, हमारी रेशमा तो रूप की देवी थी. छुन्नू को ये भ्रम था कि वो किसी भी लड़की को बल से नहीं तो धन से हथिया ही लेगा. रेश्मा पर उसकी गन्दी नज़र तभी पड़ गयी थी जब वो आठवीं में थी. वो उसके पूरी तरह जवान होने का इंतज़ार कर रहा था. अभी हाल ही में रेशमा के जिले भर में अव्वल आने पर जब कलेक्टर बाबू के हाथों उसे सम्मान मिला. वहां छुन्नू की नज़र उस पर दुबारा से पड़ी. हल्के गुलाबी रंग का खूबसूरत सलवार सूट पहने, बालों की एक चोटी बनाए, बिना किसी साज श्रृंगार के बला की खूबसूरत लग रही रेशमा जब स्टेज पर पहुंची तो उसे देख छुन्नू सेठ के हवस की आग भड़क उठी.
उसने उसी दिन सोच लिया कि अब जब तक रेशमा की जवानी का रस नहीं पा लेगा तब तक वो किसी और लड़की की तरफ नहीं देखेगा. छुन्नू अब रेशमा के लिए पागल हो उठा था. लखनऊ का एक बड़ा बिल्डर और छुन्नू का सबसे कमीना दोस्त अभिराज भी हैरान था. उसने छुन्नू को कभी किसी लड़की के लिए इतना पागल नहीं देखा. उसने छुन्नू से ये वादा किया कि चाहे जो भी करना पड़े वो उसके दिल की ये तमन्ना ज़रूर पूरी करेगा. छुन्नू को ये यकीन था, अगर अभिराज ने कह दिया है तो चंद ही दिनों में रेशमा मेरी बाँहों में होगी.
क्या रेशमा छुन्नू के जाल में फंस जाएगी?
रेशमा को पाने के लिए छुन्नू आगे क्या करेगा?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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