स्टेज से उतरती रेशमा को छुन्नू ललचाई नज़रों से देख रहा था. उसे डर था कि आज अगर हाथ से निकल गयी तो फिर जाने कब ऐसा मौक़ा आये. उसने अभिराज से रेशमा को बोतल में उतारने का कोई सॉलिड आइडिया बताने के लिए कहा. छुन्नू का दिमाग बस एक ही जगह अटका रहता है, शराब और शबाब को छोड़ वो बाकी कुछ और नहीं सोच सकता, इसीलिए सोचने का जिम्मा उसने अभिराज को दे रखा है. अगर कमीनेपन का कोई कोर्स होता तो अभिराज के नंबर छुन्नू से ज्यादा होते. दोनों में बस इतना ही फर्क है कि शहर में रहने की वजह से अभिराज अपना कमीनापन छुपा कर रखने का हुनर जानता है, वहीं छुन्नू डंके की चोट पर कहता है कि वो दुनिया का सबसे बड़ा कमीना है.
अभिराज भी ये जानता है कि अगर छुन्नू ने रेशमा को पा लिया तो उसे भी मज़े मिलेंगे और ऐसी क़यामत लड़की को वो भला कैसे जाने दे सकता है. उसने तुरंत दिमाग लगाया और एक आइडिया सोच लिया. उसने जल्दी से छुन्नू के कान में कुछ कहा जिसके बाद छुन्नू का हाथ सीधे उसकी मूंछों पर गया. उसने अपनी जहरीली मुस्कान के साथ मूंछों को ताव दिया और उठ खड़ा हुआ.
वो जल्दी से रेशमा और उसके पिता हरि के पास पहुंचा, अभिराज भी उसके पीछे हो लिया.
हरि और रेशमा के नजदीक आते ही छुन्नु सेठ ने रेशमा को देख बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ पूछा,
छुन्नू: का हो हरिया मिठाई बांटी जा रही है? बेटी के पास होते ही उसका ब्याह तो नहीं तय कर दिए?
छुन्नु के सवाल पर हरि चेहरे पर खुशी और गर्व भरी मुस्कराहट के साथ बोल पड़े,
हरि: "अरे न न सरपंच जी, ऐसन बात नहीं है. अभी तो इसको और पढ़ना है, मास्टरनी बनना है. गाँव की और बेटी लोग को पढ़ाना है. ई मिठाई तो इसके 12वीं में जिला टॉप करने की खुशी में बांट रहे हैं!.."
छुन्नू ने हरि की बात सुन ऐसे मुंह बनाया जैसे वो अपने मुंगेरीलाल के सपनों का बखान कर रहा हो. जिस गाँव में किसी लड़की ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा वहां ऐसी बातें करने वाले को लोग पागल ही समझते हैं. हालांकि हरि को इस बात से फर्क कहाँ पड़ता है. उसने मिठाई का डब्बा खोल छुन्नू सेठ और अभिराज के साथ साथ बाकी सबको मिठाई दी।
छन्नू ने मिठाई अपने पीछे खड़े एक चेले को पकड़ा दी और अपने गमछे में हाथ पोंछते हुए बोला.
छुन्नू: "रेशमा तो पहले से ही जिला टॉप है. उसके जैसी लड़की…मने सुन्दर सुशील और पढ़ाकू लड़की इस जिले क्या पूरे प्रदेस में लालटेन लेके खोजने से नहीं मिलेगी. वैसे भी इतनी सुकुमार लड़की को मास्टरनी बना के मिट्टी फांकने क्यों भेजोगे. इस से अच्छा है हमरी हवेली पर आके हिसाब किताब का काम देखे. सुने हैं कंपूटर भी चला लेती है.”
अभिराज ने यहाँ अपनी भी दाल गलाने के लिए छन्नू की बात में हामी भरी,
अभिराज: “और क्या, मस्त एसी में बैठ कर काम करेगी. यहाँ अच्छा काम कर ली तो इसे हम लखनऊ वाले ऑफिस में काम देंगे, रहना खाना और मोटी तनख्वाह होगी. सब मैडम जी मैडम जी कहेंगे.”
अभिराज की बात पर छन्नू ने उसे ऐसे घूरा जैसे कह रहा हो …साले तू मत सुधरना.
हरि भी बाकी गाँव वालों की तरह उसके कर्ज़े तले दबा था. कई बार वो अपनी ज़ुबान खोल कर पछता चुका था. इसलिए यहाँ वो चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाया. उधर रेशमा जानती थी कि ये सब सरपंच के हथकंडे हैं, वो बस उसकी पढ़ाई छुडाना चाहता है. उसने पहले भी गाँव वालों के साथ मिलकर हरि को इसके लिए भड़काने की कोशिश की है मगर यहाँ उसकी एक ना चली.
बाबू जी कुछ बोलते उससे पहले ही रेशमा ने कहा
रेशमा: “नही सरपंच काका, मुझे तो कॉलेज जाकर पढ़ना है और एक टीचर बनना है. मैं तो कल बाबू जी के साथ शहर भी जा रही हूँ कॉलेज में एडमिशन करवाने...बाबा ने आपको बताया नही क्या?"
छुन्नू सेठ से रेशमा की तीखी बातें बर्दाश्त ना हुईं. बाकी मौजूद लोग भी ये सुन कर ताव में आ गए. हरि समझ गया कि कॉलेज वाली बात सुन कर छन्नू पक्का कोई तमाशा शुरू करेगा. उसने रेशमा को चुप रहने का इशारा भी किया. उसने खिसियाते हुए छुन्नू सेठ से कहा,
छुन्नू: " हम चलते हैं, और भी जगह मिठाई बाटनी है.."
दोनों बाप बेटी वहां से चले गए मगर छुन्नू सेठ वहां खड़ा सुलगता रहा. जब उसे कोई इस तरह से चुनौती देता था तो वो उस सांप की तरह जहरीला हो जाता था जिसके पूँछ पर किसी का पैर पड़ जाता है. छुन्नू ने रेशमा की बात को चुनौती की तरह ही लिया. उसे लगा जैसे वो कह रही हो कि मैं कल जा रही हूँ कॉलेज में दाखिला लेने, दम हो तो रोक लेना.
छन्नू ने एक बार अभिराज की तरफ देखा, वो भी बहुत गुस्सा था. इसके बाद उसने जेब से फोन निकाल किसी को फोन किया और अपने चमचों और गाँव के कुछ लोगों को लेकर हरि के घर की तरफ निकल गया.
इधर घर पहुँचते ही हरि रेशमा पर चिल्लाने लगा
हरि: “तुझे क्या ज़रुरत थी उस छन्नू के सामने बोलने की. बेटी हम ऐसे लोग नहीं हैं जो अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकें. एक बार तेरा एडमिशन हो जाता फिर वो कुछ ना कर पाता. अभी वो ना जाने क्या करेगा.”
रेशमा: “मगर बाबू जी…”
रेशमा कुछ और बोल पाती उससे पहले ही बाहर से छन्नू की दहाड़ सुनाई दी.
घर के बाहर से ही छुन्नू ने चिल्लाना शुरू किया,
छुन्नू: "बड़ा आया अपनी लड़की को शहर भेजने वाला, वो भी पढ़ने के लिए। इत्ते सालों तक सब बर्दाश्त किया लेकिन अब और नहीं। अरे एक को देख कर बाकी भी खूँटें से भागने लगेंगी, हमारे गाँव की तो इज़्ज़त ही मिट्टी में मिल जाएगी।"
छुन्नू के सुर में सुर मिलाते हुए उसके कुछ चमचों ने भी ये बात दोहराई, "मालिक सही कह रहे हैं, हरिया को यहीं रुकना होगा. नहीं रुका तो हम उसे रोकेंगे.”
घर के बाहर इतनी भीड़ और ऐसी बातें सुन कर हरि का कलेजा काँप गया. रेशमा का मन हुआ कि वो झाड़ू उठाये और एक एक को पकड़ कर पीटने लगे मगर उसे बाबु का डर था. रेश्मा की माँ सुजाता, जिसने हमेशा अपने परिवार की भलाई का सोचा और पति की हाँ में हाँ मिलाई, अब वो डरने लगी थी। हरिया ने रेशमा को कमरे में रहने का इशारा किया और खुद बाहर निकला...
हरि: "अरे आप लोग क्यों तमाशा लगा रहे हैं? क्या हुआ? सेठ जी अभी कुछ देर पहले तो आप बिटिया के टॉप करने पर खुश हो रहे थे।"
छुन्नू ने हरिया की बात को काटते हुए कहा,
छुन्नू: "हो रहा था, क्यूंकि मुझे लगा था की बाहरवीं करके तेरा और तेरी लड़की का पढाई का भूत उतर गया होगा, लेकिन तू तो लम्बी दौड़ की तैयारी कर रहा है और वो भी ऐसी दौड़ जिससे गाँव का नाम खराब होगा ।"
हरि को सब समझ आ रहा था की छुन्नू के इस तैश की असली वजह क्या है, फिर भी वो अपने परिवार की इज़्ज़त, ख़ास कर अपनी रेश्मा के लिए चुप रहा। रेशमा से और बर्दाश्त नहीं हुआ, वो बाहर निकली और सबके सामने बोली,
रेशमा: “पढ़ाई पर सबका अधिकार है. तुम्हारे डराने से हम नहीं डरने वाले, अपना सपना पूरा कर के ही मानेंगे. कॉलेज में एडमिसन होगा और कल ही होगा.”
रेशमा की इस बात ने छन्नू के घमंड पर बड़ी गहरी चोट की थी. वो रेशमा को ऐसे घूर रहा था मानो अभी उसके साथ कुछ गलत कर उसका घमंड तोड़ देगा. छन्नू कच्चा खिलाड़ी नहीं था. उसे पता था हरि और उसकी बेटी इतनी जल्दी नहीं मानेंगे. वो पहले भी ऐसी कोशिश कर चुका था लेकिन नाकामयाब रहा. इस बार उसके लिए बात भी बड़ी थी और उसके पास योजना भी नयी थी.
रेशमा ने अपनी बात ख़तम की ही थी कि इतने में पुलिस की जीप सनसनाती हुई उसके दरवाजे पर आ कर रुकी. जीप से उतरा दरोगा विक्रम, छन्नू का दूसरा दोस्त, जिसे उसने तभी फोन कर दिया था जब वो हरि के घर के लिए निकला था.
सबसे पहले दरोगा विक्रम की नज़र पड़ी रेशमा पर, जिसे देखते ही हमेशा की तरह उसके अंदर के बुरे ख़याल उस पर हावी होने लगे. उसने खुद को सम्भालते हुए कहा “क्या हुआ सरपंच जी, इतनी भीड़ क्यों है?”
छन्नू सेठ तुरंत ही बदल गया, उसने हरि की तरफ इशारा करते हुए कहा
छुन्नू: “ये साला चोर है, जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया. इसने मेरी सोने की घड़ी चुरा ली है.”
पूरे गाँव ने देखा था कि छन्नू हरिया के घर पर हमला करने और उसकी बेटी का कॉलेज एडमिशन रुकवाने आया था मगर उसने दरोगा के सामने नयी कहानी बना दी. इसके बावजूद किसी ने एक लफ्ज़ तक नहीं कहा.
हरि और उसका परिवार ये सुन कर हैरान रह गए. हरि हाथ जोड़ते हुए बोला
हरि: “मालिक घडी की बात beech में कहाँ से आ गयी. हमने आपकी कोई घडी नहीं चुराई. “
इतना सुनते ही छन्नू ने उसकी जेब में हाथ डाल दिया और बोला
छुन्नू: “नहीं चुराई तो ये क्या है?”
उसने उसकी जेब से एक घडी निकाली. दरअसल जब दोनों में बहस हो रही थी तो छन्नू के एक चमचे ने चुपके से हरि की जेब में ये घड़ी डाल दी थी. ये छन्नू के प्लान का हिस्सा था.
विक्रम ने आगे बढ़ कर हरि का कॉलर पकड़ लिया “साले चोर, चल थाने में तेरी धुलाई करता हूँ.”
छन्नू ने आगे बढ़ कर हरिया के कान में कहा
छुन्नू: “अब कैसे कराएगा एडमिसन? हमसे पंगा बड़ा महंगा पड़ता है हरिया.”
हरिया समझ गया कि ये उसकी बेटी का एडमिशन नहीं होने देगा. हरिया की पत्नी सुजाता छन्नू के पैर पकड़ के बोली “मालिक रहम खाइए, जैसा कहेंगे वैसा ही होगा. जल्दी ही इसका बियाह कर देंगे, नहीं पढेगी आगे. आप बस इनको छोड़ दीजिये.”
रेशमा खुद को असहाय महसूस कर रही थी. हरि भी कुछ नहीं बोल पाया.
छन्नू ने अपनी विजयी मुस्कान के साथ कहा
छुन्नू: “अगर तेरा पति मेरे जूते पर नाक रगड़े और कहे कि वो दोबारा से ऐसी गलती नहीं करेगा तो शायद मैं इसे छोड़ दूं.”
सुजाता ने अपने पति के आगे हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना की कि जैसा वो कह रहा है वैसा कर दीजिये. हरि ने भी कुछ सोच कर उसके जूते पर नाक रगड़ते हुए माफ़ी मांगी. इधर रेशमा से ये सब देखा नहीं जा रहा था. उसका मन हो रहा था कि अभी वो इन सबका सर्वनाश कर दे. हरिया के माफ़ी मांगने के बाद सब उसके दरवाजे पर थूक कर चले गए.
एक लड़की को छल और बल के दम पर पढने से रोकने के बाद छन्नू और गाँव का ये पूरा समाज बहुत गर्व महसूस कर रहा था. मगर ना हरिया रुकने वाला था ना रेशमा. उनके जाने के बाद हरिया ने सुजाता और रेशमा को अपना प्लान बताया. उसने कहा कि हम सब कल सुबह की बस से शहर निकल जायेंगे. वहां रेशमा का कॉलेज में एडमिशन कराएँगे. पूरा परिवार कुछ दिन तक उनके मामा के यहाँ रहेगा और जब यहाँ मामला शांत हो जायेगा तो लौट आएगा. सबको कह दिया जायेगा कि रेशमा के लिए रिश्ता देखने गए थे.
सुजाता बहुत डरी हुई थी उसने दोनों को समझाया कि ऐसा ना करे. अगर छन्नू इस बारे में जान गया तो तबाही मचा देगा. मगर दोनों बाप बेटी नहीं माने.
क्या हरि की योजना रेशमा को कॉलेज तक पहुंचा पायेगी?
क्या होगा जब छुन्नू सेठ को पता चलेगी सच्चाई?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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