अगर इंसान जो सोचता और वैसा ही होता तो हर कोई कितना सुखी होता ना! मगर ऐसा नहीं होता, हम सोचते कुछ और हैं और होता कुछ और है. गरीब किसान हरि ने क्या ही बड़ा सोच लिया था. उसे तो बस अपनी मेहनत की कमाई से अपनी बेटी को पढ़ा कर टीचर बनाना था. उसने तो इसके लिए किसी के आगे हाथ भी नहीं फैलाए थे लेकिन लोग फिर भी उसके दुश्मन बन गए. 

हरि और रेशमा सुजाता के साथ सुबह वाली बस के इंतजार में खड़े हैं. सुजाता का दिल घबरा रहा है. वो अभी भी कहे जा रही है कि घर लौट चलते हैं लेकिन बाप-बेटी अपनी ज़िद पर अड़े हुए हैं. हरिया ने गमछे से और सुजाता ने साड़ी के पल्लू से अपना मुंह ढका हुआ है. रेशमा किसी की पहचान में ना आये इसलिए उसकी माँ ने जबरदस्ती उसे अपनी एक पुरानी साड़ी पहना दी है. हमेशा सूट पहनने वाली रेशमा से ये साड़ी सम्भाली नहीं जा रही. उसने भी पल्लू से अपना चेहरा ढकने की कोशिश की है लेकिन उसे क्या पता कि उसके ही नहीं आसपास के गाँवों के लोग भी उसे बस एक झलक में पहचान लेते हैं. 

छन्नू के एक चमचे मनोहर ने भी रेशमा को पहचान लिया है. उसे समझ आ गया है कि हरिया रेशमा को लेकर कॉलेज जा रहा है. उन्हें देखते ही उसने अपनी फटफटिया की स्पीड तेज कर ली और सीधे छन्नू के दरवाजे पर जा कर रुका. उसने हांफते हुए छन्नू को सब कुछ बताया. जिसे सुनने के बाद छुन्नू का गुस्सा फट पड़ा. उसने अभिराज से चिल्लाते हुए कहा

छुन्नू: “ये कुतिया कुछ ज्यादा ही उछल रही है. आज इसकी सारी अकड़ मैं अपनी जूती के नीचे रौंद दूंगा. अभी तक मैं उसे आसान तरीकों से पाना चाहता था लेकिन अब मैं इसे कुचल दूंगा, जिसके बाद इसकी पूरी जवानी मेरी रखैल बन कर कटेगी. रे मनोहरवा, जाओ सब लौंडा लोग को इकठ्ठा कर लो तुरंत. बोलो बस स्टॉप पर पहुंचे.”

इतना कह कर छन्नू अभिराज के साथ अपनी बुलेट पर सवार हो बस स्टॉप की तरफ निकल गया. 

बस आ चुकी थी. हरि… रेशमा और सुजाता के साथ बस में बैठ गया और बस चल दी. सुबह का समय था इसलिए बस में 2-3 लोग ही और थे. आगे बाजार पर ये बस पूरी भर जाएगी. बस में बैठी रेशमा सोच रही है कि काश उसका दोस्त मृदुल उसके साथ होता तो उसे इतना सब नहीं सहना पड़ता. मृदुल गाँव के मुखिया का बेटा है. उसके सामने छन्नू भी ज्यादा नहीं उछलता. आसपास के गाँवों के आधे लड़के उसके कहने से चलते हैं. वो जब तक था तब तक रेशमा को कोई छू भी नहीं सकता था. 

पहली क्लास में पढ़ रही रेशमा जब स्कूल में बैठी रो रही थी क्योंकि वो क्लास में अकेली लड़की थी जिस वजह से बाकी लड़के उसे चिढाते थे. कहते थे तू भी लड़का ही है, लड़की होती तो स्कूल ना आती. तब एक लड़का उसके पास आया था और उसे समझाने लगा “तुम जितना जड़ोगी ये सब तुम्हें उतना ही डरायेंगे. आज के बाद डरना मत मैं तुम्हारे साथ हूँ.”

बस उस दिन के बाद उसने कभी रेशमा का साथ नहीं छोड़ा. दसवीं तक दोनों साथ थे लेकिन उसके बाद उसके पिता ने उसे शहर पढने भेज दिया. रेशमा के लिए वो सच्चा दोस्त था लेकिन मृदुल के लिए रेशमा उसका पागलपन थी. रेशमा समझती थी वो एक दोस्त की तरह उसकी मदद करता है लेकिन मृदुल उसे पाने के लिए उसकी मदद करता था. दसवीं के आखिरी एग्जाम के बाद मृदुल ने रेशमा से कह दिया कि वो उसे पसंद करता है. जिस पर रेशमा ने उसे समझाते हुए कहा कि वो भी उसे अपना सच्चा दोस्त मानती है लेकिन उससे प्यार नहीं करती क्योंकि उसे इन सबमें नहीं पड़ना, उसे आगे पढना है और टीचर बनना है. 

मृदुल ने भी उसे अहसास कराया कि उसका भी प्यार उसके लिए दोस्ती जैसा ही है. उसके इनकार का उनकी दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ेगा. वो दोनों ही हमेशा अच्छे दोस्त रहेंगे और ये सच भी हुआ, मृदुल जब भी शहर से घर आता तो उसके लिए कुछ ना कुछ लेकर आता. हर काम में उसकी मदद करता. गाँव आने पर पता करता कि किसने रेशमा को छेड़ा है, जिसके बाद वो उन सबकी खबर लेता. 

आज के दिन वो मृदुल को याद कर रही है. वो सोचती है कि मृदुल होता तो आज वो ऐसे छुप कर कॉलेज ना जाती. वो उसे अपनी बाइक पर बिठाकर बड़े शान से छन्नू सेठ के दरवाजे के आगे से लेते हुए जाता. रेशमा पहली बार शहर जा रही है. उसने मृदुल का पता लिया है वो सोचती है, शहर जा कर वो बाबू जी के साथ उससे मिलने जायेगी. फिर वो एक बार अपने हाथ में पकड़े कालेज फॉर्म को देखती है. उसे उस कागज़ के टुकड़े में देखते हुए अपना भविष्य दिखता है जहाँ वो बच्चों को पढ़ा रही है. 

वो प्यारे प्यारे सपने देख ही रही होती है कि तब तक अचानक लगी बस की ब्रेक उसके सपने तोड़ देती है. बस के आगे चार बाइक सवार खड़े हैं जिन्होंने बस रुकवा दी हैं. पीछे और भी मोटरसाइकिल हैं जो आगे निकल गए हैं. बाइक सवार बस में चढ़ जाते हैं और रेशमा की ओर बढ़ते हैं. सुजाता और अन्य दो सवारियां चिल्लाने लगती हैं. कट्टा दिखा कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया जाता है. उन्हें रेशमा की तरफ बढ़ता देख हरि उनके सामने खड़ा हो जाता है. वो हरि की शर्ट का कॉलर पकड़ते हैं और बस से नीचे ले जाते हैं. कट्टा पकड़े हुए शख्स सुजाता के साथ साथ बाकी सवारियों को डरा कर बस से नीचे उतार देता है. 

अब वो लोग बस ड्राइवर को बस चलाने के लिए कहते हैं रेशमा खिड़की से अपने पिता को देख चिल्ला रही है. उसके पिता को दो पहलवानों ने पकड़ रखा है वो अपनी बेटी के लिए मदद की गुहार लगा रहे हैं मगर उनकी सुनने वाला कोई नहीं. जल्दी ही बस उनकी आँखों से ओझल हो जाती है. वो पहलवान भी हरि सुजाता को छोड़ बाइक पर सवार हो निकल जाते हैं. हरि उनकी कैद से छूटते ही भागने लगता है मगर थोड़ी दूर पर गिर जाता है. बस जा चुकी है. 

एक किलोमीटर बाद बस रूकती है और तीन लोग मुंह लपेटे हुए बस में सवार हो जाते हैं. बस फिर से चल देती है. थोड़ी देर में बस कच्चे रस्ते पर उतार दी जाती है. नए सवार हुए लोगों में दो ने अपने चेहरे से गमछा हटा दिया है, वो दोनों छुन्नू और अभिराज हैं. उन्हें देखते ही रेशमा बुरी तरह घबरा जाती है. उसे घबराया देख दोनों किसी राक्षस की तरह हँसते हैं. तीसरे बन्दे का चेहरा अभी भी नकाब में छुपा हुआ है. वो एक सुनसान जगह पर ड्राइवर को बस रोकने के लिए कहते हैं. 

बस रुक जाती है छुन्नू अभिराज की तरफ देखता है. अभिराज उसका इशारा पा कर सभी को बस से उतरने के लिए कहता है. अब बस में सिर्फ रेशमा और छुन्नू हैं. छुन्नू उसके करीब जाता है. उसे जबरदस्ती पकड़ता है. रेशमा खुद को छुडाने की कोशिश करती है लेकिन उस राक्षस से जीत नहीं पाती. कुछ पलों में रेशमा की दर्दभरी चीखें सुनाई पड़ती हैं. बाहर खड़े अभिराज और बाकी लोग एक दुसरे की तरफ देख कर दरिंदगी भरी मुस्कान छोड़ते हैं. रेशमा की चीख से नज़दीक के पेड़ पर बैठी सभी चिड़ियाँ उड़ कर चिल्लाने लगती हैं. मानों जैसे कुदरत इस क्रूरता पर रो रही हो. 

छुन्नू के बाद अभिराज और फिर खुद का चेहरा छुपाये हुए वो शख्स अंदर जाते हैं और रेशमा के साथ एक के बाद एक दुष्कर्म को दोहराते हैं. कुछ देर बाद दरोगा विक्रम भी वहां पहुंच जाता है. वो भी बस में चढ़ जाता है. उसके सामने निढाल और बेसुध पड़ी रेशमा का अस्त व्यस्त शरीर है. वो भी मौके का फायदा उठा कर अपनी हवस की प्यास बुझा लेता है. 

बाहर ऐसा माहौल है जैसे कुछ हुआ ही नहीं. छुन्नू और बाक़ी साथी अपनी इस घिनौनी जीत का मज़ा दारू पी कर ले रहे हैं. विक्रम भी बस से बाहर आ जाता है. छुन्नू दरोगा को उसका काम बताता है और खुद अपने साथियों के साथ वहां से रवाना हो जाता है. विक्रम ड्राइवर से बस घुमाने के लिए कहता है. ड्राइवर जैसे अंदर जाता है, वहां का दृश्य देख कर काँप जाता है. वो बेहोश पड़ी रेशमा की तरफ बढ़ता है और अपने कंधे से गमछा उतार कर उसके शरीर पर ढंक देता है. 

बस दोबारा गाँव की तरफ बढ़ती है. रास्ते में एक कुआं पड़ता है. विक्रम रेशमा को वहीं कुएं के पास उसके समान के साथ फेंक कर, बस के साथ वहां से रवाना हो जाता है. रेशमा वहां बेसुध पड़ी हुई है. दूसरी तरफ हरि और सुजाता रेशमा को पागलों की तरह खोज रहे हैं. चलते चलते दोनों की सांस फूल रही है मगर वो रुक नहीं रहे. 

कुछ देर बाद रेशमा को होश आ गया है. वो अपने शरीर पर एक नजर डालती है और कुछ देर पहले खुद के साथ हुई हैवानियत को याद करती है. उसका मन घिन से भर जाता है. कॉलेज का फॉर्म अभी भी उसके हाथ में है. वो कुछ देर चिल्ला चिल्ला कर रोती है फिर एक दम मौन होकर कुछ सोचने लगती है. 

इधर छुन्नू की हवेली पर जीत का जश्न चल रहा है. उसने सभी लड़कों को बुलाया है. सब खा पी रहे हैं. छुन्नू गर्व से फूला नहीं समा रहा. 

अभिराज उसकी पीठ थपथपाते हुए कहता है

अभिराज: “वाह मेरे शेर, मुझे नाज़ है तुझ पर. उस रेशमा की अकड़ को पूरी तरह निचोड़ आया तू. आज के बाद वो तेरे सामने सिर तक नहीं उठाएगी”

अभिराज की बात पर छन्नू अपनी मूंछों को ताव देते हुए कहता है

छुन्नू: “अकड़ तोड़ना तो अपना शौक है प्यारे. अब देखना ये रेशमा साली पूरी जवानी मेरी रखैल बन कर रहेगी. जब इसकी जवानी का रस ख़त्म हो जायेगा तो इसे बाज़ार में बेच दूंगा. मज़ा भी और दाम भी.”

अभिराज चुटकी लेता है

अभिराज: “जब बेचना तो मुझे बताना, क्या पता मैं ही खरीद लूं.”

उसकी इस घिनौनी बात पर सभी बेशर्मी से हँसते हैं. छुन्नू पूरी तरह से नशे में है. वो उठता है और नशे में झूमने लगता है. उसकी पत्नी ऊपर के कमरे से ये सब देख रही है. उसे नहीं पता किसके साथ क्या हुआ है लेकिन उसे ये ज़रूर पता है कि आज इन दरिंदों ने पक्का किसी मासूम की जिंदगी बर्बाद की है. उसकी आंखें किसी रेगिस्तान की तरह सूख चुकी हैं. उसे पता है कि यहाँ रोने से कोई फायदा नहीं. वो कुछ नहीं बोलती, बस ऊपर देखती है, जैसे कि ऊपर वाले से न्याय मांग रही हो. 

कुएं के पास पड़ी रेशमा खड़ी भी नहीं हो पा रही. वो एक बार रास्ते की तरफ देख रही है तो दूसरी बार कुएं को. वो सोच रही है कि वो क्या मुंह लेकर घर जायेगी. गाँव वाले ताने मारेंगे. उसके बाबू जी कैसे ये सदमा बर्दाश्त करेंगे. वो फैसला करती है कि वो घर नहीं जायेगी. इसी कुएं में कूद कर जान दे देगी. वो जैसे तैसे लड़खड़ाती हुई उठती है. दर्द से कराहते हुए खुद को कुएं तक ले जाती है. वो एक बार उस गहरे कुएं में देख कर ज़ोर से चिल्लाती है. और फिर……

क्या रेशमा हालातों से हार कर अपनी जान दे देगी? 

कौन था वो चौथा दरिंदा जिसने अपने छुपे चेहरे के साथ रेशमा को नोच खाया? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!

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