समाज ने असली मर्द के लिए एक परिभाषा बनाई है कि उनके लिए जर यानी पैसा, सोना, जोरू यानी घर की महिलाएं और जमीन ही असली संपत्ति है. इन तीनों चीजों के लिए एक पुरुष मर भी सकता है और किसी को मार भी सकता है लेकिन एक औरत के लिए उसकी सबसे बड़ी संपत्ति उसकी इज्जत और मान सम्मान होता है. एक बार अगर उसकी इज्जत चली गई तो उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं बचता. फिर या तो वो अंदर से खोखली हो कर खुद को मार सकती है या फिर खुद के अंदर का डर निकाल कर एक घायल शेरनी बन अपने दुश्मनों का शिकार कर सकती है.
इस समय रेशमा पर भी ऐसा ही कहर टूटा है. छुन्नू ने अपनी झूठी शान को हवस का रूप दे कर रेश्मा की जिंदगी पूरी तरह से तहस नहस कर दी है. आज सुबह तक जिस लड़की की आँखों में हज़ारों सपने थे कुछ कर गुजरने की चाह थी, हिम्मत और हौसला था वो लड़की आज फटे कपड़ों में खून से सनी, दर्द से आज़ाद होने के लिए कुएं में कूद कर जान देने को तैयार है.
जिस रेशमा को अपने शरीर पर किसी मर्द की नज़र पड़ती बर्दाश्त ना थी, उसे आज ना जाने कितनी बार छुआ गया है, उसे नोचा गया है. वो तो आज ऐसा महसूस कर रही है जैसे हज़ारों लाखों कीड़े उसके पूरे जिस्म पर रेंग रहे हों. उसे खुद के शरीर से घिन आ रही है. कल तक अपने हुस्न पर अंदर ही अंदर इतराती रेशमा आज सोच रही है कि काश वो इस दुनिया की सबसे कुरूप लड़की होती, कम से कम चैन से जी तो पाती.
वो कुएं के सामने खड़ी है, वो सही से चल नहीं पा रही, खुद को लगभग घसीटते हुए कुएं के एक दम नजदीक चली गयी है. उसने खुद को इस कुएं को सौंप देने के लिए पूरी जान लगा दी है, लेकिन उसके कूदने से पहले ही उसे किसी ने पीछे खींच लिया है.
वो उसके बाबू जी हैं. वो अपने पिता के छूने पर भी चिल्ला उठती है. वो उन्हें पहचान नहीं पाती और उसे लगता है की फिर कोई मर्द उसे नोचने के लिए आया है. उसके पिता रो रो कर उससे कहते हैं कि
हरी: बेटी मैं हूँ, तेरा बाबू.
उसकी माँ एक तरफ अपना सिर पीटती हुई ज़ोर ज़ोर से रो रही है. आज इस परिवार का सब कुछ लुट गया था.
कॉलेज का फॉर्म अभी भी उसकी हाथों में है, वो एक बार उस फॉर्म को देखती है फिर अपने रोते हुए पिता को. वो ज़ोर से चीखती है, उसके पिता उसे गले लगा लेते हैं. वो उनके गले लग के फूट फूट कर रोने लगती है. उसे पता है कि जो समाज उसके पढने को लेकर उस पर ताने कसता था वो अब उसकी इस हालत पर ना जाने उसका क्या हाल करेगा.
उसके पिता उसे घर चलने के लिए कहते हैं लेकिन वो जाने को तैयार नहीं. वो बार बार कुएं की तरफ भागने की कोशिश करती है. उसके पिता खुद समाज के डर से घबराए हुए हैं लेकिन फिर भी वो उसे हिम्मत दे रहे हैं. वो उसे कहते हैं कि इसमें उसकी कोई गलती नहीं है. वो हमेशा से बहादुर रही है और उसे यहां भी हिम्मत दिखानी होगी.
उसकी घबराई हुई माँ ने पिता की बात का विरोध करते हुए कहा
“ये क्या कह रहे हो, घर चलोगे? पूरा गाँव इसे गिद्ध की तरह देखेगा, तरह तरह की बातें बनाएगा. याद है ना सुरेस की बेटी फुलबा के साथ क्या हुआ था? छुन्नू हरामजादे ने बस उसका हाथ पकड़ा था फिर भी पूरे गाँव ने उसे ही गलत कहा. इतनी सी बात के लिए सबने उसका जीना हराम कर दिया था. तरह तरह की बातें करते थे. हमारी रेशमा को तो सब ज़िंदा खा जायेंगे. अच्छा होगा हम लोग कहीं दूर चले जाते हैं.”
हरी ने अपनी पत्नी की तरफ गुस्से से देखा, “वो हमारा गांव है, वहां हमारा भी घर है. किसी ने मेरी बेटी पर आँख भी उठाई तो उसकी आंखें निकाल लूंगा. वैसे भी हम गरीबों के लिए कोई दूसरा ठिकाना नहीं होता. कहाँ तक भागेंगे और अगर आज भाग गए तो हमारी बेटी कभी भी जिंदगी का सामना नहीं कर पायेगी.”
हरिया ने आज तक किसी को बिना मतलब पलट कर जवाब तक नहीं दिया था मगर आज उसकी आँखों में खून उतर आया था. उसने बैग से एक शॉल निकाला और रेशमा को उससे ढक दिया. उसने जैसे तैसे उसे घर वापस चलने के लिए मनाया. पिता की दी हिम्मत के बाद रेशमा भी लडखडाते क़दमों के साथ उनके साथ चल दी.
छुन्नू की हवेली में जश्न मनाया जा रहा था. उसके लड़के पूरे बरामदे में जहाँ तहां नशे में धुत्त पड़े हुए हैं. छुन्नू की आंखें लाल हैं, उसके चेहरे पर घमंड से भरी मुस्कान लगातार बनी हुई है. अभिराज उसकी हर बात में हां में हां मिला रहा है. वो छुन्नू से कहता है, “आज तो चैन की नींद सोयेगा मेरा भाई.”
इस पर छुन्नू हैवानियत भरे लहजे में कहता है, “अभी कैसे सो जाएंगे, अभी तो असली मजा आना बाकी है. रेशमा का घमंड जिस तरह तोड़ा है उसके बाद उसके पास दो ही रास्ते हैं, या तो वो खुद को मार लेगी या फिर लौट कर वापस आएगी. हम चाहते हैं कि वो लौट कर वापस आये, पूरा गांव देखे की छुन्नू से टकराने के बाद किसी का कितना बुरा हाल हो सकता है. जब उसकी घमंड से अकड़ी गर्दन गाँव वालों को देख लटक जाएगी और वो धरती में नजरें गड़ाए हुए हर एक बढ़ते कदम में हमारा दिया दर्द महसूस करेगी तब उसे देख कर जो सुख मिलेगा, तब हम सोयेंगे चैन की नींद.”
इसके बाद वहां मौजूद सभी लोग इस वहशी सोच पर ठहाके मार कर हंसने लगे.
इसके बाद उसने अपने एक चेले से कहा कि वो जा कर पूरे गाँव में ये बात घुमा दे कि रेशमा अब कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही. चेले ने भी आदेश का पालन किया और एक कहानी बना कर पूरे गाँव में रेशमा के बारे में बताने लगा. जिसके बाद अपने परिवार की चिंता छोड़ हर कोई रेशमा को लेकर बातें बनाने लगा.
आते जाते सब एक दूसरे से इतना ही कह रहे थे कि “सुना, रेशमा के साथ क्या हुआ? दूसरे ने कहा, “हां, ऐसा तो होना ही था और पढ़ाओ बेटियों को, और शहर घुमाओ.”
हर कोई ऐसे बात कर रहा था जैसे उन्होंने पहले से ही मान लिया था कि रेशमा के साथ ऐसा ही होने वाला है. गाँव के दो चार लोग ही थे जो इस बात पर चुप थे. उनको भी रेशमा के साथ हमदर्दी नहीं थी बस उनका कहना था उनको क्या लेना देना उससे.
इधर रेशमा और उसके माता पिता धीरे धीरे गाँव की तरफ बढ़ रहे थे. वे चाहते थे अंधेरा कुछ गहरा हो जाए जिससे वो बिना किसी की नज़र में आये अपने घर पहुंच सकें. मगर उन्हें क्या पता था आज पूरे गाँव की आँखों से नींद गायब थी हर कोई रेशमा की हालत को अपनी आँखों से देख कर उस पर भद्दे तानों की बौछार करने को बेकरार था. छुन्नू के चेले हर आधे घंटे पर गांव भर में घूम घूम कर बता रहे थे कि हरिया अपनी बेटी के साथ गांव लौट रहा है. कुछ सयाने बुजुर्गों का तो ये भी कहना था कि हरिया बहुत बेशर्म है, उसे तो गांव लौटने की बजाय अपनी बेटी के साथ मर जाना चाहिए.
रेशमा जब गाँव पहुंची तो पूरे गाँव में अंधेरा था. हरिया ने ये सोच कर एक गहरी सांस ली कि वो लोग बिना किसी की नज़रों में आये घर तक पहुंच जायेंगे. उनके कदम गाँव में पड़ते ही एक एक कर के हर घर की लाईट जलने लगी. हर घर से फुसफुसाहट की आवाज़ उठने लगी.
जैसे जैसे रेशमा के कदम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे ये आवाज़ें ज़ोर पकड़ने लगी थीं. कोई कह रहा था ki “आ गयी कालेज से पढ़ कर?” किसी ने कहा “मस्टराईन बन के आई है.”
लड़कों के एक झुण्ड ने घिनौनी हंसी के साथ कहा “पता हो इतनी गर्मी है तो हम ही दबोच लेते.”
ये सब सुन के हरिया का खून खुल रहा था मगर वो अकेला भला क्या कर सकता था. कुएं के पास बड़ी बड़ी बातें करने वाला हरिया समझ गया था कि वो इंसानों से तो लड़ सकता है मगर ये तो राक्षस हो गए हैं, इनसे भला कैसे लड़ेगा. वो सोच रहा था कि सुजाता शायद ठीक ही कह रही थी उन्हें कहीं दूर चले जाना चाहिए था. इधर सुजाता को लग रहा था कि ये धरती अभी के अभी फट जाए और वो अपनी बेटी के साथ उसी में समा जाए. रेशमा, वो बेचारी तो अभी ज़िंदा लाश की तरह थी, उसे ना लोगों की बात सुनाई दे रही थी और ना उनके चेहरे की घिनौनी हंसी दिख रही थी.
हर कोई ऐसे खुश था जैसे वो जीत गया हो, उसकी कही बात सच हो गयी हो. ऐसे ही अनगिनत भद्दे ताने सुनते हुए जैसे तैसे हरिया रेशमा को लेकर अपने घर तक पहुंचा था. उसके घर के बाहर गाँव के शैतान लड़कों ने पेंट से ऐसी ऐसी गालियाँ और गंदे चित्र बनाए थे कि उन्हें पढने और देखने की हरिया में हिम्मत नहीं बची थी. वो रेशमा को लेकर घर के अंदर चले गए थे लेकिन सुजाता बाहर ही खड़ी अपनी दीवारों पर बनी गंदे चित्र देखती रही. उन्हें देखते देखते वो चिल्ला चिल्ला के रोने लगी और अपनी साड़ी के पल्लू से दीवार पर लिखा मिटाने की कोशिश करने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वो पागल हो गयी है.
एक एक कर के पूरा गाँव धीरे धीरे उसके घर के बाहर खड़ा हो गया था. तभी पुलिस की जीप वहां आ कर रुकी. ये दरोगा विक्रम के भेजे हुए सिपाही थे. सुजाता अभी भी दीवारों पर लिखा मिटाने की नाकाम कोशिश कर रही थी. उसे ऐसा करते देख एक सिपाही ने बड़ी बेशर्मी से कहा “ये गालियाँ तो अब तुम सबकी किस्मत पर लिखी जा चुकी हैं. बेकार में गाँव लौट आये वहीं किसी नदी नाले में कूद कर मर जाना चाहिए था. बेकार में हमारा काम बढ़ा दिया.”
इतना कह कर वो सिपाही हंसता हुआ अंदर जाने लगा, तभी हरिया बाहर निकला. सिपाही ने उससे पूछा “सुना है तेरी लौंडिया की इज्जत लुट गयी है. उसे बुला कुछ सवाल करने हैं.”
हरिया ने उन्हें कहा कि उन्हें कोई रिपोर्ट नहीं लिखवानी है. इस पर सिपाही बेशर्मी से बोला “इज्जत लुटी है और तू रपट लिखाने से मना कर रहा है? इज्जत लुटी भी है या वो अपनी ही मर्जी से…”
हरिया इससे आगे सुन ना पाया उसने सिपाही का कॉलर पकड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.
वो उसका कॉलर पकड़ता इससे पहले दूसरे सिपाही ने उसे ये कहते हुए रोक लिया “ऐसी गलती कर भी मत देना नहीं तो हवालात में टंगा मिलेगा. पहले ही तेरी लड़की नाम रोशन कर आई है तेरा, अब बची खुची तू हवालात में उतरवाना चाहता है?”
हरिया रुक गया. रेशमा खिड़की के पीछे खड़ी, बाहर की बेशर्म भीड़ को देख रही थी. वहां एक भी ऐसा शख्स नहीं दिख रहा था जिसकी आँखों में उसके और उसके परिवार के लिए हमदर्दी हो. हर कोई बस मजे ले रहा था. ये उसे पहले से ही पता था इसलिए वो इनके बारे में कुछ नहीं सोच रही थी लेकिन उसी भीड़ में अब उसे एक ऐसा चेहरा दिखा था जिसे देखते ही उसकी आँखों में खून उतर आया. उसका मन हुआ कि वो घर में पड़ी हंसिया से उसका गला काट दे. वो बहुत ज़ोर से चिल्लाना चाहती थी उसे देख कर. वो खुद को रोक ना सकी और चीख पड़ी…
कौन था वो शख्स जिसे देख कर रेशमा के बेजान शरीर में गुस्से की आग जलने लगी थी?
हरिया और रेशमा को लेकर गाँव वाले क्या फैसला सुनायेंगे?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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