आंगन में एक भारी सन्नाटा पसरा हुआ था। हवा जैसे ठहर गई थी, पत्तियों की सरसराहट भी रुक-सी गई थी। सुनील के शब्द अभी भी हवा में गूंज रहे थे—“मैं मुंबई जा रहा हूँ।” उसके पापा के चेहरे पर अचानक गुस्सा उतर आया था। उनकी आंखों में एक अजीब-सी चमक थी, जो गुस्से और हैरानी के बीच झूल रही थी। अखबार अब उनके घुटनों पर सिकुड़ा पड़ा था, लेकिन उनके हाथ मुट्ठियों में बदल चुके थे, जैसे वो अपने भीतर उबल रहे गुस्से को ज़बरदस्ती काबू में रख रहे हों।
सुनील वहीं खड़ा था, अपनी जगह से हिले बिना, अपनी आंखें पापा की आंखों में गड़ाए हुए। उसके चेहरे पर डर की कोई रेखा नहीं थी, सिर्फ एक ठोस विश्वास था, जो उसे मजबूती दे रहा था।
उसके पापा अचानक अपनी कुर्सी से उठे, उनकी चाल में एक झटका था, जैसे कोई ज्वालामुखी फटने ही वाला हो। उन्होंने तेज़ी से सुनील की तरफ कदम बढ़ाए। उनके चेहरे की नसें तन गई थीं, आंखों में गुस्सा था। उनकी एक हथेली हवा में उठ चुकी थी, जैसे वो पल भर में सुनील के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ देंगे। पर तभी, एक पल के लिए… सब रुक गया।
उनकी उंगली हवा में कांपती रह गई, और चेहरा सख्त पड़ गया। वो थप्पड़ जो उड़ने ही वाला था, अधर में ही ठहर गया। शायद उनके भीतर कहीं एक टूटती हुई भावना जाग उठी थी—गुस्से के पीछे छुपा हुआ दर्द, हार मान लेने का डर, या फिर उस बेटे को खो देने का डर जिसे उन्होंने हमेशा अपनी मर्ज़ी के मुताबिक ढालना चाहा था।
उन्होंने धीरे-धीरे हाथ नीचे कर लिया, लेकिन उनकी सांसें अब भी तेज़ थीं, जैसे गुस्सा उनके भीतर कहीं गहरे उबल रहा हो। फिर, उन्होंने मुंह खोला—आवाज़ कठोर थी, लेकिन उसमें एक थकी हुई कराह भी छुपी थी।
पापा : ठीक है, जाओ! जाओ मुंबई! लेकिन याद रखना, मेरे पास से तुम्हें एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी। जो करना है, अपने दम पर करना। मैं नहीं देखूंगा कि तुम वहाँ कैसे रहते हो, क्या खाते हो, और कैसे टिकते हो। जाओ, अपने सपनों के पीछे भागो।
सुनील की आँखों में गुस्से और दर्द का मिला-जुला भाव था। उसने एक शब्द भी नहीं कहा। वो सीधा अपने कमरे में गया और दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर लिया।
कमरे में घुसते ही उसने अपने बिस्तर पर बैठकर गहरी सांस ली। उसकी आँखें भर आई थीं, लेकिन उसने आँसूओं को बहने नहीं दिया। उसकी नज़र दीवार पर लगे सलीम खान के पोस्टरों पर पड़ी। उसने उन पोस्टरों को उतारना शुरू किया और धीरे-धीरे अपने बैग में रखना शुरू कर दिया।
फिर उसने अपनी अलमारी से कुछ कपड़े निकाले और उन्हें भी बैग में ठूंस दिया। उसका हर कदम उसे उस फ्यूचर की तरफ ले जा रहा था, जो अब उसे भी नही पता था।
जैसे ही उसने बैग की ज़िप बंद की, उसने एक बार फिर अपने कमरे को देखा। दीवारों पर अब खालीपन था। शायद ये खालीपन उसके दिल में भी था, लेकिन उसके सपने इस खालीपन को भरने के लिए काफी थे। तभी सुनील ने अपने मन में खुद से कहा,
सुनील (मन ही मन) : पापा, मैं आपको गलत साबित करके दिखाऊंगा। आप देखेंगे कि आपका बेटा क्या कर सकता है।
इसके बाद सुनील ने बैग कंधे पर डाला और कमरे का दरवाज़ा खोला। उसके पापा अब भी बाहर बैठे थे, लेकिन उन्होंने उसकी तरफ देखने की भी कोशिश नहीं की। सुनील ने बिना कुछ कहे घर से बाहर कदम रख दिया।
उसके दिल में सिर्फ एक चीज थी—मुंबई। और वो जानता था, ये सफर आसान नहीं होगा, लेकिन उसने अपनी लड़ाई शुरू कर दी थी।
सुनील का दिल भारी था। वो गुस्से में घर छोड़कर निकला तो था, लेकिन बरेली जंक्शन पहुंचते ही उसे एक अजीब सा खालीपन महसूस हुआ। शाम का समय था, स्टेशन की भीड़-भाड़, आते-जाते लोग, चाय बेचने वालों की आवाजें और ट्रेनों की गूंजती सीटी के बीच, वो अकेला महसूस कर रहा था।
सुनील ने अपने बैग को मजबूती से पकड़ रखा था। उसमें सलीम खान के पोस्टर थे, जो की उसकी जिंदगी थी, वो स्टेशन की एक बेंच पर बैठते ही अपनी माँ का चेहरा याद करने लगा। घर से निकलते वक्त वो उन्हें देख भी नहीं पाया था, क्योंकि मां बाहर किसी काम से गई हुई थी।
उसकी माँ, शांति, हमेशा उसके सपनों के लिए दुआएं करती थीं। लेकिन आज वो गुस्से में इतना जल्दी निकला कि उनके साथ वो आखिरी पल भी नहीं बिता सका। इस खयाल ने उसे और परेशान कर दिया। तभी उसकी जेब में रखे फोन की घंटी बजी।
फोन की स्क्रीन पर “माँ” लिखा हुआ चमक रहा था। सुनील का दिल धड़क उठा। उसने फोन को कांपते हाथों से उठाया, लेकिन उसे तुरंत काट दिया। वो जानता था कि अगर उसने फोन उठाया, तो उसकी माँ उसे घर वापस बुला लेंगी। उनकी कसमों और आंसुओं से भरी बातें उसकी जिद को तोड़ सकती थीं। तभी सुनील ने मन ही मन कहा,
सुनील (मन ही मन) : माँ, मुझे माफ करना। मैं जानता हूँ आपसे बात किए बिना घर छोड़कर आना गलत था, लेकिन अगर मैंने आपकी बात सुनी तो शायद मैं अपने सपनों का गला घोंट दूंगा। आप समझेंगी, एक दिन ज़रूर समझेंगी।
इसके बाद सुनील ने अपना फोन बंद कर दिया और सिर झुका कर बेंच पर बैठ गया। उसके आसपास लोग अपनी-अपनी दुनिया में काफी बिज़ी थे। कोई ट्रेन पकड़ने की जल्दी में था, कोई अपने परिवार के साथ खुशियाँ बांट रहा था। लेकिन सुनील के पास न तो कोई टिकट था, न कोई आगे की प्लानिंग।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, सुनील को भूख लगने लगी। उसने अपने बैग में देखा, लेकिन वहाँ सिर्फ पोस्टर और कपड़े थे। वो जल्दबाजी में अपनी सेविंग्स के पैसे भी लाना भूल गया था। उसे पास में एक चाय वाले के ठेले से गरमागरम पकौड़ों की महक आ रही थी। सुनील ने ठेले की तरफ देखा, लेकिन उसे याद आया कि उसके पास पैसे नहीं हैं।
उसने अपनी जेबें टटोलनी शुरू कीं, शायद कुछ सिक्के मिल जाएं। लेकिन जेब खाली थी। उसके पापा के गुस्से में कहे शब्द उसके कानों में गूंजने लगे।
पापा : जाओ, लेकिन मेरे पास से तुम्हें एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी।
तभी सुनील ने गुस्से में मुट्ठी भींच ली। उसे अपने पिता की बातें याद कर हर बार चुभ रही थीं, लेकिन अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं था।
सुनील ने अपने बैग को जमीन पर रखा और चारों ओर देखा। एक कोने में एक परिवार बच्चों के साथ हंसी-खुशी खा-पी रहा था। दूसरी तरफ एक मजदूर ट्रेन का इंतजार कर रहा था, और उसकी हालत सुनील से भी ज्यादा खराब लग रही थी।
सुनील ने खुद को दिलासा देने की कोशिश की और मन ही मन कहा,
सुनील (मन ही मन) : शुरुआत मुश्किल होगी। लेकिन यही तो जिंदगी का इम्तिहान है। सलीम खान ने भी ऐसे ही शुरू किया होगा। मुझे भी करना होगा।
अब वो अपने आसपास किसी जाने पहचाने चेहरे को ढूंढने लगा, लेकिन उसका दोस्त धनंजय भी उसके साथ नहीं था।
अब, स्टेशन पर बैठा अकेला सुनील खुद से लड़ रहा था। भूख और थकावट उसे कमज़ोर बना रही थी, लेकिन उसका सपना उसे आगे बढ़ने का हौसला दे रहा था।
उसे ट्रेन का इंतजार था, लेकिन उसने अब तक टिकट भी नहीं खरीदा था। वो उठकर टिकट काउंटर की तरफ गया, लेकिन वहाँ लंबी लाइन देखकर रुक गया। टिकट के लिए पैसे कहाँ से लाएगा, ये सवाल उसकी आँखों के सामने फिर से उभर आया।
उसने वापस बेंच पर लौटकर बैठने का फैसला किया। उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद हो रही थीं। थकावट और तनाव ने उसे जकड़ लिया था। लेकिन उसके भीतर एक आवाज़ बार-बार कह रही थी।
सुनील (मन की) : सुनील, हार मत मान। ये वक्त तुझे तोड़ने के लिए है, लेकिन तू अगर खुद पर यकीन रखेगा तो सब ठीक होगा। रिया की बात याद कर, रिया भी यही बोलती है।
तभी फोन फिर से बजा। इस बार भी उसकी माँ का कॉल था। सुनील की आँखों में आँसू आ गए। उसने फोन को हाथ में लिया, लेकिन जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा सका। उसने खुद से कहा,
सुनील (धीरे से) : माँ, मैं अभी बात नहीं कर सकता। अगर आपसे बात की, तो वापस आ जाऊंगा। और अगर वापस आ गया, तो जिंदगी भर अपने आप से नज़र ें नहीं मिला पाऊंगा।
फोन की घंटी बंद हो गई। स्टेशन की ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी। उसके पेट में भूख को बढ़ रही थी, लेकिन उसने तय कर लिया था कि वो पीछे नहीं हटेगा।
सुनील (अपने आप से) : मुंबई मेरा सपना है। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं वहाँ पहुँचकर दिखाऊंगा।
स्टेशन की घड़ी ने रात के 9 बजने का समय दिखाया। सुनील अभी भी वहीं बैठा था, जैसे अपने सपने और भूख के बीच balance बनाने की कोशिश कर रहा हो। अब आगे क्या होगा, उसे खुद नहीं पता था। लेकिन एक बात तय थी—ये उसकी जिंदगी के सबसे बड़ी रातों में से एक होने वाली थी। वही दूसरी तरफ सुनील के
घर का वातावरण माहौल और उदास हो चुका था। शांति वापिस घर आ चुकी थी। सुनील के अचानक घर छोड़कर जाने के बाद, शांति और उसके पापा के बीच खामोशी छा गईं।
शांति (आंखों में आंसू और गुस्से भरी आवाज़में) : देख लिया, आपने? आपको इस ज़िद और गुस्से ने हमारा इकलौता बेटा हमसे छीन लिया! न जाने कहां होगा वो, किस हालत में होगा! क्या खा रहा होगा? उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं है, और आप? आप अपनी ईगो लेकर यहां आराम से बैठे हो।
पापा (सख्त लहजे में) : शांति, ये सब मेरी गलती नहीं है। उसने खुद घर छोड़ने का फैसला किया। अगर उसे जाना था, तो कम से कम तैयारी तो करता। दुनिया इतनी आसान नहीं है, जो मैं देख चुका हूं।
शांति (तेज आवाज़में) : आपने देख लिया, लेकिन आपको क्या हक है उसके सपने तोड़ने का? वो बच्चा है, आपका। उसका सपना है, और सपने देखने का हक हर किसी को होता है। आपने क्यों उसे बिना पैसों के भेजा? क्या आपका गुस्सा इतना बड़ा है कि तुम्हें अपने बेटे का दर्द भी नज़र नहीं आया?
पापा (थोड़ा रुककर, गुस्सा बनाए रखते हुए) : दर्द? अगर मैं उसे पैसे देकर भेजता, तो ये सपना नहीं, ज़िद बन जाती। जब वो खुद मेहनत करके कुछ हासिल करेगा, तभी उसे समझ आएगा कि सपने पूरे करने के लिए हिम्मत चाहिए, न कि किसी का सहारा।
शांति (रोने लगती है) : हिम्मत? और अगर वो वहां किसी मुसीबत में पड़ गया तो? अगर उसे कुछ हो गया तो? उसके पापा, वो हमारा इकलौता बेटा है! एक बार घर छोड़ने के बाद, पता नहीं कब वापस आएगा, या आएगा भी या नहीं!
फोन की घंटी लगातार बजती रही, लेकिन दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं आया। शांति का दिल बैठा जा रहा था। उसने बार-बार कोशिश की, हर बार नंबर डायल किया, लेकिन हर बार वही सन्नाटा। सुनील की आवाज़सुनने की उम्मीद उसे और बेचैन कर रही थी। आखिरकार, उसने थककर फोन बगल में रखा और बिस्तर पर ढेर हो गई।
शांति ने पास रखी एक पुरानी एलबम उठाई। उसके हाथ कांप रहे थे, और आंखों में आंसुओं की लकीरें बह रही थीं। उसने पन्ने पलटने शुरू किए। हर तस्वीर उसे सुनील के बचपन की याद दिला रही थी, पहली तस्वीर, जब सुनील स्कूल यूनिफॉर्म में खड़ा था, मासूमियत से मुस्कुराता हुआ। तभी शांति ने आंसुओं को पोछते हुए, खुद से बात करते हुए कहा,
शांति : पता नहीं, अब कब देखूंगी इसे। ये लड़का भी... बचपन से ही अपनी ज़िद का पक्का है। बचपन से ही सलीम खान से मिलना चाहता था। भगवान, मेरी मदद करो। उसे सेफ रखना...
उसने एक और तस्वीर उठाई, जिसमें सुनील झूले पर बैठा मुस्कुरा रहा था। तस्वीर के पीछे लिखा था, मेरा हीरो। शांति के आंसू अब रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
उसकी सांसें भारी हो रही थीं। वो बिस्तर पर टिककर बैठ गई, लेकिन उनकी आंखें अब धुंधली हो चुकी थीं। सुनील की तस्वीर को सीने से लगाए, शांति ने एक गहरी सांस ली और बेहोश होकर बिस्तर पर गिर पड़ी।
कमरे में सन्नाटा छा गया। तस्वीर उसके हाथ से गिरकर जमीन पर आ गिरी। शांति के चेहरे पर चिंता और दर्द की लकीरें साफ नज़र आ रही थीं।
अब क्या होगा? क्या उसके पापा शांति की हालत देखकर अपना गुस्सा भूल जाएगा? क्या सुनील समय रहते अपनी मां का हाल जान पाएगा? आगे क्या होगा ये जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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