सुनील का दिल अब भारी नहीं था, बल्कि एक अजीब से हल्केपन से भरा था। उसके अंदर का डर अब कहीं पीछे छूट चुका था। उसके पापा के शब्द अब उसके दिमाग में गूंज नहीं रहे थे, बल्कि उसकी ताकत बन गए थे। उसने फाइनल फैसला कर लिया था। वो अब मुंबई जाएगा, हर हाल में।  

ऐसे में उसका पहला कदम था रिया से मिलना। रिया, उसकी सबसे खास दोस्त, उसकी जिंदगी की वो रोशनी, जिसने हर मुश्किल घड़ी में उसे संभाला था। पहले भी जब सुनील ने मुंबई जाने की बात कही थी, तो रिया ने ही उसे हिम्मत दी थी।

रिया : तुम खुद पर भरोसा रखो, सुनील। अगर तुम्हारा सपना सच्चा है, तो तुम्हे रास्ते खुद-ब-खुद मिल जाएंगे।

आज, सुनील उसी चाट पापड़ी की दुकान पर जा रहा था, जो रिया की फेवरेट जगह थी। वो जगह, जहां दोनों अक्सर थिएटर के टाइम पर जाते थे और घंटों बातें करते थे। दुकान का वो कोना अब भी वैसा ही था—एक छोटी सी लकड़ी की बेंच और सामने एक पुरानी टेबल। सुनील तेज कदमों से दुकान के पास पहुंचा।

रिया पहले से वहाँ थी। उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहन रखा था, और उसका चेहरा हल्की गुलाबी मुस्कान लिए हुए था। जब उसने सुनील को आते देखा, तो उसकी आँखों में खुशी फैल गई।

रिया (हंसते हुए) : आ गए बड़े साहब? आज तो चेहरा देखकर लग रहा है कि कोई बड़ा फैसला लिया है!

सुनील (मुस्कुराते हुए और बेंच पर बैठते हुए) : हां, रिया। आज मैं पक्का कर चुका हूं। मैं मुंबई जा रहा हूं।

रिया की मुस्कान हल्की पड़ गई। उसकी आँखों में एक पल के लिए कुछ भाव उभरे—शायद खुशी, शायद चिंता, शायद कुछ और, जो उसने छिपाने की कोशिश की

रिया : तो आखिरकार तुमने अपना फैसला ले लिया। मुझे पता था कि तुम एक दिन ये फैसला जरूर लोगे। लेकिन सच कहूं तो, अब ये सुनकर थोड़ा अजीब लग रहा है।

सुनील (गहरी सांस लेते हुए)  : मुझे पता है, रिया। मैंने तुमसे पहले भी बोला था, लेकिन तब मेरे अंदर उतनी हिम्मत नहीं थी। हर बार जब मैं सोचता था, मुझे डर लग जाता था।  उसके पापा की बातें, उनका गुस्सा, उनकी उम्मीदें—सब मुझे रोकते थे। लेकिन अब... अब मैं और इंतजार नहीं कर सकता। ये करना ही होगा।

रिया : तुम्हे पता है, न? मुंबई जाना जितना बड़ा सपना है, उतना ही बड़ा struggle भी है। वहाँ सब कुछ अलग होगा। यहाँ की सुकूनभरी ज़िंदगी और तुम्हारी मम्मी का प्यार... सब पीछे छूट जाएगा। तुम सच में तैयार हो?  

सुनील  (आँखों में चमक लाते हुए)  : हां, रिया। तैयार हूं। और ये तुम्हारी वजह से है। तुमने ही तो मुझे ये यकीन दिलाया कि मेरे सपने सच्चे हैं, और मुझे उनके पीछे जाना चाहिए। अगर तुमने मुझे सपोर्ट नहीं किया होता, तो शायद मैं कभी ये फैसला नहीं कर पाता।

रिया : मैंने सपोर्ट किया, क्योंकि मुझे तुम पर भरोसा है। लेकिन सुनील, वहाँ अकेले रहना आसान नहीं होगा। कभी-कभी सपनों के लिए काफी कुछ sacrifice करना पड़ता है। और…

सुनील (बात काटते हुए)  : और अगर मैं हार भी गया, तो कम से कम ये तो कह पाऊंगा कि मैंने कोशिश की। रिया, मैं अपने ख्वाब को सच करने की राह में खुद से पीछे नहीं हट सकता।

सुनील ने थोड़ी देर रिया की आँखों में देखा। फिर उसकी आवाज़ हल्की हो गई, लेकिन उसमें एक अलग सा एहसास था।  

सुनील  : रिया, मुझे पता है, हमारे बीच चीजें कभी भी साफ नहीं रही हैं। हमारा रिश्ता क्या है? हम एक-दूसरे के लिए क्या हैं? ये सब मैं नहीं जानता। लेकिन एक बात जानता हूं। तुम मेरी जिंदगी की वो रोशनी हो, जिसने मेरे सबसे अंधेरे दिनों में मुझे राह दिखाई है। तुम्हारा बिना शायद मैं ये सब सोच भी नहीं पाता।

रिया : तुम जानते हो, न? मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं। चाहे तुम यहाँ रहो या मुंबई।

सुनील (आँखों में नमी के साथ) : रिया, तुमने मुझे जितनी ताकत दी है, उसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रिया कभी अदा नहीं कर पाऊंगा। बस... इतना जान लो कि जब भी मैं कमज़ोर पड़ूंगा, तुम्हारी बातें मुझे संभालेंगी।

रिया ने अपना हाथ सुनील के हाथ पर रखा। उसने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी आँखें सब कुछ कह रही थीं। सुनील को वो सहारा महसूस हुआ, जिसकी उसे ज़रूरत थी।

दोनों कुछ देर तक खामोश बैठे रहे। हल्की-हल्की हवा चल रही थी, और दुकान की चहल-पहल के बीच उनकी खामोशी सबसे अलग थी। अचानक, रिया ने चुटकी ली

रिया : तो अब मुझे तुम्हारे मुंबई जाने से पहले का ट्रीट चाहिए। वो भी इस चाट पापड़ी की नहीं, कुछ स्पेशल!

सुनील (हंसते हुए) : ट्रीट तो पक्की है। और स्पेशल भी। लेकिन एक शर्त है, तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी क्योंकि मैं चाहता हूं जब मैं मुंबई से वापिस आऊं तो तुम मेरा इंतजार करो। अगली बार मेरी बरेली वापिस आने की सबसे बड़ी वजह तुम बनो।

रिया (मुस्कुराते हुए)  : Hmmm. लेकिन जल्दी आना। मैं बुढ़िया न हो जाऊ कहीं।

उन दोनों की हंसी और बातों के बीच, सुनील को पहली बार लगा कि उसका सपना सिर्फ उसका नहीं है। रिया का सपोर्ट उसकी सबसे बड़ी ताकत थी।

वो रात उनके लिए यादगार बन गई। रिया और सुनील दोनों जानते थे कि उनके रिश्ते को भले ही अभी तक कोई नाम नहीं मिला था, लेकिन उनके बीच जो था, वो किसी भी नाम से बड़ा था। तभी

सुनील ने मन ही मन कहा,

सुनील : मुंबई, मैं आ रहा हूं। और इस बार, मैं सब कुछ बदल दूंगा। इस बार मैं सलीम खान से मिलकर रहूंगा।  

शाम का वक्त था, हवा में हल्की ठंडक घुल चुकी थी। सूरज ढलते-ढलते आसमान को संतरी और बैंगनी रंगों से रंग चुका था।  चाट पापड़ी के ठेले से लौटते हुए सुनील के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी। उसकी आंखों में आत्मविश्वास की एक नई लौ जल रही थी, जैसे उसने अपने भीतर कुछ बड़ा ठान लिया हो—एक ऐसा फैसला, जिसे अब कोई भी ताकत बदल नहीं सकती थी। रिया से हुई बात उसके मन में गूंज रही थी, जैसे उन शब्दों ने उसे भीतर तक हिला दिया हो और साथ ही मजबूत भी बना दिया हो।  

घर के दरवाज़े पर पहुंचते ही उसने एक गहरी सांस ली। लकड़ी का पुराना दरवाज़ा हल्की आवाज़ के साथ खुला, और ठीक उसके सामने बैठे थे उसके पापा—रमेश।  

उसके पापाहमेशा की तरह अखबार में डूबे हुए थे, उसकी तहों में शायद दुनिया के सारे सवालों के जवाब खोजते हुए। उनके माथे पर पढ़ने की आदत से बनी गहरी लकीरें, आंखों पर चढ़ा चश्मा,  

सुनील के कदम धीमे-धीमे लेकिन ठोस थे। हर कदम के साथ उसके दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी, पर उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। जब वो उसके पापाके ठीक सामने आकर रुका, तो उसके जूतों की आहट ने उसके पापाका ध्यान खींचा। उसके पापाने अखबार को थोड़ा नीचे खिसकाया, चश्मे के ऊपर से झांकते हुए बेटे की तरफ देखा।  

उनकी आंखों में हल्की हैरानी थी, शायद इसलिए क्योंकि सुनील आमतौर पर इस तरह बिना बोले उनके सामने नहीं खड़ा होता था। उसके पापाने अखबार को पूरी तरह मोड़कर टेबल पर रख लिया, एक भौं हल्की सी उठी, जैसे पूछ रही हो,

पापा : अब क्या बात है?

सुनील की आंखें सीधे अपने पापा की आंखों में गड़ी थीं—बिना झिझक, बिना डर। कुछ पल के सन्नाटे के बाद उसने गहरी सांस ली और कहा,  

सुनील : पापा, मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।  

उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मजबूती थी, जैसे वो हर शब्द को तोल-मोलकर नहीं, बल्कि दिल से कह रहा हो। उसके पापाने अपनी कुर्सी पर थोड़ा सीधा होकर बैठने की कोशिश की,  

पापा : क्या बात है?  

सुनील : मैंने अपने लिए एक रास्ता चुना है, और इस बार मैं पीछे नहीं हटूंगा।

आंगन में हवा अचानक कुछ भारी लगने लगी थी। सूखी पत्तियां ज़मीन पर सरसराने लगीं, जैसे वो भी इस पल के गवाह बनना चाहती हों। उसके पापाकी आंखों में अब एक नई चमक थी—न जाने वो बेटे के आत्मविश्वास से चौंके थे या किसी पुराने डर के जाग उठने से।  लेकिन उसके पापा ने उसकी इस बात को नज़रंदाज़ करते हुए पूछा,

पापा : वैसे कहां थे अब तक? फिर से दोस्तों के साथ टाइम पास कर रहे थे क्या? दुकान पर काम सीखने का नाम नहीं लेते, अय्याशी करवा लो बस।

सुनील : पापा, मैने अभी आपसे जो कहा, आपने सुनी मेरी बात?

पापा (हंसते हुए) : बात? अब क्या नया तमाशा है? तुम्हारा अभी तक सलीम खान का भूत नही उतरा क्या?  

सुनील (गंभीर आवाज़ में) : पापा, मैंने फैसला कर लिया है। मैं मुंबई जा रहा हूं। मुझे वहाँ अपने सपने पूरे करने हैं। मुझे सलीम खान से मिलना है।

उसके पापाने सुनील को कुछ पल के लिए देखा, जैसे उसने कोई मजाक सुना हो। फिर उन्होंने अखबार को तह करके एक तरफ रखा और अपनी कुर्सी पर पीछे टेक लगाई  

पापा : मुंबई? फिर से वही सलीम खान की बातें? सुनो सुनील, ये सब फालतू के सपने छोड़ दो। यहाँ बरेली में सब कुछ है। दुकान है, घर है, आराम की जिंदगी है। ये सपने देखने बंद करो।

सुनील (थोड़ा सख्ती से)  : पापा, ये कोई फालतू का सपना नहीं है। ये मेरा सपना है। और मैं इसे पूरा करना चाहता हूं। आप हमेशा कहते हैं कि इंसान को बड़ा सोचना चाहिए, तो जब मैं बड़ा सोच रहा हूं, तो आप मुझे रोक क्यों रहे हैं?

पापा (आवाज़ ऊंची करते हुए) : बड़ा सोचना और बेवकूफी में आसमान में उड़ने की कोशिश करना दो अलग बातें हैं! तुम्हारे जैसे लड़के जो घर बैठकर सपने देखते हैं, वो कभी बड़े शहरों में टिक नहीं पाते। मुंबई कोई बच्चों का खेल नहीं है, सुनील। वहाँ की जिंदगी काटे की तरह चुभती है। वहाँ जाकर तुम्हें पता चलेगा कि रोटी कमाना कितना मुश्किल होता है।

सुनील (जिद्दी होकर) : तो क्या करूं, पापा? यहाँ बैठकर आपकी दुकान संभालूं और जिंदगी भर वही करता रहूं जो आप चाहते हैं? मेरा सपना तो फिर कभी पूरा नहीं होगा। और पापा, आप भी तो मिथुन चक्रवर्ती के बड़े फैन थे। क्या आपने कभी उनके जैसे बनने की कोशिश नहीं की?

पापा : हाँ, था मुझे मिथुन पसंद। और है भी। लेकिन इसका मतलब ये थोड़ी कि मैं सब छोड़कर मुंबई भाग जाता। सबको अपनी जिम्मेदारी निभानी होती है। और जिम्मेदारी से भागकर सपने नहीं पूरे होते। तुम्हारी ये जिद तुम्हें कहीं नहीं ले जाएगी। देखो, कल से दुकान पर आ जाओ। बरेली में बड़ा मॉल बन रहा है। वहाँ एक अच्छी दुकान दिलवा दूंगा। वहीं बैठो। कम से कम घर के पास रहोगे। लेकिन ये मुंबई जाने का सपना भूल जाओ।  

सुनील (गुस्से में) : पापा, ये कोई ज़िद नहीं है! ये मेरा सपना है। और अगर आप अपनी जवानी में वो नहीं कर पाए जो करना चाहते थे, तो इसका मतलब ये नहीं कि मैं भी न करूं। आप हमेशा मुझे रोकते आए हैं। लेकिन इस बार नहीं। अगर आपको मिथुन इतने पसंद थे, तो आप उनसे मिलने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाए?

सुनील की बातों ने जैसे उसके पापा के सब्र का बांध तोड़ दिया। उसके शब्द, "अगर आपको इतना ही पसंद था मिथुन, तो मिल आते," उसके पापाके कानों में गूंजते रहे। उनके चेहरे पर गुस्से की लकीरें साफ दिख रही थीं। उनकी मुठ्ठियां भिंच गईं, और आंखें सुनील पर गड़ी थीं।  

अचानक, उसके पापाने अपने हाथ को हवा में उठाया। कमरे में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। सुनील की आंखें चौड़ी हो गईं, लेकिन वो अपनी जगह से हिला नहीं।  

हवा में उठे उसके पापाके हाथ का फैसला अब कुछ पलो की बात थी। क्या उनका हाथ सुनील पर पड़ेगा, या वो रुक जाएंगे? कमरे में घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ और दोनों के भारी सांसों का शोर बस गूंज रहा था। अब आगे क्या होगा, ये जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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