सुनील का दिल उस रात से भारी था, और उसका दिमाग अभी भी अपने पापा की बातो में उलझा था। उसके पापा के शब्द, “तुम कभी सलीम ख़ान से नहीं मिल पाओगे,” अब उसकी हर सोच को घेर चुका था। वो जानता था कि वो गुस्से में था, लेकिन उस गुस्से के अंदर एक गहरी निराशा भी थी, जो उसे खाए जा रही थी। अगले दिन, उसने अपने आप को ढीला करने की कोशिश की, लेकिन उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था।
धनंजय के साथ बैठना और उससे बात करना ही उसे थोड़ा आराम दे सकता था। धनंजय उसका सबसे अच्छा दोस्त था, जो उसे हमेशा बिना किसी judgement के सुनता था। सुनील को उस दिन कुछ ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे वो किसी बड़े फैसले की ओर बढ़ रहा हो, लेकिन क्या ये फैसला सही था? क्या वो इस रास्ते पर सचमुच जाना चाहता था?
सुनील शाम ढलने पर धनंजय के घर पहुंचा। आसमान हल्का सा गुलाबी था, लेकिन सुनील के चेहरे पर परेशानी का एक गहरा साया था। धनंजय का घर जैसे एक अलग ही दुनिया में था। दरवाज़ा बिना किसी दस्तक के खोलकर सुनील सीधे अंदर घुस गया।
धनंजय अपने कमरे में था, सिर झुकाए, लैपटॉप पर कुछ टाइप करता हुआ। कीबोर्ड की टक-टक की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी, और उसकी आंखें स्क्रीन पर गड़ी थीं, और लैपटॉप की नीली रोशनी उसके चेहरे पर अजीब सी परछाइयां बना रही थी।
सुनील की आहट पर धनंजय के हाथ रुक गए। उसने धीरे से सिर उठाया। उनकी नजरें मिलीं—धनंजय की आंखों में एक अजीब सी चिंगारी थी, जैसे वो सुनील के भीतर की बेचैनी को पढ़ चुका हो।
धनंजय : सुनील? क्या हुआ?
सुनील ने एक पल के लिए जवाब नहीं दिया। वह कमरे के बीचों-बीच खड़ा रहा, जैसे शब्द उसकी ज़ुबान पर आते-आते रुक गए हों। फिर उसने गहरी सांस ली, जैसे अपने भीतर जमा डर और उलझनों को बाहर फेंकना चाहता हो।
सुनील : कुछ नही यार
धनंजय : अरे भाई, क्या बात है? आज तो चेहरा देख कर लग रहा है कि कोई बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया है?
सुनील ने उसकी तरफ देखा और बिना कुछ कहे कमरे में पड़ी chair पर बैठ गया। उसने अपना सिर दीवार से टिका लिया और गहरी सांस भरी।
धनंजय ने अपने लैपटॉप को बंद कर दिया और बगल की कुर्सी खींचकर उसके पास बैठ गया,
धनंजय : क्या हुआ? कुछ बोल क्यों नहीं रहा? तेरा ये शांत रहना मुझे डरा रहा है? बता ना क्या हुआ?
सुनील : पापा ने आज जो कहा, उसने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। मुझे लगा था कि वे मेरी बात समझेंगे, पर नहीं। ये मेरी भूल थी।
धनंजय : क्या कहा उन्होंने? कुछ ऐसा जिसे सुनकर तू इतना परेशान हो गया?
सुनील : उन्होंने कहा कि मैं कभी भी अपने ख्वाब पूरे नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि मेरा सलीम ख़ान से मिलने का सपना देखना बेवकूफी है।
धनंजय ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप उसकी बात सुनता रहा। सुनील ने अपनी बात continue की,
सुनील : उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ ख्वाबों में जी रहा हूं और मेरा असली काम उनकी दुकान को संभालना है। उनकी नज़र में मेरी जिंदगी का मतलब सिर्फ वही है जो वो सोचते हैं।
सुनील की आवाज़ में दर्द साफ झलक रहा था। उसने अपनी मुट्ठियां भींच लीं और दीवार की तरफ देखने लगा
सुनील : भाई, मुझे अब साबित करना है कि मैं सिर्फ उनका आज्ञाकारी बेटा नहीं हूं। बल्कि मैं अपनी जिंदगी खुद के उसूलों पर भी जीना चाहता हूं। जिसके लिए मुझे मुंबई जाना ही होगा और सलीम ख़ान से मिलना ही होगा।
धनंजय : मुंबई जाना आसान नहीं है, भाई। वहाँ लाखों लोग अपने ख्वाब लेकर जाते हैं, लेकिन सबके ख्वाब पूरे नहीं होते। तुझे पता है, न?
सुनील : मुझे पता है। लेकिन मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो हार मान लेते हैं। सलीम ख़ान भी तो दिल्ली से निकले थे। उन्होंने भी अपने ख्वाब पूरे करने के लिए सब कुछ दांव पर लगाया था। अगर वो कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं?
धनंजय : देख भाई, मुझे खुशी है कि तूने इतना बड़ा फैसला लिया है। ये ख्वाब तेरा है, और मैं मानता हूं कि ख्वाब पूरे करने के लिए जुनून चाहिए। और तेरे अंदर वो जुनून है।
सुनील : धन्नो, मैं जानता था कि तू मेरा साथ देगा। पापा ने हमेशा मेरे सपनों को छोटा समझा, लेकिन तूने हमेशा मुझे समझा है। मैं मुंबई में अपनी जगह बनाऊंगा, और एक दिन पापा भी गर्व करेंगे कि उनका बेटा कुछ बड़ा कर पाया।
धनंजय : तो फिर ठीक है। अगर तूने ये ठान लिया है, तो मैं तेरे साथ हूं। लेकिन सुन, एक बात समझ ले। मुंबई सिर्फ सपनों का शहर नहीं है, बल्कि वहाँ संघर्ष का समंदर है। हर दिन तुझे खुद को साबित करना होगा। तू तैयार है, न?
सुनील : मैं तैयार हूं। पापा के शब्दों ने मुझे तोड़ने की कोशिश की, लेकिन अब वही शब्द मेरी ताकत बनेंगे। मैं तैयार हूं अब
धनंजय : ठीक है, तो फिर मुंबई की तैयारी शुरू कर। और हाँ, एक बात याद रखना। अगर कभी हारने जैसा महसूस हो, तो मुझे फोन करना। मैं हमेशा तेरे साथ हूं।
सुनील की आंखों में चमक थी। उसे पहली बार लगा कि उसका सपना सिर्फ उसका नहीं है। धनंजय के सपोर्ट ने उसकी हिम्मत को दोगुना कर दिया।
सुनील : मुंबई, मैं आ रहा हूं!
धनंजय : हां और सलीम ख़ान, तैयार हो जाओ। सुनील आ रहा है, अपने बड़े बड़े ख्वाब लेकर तुमसे मिलने!
इस बात पर दोनों हंस पड़े। कमरे में एक खुशियां भर गई थी, और सुनील के ख्वाबों का पहला कदम मजबूत और सच्चा लग रहा था।
धनंजय जानता था कि सुनील का ये फैसला सही था। वो सुनील का सपोर्ट करता था, भले ही वो समझता हो कि ये बहुत जोखिम भरा कदम था।
धनंजय ने सुनील को हौसला दिया
धनंजय : चल फिर, तू जो चाहे जो कर, मैं हमेशा तेरे साथ हूं।
सुनील अब अपना दिल पूरी तरह से मुंबई जाने के लिए तैयार कर चुका था। उसने अब फैसला कर लिया था कि वो बरेली छोड़कर मुंबई जाएगा। वो जानता था कि ये journey आसान नहीं होगी, लेकिन उसे विश्वास था कि एक दिन वो वहां अपनी पहचान बना पाएगा। इसी बारे में सोचते सोचते, सुनील चुपचाप आकर अपने कमरे में सो गया। अगली सुबह सुनील जल्दी उठ गया। सूरज की किरणें खिड़की से छनकर उसके चेहरे पर पड़ रही थीं, लेकिन उसके मन में तूफान था। वो जानता था कि आज का दिन उसकी जिंदगी बदलने वाला है। उसने मन ही मन कई बार सोचा था कि अपनी माँ से ये बात कैसे कहेगा, लेकिन हर बार उसके शब्द गले में ही अटक जाते थे। आखिरकार, उसने खुद को समझाया कि अगर वो आज नहीं कहेगा, तो कभी नहीं कह पाएगा।
रसोई से बर्तनों की आवाज़ आ रही थी। उसकी माँ, शांति, हमेशा की तरह सुबह की चाय बना रही थी। सुनील ने गहरी सांस ली और रसोई की ओर बढ़ा। माँ उसे देखकर मुस्कुराई, लेकिन सुनील के चेहरे की गंभीरता को देखकर उसकी मुस्कान हल्की पड़ गई।
शांति : क्या हुआ, बेटा? कुछ परेशान लग रहे हो,
सुनील : माँ, मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।
शांति : क्या बात है? सब ठीक तो है?
सुनील : माँ, मैंने फैसला किया है कि मैं मुंबई जाऊंगा।
शांति : मुंबई? इतने बड़े शहर में? अकेले? लेकिन क्यों?
सुनील : मां, मुझे कुछ बड़ा करना है। मैं यहाँ गाँव में रहकर कभी अपने सपने पूरे नहीं कर पाऊंगा। वहाँ जाकर मुझे काम करने के बड़े मौके मिलेंगे। मैं सलीम खान से मिल पाऊंगा।
शांति : बेटा, वो शहर हमारा नहीं है। तुम वहाँ कैसे रहोगे? तुम्हें पता है, मुंबई कितना महंगा है? और फिर, तुम्हारे पापा... वो कभी इसके लिए नहीं मानेंगे।
माँ, मैं जानता हूँ कि यह आसान नहीं होगा। लेकिन अगर मैं यहाँ रुका रहा, तो मैं कभी आगे नहीं बढ़ पाऊंगा। मुझे यह मौका लेना ही होगा।
शांति : तुम अकेले वहाँ कैसे रहोगे, बेटा? तुम्हें तो बाहर का खाने की भी आदत नहीं है। किसी अजनबी शहर में कौन तुम्हारा ख्याल रखेगा? अगर तुम्हें कोई दिक्कत हुई तो?
सुनील : माँ, मैं सब संभाल लूंगा। मैं बड़ा हो गया हूँ। और मुझे पता है कि मुझे अब क्या करना है।
शांति : तुम्हारे पापा से मैं बात करूंगी। वो तुम पर बेवजह का दबाव डालते हैं। लेकिन, सुनील, क्या तुम सच में सोचते हो कि ये सब इतना आसान होगा?
सुनील : नहीं, माँ। मुझे पता है कि ये आसान नहीं होगा। लेकिन अगर मैं इसे नहीं आजमाऊंगा, तो मैं खुद से नजरें नहीं मिला पाऊंगा। मुझे खुद को साबित करना है। और आपके आशीर्वाद के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता।
शांति थोड़ी देर तक चुप रहीं। उनकी आँखों में एक माँ की चिंता साफ झलक रही थी, लेकिन साथ ही उनका बेटा जो अपनी राह पर चलने को तैयार था, उसकी मजबूती ने उन्हें गर्व से भर दिया। उन्होंने गहरी सांस ली और सुनील के सिर पर हाथ रखा।
शांति : तुम्हारी जिंदगी है, बेटा। जो तुम्हें ठीक लगे, वही करो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। बस अपना ख्याल रखना।
सुनील : थैंक यू, माँ। आप मेरी सबसे बड़ी ताकत हैं।
शांति : और ध्यान रखना कि तुम जो भी करो, पूरी ईमानदारी और मेहनत से करो। तुम्हारे पापा को मनाना मुश्किल होगा, लेकिन मैं उन्हें समझा दूंगी।
सुनील ने अपनी माँ शांति को गले लगा लिया। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार उनमें डर और निराशा की जगह उम्मीद और संकल्प था। उसका दिल अब थोड़ा हल्का महसूस कर रहा था, जैसे बरसों से दबा कोई बोझ अचानक कम हो गया हो। शांति के आँचल में उसने वो सुकून पाया, जो शायद उसे बहुत दिनों से नहीं मिला था। शांति ने उसके सिर पर हाथ फेरा
शांति : सब ठीक होगा, बेटा। तुम बस अपने सपने को सच करने के लिए मेहनत करना। बाकी सब हम संभाल लेंगे।
लेकिन सुनील के मन में सवालों की एक लंबी कतार अभी भी खड़ी थी। क्या पापा, रमेश, इस फैसले को स्वीकार करेंगे? वो तो हमेशा से यही चाहते थे कि सुनील उनके साथ दुकान संभाले। क्या उनका गुस्सा और बढ़ जाएगा? क्या वो इसे परिवार के खिलाफ बगावत समझेंगे? सुनील का मन इन चिंताओं से घिरा हुआ था।
शांति सुनील के चेहरे पर पसरे डर को पढ़ सकती थीं। उन्होंने उसे कुर्सी पर बैठने को कहा और खुद भी उसके सामने बैठ गईं।
शांति : देखो बेटा तुम्हारे पापा तुम्हें बहुत प्यार करते हैं। लेकिन उनका प्यार अलग तरह का है। वो इसे दिखाते नहीं हैं, पर तुम्हारी हर खुशी उनके लिए मायने रखती है। उन्हें मनाना मुश्किल होगा, ये मैं मानती हूँ। लेकिन नामुमकिन नहीं।
सुनील : माँ, मैं जानता हूँ कि पापा मुझसे प्यार करते हैं। लेकिन वो हमेशा मुझे अपने जैसे बनाना चाहते हैं। मैं उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा हूँ। मुझे लगता है कि मैंने उन्हें बहुत निराश किया है।
शांति : निराश नहीं किया, बेटा। बस उन्हें अभी ये समझाने की ज़रूरत है कि तुम्हारे सपने भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना उनका सपना तुम्हारे लिए था। और ये काम मैं करूंगी। मुझे पता है कि कैसे तुम्हारे पापा से बात करनी है।”
सुनील : लेकिन माँ, क्या पापा मेरी बात सुनेंगे? अगर उन्होंने गुस्से में मुझसे बात करना ही बंद कर दिया तो?”
शांति : तुम्हारे पापा दिल के बहुत नरम हैं। बस उनकी समझ का तरीका अलग है। मैं उनसे बात करूंगी, लेकिन तुम्हें भी अपनी तरफ से कोशिश करनी होगी। उन्हें ये दिखाना होगा कि तुम सिर्फ सपने देख नहीं रहे, बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ रहे हो।
लेकिन अभी भी उसके मन में ये सवाल था की क्या उसके पापा रमेश इस बात को मानेंगे? क्या वो मुंबई जाने के उसके फैसले से खुश होगे? आखिर शांति कैसे अपने पति को मनाएगी और क्या इस फैसले से सुनील और उसके पापा के बीच का रिश्ता और खराब हो जाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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