अभी भी दोनों के बीच एक लंबी खामोशी थी, जैसे समय ने अपनी स्पीड को रोक लिया हो। सुनील का दिल अपनी छाती में इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि उसे लग रहा था कि कोई पास खड़ा होकर भी इसे सुन सकता है। उसके मन में डर और पछतावे का तूफान चल रहा था, उसके पापा की आँखें, जो अक्सर अपने बेटे पर गर्व के भाव दिखाती थीं, इस बार अजीब सी खाली लग रही थीं। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उन्होंने सुनील से कोई सवाल नहीं पूछा।
सुनील ने याद किया कि जब उसके पापा ने उसे कैफे में काम करते हुए देखा था, तो उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उन्होंने बस एक बार उसकी तरफ देखा और फिर बिना कुछ कहे, बिना कोई प्रतिक दिए, चुपचाप मुड़कर वहाँ से निकल गए। सुनील ने सोचा कि शायद उसके पापानाराज थे, या शायद वो इतने दुखी थे कि कुछ कह ही नहीं पाए।
कैफे में वापस काम पर लौटने के बाद भी सुनील का ध्यान पूरी तरह बिखरा हुआ था। उसकी उंगलियां ट्रे पर रखे कपों को पकड़ते हुए कांप रही थीं, और उसकी हरकतें थोड़ी धीमी हो गई थीं। उसके मन में सवालों की कतार लग गई थी:
सुनील : क्या पापा को मेरा काम करना पसंद नहीं आया? क्या उन्हें लगा कि मैंने उनकी उम्मीदों को तोड़ा है? क्या वो मुझसे नाराज़ हैं, या बस मुझे नज़रअंदाज कर रहे हैं?
हर सवाल उसे और परेशान कर रहा था।
शाम को जब कैफे का काम खत्म हुआ, तो सुनील ने भारी मन से घर की ओर कदम बढ़ाए। रास्ते में हर कदम उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी फैसले के दरवाज़े की ओर बढ़ रहा हो। वो जानता था कि जब घर जाएगा, तो उसे इसका सामना करना ही पड़ेगा। शाम को जैसे ही सुनील घर लौटा, वह देखा कि उसके पापा कमरे में अकेले बैठे थे। कमरे की चुप्पी ने सुनील को थोड़ा और बेचैन कर दिया था। उसके पापाकी आँखें कुछ वैसी ही शांत थीं, जैसे उन्होंने सुनील के साथ कुछ गुस्से का इशारा किया हो, लेकिन उसे सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा।
सुनील किचन में जाकर अपनी मां के पास खड़ा हो गया,
सुनील : माँ, पापा ने कुछ बोला? क्या हुआ?
शांति : वो गुस्से में हैं, सुनील।
उनकी आवाज़ में एक हलका डर था, जैसे वो भी नहीं चाहती थी कि सुनील को इस हालत का सामना करना पड़े। सुनील उस दिन काफी परेशान था। रिया से मिलकर, और फिर अपनी जिंदगी के बारे में विचार करके जहां वो अपने अंदर कुछ बदलाव महसूस कर रहा था। उसकी ज़िंदगी में ये एक अहम मोड़ था, लेकिन वो जानता था कि ये सब कुछ अपने घर में जाकर ही साफ़ होगा।
जब वो घर पहुंचा, तो उसे पहले से ही अंदाज़ा था कि इस बार उसका पापा उसके पापासे मिलने पर एक और तगड़ी बहस होगी। लेकिन
सुनील को अब अपनी माँ की बातें सुनकर घबराहट महसूस हुई। उसके पाँव जैसे जकड़ गए थे।
सुनील धीरे-धीरे कमरे की तरफ बढ़ा। उसके कदम भारी हो गए थे, जैसे वो किसी अनजान रास्ते पर चल रहा हो। दरवाजा हल्का सा खुला तो उसके पापाकी नजरें उस पर पड़ीं। सुनील ने गहरी सांस ली और कमरे में कदम रखा।
सुनील : पापा, क्या बात है? क्या हुआ?
पापा(धीरे से) : क्या तुम इसी काम के लिए कैफे में बैठ कर समय बर्बाद कर रहे हो? समझ नहीं आता, इतने अच्छे दिन आ रहे थे, फिर भी तुम उस जगह में बैठकर क्या कर रहे हो?
सुनील के दिल की धड़कन तेज़ हो गई, वो जानता था कि अब उसे कुछ कहना ही होगा। उसके पापाजी को सुनील का कैफे में काम करना बिल्कुल पसंद नहीं था। वो हमेशा से अपने बेटे से यही उम्मीद करते थे कि वह अपने पिता की दुकान पर काम करे, परिवार का नाम रोशन करे और अपनी मेहनत से एक अच्छा करियर बनाए। उसके पापाका मानना था कि बॉलीवुड या फिल्मों के सपने बस एक छलावा होते हैं, और ये सब बेकार के ख्वाब होते हैं।
सुनील ने गहरी सांस ली। वो जानता था कि इस बार अपनी बात रखना बहुत जरूरी था, क्योंकि उसे अब अपने सपनों के बारे में खुलकर बोलना था।
सुनील : पापा, मुझे आपके साथ दुकान पर काम नहीं करना। इसलिए मैं कहीं और काम कर रहा हूं, क्योंकि मैं अपने सपने को जीना चाहता हूं।
पापा(गुस्से में, तीखे शब्दों में) : सपना? तुम इसे अपना सपना कहते हो? तुम तो अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हो। तुम सोचते हो कि कैफे में काम करके तुम अपनी जिंदगी में कुछ हासिल करोगे? तुम बॉलीवुड के झूठे ख्वाबों में खोए हो। तुम सोचते हो सलीम खान से मिलकर सब हासिल कर लोगे? क्या वो तुम्हारे पास आएगा? क्या वो तुम्हारे घर में आएगा? या तुम्हे अपने घर बुलाएगा? इस सबका कोई मतलब नहीं है।
सुनील (निराश होकर) : पापा, मैंने कुछ गलत नहीं किया है। मैं जानता हूं कि ये सब आसान नहीं है, लेकिन अगर मैं इस सपने के साथ जी नहीं सकता तो क्या मैं अपनी पूरी जिंदगी उस दुकान में बर्बाद कर दूं?
पापा(कड़क आवाज़ में) : तुम क्या सोचते हो? तुम्हारा सपना सिर्फ एक बेवकूफी है! तुम सलीम खान से नही मिल सकते। तुम एक आम आदमी हो, जो बरेली में रहता है। हमारे पास इतनी औकात नहीं है। अगर तुमने अपना रास्ता नहीं बदला तो तुम पूरे परिवार के लिए परेशानी का कारण बनोगे।
सुनील की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसने अपनी feelings को काबू में रखने की कोशिश की। उसके भीतर ये गुस्सा और निराशा एक साथ घुलने लगी। उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा ख्वाब, सलीम खान से मिलने का सपना, और उसे पूरा करने की उसकी चाहत, उसे अपने पिता के लिए समझाने में नाकाम हो रही थी। उसने अपनी बात रखी
सुनील (रूठते हुए, गुस्से से) : पापा, आप समझते क्यों नहीं? मैं जो कर रहा हूं, वो मेरी खुशी के लिए है। मैं यह सब कभी आपके लिए नहीं कर सकता था। मैं अगर किसी और के लिए काम करता रहूँगा तो मेरा सपना कभी पूरा नहीं होगा।
उसके पापाकी आँखों में अब गुस्से के साथ एक गहरी चिंता भी थी। वो हमेशा से यही मानते थे कि अगर उनका बेटा उनके नक्शेकदम पर नहीं चलेगा, वो जीवन में कभी सफलता नहीं पा सकता। उन्होंने गहरी सांस ली
पापा(गुस्से से, गंभीर आवाज़में) : तुमने ये जो फैसला लिया है, इससे तुम्हारे जीवन में कुछ अच्छा नहीं होगा। तुम समझ रहे हो? तुम इस रास्ते पर बढ़ रहे हो, तो तुम्हें कभी भी सलीम खान नहीं मिलेगा। तुम सलीम खान के दीवाने ही बनकर रह जाओगे। तुम्हारा सपना सिर्फ तुम्हारी उम्र और मेहनत की बर्बादी है। मैंने मोहन प्रकाश को देखा है, उसको मैं बचपन से जानता था लेकिन अब लोगो के सामने उसको अपने दोस्त तक नही बोल पाता। ये सपने आपको कभी खुशी नही देते, बेहतर ये होगा की तुम भी ये समझ जाओ।
सुनील (सख्ती से) : पापा, आप हमेशा कहते रहते हैं कि मैं ये सब छोड़ दूं। क्या कभी आपने सोचा है कि मैं जो करता हूं, वो मैं क्यों करना चाहता हूं? क्या कभी आपने ये पूछा है कि मैं क्या चाहता हूं?
पापा(गुस्से से) : तुम मेरे बेटे हो, और तुम मुझे छोड़कर अपने सपनों के पीछे भाग रहे हो। यही तुम कर रहे हो? लेकिन इसमें तुम्हारा future क्या होगा? तुम काम क्या करोगे?
सुनील (कांपते हुए, हल्की आवाज़में) : मैं अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेना चाहता हूं, पापा। मैं अपने सपने को पूरा करना चाहता हूं। मैं वही कर रहा हूं जो मुझे सही लगता है। आप मुझे हमेशा यही कहते हो, कि मैं अपने रास्ते पर चलूं, लेकिन फिर जब मैं खुद कुछ करना चाहता हूं, तो आप क्यों नहीं समझ पाते?
पापा(कड़क आवाज़में) : तुम नहीं समझ रहे हो कि मैं तुम्हारे भले के लिए बोल रहा हूं। तुम्हारे सपने कभी सच नहीं होंगे। अगर तुम ऐसे ही अड़ियल रहे तो मैं भी तुम्हारे लिए कुछ नही कर पाऊंगा।
उसके पापाके ये शब्द सुनकर सुनील को एक झटका लगा। ये पहली बार था जब उसे लगा था कि वो कभी भी अपने पापा को खुश नहीं कर पाएगा, चाहे वो जो भी करे। सुनील ने एक पल के लिए अपने पिता की ओर देखा और फिर बहुत गहरी सांस ली
सुनील (कमज़ोर आवाज़में) : मैं अपना रास्ता खुद चुन रहा हूं, पापा। शायद आपको ये कभी समझ नहीं आएगा।
उसके पापाएक बार फिर से चुप हो गए, लेकिन उनके दिल में एक गहरी खामोशी फैल गई थी। सुनील ने अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाए। वो जानता था कि वो जो करने जा रहा था, वो एक मुश्किल और जोखिम भरा कदम था, लेकिन अब उसने पूरी तरह से अपना रास्ता चुन लिया था।
पापा : तुम अपने सपनों के पीछे भागते रहोगे, लेकिन ये सब कभी पूरा नहीं होगा। तुम कभी भी सलीम ख़ान से नहीं मिल पाओगे!
ये शब्द हवा में तीर की तरह तैरते हुए सुनील के दिल में गहरे उतर गए थे।
उसके पापाके शब्द सुनील के दिल पर किसी हथौड़े की तरह पड़े। जैसे किसी ने उसके सबसे प्यारे सपने को ठोकर मार दी हो। उसका शरीर एक पल के लिए जड़ हो गया। उसकी आंखें खाली-खाली दीवार की तरफ देखने लगीं, लेकिन उसके कानों में उसके पापाकी बातों की गूंज रुक नहीं रही थी।
तुम कभी भी सलीम ख़ान से नहीं मिल पाओगे...
तुम कभी भी सलीम ख़ान से नहीं मिल पाओगे...
ये शब्द जैसे बार-बार उसके दिमाग की दीवारों से टकरा रहे थे। उसका गला सूखने लगा, दिल की धड़कन तेज़ हो गई, और आँखों में एक अजीब सा दर्द उभर आया।
उसकी आंखों में हल्की नमी थी, लेकिन वो उन्हें छुपाने की कोशिश कर रहा था। क्योंकि ये आंसू सिर्फ पानी नहीं थे, ये उसकी टूटती उम्मीदों के निशान थे।
क्या सच में उसके सपने कभी पूरे नहीं होंगे?
क्या उसने जो सालों से सोचा, जो हर रात अपनी आंखों में सजाया, वो सब एक झूठ था?
पापा(थोड़ी धीमी लेकिन कठोर आवाज़ में) : ज़िंदगी किताबों और सपनों से नहीं चलती, सुनील। कुछ हकीकत के ज़मीन पर भी पैर रखने सीखो। सपनों से पेट नहीं भरता।
सुनील धीरे-धीरे खड़ा हुआ। उसकी आंखों में एक अलग ही चमक है—गुस्से और दर्द के बीच एक जिद्द की चमक। उसके होंठ थरथरा रहे थे, लेकिन इस बार वो चुप नहीं रहना चाहता था।
सुनील (धीमे लेकिन ठहरे हुए अंदाज़ में): आपने कभी कोशिश की थी अपने सपनों को पकड़ने की, पापा? या बस डर कर पीछे हट गए थे? मैं पीछे नहीं हटूंगा।
शायद यही वो पल था, जिसने सुनील के अंदर कुछ तोड़ दिया, लेकिन उसी टूटन में से एक नया सपना भी जन्म ले रहा था—इस बार और भी ज्यादा मजबूत, और भी ज्यादा सच्चा।
ये शब्द सुनील के दिल पर गहरा घाव कर गया। वो चौंका, जैसे कोई बड़ी उम्मीद अचानक चूर-चूर हो गई हो। ये शब्द उसके सपनों के दुश्मन थे, जो वो सालों से अपने भीतर पाल रहा था। इसने उसकी आत्मा को हिला दिया था, और वो जानता था कि इस पल के बाद कुछ बदलने वाला था।
उसके पापा के शब्द उसके दिल में गूंज रहे थे, और सुनील का मन अचानक खाली महसूस होने लगा। क्या सचमुच उसके सपने कभी पूरे नहीं होंगे? क्या उसने अपनी पूरी ज़िंदगी बेकार के ख्वाबों के लिए खपा दी थी?
सुनील की आँखों में आँसू थे, लेकिन वो उन्हें रोकने की कोशिश कर रहा था। उसके पापा के शब्द उसे अंदर तक तोड़ रहे थे, और वो जानता था कि अब उसके लिए ये पल एक मोड़ बनने वाला था।
सुनील का दिल भारी था, और उसके पापाकी आँखों में एक ऐसी सख्ती थी जो उसे पूरी तरह से निचोड़ रही थी। क्या ये वाकई उसका breaking point था? क्या वो फिर से अपनी राह पर चलने की हिम्मत जुटा पाएगा? आखिर आगे सुनील क्या करेगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.