पूरे कमरे में खामोशी इतनी गहरी थी कि दीवार घड़ी की टिक-टिक भी अजीब लगने लगी थी। सुनील और शांति दोनों एक-दूसरे को बिना देखे भी समझ रहे थे कि हालात बिगड़ने वाले हैं। उसके पापा, जो अब तक खिड़की से बाहर देख रहे थे, धीरे-धीरे पलटे।
सुनील के दिल की धड़कन जैसे तेज़ होती जा रही थी। उसे ऐसा लग रहा था कि हर सेकंड के साथ कमरे की हवा भारी होती जा रही है। वह बुरी तरह से सोचने लगा—क्या पिताजी ने सब कुछ सुन लिया? अगर सुन लिया है तो अब क्या होगा? क्या वह उसे डांटेंगे, चिल्लाएंगे, या... शायद इससे भी ज्यादा कुछ?
शांति की आँखों में हल्का डर झलक रहा था। वह कुछ कहना चाहती थी, शायद उसके पापा को समझाना चाहती थी, लेकिन उसके होंठ बंधे हुए थे। उसने सुनील की तरफ देखा, लेकिन उसका चेहरा भी उतना ही बेजान था।
उसके पापा ने आखिरकार सुनील की तरफ देखा। उनकी आँखों में एक ठंडक थी, जो सुनील को भीतर तक चीर गई। उन्होंने गहरी सांस ली और धीरे-से पूछा,
पापा : सुनील, कुछ कहना है तुम्हें?
यह सवाल सुनते ही सुनील के दिमाग में हजारों खयाल दौड़ गए। क्या वो सच बोल दे? लेकिन अगर उसने सच बताया, तो क्या उसके पापा उसे समझ पाएंगे? या फिर, क्या वह चुप रहकर इस पल को टाल सकता है? सुनील ने कांपती आवाज़ में कहा। उसका गला सूख चुका था, और उसकी आवाज़ कमरे की चुप्पी में जैसे डूब गई।
सुनील : न-नहीं, पापा,
उसके पापा ने उसकी बात को अनसुना करते हुए गहरी निगाहों से उसे देखा। तभी उन्होंने एक कदम आगे बढ़ाया। अब सुनील ने सिर झुका लिया। उसे लग रहा था कि उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा। वह अपनी उंगलियों को मरोड़ते हुए किसी बहाने के बारे में सोचने लगा, लेकिन उसके पापा की आँखों से बचना अब असंभव लग रहा था।
उसकी आँखों में कोई गुस्सा नहीं था, न ही कोई तकरार। बस एक सवाल था,
पापा (भारी आवाज़ में) : क्या हो रहा है यहाँ? कुछ कर रहे हो या फिर दुकान पर ही बैठना है?
सुनील को लगा जैसे वो थोड़ा doubt में है, इसलिए वो हल्का सा घबराया, लेकिन जल्दी से खुद को संभाला
सुनील : हां हां, ढूंढ रहा हूँ। एक अच्छी जॉब।
ये बोलकर वो खुद को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसका मन कहीं और था। वो जानता था कि अब उसका अपनी ज़िंदगी के बारे में अच्छे से सोचने का समय आ गया है।
शांति ने राहत की सांस ली, लेकिन उसकी आँखों में अब भी एक डर था। उसने देखा, उसके पापा बिना किसी ज़िक्र के सीधे किचन की तरफ बढ़ गए, जैसे उन्होंने कुछ सुना ही न हो।
पापा (जैसे कोई चिंता नहीं) : ठीक है, जब तुम्हारा मन लगे, तो बताना।
उसके पापा के जाने के बाद, सुनील ने भी राहत की एक लंबी साँस ली। ये पल उसे थोड़ा हैरान कर गया था, लेकिन साथ ही उसने सोचा कि शायद वो जो सोच रहा था, वो सही था—शायद पापा को सच में कुछ नहीं पता था। लेकिन अब उसे ये तय करना था कि वो अपनी ज़िंदगी के अगले कदम को किस दिशा में ले जाएगा।
शांति ने सुनील को एक हल्की मुस्कान दी, लेकिन फिर भी उसकी आँखों में वही चिंता थी, जो पहले थी। वो चाहती थी कि सुनील जल्द ही सही फैसला करे, लेकिन क्या वो तैयार था इसके लिए?
सुनील के मन में कई उलझनें चल रही थीं। वो अपनी मां से मिलकर अपनी जिंदगी के बारे में सोचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अब भी उसके भीतर हलचल थी। उसने एक बार फिर से वही रास्ता चुनने का सोचा जो हमेशा से उसके दिल में था—सलीम खान से मिलने का सपना। लेकिन अब उसे ये एहसास हो रहा था कि उसके सपने का रास्ता आसान नहीं था। उसकी मां की बातों ने उसे थोड़ा डगमगाया था, लेकिन उसके अंदर वह उम्मीद अब भी जिन्दा थी। शायद वो उस ख्वाब को जीना चाहता था।
कैफे में काम करने के बाद, सुनील के मन में ये सवाल था कि क्या वो सच में वही कर रहा है जो उसे करना चाहिए था, या फिर वो अपनी जिंदगी को कहीं भटका रहा था। इसी उलझन में वो रिया से मिलने का सोच रहा था।
सुनील कैफे में अपनी पसंदीदा खिड़की के पास बैठा था। बाहर हल्की सी ठंडक थी और सड़क के किनारे खड़े पेड़ों की पत्तियाँ धीरे-धीरे हवा के साथ हिल रही थीं। कैफे में धीमी-धीमी सॉफ्ट म्यूज़िक बज रहा था और कॉफी मशीन की स्टीम की आवाज़ माहौल में एक अलग गर्माहट घोल रही थी। लेकिन इन सबके बीच, सुनील का दिल बेचैन था।
वो अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ बार-बार दरवाज़े की ओर देख रहा था, जैसे हर गुजरते पल के साथ रिया के आने की उम्मीद और भी गहरी होती जा रही थी। उसके हाथों में रखा कॉफी कप ठंडा हो चुका था, मगर उसके दिल में बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
फिर, दरवाज़े पर लगी घंटी की ट्रिन-ट्रिन की हल्की सी आवाज़ सुनाई दी। सुनील ने तुरंत सिर उठाया। रिया अंदर आ रही थी। उसने एक सिंपल जीन्स और लूज़ स्वेटर पहना था, लेकिन उसके चेहरे की थकान उसके दिल के हालात बयां कर रही थी।
रिया की नज़रें जैसे ही सुनील से मिलीं, उसने महसूस किया कि सुनील में कुछ बदल गया है। उसकी आंखों में एक अजीब-सी गहराई थी, एक उलझन, जैसे वो किसी सोच में डूबा हुआ हो। वो मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन दोनों के बीच एक खामोश दीवार सी खड़ी थी।
रिया ने अपनी आदत के मुताबिक मज़ाकिया अंदाज में कहा, हल्की मुस्कान के साथ—
रिया (हंसी के हल्के रंग के साथ) : हेलो, आज अमेरिकानो और चीज़केक नहीं मिलेगा क्या?—
सुनील (नरम आवाज़ में, हल्की चिंता के साथ) : हेलो… हां, लाता हूं।
वो उठकर काउंटर की ओर बढ़ा, लेकिन फिर एक पल के लिए रुक गया। जैसे कुछ कहना चाहता हो पर कहने में झिझक रहा हो। फिर उसने हिम्मत जुटाई, मुड़कर रिया की तरफ देखा, जो अब कुर्सी पर बैठ चुकी थी, खिड़की के बाहर देख रही थी।
सुनील (थोड़ी हिचकिचाहट के साथ) : रिया… तुम्हारे पापा की तबीयत अब कैसी है?
रिया ने सुनील की तरफ देखा। उसके चेहरे पर एक पल के लिए चुप्पी छा गई, जैसे उस सवाल ने उसे फिर उसी दर्द के लम्हे में वापस खींच लिया हो। पर उसने खुद को संभाला और हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया—
रिया : हां… अब वो ठीक हैं। बस थोड़ा-सा समय लगेगा पूरी तरह ठीक होने में, लेकिन अब खतरे की कोई बात नहीं है।
सुनील ने राहत की सांस ली। उसके चेहरे पर एक सुकून की लहर दौड़ गई, लेकिन दिल के कोने में रिया के लिए बढ़ती हुई फिक्र और गहरी हो गई थी।
सुनील के चहरे पर वही ठंडा और सीरियस सा लुक था, लेकिन रिया के चेहरे पर इस बार एक हल्की मुस्कान थी, जो किसी सोच को छुपाए हुए थी।
रिया (स्माइली के साथ) : क्या हुआ सुनील? तुम काफी चुप-चुप से हो गए हो, सब ठीक है?
सुनील ने गहरी सांस ली और उसकी तरफ देखा। उसने सोचा, रिया शायद उस रास्ते का थोड़ा अच्छा जवाब दे सके जो वो सोच रहा था, लेकिन क्या रिया उसे सही दिशा दे सकेगी, इसका उसे पूरी तरह यकीन नहीं था।
सुनील (धीरे से, हल्की घबराहट के साथ) : तुमसे कुछ बात करनी है रिया। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं। मुझे लग रहा है कि मैं जिंदगी के किसी ऐसे मोड़ पर हूं जहां से निकल पाना बहुत मुश्किल होगा।
रिया ने उसे ध्यान से सुना। वो जानती थी कि सुनील पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान था, लेकिन अब उसके मन में क्या चल रहा था, ये समझना भी उतना ही जरूरी था। रिया थोड़ी देर चुप रही।
रिया (धीरे से, समझदारी से) : क्या हुआ सुनील? तुम किस बारे में सोच रहे हो? बताओ, क्या ऐसा कुछ है जो तुम्हें परेशान कर रहा है?
सुनील (धीरे से, थोड़ा उलझन में) : मैंने पिछले कुछ दिनों से अपनी मां से बात की। वो मुझे समझा रही थीं कि मेरी जिंदगी का कोई मकसद होना चाहिए। मैं कभी अपना सपना भूल जाता हूं, और ऐसा लगता है जैसे मैं अपने रास्ते पर नहीं हूं। मेरा सपना तो सलीम खान से मिलने का है, लेकिन क्या ये सच में मुझे उसी रास्ते पर ले जाएगा, जिस रास्ते पर मुझे चलना चाहिए था?
रिया ने उसकी बातें ध्यान से सुनीं। वो समझ सकती थी कि सुनील किस उलझन में था। उसे यकीन था कि ये सिर्फ एक सपना नहीं था, बल्कि ये उसकी पूरी जिंदगी का हिस्सा बन चुका था। लेकिन क्या वो उस सपने को अपने जीवन का लक्ष्य बना सकता था?
रिया : सुनील, तुम्हारा सपना सिर्फ सलीम खान से मिलने का है या कुछ और भी है? तुम क्या सच में सोचते हो कि अगर तुम सलीम खान से मिल सको तो तुम्हारा जीवन बदल जाएगा? क्या ये सिर्फ एक पल की खुशी होगी, या फिर कुछ और?,
सुनील (धीरे से, झिझकते हुए) : मै नहीं जानता रिया, मुझे तो लगता है कि मेरे पास बस यही एक सपना है। बाकी सब कुछ तो बेमायने सा लगता है। मुझे लगता है कि अगर सलीम खान से मिल लूंगा, तो कुछ बदल जाएगा, कुछ ऐसा जो मैं खुद भी समझ नहीं पाता।
रिया (धीरे से, आत्मविश्वास से) : अगर तुम्हे सलीम खान से मिलना है, तो शायद तुम बरेली में रहकर ये सपना पूरा नहीं कर सकते। तुम्हें मुंबई जाना होगा, जहां वो है, जहां इस सपने को जीने का मौका मिल सकता है। तुम यहीं बैठकर इसे नहीं पा सकते। तुम्हें इस रास्ते पर निकलना होगा, जहां तुम्हें अपनी मेहनत और संघर्ष से सबकुछ हासिल करना होगा।
सुनील की आँखों में हल्की सी चमक आई। रिया की बातों ने उसे सचमुच कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था। मुंबई जाने का ख्याल भी उसकी सोच में आ चुका था, लेकिन क्या ये इतना आसान था?
सुनील (धीरे से, चिंतित होकर) : क्या तुम सच में सोचती हो कि मैं मुंबई जा सकता हूं? क्या वो सबकुछ इतना आसान होगा? क्या वहाँ भी मैं अपना रास्ता पा लूंगा?
रिया (मुस्कुराते हुए, जोश से) : सुनील, अगर तुम यही ख्वाब देख रहे हो तो तुम उस ख्वाब को पूरा करने के लिए वह हर कदम उठा सकते हो। मुंबई जाने का मतलब ये नहीं कि तुम्हें सब कुछ छोड़ना पड़ेगा, लेकिन अगर तुम सचमुच इस सपने को जीना चाहते हो, तो तुम्हें वहां जाकर देखना होगा कि यह सपना क्या सच में तुम्हारे लिए है या नहीं। तुम्हें अपना रास्ता खुद बनाना होगा।
सुनील ने रिया की बातों पर विचार किया। उसकी आँखों में अब उम्मीद की एक नई लहर थी। उसने कभी भी इस ख्वाब को इतना गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन आज उसे लगा कि वो अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करने के करीब था। उसने गहरी सांस ली
सुनील (गहरी सांस लेते हुए) : मैं सोचूंगा इस बारे में। शायद मुझे सच में कोई फैसला लेना चाहिए।
रिया ने उसे जोश से देखा और फिर उसकी आँखों में एक हल्की मुस्कान आई। उसने उसे समझाया कि अगर वो अपने ख्वाब को पूरा करना चाहता है, तो उसे अपने फैसले पर यकीन करना होगा और रास्ते की परेशानियों को झेलते हुए आगे बढ़ना होगा।
सुनील उस दिन अपने अंदर कुछ नया महसूस कर रहा था, जैसे किसी बड़े कदम की शुरुआत हो रही हो। इसके बाद
रिया ने मुस्कुराते हुए सुनील को देखा
रिया : अच्छा मुझे घर पर जरूरी काम है, मैं रात में फोन करती हूं तुम्हे। तुम एक बार मुंबई जाने का अच्छे से सोच लेना, बाकी बाते अच्छे से बाद में करेगे।
रिया अब कैफे से बाहर जाने लगी। सुनील ने उसे जाते हुए देखा और कुछ पल के लिए खुद को समझने की कोशिश की, जैसे वो एक नए रास्ते पर कदम रखने की तैयारी कर रहा हो। कुछ ही देर बाद, सुनील कैफे के काम में लग गया। लेकिन तभी उसकी नजरें अचानक ऊपर उठी। उसने देखा कि उसके पापा उसके पापा दूर से आते हुए दिखाई दे रहे थे।
सुनील : पापा??
उसके पापा के कदम तेज़ थे, जैसे वो किसी काम में बिज़ी हों, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र सुनील पर पड़ी, दोनों की आँखें एक दूसरे से मिलीं। सुनील के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। वो समझ नहीं पा रहा था कि अब उसे क्या करना चाहिए। क्या उसके पापा ने उसे काम करते हुए देखा था? क्या फिर उसके पापा ने उसे बिना कुछ कहे नजरअंदाज कर दिया था? आखिर अब सुनील के साथ आगे क्या होगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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