सुनील की बातें रिया के दिल के किसी कोने में उतर रही थीं। वो शब्द, जो सिर्फ बाते थी, रिया के लिए किसी गहरी लहर की तरह थे—जैसे बरसों से दबे सवालों के जवाब वहीं छुपे हों। सुनील की आँखों में सच्चाई थी, और उसकी आवाज़ में वो भरोसा, जो कभी खो गया था। रिया की आँखों में एक हल्की सी चमक उभर आई, जैसे दिल के जाले साफ़ होने लगे हों, लेकिन उसके मन में सवालों का सैलाब उमड़ पड़ा था। "क्या सच में सुनील बदल चुका है?"
"क्या ये हमारी कहानी का एक नया मोड़ है?"
उसके दिल और दिमाग़ के बीच एक खामोश जंग छिड़ी हुई थी। इसी गहरी सोच में डूबी रिया के बैग में रखा फोन अचानक तेज़ी से बज उठा। उस तेज़ रिंगटोन ने जैसे उस पल की नर्म-सी खामोशी को तोड़ दिया। रिया ने चौंक कर फोन की स्क्रीन की तरफ देखा। उसकी आँखों में एक पल के लिए हैरानी और अनजाने डर का हल्का सा भाव उभर आया। स्क्रीन पर उसकी बड़ी बहन का नाम फ्लैश हो रहा था—“Didi Calling”। उसने सुनील की ओर देखा, उसकी आँखों में सवाल थे, जवाब अधूरे थे, पर दीदी के नाम ने उसे फोन उठाने पर मजबूर कर दिया।
रिया ने गहरी सांस ली और कॉल रिसीव किया।

रिया (धीमी, थोड़ी घबराई हुई आवाज़ में) : ह-हेलो?

बहन (तेज़, घबराई हुई आवाज़ में) : रिया, कहां हो तुम? मैंने तुम्हें कितनी बार कॉल किया!

रिया (हल्की बेचैनी के साथ) : मैं बाहर हूं… क्या हुआ दीदी? सब ठीक है?

सुनील अब भी सामने बैठा था, रिया के चेहरे पर बदलते हाव-भाव को गौर से देख रहा था। उसके चेहरे पर चिंता की परछाइयाँ साफ दिख रही थीं। रिया की आंखों में डर की एक चमक थी, जैसे कुछ अनचाहा सुनने वाली हो। फोन पर उसकी बहन की आवाज़ और भी तेज़ हो गई थी, जैसे वो किसी भीड़भाड़ वाले माहौल में थी।

बहन (जल्दी-जल्दी बोलते हुए) : रिया, तुम्हें अभी घर लौटना होगा। पापा की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई है। हम हॉस्पिटल जा रहे हैं। जल्दी आओ!

यह सुनते ही रिया के हाथ कांपने लगे। उसके चेहरे पर आई हल्की चमक अब डर और घबराहट में बदल चुकी थी। उसकी आंखें भर आईं, लेकिन उसने अपने आंसुओं को पलकों की सरहद पार नहीं करने दिया।

रिया (आवाज़ भर्राई हुई, लेकिन खुद को संभालने की कोशिश करते हुए): मैं... मैं अभी आ रही हूं।

इसके बाद फोन कट गया।
रिया ने फोन को धीरे से नीचे रखा और सुनील की तरफ देखा। उसकी आँखों में अब वो सवाल नहीं थे, बल्कि एक गहरी बेबसी थी। सुनील ने महसूस किया कि कुछ गड़बड़ है।

सुनील : क्या हुआ रिया? सब ठीक है?

रिया ने एक पल के लिए सुनील की तरफ देखा, फिर गहरी सांस ली, जैसे खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही हो।

रिया (तेज़ी से उठते हुए) : पापा की तबीयत बहुत खराब है। मुझे अभी जाना होगा।

सुनील (संवेदनशीलता के साथ) : रिया… मैं तुम्हारे साथ चलूं?

रिया ने उसकी तरफ देखा, उसकी आंखों में हल्की सी नमी थी, लेकिन उसने सिर हिलाकर मना कर दिया।

रिया : नहीं, मैं संभाल लूंगी।

रिया ने सिर हिलाया और बिना कुछ और कहे, कैफे से बाहर निकलने लगी। सुनील उसे जाते हुए देखता रहा, उसकी आँखों में थोड़ा ग़म था, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए अपना ध्यान फिर से काम पर लगाया।

रिया घर की तरफ चलते हुए सोच रही थी, सुनील की बातों में कहीं न कहीं कुछ था जो उसके दिल को छू गया था, लेकिन क्या ये सच था? उसने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाए, मन में उठते सवालों के साथ।

रात का समय था, और सुनील के घर में शांति छाई हुई थी। घर का माहौल कुछ शांत, लेकिन थोड़ी चिंतित भी था। सुनील का मन आजकल बिखरा हुआ था, और उसकी मां, शांति, उसकी खामोशी को महसूस कर रही थी। कैफे में काम करते हुए सुनील के मन में जो उथल-पुथल थी, वो अब घर तक आ पहुंची थी। वो दिनभर की थकान के बावजूद कुछ सोचते हुए रसोई में बैठा था, और अब उसने धीरे-धीरे अपनी मां को कैफे में काम करने के बारे में बताने का सोचा,

जब वो रसोई में पहुंचा, शांति अपनी रूटीन की तरह दाल और सब्ज़ी बना रही थी। गर्म तवे की आवाज़ और चूल्हे की आग में कुछ देर के लिए मन को राहत मिल रही थी।

सुनील (आहिस्ता से) : मां, मैं अब कैफे में काम करने लगा हूं।

शांति ने पहले तो सुना नहीं, फिर उसने रसोई से बाहर आते हुए देखा कि सुनील काफी चुप था। उसकी आँखों में एक हल्की सी उलझन थी, जो सीधे तौर पर उसकी बातों से मेल खा रही थी। वो पहले उसकी बातों को हल्के से समझने की कोशिश कर रही थी, लेकिन आज उनकी आवाज़ में कुछ और था।

शांति (रुककर थोड़ी चिंता के साथ) : बेटा, कैफे में जॉब? इतनी मेहनत और पढ़ाई के बाद? तुम तो कहते थे कि कुछ बड़ा करना चाहते हो, तो ये सब क्यों?

सुनील ने एक लंबी सांस ली। वो जानता था कि ये सवाल उसकी मां के दिल में उठेगा। लेकिन उसकी हालत कुछ ऐसी थी कि उसे इस सवाल का जवाब भी जल्दी से नहीं मिल रहा था। वो झूले की पीठ से अपनी पीठ लगाकर कुछ देर खामोश रहा।

सुनील (धीरे से, थोड़ी मायूसी के साथ) : मां, मैं क्या करूं, मेरा इस जॉब को करने का मन नहीं था। लेकिन पापा के कहने पर कोई ना कोई काम तो शुरू करना ही था।

शांति ने उसकी बात सुनी और गहरी सांस ली। वो जानती थी कि सुनील का मन हमेशा कुछ बड़ा करने में था, लेकिन वो जानती थी कि सपने कभी कभी सच नहीं होते और बहुत सारे सपनों को ठोकरें खानी पड़ती हैं। उसने झुकी हुई नजरों से सुनील की ओर देखा और उसकी feelings को समझने की कोशिश की।

शांति (थोड़ा सख्त स्वर में) : बेटा, अगर जॉब ही करनी थी तो पापा के साथ दुकान ही संभाल लेते। तुम्हारे लिए इससे बेहतर क्या हो सकता था? कम से कम ये तो तुम अपना काम करते, बल्कि किसी और के यहां नहीं।

सुनील ने मां की बात सुनी, लेकिन उसका मन रिया में हीं उलझा हुआ था। वहीं उसकी मां की बातों में सच्चाई थी, लेकिन वो जानता था कि दुकान में काम करके उसकी जिंदगी कहीं अटक जाती। वो कभी वहां से बाहर नहीं निकल पाता। वो कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शब्दों का सही चुनाव करना उसके लिए मुश्किल हो रहा था।

सुनील : मां, अगर मैंने पापा की पुश्तैनी दुकान संभाल ली, तो मुझे जिंदगीभर वहीं बैठना पड़ेगा। और मैं ये नहीं चाहता। दुकान में काम करना... वो सब मुझे मंजूर नहीं। मुझे लगता है, वहाँ मेरा दम घुट जाएगा। मैं वहां फंस जाऊँगा।

शांति उसकी बातों पर ध्यान से सुन रही थी। वो जानती थी कि सुनील को अपनी पहचान बनानी है, और वो जानती थी कि अगर वो किसी के दबाव में आकर दुकान पर काम करने लगेगा, तो वह कभी भी अपनी आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाएगा। फिर भी, उसकी आंखों में एक डर था, क्योंकि शांति को यह डर था कि कहीं सुनील रास्ता भटक न जाए। वो चुपचाप उसकी ओर देखने लगा।

शांति (धीरे से, मन में चिंता के साथ) : लेकिन बेटा, तुमने कैफे में काम करने का जो रास्ता चुना है, वो ठीक नहीं। तुम्हारे पापा यह सुने तो और भी गुस्से में आ जाएंगे। तुम जानते हो, पापा कभी भी तुम्हारे इस फैसले से कभी खुश नहीं होगे, अगर तुम दुकान संभाल लेते, तो कम से कम वो तुमसे तो खुश रहते।

सुनील ने थोड़ी चिढ़ के साथ अपनी मां की बातों का जवाब दिया, हालांकि उसने अंदर से महसूस किया कि मां की चिंता समझने की कोशिश किया

सुनील (गुस्से से, थोड़ा चिढ़कर) : पापा तो हर बात पर गुस्सा करते हैं, मां। उन्हें लगता है, मेरी हर बात गलत है। उन्होंने जो कभी समझा ही नहीं, वो मुझे कैसे समझ सकते हैं? मैंने जितनी भी कोशिश की, पापा ने कभी भी मेरी पसंद को सीरियसली नहीं लिया। मैं कुछ भी करूं, उन्हें लगता है, मैं ही गलत हूं।

शांति ने इस पर कुछ नहीं कहा। वो चुपचाप सुनील की बातों को समझ रही थी। वो उसकी हालत को समझने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे ये भी समझ में आ रहा था कि सुनील भी सही कह रहा था।

शांति (धीरे से) : बेटा, तुमसे एक सवाल पूछूं? तुम्हारा सपना आखिर क्या है?

सुनील ने इस सवाल पर थोड़ा रुककर शांति की ओर देखा। उसकी आँखों में कुछ झलक रहा था। ये सवाल उसे तंग करने वाला था, क्योंकि वो खुद नहीं जानता था कि उसका अगला कदम क्या होगा। उसने एक गहरी सांस ली

सुनील (आहिस्ता से) : मां, मेरा सपना तो बस सलीम खान से मिलने का है।

शांति की आंखों में अब समझ का भाव था, लेकिन वो जानती थी कि इस तरह के सपने कभी भी सच नहीं होते। शांति के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन साथ ही साथ वो चिंतित भी थी।

शांति (ध्यान से, हल्की सी फिक्र के साथ) : बेटा, ये तुम्हारा future नहीं हो सकता। सलीम खान से मिलना एक सपना हो सकता है, लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि अगर यही सपना तुम पर हावी हो जाए तो तुम्हारा future क्या होगा? क्या तुम अपनी जिंदगी में सिर्फ सलीम खान से मिलना चाहते हो?

सुनील ने सिर झुकाया। उसकी मां की बातों में अब घबराहट और चिंता दोनों थीं, क्योंकि उसे महसूस हो रहा था कि ये सपना कभी पूरा नहीं हो सकता था। उसने अपनी फीलिंग्स को दबाया

सुनील (आहिस्ता से) : मां, मैंने अभी तक इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा। मैं खुद नहीं जानता। बस यही सपना है, और मुझे लगता है अगर मैंने इसे पूरा कर लिया, तो मैं खुद पर प्राउड फील कर सकूंगा।

शांति : तुमने मोहल्ले के मोहन प्रकाश के बारे में तो सुना है ना? वो बचपन में तुम्हारे पापा का दोस्त था। एक समय पर वो बच्चन का सबसे बड़ा फैन था, लेकिन अब उसकी हालत क्या है, ये तुम भी देख ही रहे हो।

सुनील के चेहरे पर हल्की चिंता आ गई। वह जानता था कि मोहन प्रकाश का क्या हाल हुआ था। उसका जुनून कभी उसे ठीक नहीं होने दे पाया था। आज वो पागलों की तरह घूम रहा था,

सुनील (धीरे से) : हां, मां, मैं जानता हूं। वो भी तो कुछ ऐसा ही सोचता था, है ना?

शांति (धीरे से) : बिल्कुल बेटा, उसने भी अपनी जिंदगी का सपना वही रखा था। उसे लगता था कि बच्चन से मिलकर वो कुछ बड़ा करेगा, लेकिन उसने अपनी असल जिंदगी में कुछ करने की बजाय उस सपने को हावी होने दिया। तुम्हारे पापा तुमसे इसलिए बहुत डरते हैं, क्योंकि वो नहीं चाहते कि तुम भी वही गलती करो।

सुनील ने सिर झुका लिया। उसकी मां की बातें उसे अंदर तक झकझोर रही थीं। वो जानता था कि वो जल्दबाज़ी में कोई फैसला नहीं ले सकता। उसे खुद पर कंट्रोल रखना होगा, लेकिन उसे ये भी एहसास था कि कहीं न कहीं वह भी इस सपने में फंस रहा था।

सुनील (धीरे से) : मां, मैं जानता हूं, और मुझे लगता है मुझे अपने goals ठीक से सेट करने होगे।

शांति : बस बेटा, यही मैं चाहती हूं। तुम अपने सपने को पूरा करने के लिए सही दिशा में सोचो। तुम किसी के पीछे मत भागो, अपने future के बारे में सोचो।

सुनील ने अपनी मां की बातों पर विचार किया और धीरे से सिर हिलाया। उसे एक नई दिशा की ज़रूरत थी, लेकिन ये एक लंबा रास्ता था, जो उसे खुद तय करना था। इसी समय किचन में सुनील के पापा आ गए, और जैसे ही उनकी निगाहें शांति और सुनील पर पड़ीं, दोनों के चेहरे का रंग अचानक उड़ गया। उनके चेहरे पर एक चुप्प सी तानाबाना बन गई, जैसे किसी ने उनका सबसे बड़ा राज़ खोल दिया हो। क्या उसके पापा ने उनकी बातें सुन ली थीं? शांति की आँखों में एक डर था, और सुनील के दिल की धड़कन तेज हो गई।

पापा (कठोर आवाज़ में) : क्या हो रहा है यहाँ?

एकदम से कमरे में खामोशी छा गई। सुनील को समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या कहना चाहिए, क्या करना चाहिए। क्या ये समय सुनील के जीवन में सबसे बड़ा मोड़ लाने वाले वाला था? क्या सुनील के पापा ने सब सुन लिया था? आगे क्या होगा, ये जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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