गली के उस सुनसान मोड़ पर, हल्की पीली स्ट्रीट लाइट के नीचे, मोहन प्रकाश अभी भी सुनील और धनंजय के सामने खड़ा था। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी मुस्कान थी—न तो पूरी तरह दोस्ताना, न ही पूरी तरह डरावनी। वो बस घूरता रहा, जैसे उनकी रगों में बहते खून की धड़कनें भी सुन सकता हो।
धनंजय (हल्के से फुसफुसाते हुए) : भाई, लगता है ये जूनियर बच्चन आज हमारा कांचा चीना बनाएगा।
उसकी आवाज़ में हल्की घबराहट को छुपाने की नाकाम कोशिश थी, लेकिन होंठों पर मजबूर मुस्कान भी थी, जैसे मज़ाक से माहौल का बोझ हल्का करने की कोशिश कर रहा हो।
मोहन प्रकाश ने उनकी बात सुन ली थी। उसने अपनी निगाहें धनंजय पर गड़ा दीं, एक अजीब सी मुस्कान के साथ, और फिर एक कदम उनकी ओर बढ़ाया।
मोहन प्रकाश (गंभीर आवाज में, जैसे कोई डायलॉग बोलते हुए) : रिश्ते में तो हम सबके बाप हैं… नाम है बच्चन।
उसकी आवाज़ भारी थी,जैसे हवा में ठंडक और सन्नाटा और भी गहरा हो गया हो। उसके शब्द गूंज की तरह फैल गए, और एक पल के लिए वक़्त जैसे ठहर गया। सुनील ने धनंजय की तरफ देखा—
दोनों एक पल के लिए बिल्कुल चुप हो गए। धनंजय ने सुनील के कंधे पर हल्का सा हाथ मारा, जैसे उसे इस अजीब सन्नाटे से बाहर लाना चाहता हो।
धनंजय (धीरे से): चल, भाई, ये आदमी या तो ड्रामा कर रहा है या फिर असली बच्चन समझ बैठा है खुद को।
सुनील बस मुस्कराया, लेकिन उसकी आंखें अब भी मोहन प्रकाश पर टिकी थीं।
दोनों ने एक आखिरी बार मोहन प्रकाश को देखा, जो अब भी वहीं खड़ा था, उसकी आंखों में एक अजीब चमक थी, जैसे कुछ कहने या छुपाने की कोशिश कर रहा हो। वो हल्के से बड़बड़ा रहा था, उसके शब्द हवा में गुम हो रहे थे—शायद कोई नाम, या कोई रहस्यमय जुमला जिसे समझ पाना मुश्किल था।
फिर बिना कुछ कहे, मोहन प्रकाश अचानक मुड़ा और धीमी चाल में गली के कोने की तरफ बढ़ गया। उसके कदमों की आहट दूर होती गई, और गली फिर से सन्नाटे में डूब गई।
सुनील और धनंजय कुछ देर तक वहीं खड़े रहे, जैसे सोच रहे हों कि ये मुलाकात सिर्फ एक अजनबी से थी… या फिर कुछ और।
उन दोनों ने एक गहरी सांस ली और फिर आगे बढ़ गए, पर वो मुलाकात उनके ज़ेहन में हमेशा के लिए दर्ज हो चुकी थी।
क्योंकि कभी-कभी, अजनबी सिर्फ अजनबी नहीं होते।
सुनील का मन वैसे तो अभी भी मोहन प्रकाश की हालत देखकर काफी भारी था, वही दूसरी तरफ रिया से मुलाकात के बाद से भी उसकी बेचैनी बस बढ़ती ही जा रही थी। उसे लगता था कि ये मुलाकात कुछ ज्यादा ही जरूरी है, शायद ये उसकी ज़िन्दगी का टर्निंग प्वाइंट हो। लेकिन फिर भी वो उलझन में था। रिया को देखकर उसे जितने सवाल उठे थे, वो अभी भी बिना जवाब के थे। अब सुनील सोच रहा था कि क्या उसे अपनी जिंदगी की इस हालत से बाहर निकलने के लिए किसी से सलाह लेनी चाहिए, शायद धनंजय से। धनंजय उसका अच्छा दोस्त था और हमेशा उसकी परेशानियों का हल निकालता था। सुनील के मन में चल रहे तूफान को शांत करने के लिए शायद वो सही इंसान था। इसलिए उसने धनंजय से इस बारे में बात की
धनंजय ( फिर से हिम्मत देते हुए) : भाई, ऐसा नहीं होगा। हम सबके सपने टूटते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम भी टूट जाएं। हमें अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में बढ़ना होगा। तेरी कहानी मोहन प्रकाश से बिल्कुल अलग है। तूने कभी हार नहीं मानी। तू अपनी राह पर चलता रहे और कोई भी तुझसे तेरी राह छीन नहीं सकता।
धनंजय की ये बात सुनकर सुनील को थोड़ा आराम मिला। वो अब समझ चुका था कि वो अपनी राह पर किसी भी हाल में अड़ा रहेगा, चाहे उसके सपने टूटे या फिर कुछ भी हो। उसने गहरी सांस ली
सुनील (हल्की मुस्कान के साथ) : शायद तू बोल रहा है। मुझे अपने सपनों की दिशा बदलनी नहीं चाहिए, और मुझे कभी हार नहीं माननी चाहिए। अगर मैं भी मोहन प्रकाश की तरह टूट गया, तो शायद कभी भी अपने सपनों का पीछा कर पाऊंगा। लेकिन अब, मैं आगे बढ़ूंगा, और किसी को मुझे रोकने नहीं देंगे।
सुबह का सूरज हल्का-सा चमक रहा था, और सुनील हमेशा की तरह कैफे के काम के लिए तैयार होकर निकल पड़ा। पिछले दिन की घटना उसके ज़ेहन में बार-बार घूम रही थी। रिया को इतने समय बाद देखकर उसका दिल जितना खुश था, उतना ही बेचैन भी। उसने रात भर यही सोचा था कि अगर रिया उससे फिर से मिली, तो वो इस बार बात करने का मौका नहीं छोड़ेगा।
सुनील ने खुद से वादा किया था कि इस बार वो रिया को अपनी घबराहट नहीं दिखाएगा।
कैफे में हमेशा की तरह हलचल थी। लोग अपने ऑर्डर देने में बिजी थे, और सुनील काउंटर पर कॉफी मशीन के पास खड़ा होकर कस्टमर्स के लिए ऑर्डर तैयार कर रहा था। तभी दरवाज़े पर घंटी बजी, और सुनील ने अनजाने में अपनी नज़रे दरवाज़े की ओर घुमा दीं।
वो एकदम से कुछ पलों के लिए ठहर गया।
रिया आज फिर से कैफे में आई थी। हल्के नीले रंग की शर्ट और डेनिम जीन्स में वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसका चेहरा शांत था, लेकिन उसकी चाल में वही आत्मविश्वास झलक रहा था जो सुनील ने पहले भी देखा था।
सुनील ने गहरी सांस ली और मन ही मन सोचा,
सुनील : आज मैं रिया से जरूर बात करूंगा। ये मेरी किस्मत ने मुझे दूसरा मौका दिया है।
रिया: एक अमेरिकानो और एक ब्लूबेरी मफिन।
सुनील, जो खुद थोड़ी दूरी पर खड़ा था, अपने साथ काम करने वाले को इशारे से हटाकर खुद रिया का ऑर्डर लेने के लिए काउंटर पर आ गया। रिया ने उसे देखा, और उसकी नज़रे थोड़ी देर के लिए ठहर गईं।
सुनील (मुस्कुराते हुए) : अमेरिकानो और ब्लूबेरी मफिन, सही कहा ना?
रिया : हां
तभी दोनों के बीच कुछ पलों की चुप्पी छा गई। ये चुप्पी शब्दों से ज्यादा बाते कर रही थी।
सुनील (हिम्मत जुटाते हुए): रिया, क्या मैं तुमसे कुछ बात कर सकता हूं?
रिया ने चौंककर उसकी ओर देखा। उसकी नज़रो में हल्की नाराज़गी थी, लेकिन उसने अपने चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं आने दिया
रिया : तुम मुझसे बात क्यों करना चाहते हो, सुनील? क्या ये वही सुनील है जो दो महीने से गायब था और कोई जवाब तक नहीं दिया?
सुनील (आत्मविश्वास के साथ) : हां, वही सुनील। लेकिन अब मैं बदल चुका हूं। और मुझे पता है कि मैं गलत था। मैं जानता हूं कि मैंने तुम्हें इंतजार करवाया, तुम्हें नाराज किया। लेकिन रिया, मुझे एक मौका दो अपनी बात समझाने का।
रिया (थोड़ा सख्त आवाज़में) : क्या समझाओगे, सुनील? तुम्हें पता है, मैंने कितनी बार तुम्हें कॉल और मैसेज किया? लेकिन तुमने जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा। ऐसा लगा जैसे मैं... मैं तुम्हारे लिए कुछ मायने ही नहीं रखती।
सुनील (गंभीर आवाज़में) : रिया, मैं जानता हूं कि मैंने जो किया, वह सही नहीं था। लेकिन मेरी जिंदगी उस वक्त ऐसी उलझनों में फंसी थी, जिनसे मैं खुद बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था। मैं तुम्हें तकलीफ देना नहीं चाहता था। मैं खुद से लड़ रहा था, रिया। और उस लड़ाई में मैंने तुमसे दूरी बना ली। लेकिन सच कहूं तो मैं हर दिन तुम्हारे बारे में सोचता था।
रिया (थोड़ा नरम पड़ते हुए) : तो, अब क्या बदल गया है? अब तुम मुझसे क्यों बात करना चाहते हो?
सुनील (मुस्कुराते हुए) : क्योंकि अब मैं समझ चुका हूं कि तुमसे दूर रहना, रिया, मेरी सबसे बड़ी गलती थी। और मैं अपनी गलती सुधारना चाहता हूं। अगर सलीम खान की फिल्मों ने मुझे कुछ सिखाया है, तो वो ये कि जो दिल के करीब है, उसे खोने नहीं देना चाहिए। और तुम मेरे लिए वही हो।
रिया (थोड़ा तंज के साथ) : सलीम खान? तो अब तुम उनके डायलॉग्स से मुझे मनाने की कोशिश करोगे?
सुनील (हंसते हुए) : अगर काम करे, तो क्यों नहीं?
दोनों के बीच का माहौल हल्का हो गया था। रिया की मुस्कान ने सुनील को थोड़ी राहत दी।
सुनील ने रिया को एक कोने की टेबल पर बैठने का इशारा किया
सुनील (गंभीरता से) : रिया, मैं जानता हूं कि मुझसे बहुत गलतियां हुई हैं। और मैं ये भी जानता हूं कि माफी मांगना सबकुछ ठीक नहीं कर सकता। लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम जानो कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए क्या जगह है। मैं सच में चाहता हूं कि हमारी दोस्ती... या शायद उससे भी ज्यादा कुछ... फिर से शुरू हो।
रिया (धीरे से) : सुनील, मैं तुम्हारी बात समझती हूं। लेकिन ये सब इतनी आसानी से नहीं हो सकता। मैं जानती हूं कि तुम सच्चे हो, लेकिन मुझे थोड़ा वक्त चाहिए।
सुनील : जितना वक्त चाहिए, रिया। मैं इंतजार करूंगा। बस इतना जान लो कि मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता।
ये मुलाकात दोनों के बीच एक नई शुरुआत का संकेत थी। सुनील ने अपनी गलती मानी थी और रिया ने उसे दूसरा मौका देने की ओर कदम बढ़ाया था। हालांकि, उनकी राह आसान नहीं थी, लेकिन दोनों के दिलों में एक छोटी-सी उम्मीद की किरण जरूर जागी थी।
रिया (सख्त आवाज़ में) : सुनील, दो महीने... दो महीने तुम मुझे बिल्कुल गायब हो गए थे। मैं तुम्हारा इंतजार करती रही, और तुम... तुमने मेरी एक भी कॉल का जवाब नहीं दिया। क्यों? क्या गलती मेरी थी? क्या मैं कुछ ज़्यादा ही उम्मीद कर रही थी
सुनील को लगा कि जैसे उसकी पूरी दुनिया रुक गई हो। रिया की आवाज़ में वो दर्द था, जो उसने कभी सोचा भी नहीं था। उसने अपनी जुबान को कसकर दबाया, और एक गहरी सांस ली। उसे अब क्या कहना चाहिए, कैसे रिया को समझाना चाहिए, ये कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वो चाहता था कि वो सब कुछ सही कर सके, लेकिन अब तक जो हुआ, वो तो पलट नहीं सकता था।
सुनील (धीरे से) : रिया... मुझे तुमसे कुछ बातें करनी हैं, लेकिन मुझे पता है कि जो भी हुआ, वो ठीक नहीं था। मैं जानता हूँ, तुमने बहुत कुछ सहा। तुमसे जवाब न देना, तुम्हें धोखा देना, ये सब मेरी गलती थी।
रिया (गुस्से में) : गलती? तुम समझते हो कि 'गलती' कहकर तुम इसे ठीक कर पाओगे? तुम दो महीने तक गायब रहे, और मुझे लगता था कि मैं तुम्हारी लाइफ में कोई अहमियत नहीं रखती थी।
सुनील ने अपने अंदर की फीलिंग्स को संभालते हुए रिया की तरफ देखा। उसकी आँखों में वो शर्म थी, जो उस समय से पहले कभी नहीं आई थी। वो जानता था कि अब उसे रिया से बहुत सच्ची बात करनी होगी, उसे समझाना होगा, और इसे हल्के में नहीं ले सकता था। तभी, उसने सलीम खान का वो अंदाज सोचा, जिस तरह वो अपनी फिल्मों में अपनी गर्लफ्रेंड को मना लिया करता था। सुनील ने खुद को संजीदा किया, और फिर, वो रिया के पास आया
सुनील (मुस्कुराते हुए, लेकिन थोड़ी शर्म के साथ) : रिया, तुम जानती हो, कभी-कभी जिंदगी में इंसान सबसे ज़्यादा जरूरी चीज़ को खो देता है, और फिर उसे वापस पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। रिया, मैं तुम्हें खोने से इतना डर गया था कि खुद को ही खो बैठा। मैं जानता हूँ कि मैंने तुम्हें अनदेखा किया, लेकिन तुमसे दूर रहकर मुझे एहसास हुआ कि दुनिया में और कोई चीज़ इतनी जरूरी नहीं हो सकती, जितना तुम हो। तुम मेरी जिंदगी का वो हिस्सा हो, जिसे मैं हर दिन जीना चाहता था, लेकिन खुद को ही भूला बैठा। मुझे ये एहसास हुआ कि जो मैंने किया वो सही नहीं था।
रिया उसकी बातों पर चौंकी, और उसकी आँखों में एक हल्की सी झलक आई—क्या ये सच था? क्या सुनील वाकई दिल से ऐसा महसूस करता था? वो बेशक थोड़ा संकोच करती हुई, फिर भी उसके शब्दों को समझने की कोशिश करने लगी। सुनील ने एक गहरी सांस ली, और फिर वो सलीम खान के स्टाइल में आगे बढ़ा। उसने अपने हाव-भाव, अपनी बातों और अपने दिल की गहराई से उसे समझाने की पूरी कोशिश की। सुनील की बातें उसे छूने लगी थीं, लेकिन क्या ये सब सिर्फ शब्द थे या इसके पीछे सचमुच एक दिल था, जो पूरी तरह से बदल चुका था? आखिर क्या सुनील सच में रिया से प्यार करने लगा था? क्या रिया उसका प्यार समझेगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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