गली में पसरा सन्नाटा हवा की सरसराहट के साथ और भी गहरा लग रहा था। हल्की पीली स्ट्रीट लाइट की रौशनी गली के उबड़-खाबड़ रास्तों पर अजीब सी परछाइयाँ बना रही थी। सुनील और धनंजय के कदम जैसे ज़मीन से चिपक गए थे। उनकी साँसें धीमी और भारी थीं, मानो हवा में भी डर की नमी घुल गई हो।

वो अजनबी आदमी अब भी उसी तरह खड़ा था—जैसे वक्त उसके लिए रुक गया हो। उसके लंबे काले कोट की किनारे हवा में हल्के-हल्के हिल रही थीं, लेकिन उसका शरीर एकदम मूर्ति की तरह था, जैसे वो कोई इंसान नहीं, मूर्ति ही हो। उसके सिर पर झुकी हुई पुरानी टोपी उसके चेहरे को छुपाए हुए थी, जिससे सिर्फ उसकी गर्दन का हिस्सा हल्की रौशनी में झलकता था। चेहरा धुंध में डूबा हुआ,

धनंजय ने धीरे से सुनील की बाँह को पकड़ा, उसकी उँगलियाँ ठंडी थीं।धनंजय फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में कंपकंपी थी।

धनंजय : सुनील… ये आदमी कौन है,

सुनील की निगाहें हिल नहीं रही थीं, उसकी पलकों की हर झपक जैसे भारी हो गई थी।

सुनील : ये आदमी तो वही है?

धनंजय : तू इसे जानता है?

सुनील : नहीं... लेकिन यह आदमी यहाँ क्या कर रहा है? और... इस तरह क्यों खड़ा है?

 

उनकी बातें धीमी थीं, लेकिन दिल की धड़कनें जैसे कानों में गूंज रही थीं। हर सांस, हर फुसफुसाहट, जैसे सन्नाटे को चीर रही थी। गली की ठंडी हवा ने माहौल को और भी डरावना बना दिया था। हवा के साथ उड़ती धूल और सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट एक अजीब-सी बेचैनी फैला रही थी,

वहाँ की खामोशी इतनी गहरी थी कि सड़क के दूसरी तरफ एक पत्ते के गिरने की आवाज़ भी साफ सुनाई दे सकती थी।  दूर किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आई, और फिर वो भी धीरे-धीरे सन्नाटे में खो गई।  

धनंजय ने अपने गले को साफ किया, उसकी आवाज़ खुद उसे ही डरावनी लगी।  

दोनों एक पल के लिए चुप हो गए। बस हवा के थपेड़े, दूर से आती एक पुरानी साइकिल की घंटी की हल्की आवाज़, और उनके दिलों की धड़कनें ही सुनाई दे रही थीं।  

धनंजय ने अपनी जैकेट के कॉलर को कसकर पकड़ लिया, मानो खुद को इस ठंड से नहीं, बल्कि उस अनजाने डर से बचाना चाहता हो।  

सुनील : यार मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। इस आदमी का यहाँ खड़ा होना अजीब है। वह हमें घूर क्यों रहा है?

धनंजय : रुक, मैं उससे बात करता हूँ।

सुनील : पागल है क्या? क्या पता कौन है ये?

गली में वह परछाई अब दरवाज़े तक पहुँचने लगी थी। दोनों के दिल की धड़कनें इतनी तेज़  हो गई थीं कि उन्हें खुद सुनाई दे रही थीं।  

धनंजय (घबराकर) : भाई तूने कहा की ये आदमी तुझे पहले भी दिखा था। अब अगर ये बार-बार सामने आ रहा है। इसका कुछ तो मतलब होगा।

सुनील (सिर झुकाते हुए, सोचते हुए) : हां, मुझे ये आदमी पहले भी दिखाई दे चुका है। कभी गली में, कभी पार्क में, और अब यहाँ। उसका चेहरा मुझे हमेशा पहचाना सा लगता है, लेकिन ये है कौन, मुझे समझ नहीं आ रहा।

धनंजय (गहरी सोच में)  : कहीं ये कोई इशारा तो नहीं है? कोई सिग्नल? शायद वो हमें किसी खतरे की ओर इशारा कर रहा है। क्या तूने

उसके behaviour में कुछ अलग महसूस किया?

सुनील :ये अजीब सा कुछ बड़बड़ाता रहता था, कुछ ऐसा जो मैं समझ नहीं पाता था। ऐसा लगता है जैसे ये कोई बात छिपा रहा हो, लेकिन फिर भी मुझे इसके इरादे साफ समझ नहीं आते थे। और आज, जैसे उसने मुझे देखा, मुझे ऐसा लगा कि वो कुछ कहने वाला है।

धनंजय ने गहरी सांस ली और फिर चुपचाप कुछ सोचने लगा। वो भी इस घटना को गहराई से समझना चाहता था। अचानक उसकी नजरें उस अजनबी पर पड़ीं, जो अब भी पास में ही खड़ा था, बिल्कुल बिना हिले-डुले। उसकी आँखें डर और अजनबियत से भरी हुई थीं, लेकिन वो किसी तरह का कोई रिएक्शन नहीं दे रहा था।

धनंजय (धीरे से, घबराए हुए) : क्या तू भी कुछ अजीब फील कर रहा है? देख वो हमें देख रहा है, जैसे हमारे हर कदम पर उसकी नजरें हैं। हमें कुछ करना होगा।

सुनील (घबराहट से दूर होकर, शांत आवाज़ में) : हां, धन्नो, हमे कुछ करना होगा। इस आदमी को और इसको समझना जरूरी है। कहीं न कहीं ये मेरी जिंदगी में कुछ बड़ा राज छुपाए बैठा है।

इसी बीच, वो अजनबी आदमी धीरे-धीरे अपने रास्ते पर बढ़ने लगा, जैसे सुनील और धनंजय की बातचीत से पूरी तरह बेखबर हो। लेकिन उसकी चाल में कुछ ऐसा था, जो नॉर्मल नहीं लग रहा था। वह बहुत धीमे, लेकिन बेहद आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा था। उसकी लंबी, काली परछाई स्ट्रीट लाइट की रोशनी में खिंचती हुई पीछे तक जा रही थी, मानो वह सिर्फ एक इंसान नहीं था।

उसका 6 फीट लंबा कद, कंधे झुके हुए लेकिन चाल में गजब की ताकत, और दाढ़ी जो उसके चेहरे को और भी रहस्यमय बना रही थी। उसकी आंखें सबसे ज्यादा ध्यान खींच रही थीं—गहरी और कुछ इस तरह की जैसे उन्होंने दुनिया के हर राज को देखा हो। उन आँखों में एक बेचैनी थी, लेकिन साथ ही एक खींचने वाली ताकत भी, जो सुनील और धनंजय को अपनी जगह से हिलने नहीं दे रही थी।

धनंजय ने धीरे से सुनील के कान में फुसफुसाया,

धनंजय : इस आदमी में कुछ गड़बड़ है। उसकी आँखें... वो आम नहीं लग रही।

सुनील : मैंने कभी ऐसी आँखें नहीं देखीं। ऐसा लग रहा है जैसे वो हमें अंदर तक देख सकता है।

सुनील और धनंजय का दिल अब ज्यादा तेज़ ़ी से धड़कने लगा था। दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और बिना कहे ही समझ गए कि ये कोई साधारण मामला नहीं था। दोनों के मन में एक ही सवाल था – ये आदमी कौन है? और क्यों बार-बार हमारे पास आ रहा है?

सुनील (घबराते हुए) : हम क्या करें? क्या हमें इसे और करीब से देखना चाहिए?

धनंजय (शक के साथ) : हमें इसके बारे में पता करना होगा। हमें यह पता लगाना होगा कि आखिर वो क्या चाहता है, और क्यों बार-बार सामने आ रहा है।

इसके बाद दोनों ने फैसला किया कि वो अब और देर नहीं करेंगे। वो उस अजनबी आदमी के पीछे जाने का मन बना चुके थे, ये जानने के लिए कि आखिर वो कौन है और उनका पीछा क्यों कर रहा है। इसने दोनों के दिमाग में और भी सवाल खड़े कर दिए थे, और उनके लिए ये समझना जरूरी था।

इसके बाद, दोनों ने उस आदमी का पीछा करना शुरू किया। वो गली से लेकर चौराहे तक उसके पीछे चल रहे थे, हर कदम पर नज़र बनाए हुए थे। जैसे ही वो आदमी मोड़ पर मुड़ा, सुनील और धनंजय भी चुपके से उसके पीछे हो लिए। फिर, एक बारीक मोड़ पर वो उसे पकड़ने में सफल हुए। वो आदमी एक पुरानी दुकान के पास रुका और अंदर घुस गया। सुनील और धनंजय ने एक दूसरे को देखा और बिना किसी झिझक के अंदर घुसने का फैसला किया।

जब वो दुकान के अंदर पहुंचे, तो वहां अंधेरा था, और कुछ पुरानी चीजें बिखरी पड़ी थीं। लेकिन वहां कोई नहीं था।

सुनील : ये तो फिर से गायब हो गया।

धनंजय : ये कोई भूत तो नही था?

सुनील : नही यार पक्का कोई अजीब इंसान है। हमे इसके बारे में पता लगाना होगा.

उसके बाद दोनों चुप हो गए। सुनील और धनंजय की धड़कनें तेज़  हो गई थीं। ये सब अचानक से हो रहा था, और अब उनके मन में एक अजीब सा डर पैदा हो गया था। उन्होंने तय किया कि इस रहस्यमय आदमी के बारे में ज्यादा जानना जरूरी है।

अगले दिन सूरज की हल्की किरणें बरेली की तंग गलियों में उतरने लगी थीं। सर्दी की ठंडी हवा में भी एक अजीब सी गर्मी थी—सुनील और धनंजय के भीतर उठती बेचैनी की गर्मी। सुनील की आँखों में एक अलग ही चमक थी, जो डर और क्यूरोसिटी के बीच झूल रही थी।

सुबह की चाय के बाद दोनों ने योजना बनाई। धनंजय ने एक कागज पर कुछ जगहों के नाम लिखे, जहां वो अक्सर अजनबी को देख चुका था—तभी

धनंजय ने हँसते हुए कहा,

धनंजय : अगर ये कोई जासूस है तो हमें भी जासूस बनना पड़ेगा, बिलकुल जेम्स बॉन्ड की तरह! 007

सुनील : मज़ाक कम कर और ध्यान दे, धन्नो। ये आदमी सिर्फ दिखता नहीं, छुपता भी है। कुछ तो है इसके पीछे। हमे इसके बारे में आसपास मोहल्ले में पूछना पड़ेगा।

धनंजय : लेकिन पूछेगा क्या?

सुनील : वो देख लेंगे, पहले चले तो

इसके बाद दोनो घर के आसपास और जगह उस आदमी के बारे में पूछताछ करने लगे।

सुनील (चिंतित आवाज़ में) : भाईसाब आपने कभी उस आदमी को देखा है? 6 फीट लंबा इंसान, लंबी दाढ़ी, वो हमेशा आसपास ही घूमता रहता है। आपको कुछ पता है?

मोहल्ले का आदमी : वो? हां, वो मोहन प्रकाश है, हमारे मोहल्ले का पागल आदमी। सालों से ऐसे ही घूम रहा है। प्यार से सब उसे जूनियर बच्चन बुलाते है।

धनंजय (हैरानी से) : जूनियर बच्चन? मतलब? ये क्या मतलब है?

मोहल्ले का आदमी (हँसते हुए) : क्या बताएं, एक वक्त था जब वो अजिताभ बच्चन का बहुत बड़ा फैन था। वो तो हमेशा कहता था कि एक दिन वो मुंबई जाएगा, और अजिताभ से मिलेगा। लेकिन हुआ कुछ और ही। वो कभी नहीं गया, और फिर पागल हो गया। अब तो वो बस ऐसे ही यहाँ घूमता रहता है, और किसी से कुछ नहीं कहता।

सुनील और धनंजय यह सुनकर चुप हो गए। एक अजीब सी ख़ामोशी छा गई। वो अब समझ रहे थे कि मोहन प्रकाश, यानी जूनियर बच्चन, असल में एक आदमी था, जो अपने सपनों के पीछे भागते-भागते दिमाग से टूट चुका था।

धनंजय (गहरी सांस लेते हुए) : तो वो सिर्फ सपना देखने वाला एक आदमी था, और वो अब पागल हो गया।

सुनील (कुछ सोचते हुए) : हां, लगता है। वो भी किसी वक्त मेरे जैसा था। उसका भी सपना था कि वो किसी दिन बच्चन से मिले, लेकिन उसका सपना पूरा नहीं हुआ। शायद इसीलिए वो अब कुछ नहीं करता।

मोहल्ले का आदमी : हां, अब तो बेचारा यूं ही घूमता रहता है, कभी कभार बच्चन के डायलॉग सुना देता है।

इसके बाद वो आदमी वहां से चला गया। ये सब जानकर, सुनील और धनंजय को एक अजीब सा एहसास हुआ। मोहन प्रकाश, जो कभी अपने बड़े सपनों के लिए जीता था, अब अपनी उम्मीदों और इच्छाओं को खो चुका था। वो अब सिर्फ एक ख्वाब था, जो टूट चुका था।

सुनील (धीरे से, खुद से बात करते हुए) : क्या मैं भी कभी मोहन प्रकाश जैसा हो जाऊँगा? क्या अगर मेरी उम्मीदें कभी पूरी नहीं हुईं, तो मैं भी उसकी तरह पागल हो जाऊँगा?

धनंजय ने सुनील की चिंता को महसूस किया और उसे पास जाकर थपथपाया। वो जानता था कि सुनील अब खुद से जूझ रहा था। वो नहीं चाहता था कि उसका दोस्त कभी मोहन प्रकाश की तरह टूटे।

धनंजय : ऐसा कुछ नहीं होगा। तुझे पता है न? तू मोहन प्रकाश नहीं है। तूने कभी हार नहीं मानी। तेरी कहानी अलग है। तुझे अपनी दिशा खुद तय करनी है। तू अपनी किस्मत का मालिक है।

सुनील ने धनंजय की बातों पर ध्यान दिया। एक पल के लिए, उसके मन की उलझनें थोड़ी हलकी हो गईं। उसने अपने दोस्त की बातों को दिल से महसूस किया।

सुनील (थोड़ा मुस्कराते हुए) : हां, शायद तुम सही हो, धनंजय। मैं अपनी राह खुद बनाऊँगा। मुझे डरने की कोई जरूरत नहीं है। अगर मैंने कभी हार मानी, तो मैं भी मोहन प्रकाश की तरह टूट सकता था। लेकिन अब नहीं, अब मैं अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में बढ़ूँगा।

 

धनंजय और सुनील अब उस रहस्यमय आदमी की कहानी से बाहर निकल आए थे, और उनके दिल में एक नई उम्मीद की किरण जागी थी। मोहन प्रकाश की तरह वो कभी अपनी उम्मीदें नहीं खो सकते थे, तभी अचानक से वो आदमी आकर उनके सामने खड़ा हो गया और उन्हें घूर कर देखने लगा, अब आगे क्या होगा? क्या वो सुनील और धनंजय की मुसीबतें बढ़ाएगा? क्या सुनील मोहन प्रकाश की हालत से खुद को निकाल पाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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