सुनील की धड़कन रिया को देखकर अब और तेज़  हो गई थी। काउंटर के पीछे छिपे हुए, वो पूरी कोशिश कर रहा था कि रिया उसे न देख पाए, लेकिन उसकी नज़रें रिया के हर कदम को फॉलो कर रही थीं। वो देख रहा था, जैसे रिया एक पूरी दुनिया में खोई हुई थी, अपनी कॉफी और क्रोइसैन का मजा लेते हुए। उसकी आँखें हल्की सी उदासी और बेचैनी से भरी थीं, जैसे वो खुद से लड़ाई कर रही हो। सुनील का दिल ये चीज बार बार महसूस कर रहा था, लेकिन वो अब भी अपनी जगह से हिल नहीं पा रहा था। उसकी यादें और फीलिंग्स दोनों आपस में टकरा रही थीं। तभी सुनील ने मन में सोचा,

सुनील (सोचते हुए) : क्या रिया ने मुझे देखा? क्या वो मुझे पहचान पाएगी? नहीं, वो शायद मुझे पहचानने की कोशिश भी नहीं करेगी। वो तो अपना समय बिता रही है, अपने काम में busy है। क्या उसे वो पुरानी बातें याद हैं? क्या वो अपने पुराने सुनील को पहचानती होगी?

तभी रिया ने धीरे से अपनी कॉफी का प्याला उठाया और एक चुस्की ली, जबकि सुनील पूरी तरह से उसकी हर हरकत पर निगाह रखे हुए था। वो सोच रहा था कि क्या वो उसे इस पल में किसी तरह से रोक सकता है, या फिर शायद उसे अपने दिल की बात कहने का मौका मिलेगा। लेकिन वो जानता था कि रिया को उसने पिछले 2 महीने से इग्नोर किया था, और उसकी चुप्पी अब उसके लिए एक दीवार बन चुकी थी।

एक पल के लिए, सुनील ने खुद को अपने पुराने रूप में देखा। वो वही लड़का था, जो कभी खुद को दिखाने की कोशिश नहीं करता था, जो हमेशा अपने हालातों से घबराया रहता था। लेकिन अब, वो बदल चुका था। वो ये जानता था कि अगर उसे अपने जीवन में कुछ बड़ा करना है, तो उसे अपने डर को पीछे छोड़ना होगा।

उस दिन सुनील के मन में एक हल्का सा तूफान था। लेकिन उसकी नज़रें बार-बार रिया पर जातीं। उसकी हल्की सी मुस्कान, और कप में कॉफी की आखिरी बूँद को छोड़ने की वो आदत, सब कुछ सुनील के दिल में गहरे तक समा रहा था। सुनील की निगाहें रिया पर जमी हुई थीं, लेकिन उसने खुद को पूरी तरह से रिलैक्स रख रहा था। उसके दिल की धड़कनें तेज़ ़ हो रही थीं, लेकिन उसने अपने चेहरे पर कोई शिकन नहीं आने दी। वो बार बार खुद से कह रहा था,

सुनील : शांत रहो, सुनील। तुम कुछ नहीं कर सकते अभी। अगर रिया से कुछ कहना है, तो ठीक वक़्त आएगा।

काफी देर तक रिया और सुनील के बीच कोई आई कॉन्टैक्ट नहीं हुआ। रिया अपने आप में खोई हुई थी, और सुनील अपनी हालत में कैद था। तभी, रिया ने अचानक सुनील की ओर देखा। वो एक पल को सुनील की आँखों में कुछ ढूंढ रही थी, और सुनील का दिल जैसे एक पल के लिए रुक सा गया।

रिया की आँखों में एक सवाल था, एक ख्वाहिश, जो वो सुनील से पूछने की कोशिश कर रही थी। क्या वो उसकी पुरानी बातें भूल चुका था? क्या अब वह वो उसकी लाइफ में कहीं था? क्या वो अब भी वही लड़का था, जो कभी उसे ढूंढता था?

रिया (धीरे से, हल्के सवालिया अंदाज में) : सुनील?

सुनील का दिल ये सुनकर, अब किसी रोलरकोस्टर की तरह धड़क रहा था। उसने अपने आप को संभालते हुए धीरे से मुंह घुमा लिया, और रिया की आँखों में देखा। वो जानता था कि वो कभी रिया के सामने नहीं आ पाया था, और अब ये मौका उसके पास था, एक ऐसा मौका, जब वह अपनी गलती को सुधार सकता था।

सुनील (आवाज़में हलकी सी घबराहट के साथ) : रिया... तुम... तुम यहाँ?

रिया की आँखों में पहले की तरह वही चमक थी, वही पुरानी मुस्कान थी, लेकिन उस मुस्कान में अब कुछ बदल चुका था। वो नहीं जानती थी कि सुनील ने उसे क्यों इतने दिनों तक नजरअंदाज किया। क्या वो भी उसकी तरह उसे फिर से पाने की कोशिश कर रहा था, या फिर उसका दिल कहीं और था?

रिया (धीरे से, पर एक ताजगी के साथ) : हाँ, सुनील। मुझे लगा था कि तुम मुझे नहीं देख पाओगे, लेकिन लगता है तुमने मुझे देखा।

ये सुनकर सुनील की आँखों में झलक आई। वो समझ सकता था कि रिया का दिल अब भी कहीं न कहीं उससे जुड़ा हुआ था, लेकिन शायद वो भी खुद को खुद से दूर कर चुकी थी। लेकिन इस बार, सुनील ने हार मानने का नाम नहीं लिया।

सुनील (आत्मविश्वास के साथ) : रिया, मैं... मुझे माफ कर दो। जो हुआ, वो मेरी गलती थी। लेकिन अब, मुझे लगता है कि समय बदल चुका है। मैं बदल चुका हूँ।

सुनील ने एक गहरी सांस ली और खुद को पूरी तरह से सच्चा होने के लिए तैयार किया। अब वो रिया से अपनी बात पूरी तरह से करना चाहता था, बिना किसी डर और झिझक के। लेकिन तभी पीछे से कैफे के मैनेजर ने जैसे उसे नींद से जगा दिया।

कैफे मैनेजर : सुनील, कहां खोए हो? इतनी देर से आवाज़ लगा रहा हूं, वो टेबल नंबर 6 पर एक कॉफी दे आओ।

सुनील : ओके सर।

एकदम से सुनील को समझ आया की अभी तक जो उसने देखा वो एक सपना था बस। रिया अभी भी सामने टेबल पर बैठी थी, सुनील ने उस कॉफी को टेबल नंबर 6 पर दिया और जैसे ही उसने फिर से रिया के टेबल पर नजर घुमाई, उसने देखा की

रिया ने अपनी कॉफी खत्म कर ली है और कप को टेबल पर रख दिया, उसने अपने बैग को उठाया और कैफे से बाहर निकलने के लिए खड़ी हो गई। सुनील के दिल की धड़कन फिर से तेज़  हो गई, जैसे किसी ने उसे अचानक जगा दिया हो, लेकिन उसने खुद को शांत किया और किसी तरह अपने काम में बिजी रहने की कोशिश की। उसने महसूस किया कि उसके हाथ कांप रहे थे, और हर पल रिया के जाने के साथ उसका दिल टूट रहा था। रिया ने एक आखिरी बार काउंटर की ओर देखा, और फिर तेज़ ़ी से बाहर निकल गई।

सुनील : रिया प्लीज मत जाओ।

लेकिन अब रिया कैफे से बाहर निकल चुकी थी, और सुनील के दिल में एक अजीब सा खालीपन था। उसकी आँखें रिया के जाने के बाद भी वहां खाली सी बैठी रही। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई चीज़ छूट गई हो, कोई अनकहा सा पल रिया के बिना अधूरा सा रह गया हो। धीरे-धीरे, उसने खुद को अपनी काम में फिर से लगा लिया।  

रात का समय धीरे-धीरे पास आ रहा था, और सुनील को ये अहसास हो गया कि उसने रिया के बारे में कुछ तय नहीं किया था। कुछ तो था, जो उसे ठीक से महसूस हो रहा था, लेकिन वो जानता था कि यह सब हल्के में नहीं लिया जा सकता था। इसलिए सुनील ने धनंजय की छत पर उससे रात में मिलने का प्लान बनाया।

रात का समय था।

बरेली की तंग गलियों में फैली हल्की ठंडक के बीच हवा में सुकून और एक अजीब सा खालीपन घुला हुआ था। आसमान पर गहरे नीले रंग की चादर फैली थी, जिसमें इक्का-दुक्का तारे टिमटिमा रहे थे

सुनील धीरे-धीरे सीढ़ियों से ऊपर चढ़ता गया। उसके कदम भारी थे, लेकिन दिल की धड़कन तेज़। वो जानता था कि धनंजय के पास वही था जो उसे चाहिए—बातें, ठहाके और शायद कुछ जवाब।

छत पर पहुँचते ही ठंडी हवा के झोंके ने उसका स्वागत किया। धनंजय छत के कोने में रखे एक पुराने प्लास्टिक के स्टूल पर बैठा था, हाथ में बीयर की बोतल, और सामने रखी एक तिपाई मेज़ पर कुछ चिप्स और आधी खाली बोतल। उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, वो मुस्कान जो अक्सर तब आती है जब किसी दोस्त का कोई राज़ सुनने का इंतज़ार हो।

धनंजय ने उसकी तरफ देखा

धनंजय : आ गया तू? बहुत देर लगा दी आज। लगता है दिल पे कोई बोझ है, है ना?

सुनील बिना कुछ कहे धीरे से उसके बगल में बैठ गया। उसने गहरी सांस ली, जैसे खुद को तैयार कर रहा हो। फिर चुप्पी तोड़ते हुए धीमी आवाज़ में कहा,

सुनील : यार, आज मैंने रिया को कैफे में देखा।

धनंजय : क्या बात कर रहा है? रिया? वही रिया? थिएटर वाली?”

सुनील : हाँ… वही। जैसे ही दरवाज़े से अंदर आई, यार… सब रुक सा गया। एक पल को लगा, जैसे वक़्त थम गया।

धनंजय : अच्छा? अकेली थी?

सुनील : हां, अकेली थी।

सुनील ने घबराते हुए जवाब दिया था। उसकी आवाज़ में कुछ रुकावट थी, मानो वह अपने शब्दों को संभालने की कोशिश कर रहा हो।  

तभी धनंजय ने बीयर की बोतल उठाई

धनंजय : फिर तो अच्छी बात है।

सुनील : इसमें क्या अच्छी बात है।

धनंजय : भाई, बरेली में लड़कियां आमतौर पर कैफे में लड़कों का ही इंतजार करती हैं।

सुनील : लेकिन अगर उसकी लाइफ में कोई लड़का आ गया हो तो?

धनंजय : तो फिर क्या, मैंने तो बोला था ना, तू जाकर बात कर ले उससे। अब तुझे क्या हो गया? दो महीने से तू ना फोन उठाता है, ना कोई कदम उठाता है। अब किस मुंह से पूछेगा?

सुनील : यार, तुझे तो पता है, वो कॉम्पटीशन हारने के बाद मेरी सारी उम्मीदें खत्म हो गई थीं। सलीम खान से मिलने का सपना टूट गया था, और ऐसे में रिया से मिलकर क्या बोलता? कैसे उसे अपने हालात समझाता?

धनंजय : वैसे भी उस कॉम्पटीशन में धांधली थी। अगर सही होता, तो तू ही जीतता।

सुनील : लेकिन यार

धनंजय : लेकिन वेकिन कुछ नही, देख, ये सब शनि देव का कमाल है। अब जबसे तूने वो उपाय किए हैं, सब अच्छा होने लगा है। रिया भी वापस आ गई है, इसका मतलब तू फिर से अपने सपनों की ओर बढ़ सकता है। और पता है क्या? अब तो बरेली में मुझे भी कोई अच्छी लड़की मिल सकती है।

ये सुनकर सुनील ने हंसी में अपना दुख छिपाया और फिर बीयर की बोतल खोलने लगा

सुनील : हां, शायद अब कुछ अच्छा हो सकता है।

उसकी आवाज़ में उम्मीद की एक नई किरण थी।  

दोनों ने बीयर की बोतल खोल दी और खुशी मनाई। उनकी हंसी के बीच, सुनील का दिल फिर से उम्मीद से भर गया था। रिया से मिलने की उम्मीदों ने उसे न केवल अपनी पुरानी खोई हुई उम्मीदें लौटाई थीं, बल्कि उसे अपने सपनों को फिर से जीने का एक मौका भी दिया था। अब उसे लगता था कि उसकी जिंदगी में कुछ अच्छा होने वाला है। बाहर का मौसम ठंडा और शांत था। हल्की-हल्की हवा चल रही थी, जो बरेली की पुरानी गलियों के नुक्कड़ों से होकर गुजर रही थी। आसमान में चांद बादलों के पीछे छुप-छुप कर झांक रहा था, जैसे खुद भी कुछ छुपाना चाहता हो। छत पर बैठा सुनील, धनंजय के साथ बीयर की बोतल थामे, रिया से हुई मुलाकात के बारे में सोच रहा था, लेकिन दिल की बेचैनी अब भी वैसी ही थी।

उसके अंदर एक अजीब-सी हलचल थी, जैसे कोई अनकहा डर दिल के कोने में बैठा हो। वो बार-बार अपनी सोच से बाहर निकलने की कोशिश करता, लेकिन नाकाम रहता। तभी उसकी नज़र छत की रेलिंग से नीचे गली की तरफ चली गई।

गली में पीली रौशनी वाला एक कमजोर-सा स्ट्रीट लैंप जल रहा था, जिसकी हल्की रौशनी में धुंधली परछाइयाँ बन रही थीं। सड़क लगभग सुनसान थी, बस दूर कहीं कोई कुत्ता भौंक रहा था। पर तभी…

सुनील की आंखें ठिठक गईं।

वो वहीं था।

वही अजनबी आदमी।

एक लम्बा, पतला सा आदमी, काले रंग के फटे पुराने कपड़े पहने हुए, चेहरे पर एक पुरानी टोपी झुकी हुई थी, जिससे उसका चेहरा साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। वो बस खड़ा था, जैसे कोई मूर्ति हो। उसकी निगाहें सुनील की ओर ही थीं, या शायद सुनील को ऐसा महसूस हुआ।

सुनील : क्या तूने उसे देखा?

धनंजय : हां, कौन है ये?

सुनील : ये वही आदमी है, जो मुझे हमेशा दिखाई देता है। लेकिन ये चाहता क्या है?

धनंजय :  ये है कौन?

सुनील और धनंजय का सारा बीयर का नशा हल्का हो गया। चारो तरफ सन्नाटा छा गया। दोनों के दिलों की धड़कनें तेज़ ़ हो गईं, और ये एहसास हुआ कि उनकी ज़िन्दगी में कुछ अजीब होने वाला है? आखिर वो आदमी कौन था? आखिर अब उनकी ज़िन्दगी में कौन सा मोड़ आना वाला था? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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