मंदिर में पंडित जी अभी भी धनंजय की बात सुनकर गुस्सा थे, उन्होंने अपने गुस्से को शांत किया

पंडित : पहले सच्चे मन से प्रार्थना करो और उसके बाद अपने लाइफ और करियर पर ध्यान दो। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हे जल्द ही एक अच्छी लड़की मिल जाएगी।

शाम हो चुकी थी। इसके बाद सुनील और धनंजय मंदिर से घर की तरफ चले गए। अगली सुबह सुनील अपने कमरे में सो रहा था। सूरज की हल्की किरणें धरती को चूमने के लिए बढ़ रही थीं। सुबह-सुबह की ठंडी अभी भी हवा में महसूस हो रही थी। पूरे मोहल्ले में शांति छाई हुई थी, बस चिड़ियों की चहचहाहट ही इस खामोशी को तोड़ रही थी।  

सुनील की आँखें आधी खुली थीं और वो बिस्तर पर लेटा हुआ था। उसका मन कुछ और सोचने की बजाय उस पल को महसूस कर रहा था तभी, अचानक, एक तेज़ हॉर्न की आवाज़ से उसकी नींद टूटी। वह झुंझलाते हुए बिस्तर से उठकर खिड़की के पास गया और नीचे देखा।  

वहां, सड़क पर उसकी स्कूटी पर बैठा धनंजय हॉर्न बजा रहा था, जैसे कि किसी बात का एलान कर रहा हो।  

धनंजय (मुस्कुराते हुए, चिल्लाते हुए) : ओ भाई! जल्दी नीचे आ, तेरी किस्मत बदलने का समय आ गया है!

सुनील ने अपनी आँखों को मिचमिचाते हुए नीचे देखा और फिर अपनी घड़ी की तरफ नज़र डाली। कुछ देर पहले ही वो बिस्तर पर सोने के लिए गया था, और अब धनंजय का यह अचानक आना उसे थोड़ा परेशान कर रहा था।  

वो धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे आया,

सुनील (हल्की झुंझलाहट के साथ) : तू इतना उतावला क्यों हो रहा है? मुझे लग रहा है जैसे तुझे मुझसे ज्यादा मेरी जिंदगी बदलने की फिक्र है।  

धनंजय : अबे, तेरी जिंदगी बदलेगी तो indirectly मेरी भी बदलेगी। दोस्ती का फायदा समझता नहीं है। चल, पहले काली गाय ढूंढते हैं।

दोनों स्कूटी पर बैठकर पास के गांव की ओर निकल पड़े। रास्ते में हरियाली और छोटे खेतों के बीच से गुजरने लगे।

सुनील : मुझे तो ये सब पागलपन लग रहा है। गाय, पीपल, नारियल... शनि देव को मुझसे इतना सब करवाना क्यों जरूरी है?

धनंजय  : भाई, पंडित जी ने कहा है, तो कुछ सोच-समझकर ही कहा होगा। और वैसे भी, ये सब करने में तुझे कोई नुकसान नहीं है। मान ले कि अगर कुछ अच्छा हो गया, तो फायदा हो जाएगा। और अगर नहीं हुआ, तो... मैं तो हूं ही तुझे चिढ़ाने के लिए।

दोनों हंसते हुए गांव के एक चौपाल के पास पहुंचे, जहां कुछ लोग बैठे थे।  

धनंजय (लोगों से पूछते हुए) : भैया, यहां कहीं काली गाय मिलेगी क्या? हमें शनि देव के लिए पूजा करनी है।

बुजुर्ग : इस गांव में यहां काली गाय मिलना मुश्किल है। लेकिन थोड़ा आगे जाओ, शायद किसी के पास हो। वैसे काली गाय तो बहुत शुभ मानी जाती है।  
धनंजय : भाई, पता है, काली गाय इतनी रेयर क्यों है? क्योंकि ये वीआईपी कैटेगरी की होती है।

सुनील ने उसकी बात को अनसुना किया और दोनों आगे बढ़े। एक छोटे-से खेत में उन्हें एक गाय दिखी, लेकिन वो सफेद रंग की थी।

धनंजय :यही गाय ठीक है। थोड़ा सा काला पेंट लाकर इस पर लगा देते हैं। गाय तो गाय है।

सुनील : पागल हो गया है क्या? हमें काली गाय ही ढूंढनी है। चाहे हमे इसके लिए आसपास के किसी गौ आश्रम में जाना पड़े।  

धनंजय : भाई, तू तो सीरियसली इस मिशन पर लग गया है। चल, तेरे लिए बरेली क्या पूरा यूपी छान लेंगे।  

दोनों फिर से स्कूटी पर सवार होकर एक बड़े गौ आश्रम पहुंचे। वहां उन्हें आखिरकार काली गाय मिल ही गई।

धनंजय (गाय को देखते हुए) : लो भैया, मिल गई वीआईपी गाय। अब इसका खाना खिलाने का बिल भी आएगा। देख लेना, भगवान भी तुझसे डबल मेहनत करवा लेंगे।

सुनील ने उसकी बात को नजरअंदाज किया और गौशाला के सेवकों से बात करके गुड़ और चने का इंतजाम करवाया। उसने गाय को बड़े ध्यान से खाना खिलाया।

धनंजय (गंभीर स्वर में)  : देख भाई, ये गाय तुझे ऐसे देख रही है, जैसे इसके पास भगवान से सीधा कनेक्शन हो। अगर ये तेरी परेशानी नहीं सुलझाई, तो मैं इसे डिफॉल्टर मानूंगा।

सुनील ने गाय के सिर पर हाथ रखा और मन ही मन प्रार्थना की। उसके चेहरे पर हल्की-सी राहत दिख रही थी।  

इसके बाद, दोनों पास के एक पुराने पीपल के पेड़ के पास पहुंचे। वहां हवा हल्की-हल्की चल रही थी, और पेड़ के पत्ते सरसराहट कर रहे थे। धनंजय ने सुनील को नारियल दिया

धनंजय  :  चल भाई, अब पेड़ के सात चक्कर काट। लेकिन ध्यान रहे, तेरा नारियल फूटना नहीं चाहिए।

सुनील ने नारियल हाथ में लिया और पेड़ के चारों ओर चक्कर काटने लगा। उसने हर चक्कर के साथ मन ही मन शनि देव से प्रार्थना की। उसके मन में रिया का चेहरा बार-बार उभर रहा था।  

धनंजय ने चक्कर काटते हुए सुनील को छेड़ा,  

धनंजय : भाई, तेरी प्रार्थना में कहीं रिया का नाम तो नहीं आ रहा? तू तो सीधा उसकी मुराद मांग रहा होगा।

सुनील ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। सातवें चक्कर के बाद उसने नारियल पेड़ के पास रखा और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।  

धनंजय : तो अब क्या महसूस हो रहा है? कुछ हल्का-फुल्का?

सुनील (गंभीरता से) : मुझे नहीं पता। लेकिन हां, ऐसा लग रहा है जैसे मैंने अपनी तरफ से कोशिश कर ली है। अब जो होगा, वो देखा जाएगा।

धनंजय : भाई, अगर ये सब काम कर गया, तो मैं भी भगवान से एक अच्छी लड़की मांग लूंगा। वैसे, दिल्ली यूनिवर्सिटी के सपने तो सपने ही रह गए। अब तो बरेली में कोई बढ़िया लड़की मिल जाए, वही काफी है।

दोनों हंसते हुए स्कूटी पर सवार होकर वापस चल दिए। रास्ते में सुनील के चेहरे पर एक हल्का सा सुकून दिख रहा था। शायद उसे लगने लगा था कि जीवन में कुछ बदलने वाला है।  

अगले दिन की सुबह, सुनील और धनंजय तालाब के पास पहुंचे। सूरज की किरणें पानी में बिखरी हुई थीं और ठंडी हवा में हल्की सी ताजगी थी।

सुनील (धनंजय से) : यार, कुछ तो बदल रहा है। मुझे लगता है, ये सब उपाय सच में असर कर रहे हैं। पहले कभी ऐसा नहीं लगता था, पर अब लग रहा है जैसे अंदर से कुछ बदल चुका है।

धनंजय (मुस्कुराते हुए) : क्या भाई? तुझे सच में महसूस हो रहा है कि तेरी किस्मत बदलने वाली है? फिर तो तेरी बल्ले-बल्ले हो गई।

सुनील (धीरे से) : पता नहीं। पर किसी ने सही कहा है, जब इंसान अपनी सोच बदलता है, तो बाकी सारी चीजें अपने आप बदलने लगती हैं।  

धनंजय (जोश में) : सही कहा तूने। अब तुझे केवल खुद पर यकीन करना है। जब तू मेहनत करेगा, तो कुछ भी नामुमकिन नहीं होगा। शनि देव भी तुझे आशीर्वाद देंगे, और फिर तुझे क्या कमी रह जाएगी?

तालाब के किनारे पानी चढ़ाते हुए, सुनील को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी जिंदगी में एक नई उम्मीद की किरण चमक रही हो। उसकी आँखों में एक नई उम्मीद थी।  

सुनील और धनंजय ने शहर भर में अलग-अलग जगहों पर काम तलाशने की शुरुआत की। कुछ दुकानों पर काम मिला, लेकिन या तो सैलरी कम थी, या फिर experience की कमी के कारण मना कर दिया गया।  

एक दिन, वो शहर के एक छोटे से कैफे में गए। वहां की खिड़की से रौशनी आ रही थी, और भीतर एक हलचल थी। छोटे से कैफे का माहौल गर्म और सुकूनभरा था, लेकिन सुनील का मन थोड़ा घबराया हुआ था।

धनंजय (उत्साहित होकर) : अरे यार, यहां तो बुरा नहीं लगता। इधर काम करो, तेरा experience भी बढ़ेगा और फिर कुछ टाइम में पैसे कमाकर तू मुंबई भी जा सकता है।

सुनील : मुझे यहां काम करने का मौका मिल सकता है? मुझे ज्यादा experience नहीं है, लेकिन मैं मेहनत करने को तैयार हूं।

 

कैफे मालिक : ठीक है, तुम्हें काम पर रखता हूं। लेकिन शुरुआत में सैलरी कम होगी। तुम शुरू में हर काम सीखोगे, फिर बाद में बढ़िया पैसा मिलेगा।

सुनील ने झट से हामी भर दी, क्योंकि उसे पता था कि ये उसकी जिंदगी का पहला कदम था। वो तैयार था, चाहे रास्ता कितना भी मुश्किल हो।  

अगली सुबह का सूरज हल्की गर्माहट के साथ शहर की गलियों को जगाने लगा था। सुनील अपने पुराने बैग को कंधे पर टांगकर, घबराए कदमों से कैफे की ओर बढ़ा। कैफे का नाम था "ब्रीव्स एंड बाइट्स," एक छोटा लेकिन प्यारा-सा कैफे, जिसमें लकड़ी की टेबलें, दीवारों पर हैंडमेड पेंटिंग्स और खिड़की के किनारे छोटे-छोटे पौधों की कतारें लगी थीं।

जैसे ही वह अंदर दाखिल हुआ, हल्की-हल्की कॉफी की खुशबू ने उसे घेर लिया। मशीनों की गड़गड़ाहट, कपों के टकराने की आवाज़ और कस्टमर की बातचीत का शोर उसे थोड़ा अजीब फील करवा रहा था। कैफे का मालिक, एक सख्त लेकिन ईमानदार इंसान था, जिसने सुनील को गर्मजोशी से नहीं बल्कि एक ठंडे से सिर हिला कर काम पर लगाया।

मालिक : सुनील, ये है काउंटर… और ये ऑर्डर मशीन। कस्टमर के साथ साफ और शालीन तरीके से बात करना। तुम्हे ये सब जल्दी सीखना पड़ेगा, यहाँ किसी के पास ज्यादा वक्त नहीं है।

सुनील ने सिर हिलाया, लेकिन अंदर से उसके हाथ पसीने से भीग चुके थे। पहला दिन जैसे किसी परीक्षा से कम नहीं था। दिन बीते। हफ्ते गुजरे।

धीरे-धीरे, सुनील ने मशीन की आवाज़ों को पहचानना शुरू किया। उसे पता चल गया कि कौन-सा बटन किस ड्रिंक के लिए है, दूध को कितना गर्म करना है, और सबसे ज़रूरी बात—कस्टमर से मुस्कुराकर बात करना। उसकी घबराहट कम होती गई, तभी एक दिन, कैफे में काम करते हुए, सुनील ने धनंजय को फोन किया

सुनील (फोन पर) : यार, अब जो मैंने सोचा था, वो थोड़ा-थोड़ा समझ आने लगा है। मेहनत करनी है, बस। अब वही करना है।

धनंजय (सपोर्टिव आवाज़में) : देखा, मैंने कहा था न, ये शनि देव की कृपा है। अब तुझे अपने पापा से भी थोड़ा टाइम मिल जाएगा, इसके बाद तू आगे का सोच सकता है और इस बरेली जैसी जगह से निकल सकता है।

सुनील : हां मुंबई जाने का भी आराम से सोच सकता हूं

धनंजय : हां दोनो भाई साथ चलेंगे। मैने सुना है, लड़किया तो मुंबई में भी सुंदर है

सुनील : भाई, तू नहीं सुधरेगा। पर हां, अब तो मुझे लगता है कि मेहनत ही सबसे बड़ा जवाब है।

उसी दिन, काम करने के दौरान कैफे में एक ऐसी घटना घटी, जो सुनील की जिंदगी को फिर से एक मोड़ पर लाकर खड़ा करने वाली थी।

सुबह की हल्की धूप कैफे की बड़ी काँच की खिड़कियों से भीतर उतर रही थी। हवा में ताज़ी पीसी हुई कॉफी की महक घुली थी, और कैफे के कोने में सॉफ्ट म्यूज़िक बज रहा था। सुनील, हमेशा की तरह, काउंटर के पीछे खड़ा ऑर्डर ले रहा था। उसके हाथों की रफ्तार अब मशीन की तरह हो चुकी थी—मिल्क फ्रॉथर चलाना, एस्प्रेसो मशीन को सेट करना, और मुस्कराते हुए कस्टमर को उनका ऑर्डर पकड़ाना।

लेकिन तभी दरवाज़े की घंटी की "ट्रिन" की आवाज़ के साथ कैफे का दरवाज़ा खुला। सुनील ने आदतन सिर उठाकर देखा।

वो पल जैसे ठहर सा गया। दरवाज़े से अंदर आती लड़की की चाल में एक जानी-पहचानी लय थी। उसे देख सुनील के अंदर  सब कुछ बिखर सा  गया।

वो लड़की रिया थी । तभी सुनील के दिमाग में हजारों सवाल उमड़ने लगे। रिया धीरे-धीरे कैफे में दाखिल हो रही थी। सुनील ने जल्दी से अपना चेहरा घुमा लिया, ताकि वो उसे न देखे। उसने एक पल के लिए सोचा कि क्या वो रिया से बात करे या फिर वहीं छिप जाए।  

वो शर्ट की आस्तीन खींचकर काउंटर के पीछे छिप गया, हालांकि उसका दिल धड़क रहा था। रिया ने कैफे के अंदर कदम रखा और काउंटर की ओर बढ़ी। उसकी आवाज़सुनील के कानों में गूंज रही थी, लेकिन उसने चेहरे पर कोई रिएक्शन नहीं था। तभी रिया काउंटर पर आई

रिया (कैफे मालिक से ) : EXCUSE ME, एक कॉफी और क्रोइसैन मिलेगा?

कैफे मालिक ने उसे देखा और मुस्कुराते हुए उसका ऑर्डर लिया। रिया ने सुनील को नजरअंदाज करते हुए काउंटर के पास खड़ा एक खाली टेबल ढूंढ लिया। सुनील के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।  

सुनील के मन में सवालों का तूफान था। क्या रिया उसे देख पाएगी? क्या वो सुनील को पहचानने की कोशिश करेगी? क्या रिया उसे पहचान पाई? क्या सुनील उससे बात करेगा? आखिर आगे क्या होगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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