अगले दिन सुबह का सूरज हल्की गुलाबी रोशनी के साथ आसमान में उभर रहा था। सुनील अभी सोकर उठा भी नहीं था कि बाहर से स्कूटी के हॉर्न की लगातार आवाज़ ने उसे नींद से जगा दिया।  

धनंजय अपनी पुरानी, खड़खड़ाती हुई स्कूटी पर सुनील के घर के सामने पहुंच चुका था। उसकी स्कूटी से काले धुएं की लहरें उठ रही थीं, मानो वह किसी पुरानी फिल्म के सेट से निकल कर आई हो। स्कूटी का इंजन इतना तेज शोर कर रहा था कि पूरा मोहल्ला जाग गया होगा।  

सुनील ने खिड़की से बाहर झांका। उसने देखा, धनंजय स्कूटी पर बैठा हुआ था। उसकी पुरानी जैकेट के ऊपर एक गमछा लटका हुआ था, और वह बार-बार हॉर्न बजा रहा था।  

सुनील : अरे भाई! ये हॉर्न मत फोड़, आ रहा हूं,

लेकिन धनंजय को कहां कोई बात सुननी थी, वह अपनी स्कूटी के पुराने हॉर्न को इतनी बार बजा रहा था कि लगता था जैसे वह कोई इमरजेंसी मिशन पर आया हो।  

धनंजय : जल्दी कर, सुनील! आज एक बड़ा प्लान है  

स्कूटी के इंजन की आवाज़ और धनंजय के शोर-शराबे ने मोहल्ले के कुछ बच्चों का भी ध्यान खींच लिया। वो पास खड़े होकर हंसने लगे।  

बच्चा 1 : ये तो वही पुरानी खटारा स्कूटी है, जो हमेशा धुआं उगलती रहती है,

धुआं भी ऐसा है, जैसे धनंजय भैया कोई ट्रक चला रहे हों

धनंजय : अरे तुम लोग क्या समझोगे? ये स्कूटी नहीं, मेरा साथी है। और आज ये हमें बहुत बड़े काम पर ले जाएगी।  

सुनील आखिरकार बाहर आया। उसके बाल उलझे हुए थे, और चेहरे पर साफ झलक रहा था कि उसे इस तरह सुबह-सुबह जगाया जाना बिल्कुल पसंद नहीं आया।  

सुनील : क्या है धनंजय? इतनी सुबह-सुबह क्यों हॉर्न फाड़ रहा था?

धनंजय : भाई, आज दिन खास है। चल, तुझे एक जगह ले जाना है।  

सुनील : कहां ले जाना है?  

धनंजय : भरोसा कर, बस चल

सुनील ने गहरी सांस ली, और मजबूरी में स्कूटी पर बैठ गया। स्कूटी जैसे ही चलने लगी, उसने अपने चिर-परिचित अंदाज में वही किया जो हमेशा करता था—इंजन ने फिर से जोरदार आवाज़ निकाली और काले धुएं की एक और लहर हवा में फैल गई।  

सुनील : तू इस स्कूटी को कब सुधरवाएगा,?

धनंजय : जब तू अपने सपने पूरे करेगा, उसी दिन

सुनील : अब तो बता दे कहां जा रहे है?

धनंजय : आज हम मंदिर जा रहे है।

सुनील (थोड़ा आलसी लहजे में) : भाई, कल रात मैने बहुत सोचा, मुझे सच में लग रहा है कि मैं कुछ अजीब करने जा रहा हूं। ये मंदिर-वंदिर मेरे बस की बात नहीं।

धनंजय (हंसते हुए)  : अरे, अजीब नहीं, इसे नया experience बोलते हैं। और वैसे भी, तेरे जैसे इंसान को अब शनि देव ही बचा सकते हैं। चल, बैठ।  

सुनील चुपचाप स्कूटी पर पीछे बैठ गया। इसके बाद स्कूटी ने जैसे ही सड़क पकड़ी, धनंजय ने माहौल हल्का करने के लिए अपने मज़ाक शुरू कर दिए

धनंजय : भाई, सुना है, शनि देव की कृपा से लोग अपनी सारी मुरादें पूरी कर लेते हैं। मैं तो सोच रहा हूं, उनसे अपने लिए एक बढ़िया लड़की मांग लूं।

सुनील (हंसते हुए) : सपने देखना तो कोई तुझसे सीखे। किस टाइप की लड़की चाहिए तुझे?  

धनंजय (मजाकिया अंदाज में)  : भाई, दिल्ली यूनिवर्सिटी की लड़कियों के सपने तो देखता था, लेकिन अब समझ में आ गया है कि ये मेरे बस का नहीं। बरेली में कोई अच्छी लड़की मिल जाए, वही बहुत है। तू देखना, मेरी शादी में तू डांस भी करेगा।

धनंजय की बातें सुनकर सुनील को हंसी तो आई, लेकिन अगले ही पल उसका मन कहीं और चला गया। धनंजय की शादी की बात सुनते ही रिया का चेहरा उसकी यादों में उभर आया। वो शामें, जब वे थिएटर ग्रुप में साथ थे, अचानक उसकी आंखों के सामने घूमने लगीं।  

सुनील :  रिया...।

धनंजय : ओए, तू कहीं और चला गया। क्या सोच रहा है?

सुनील : कुछ नहीं यार। बस ऐसे ही कॉलेज की बातें याद आ गई।

धनंजय : भाई, मुझे सब समझ आता है। कॉलेज की बातें याद आ रही हैं, या कोई खास इंसान? रिया की बात कर रहा हूं मैं। उससे बात क्यों नहीं करता? आखिर उसमें उसकी क्या गलती थी?

सुनील : छोड़ ना, पुरानी बातें हैं। अब उनका कोई मतलब नहीं।

धनंजय  : अरे, भाई, पुरानी बातें अगर इतनी ही बेकार होतीं तो तुझे अभी याद क्यों आतीं? देख, मुझे पता है थिएटर ग्रुप छोड़ने के बाद से तूने किसी से संपर्क नहीं रखा, लेकिन रिया का इसमें क्या दोष? कम से कम उससे एक बार बात कर लेता।

सुनील  : भाई, छोड़ ना। अब इन सब बातों का कोई फायदा नहीं। वैसे भी, जो होना था, वो हो चुका।

 

धनंजय ने गहरी सांस ली और बात को वहीं खत्म कर दिया। वो जानता था कि सुनील जब किसी बात को लेकर ज़िद पर अड़ जाए, तो उसे मनाना मुश्किल होता है।  

रास्ते में दोनों चुपचाप बैठे थे। धनंजय बीच-बीच में सड़क पर आती गड्ढों की तरफ इशारा करके मज़ाक करता, लेकिन सुनील खोया हुआ था। रिया की यादों ने उसे बेचैन कर दिया था। सुनील खुद में सोच रहा था,

सुनील : क्या मैं सही था? क्या मुझे उससे बात करनी चाहिए थी? शायद धनंजय सही कह रहा है।

धनंजय  : देख भाई, मंदिर आ गया। अब तेरी जिंदगी का नया chapter शुरू होने वाला है। तैयार हो जा।

सुनील और धनंजय स्कूटी से उतरते ही मंदिर के प्रांगण की ओर बढ़े। हल्की-हल्की ठंडी हवा उनके चेहरे को छू रही थी,  सामने मंदिर की ऊँची सीढ़ियाँ थीं, जिन पर चढ़ते-उतरते लोग अपनी श्रद्धा और आस्था के बोझ के साथ आगे बढ़ रहे थे।

मंदिर का माहौल एक अजीब-सी शांति और हलचल का संगम था। कुछ लोग नारियल और फूलों की थाली लिए पंडित जी के पास खड़े थे, तो कुछ शनि देव की मूर्ति के सामने कतार में खड़े होकर सरसों के तेल की धार चढ़ा रहे थे। हवा में अगरबत्ती और फूलों की मिली-जुली खुशबू तैर रही थी, और घंटियों की टन-टन की आवाज़ के बीच मंत्रों की गूंज वातावरण को और भी आध्यात्मिक बना रही थी।

सुनील ने मंदिर के द्वार पर रुककर एक गहरी सांस ली। उसका दिल धड़क रहा था, लेकिन वजह वह खुद भी नहीं समझ पा रहा था। शायद किसी अनदेखी उम्मीद का बोझ, या फिर एक अनकहा डर। उसने ऊपर देखा, मंदिर के शिखर पर केसरी रंग का झंडा हवा में लहरा रहा था, जैसे उसे इशारा कर रहा हो कि अंदर जाओ, शायद तुम्हें अपने सवालों के जवाब मिल जाएं।

धनंजय ने सुनील के कंधे पर हल्की-सी थपकी दी और मुस्कराते हुए कहा,

धनंजय  : चल भाई, शनि देव से अपनी मुराद मांगने का वक्त आ गया है। बस सच्चे दिल से प्रार्थना करना। और हां, मेरे लिए भी दुआ करना। बरेली वाली लड़की का सपना पूरा करना है।  

सुनील ने हंसते हुए सिर हिलाया और दोनों मंदिर के अंदर चले गए। उनके दिलों में अलग-अलग सवाल और उम्मीदें थीं।

मंदिर के बाहर का सीन अपने आप में एक अलग दुनिया था। बड़ी सीढ़ियां, जिन पर हर उम्र के लोग चढ़ते हुए दिख रहे थे—कुछ बूढ़े लोग जिनकी चाल धीमी थी, तो कुछ जवान, जिनका जोश उनकी चाल में दिख रहा था। सीढ़ियों के दोनों ओर छोटे-छोटे दुकानदारों ने अपने ठेले लगाए हुए थे। सरसों के तेल की छोटी-छोटी बोतलें, काले कपड़े, नारियल, अगरबत्ती और नींबू-मिर्च के माले इन दुकानों पर सजाए गए थे।  

धनंजय और सुनील स्कूटी पार्किंग में खड़ी कर मंदिर की ओर बढ़े। जैसे ही वो सीढ़ियों के करीब पहुंचे, हल्की-हल्की अगरबत्ती और तेल की महक उनकी नाक से टकराई। धनंजय ने सुनील की ओर देखा

धनंजय  : देख भाई, यहां हर किसी की किस्मत बदलने का एक ही टिकट है—शनि देव। तू देख, यहां आए लोग क्या-क्या सोच कर आए हैं।

सुनील ने चारों तरफ देखा। मंदिर में भीड़ थी, लेकिन माहौल में एक अजीब-सी शांति थी। कतार में खड़े लोगों के चेहरों पर अलग-अलग भाव थे कुछ चिंता, कुछ उम्मीद, तो कुछ पूरी श्रद्धा से भरे हुए।  

धनंजय (आसपास देखते हुए) : भाई, यहां लोग अपनी अजीब-अजीब मुरादें लेकर आते हैं। वो देख, वो आदमी।

धनंजय ने एक अधेड़ उम्र के आदमी की ओर इशारा किया, जो अपने हाथ में एक बड़ा नारियल और सरसों के तेल की बोतल लिए खड़ा था। वो अपनी बारी का इंतजार करते हुए बड़बड़ा रहा था।  

आदमी (अपने आप से) : हे शनि देव, इस बार ट्रांसफर रुकवा दीजिए। बच्चे का स्कूल छूट जाएगा।  

धनंजय : देखा? ट्रांसफर की मुराद लेकर आया है। शनि देव का काम सरकारी बाबुओं से बड़ा हो गया है।

सुनील हल्का-सा मुस्कुरा दिया। उसकी नजर एक महिला पर पड़ी, जो एक छोटी लड़की के साथ आई थी। लड़की के गले में काले धागे का माला था, और उसकी मां उसे बार-बार समझा रही थी,  

महिला : बिटिया, शनि देव से प्रार्थना करो कि तुम्हारी पढ़ाई में अच्छे नंबर आएं। और पंडित जी के कहने पर वो ताबीज़ मत उतारना। ये ताबीज़ तुम्हें बुरी नजर से बचाएगा।

धनंजय :भाई, लोग यहां बुरी नजर, ट्रांसफर, नौकरी, शादी सबकी मुराद लेकर आते हैं। मुझे तो लगता है कि शनि देव जी के पास लोगों की मुरादों का पूरा रजिस्टर होगा।

सुनील ने भीड़ में एक और आदमी को देखा। वो आदमी पूरी श्रद्धा से हाथ जोड़कर खड़ा था। उसके पास काले कपड़े में बंधी एक माला थी। वो पंडित जी से कह रहा था,  

आदमी : पंडित जी, मेरे बेटे का कोर्ट का मामला खत्म हो जाए, यही प्रार्थना करने आया हूं। मैंने सुना है, शनि देव न्याय के देवता हैं। वो जरूर मेरी मदद करेंगे।

धनंजय ने सुनील को ठेले पर रखे सामान की ओर इशारा किया।  

धनंजय : भाई, देख, यहां नींबू-मिर्च का भी बड़ा कारोबार है। मुझे तो लगता है हमें इस मंदिर के बाहर ही एक दुकान खोल लेनी चाहिए।

सुनील - अरे तू क्या अजीब बाते कर रहा है, चल यहां से।

सुनील ने धनंजय को हल्के से धक्का दिया,  

सुनील : मुझे तो लग रहा है कि यहां आकर मैं भीड़ का हिस्सा बन गया हूं। लोग क्या-क्या सोचते हैं! मेरे पास कम से कम प्रैक्टिकल वजह तो है।

दोनों हंसते हुए आगे बढ़े। आखिरकार, उन्होंने पंडित जी की चौकी के पास जाकर कतार में खड़ा होना शुरू किया। पंडित जी के पास चारों तरफ छोटे-छोटे दीपक और सरसों का तेल रखा था। उनके सामने एक ताम्र पात्र था, जिसमें लोग अपने-अपने नारियल और तेल चढ़ा रहे थे।

पंडित जी : बेटा, नारियल को सात बार घुमाकर दीपक के पास रख दो। शनि देव की कृपा से सारी बाधाएं दूर होंगी।

जब धनंजय और सुनील की बारी आई, तो पंडित जी ने उनकी ओर देखा

पंडित जी (गंभीर आवाज़ में)  : बेटा, तुम दोनों के चेहरे पर तो चिंता की लकीरें साफ दिख रही हैं। क्या समस्या है?

धनंजय : पंडित जी, मेरे इस दोस्त की किस्मत की गाड़ी पंचर हो गई है। इसे ठीक कर दीजिए।  

पंडित जी : तुम्हारे चेहरे से लग रहा है कि शनि की साढ़े साती चल रही है। कुछ उपाय करने पड़ेंगे।  

सुनील : क्या उपाय करने होंगे?

पंडित जी : काली गाय को हर शनिवार खाना खिलाओ। नारियल लेकर पीपल के पेड़ के चारों ओर सात बार घुमा कर शनि देव से प्रार्थना करो। और सुबह-सुबह सूर्य को जल अर्पित करना मत भूलना। ये सब करने से शनि देव प्रसन्न होंगे और तुम्हारी किस्मत बदलने लगेगी।  

धनंजय : पंडित जी, किस्मत तो सुनील को बदलवानी है, लेकिन क्या इसमें मुझे भी बरेली की कोई एक अच्छी लड़की भी मिल सकती है?

पंडित जी : शनि देव सबकी सुनते हैं, बेटा। तुम्हारी भी मुराद पूरी होगी। बस सच्चे दिल से प्रार्थना करो।  

धनंजय : पंडित जी किस्मत तो सुनील की बदलने वाली है, लेकिन क्या मेरे लिए भी आप भगवान से बोलकर एक अच्छी लड़की दिलवा सकते हो।

ये सुनकर पंडित जी गुस्से में धनंजय की तरफ देखते है. अब आगे क्या होगा? क्या धनंजय को पंडित से मार पड़ेगी? या सुनील की पूजा अधूरी रह जाएगी?

आखिर अब आगे क्या होगा? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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