शाम का समय था। कमरे में फैली हल्की अंधेरी छाया और बाहर बारिश की धीमी बूंदों की आवाज़ ने माहौल को और भारी बना दिया था। सुनील खिड़की के पास बैठा बाहर बरसती बारिश को देख रहा था, लेकिन उसके मन में एक अलग ही तूफान चल रहा था। दीवार पर लगी घड़ी की टिक-टिक उसकी बेचैनी को और बढ़ा रही थी। उसके पापा की बातें बार-बार उसके कानों में गूंज रही थीं।
पापा (कड़क आवाज़ में) : तुमसे कुछ नहीं होगा। न पढ़ाई में कुछ किया, न ही काम में कुछ कर रहे हो। आखिर कब तक यूं ही बैठे रहोगे?
उनकी ये बात सुनील के दिल को चीर गई थी। वो ये सोचने पर मजबूर था कि क्या वाकई वो अपने पिता के लिए सिर्फ एक नाकाम बेटा था। उसे लगता था जैसे वो किसी काली गुफा में फंस गया है, जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। लेकिन उसकी मां उसके साथ थी।
शांति (हल्की मुस्कान के साथ) : तुम मेहनत करो, भगवान जरूर रास्ता दिखाएंगे। सब ठीक होगा बेटा।
सुनील को उनकी बातों में वो भरोसा नहीं दिखा, जिसकी उसे जरूरत थी। उसके पिता की कड़वी बातें उसकी आत्मा पर जैसे चोट कर चुकी थीं।
अचानक, कमरे में सन्नाटा तोड़ते हुए उसका फोन बज उठा। उसने देखा कि कॉल धनंजय की थी। उसने फोन उठाया,
सुनील : हेलो
धनंजय (फोन पर चहकते हुए) : भाई, क्या हाल है? या फिर वही पुरानी कहानी चल रही है?
सुनील (थके हुए लहजे में) : यार, हाल क्या बताऊं। घर में फिर से पापा के ताने सुनने पड़े। लगता है जिंदगी कहीं रुक गई है।
धनंजय (थोड़ा हंसते हुए) : अरे, यही तो असली कहानी है, भाई। जिंदगी वहीं रुकती है, जहां से इसे फिर से शुरू करना पड़ता है। वैसे, कुछ सोचा है कि करना क्या है?
सुनील चुप हो गया। उसने कोई जवाब नहीं दिया। धनंजय ने महसूस किया कि उसका दोस्त इस समय काफी टूट चुका है। इसलिए वो दुबारा बोला
धनंजय : अरे भाई, ऐसे चुप रहने से कुछ नहीं होगा। बता, क्या चल रहा है दिमाग में?
सुनील (गहरी सांस लेते हुए) : यार, सोच क्या रहा हूं, बस अपना सिर दीवार पर मारने का मन कर रहा है। लगता है मेरी जिंदगी की गाड़ी पंचर हो गई है। ना सलीम खान से मिल पाया, न पढ़ाई में अच्छे मार्क्स ला पाया।
धनंजय (हंसते हुए) : अरे वाह! डायलॉगबाजी में तो तू सलीम-जावेद को भी पीछे छोड़ देगा। पर असली सवाल ये है कि अब करना क्या है?
सुनील (थोड़ा झल्लाते हुए) : करना क्या है, यही तो समझ नहीं आता। मां कह रही हैं मेहनत करो, भगवान रास्ता दिखाएंगे। पापा दुकान पर बैठने को बोल रहे हैं। मैं सोचता हूं कुछ और करूं। लेकिन क्या? ये ही नहीं पता।
धनंजय : भाई, ये तो सही बात है कि कुछ करना पड़ेगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या करना चाहिए। वैसे, तूने किसी नौकरी के लिए अप्लाई करने का सोचा?"
सुनील : बीच में किया तो था, लेकिन हर जगह experience मांगते हैं। और experience कहां से लाऊं? बिना काम किए experience आएगा कैसे?
धनंजय (मजाकिया लहजे में) : भाई, ये तो वही बात हो गई कि बिना खाए भूख मिटाओ। पर यार, कुछ तो करना पड़ेगा। ऐसे कमरे में बैठे-बैठे तो कुछ नहीं होगा। चल, बाहर चलते हैं। थोड़ा दिमाग ताजा करेंगे, शायद कुछ आइडिया आ जाए।
सुनील ने फोन रखते हुए खिड़की के बाहर देखा। बारिश अब थम चुकी थी, लेकिन उसके भीतर का तनाव अभी भी बरकरार था।
अगले दिन सुबह धनंजय खुद सुनील के घर पहुंचा। उसने स्कूटी पर हेलमेट पहने हुए दरवाज़ेपर ज़ोर से हॉर्न बजाया
धनंजय (मजाकिया अंदाज में) : ओए आलसी, बाहर निकल! चल, कहीं घूमकर आते हैं। कब तक इस जेल में बंद रहेगा?
सुनील दरवाज़ेपर आया। उसकी आंखों में अभी भी थकावट और उदासी झलक रही थी।
धनंजय : भाई, अब तो हद हो गई। तुझे इस कैद से बाहर निकालना पड़ेगा। चल, स्कूटी पर बैठ। थोड़ा बाहर की हवा खा ले, शायद तेरा दिमाग सही हो जाए।
सुनील (धीरे से) : कहां ले जा रहा है?
धनंजय : कहीं भी, बस तुझे घर से बाहर निकालना है। तेरे जैसे डिप्रेस्ड लोगों को दुनिया की ताजी हवा की जरूरत होती है।
दोनों स्कूटी पर निकल पड़े। रास्ते में धनंजय ने हल्के-फुल्के मज़ाक शुरू कर दिए
धनंजय : भाई, सुना है तुझे नौकरी नहीं मिल रही। क्यों न हम अपना एक चाय का बिजनेस खोल लें? “CEO चायवाला” मैं उस चाय की दुकान का CEO और तू चायवाला।
सुनील : अच्छा ये बता, इस CEO की फुल फॉर्म क्या होगी
धनंजय : चाय executive officer
सुनील (हल्की मुस्कान के साथ) : Hahaha, फिर तो तो हमारी कंपनी का दिवाला पक्का है।
धनंजय : वाह! आखिरकार हंसी तो आई तेरे चेहरे पर। अब बस, इसी हंसी को बनाए रख और कुछ काम ढूंढ। बाकी मैं हूं न तेरा यार
दोनों एक छोटे से कैफे में रुके। वहां बैठकर चाय पीते हुए सुनील ने अपनी परेशानियां खुलकर धनंजय को बताईं,
सुनील : यार, घर का माहौल ऐसा हो गया है कि हर कोई मुझसे उम्मीदें लगाए बैठा है। लेकिन मैं खुद नहीं जानता कि करना क्या है। मुझे तो बस आज तक सलीम खान से मिलना था, एक ही सपना था मेरा। लेकिन वो ही पूरा नहीं हो रहा। अब पापा चाहते हैं कि मैं दुकान संभालूं, पर मुझे कुछ अलग करना है, जिससे मैं आगे पैसे कमाकर मुंबई जा सकूं और सलीम खान से मिल सकूं।
धनंजय : भाई, जो करना है वो कर। पर कदम बढ़ा। डर मत। फेल हो जाएगा तो क्या हुआ? फिर से कोशिश करेंगे। और अपने पापा की बातों को दिल पर मत ले। वो तुझसे प्यार करते हैं, बस अपने तरीके से समझाते हैं।
सुनील : शायद तू सही कह रहा है। मुझे कम से कम कोशिश तो करनी चाहिए।
शाम का वक्त धीरे-धीरे अपने रंगों को समेट रहा था। चाय की वह छोटी-सी दुकान बरेली की पुरानी गलियों के एक कोने में थी—एक आम सी जगह, मगर ऐसी जहां ज़िंदगी की चहल-पहल हमेशा बनी रहती थी। टूटी-फूटी लकड़ी की बेंचें, दीवारों पर चाय के छींटों के धब्बे, वहीं बगल में भट्टी पर उबलती चाय से उठती भाप में मसाले की तेज़ खुशबू तैर रही थी—अदरक, इलायची, और थोड़ी सी काली मिर्च की हल्की तीखी महक, जो ठंड के मौसम में और भी गहरी लग रही थी।
धनंजय ने अपनी आदत के मुताबिक चायवाले से ज़ोर से कहा,
धनंजय : ओ भैया, दो कटिंग चाय देना, अच्छी वाली बनाना!
चायवाला, जो अपने झुके कंधों और पुराने मैले गमछे के साथ काम में लगा था, सिर हिलाकर चाय बनाने में जुट गया। भट्टी पर उबलती चाय के बुलबुले जैसे उनकी ज़िंदगी के छोटे-छोटे ख्वाबों की तरह थे—
सुनील की नजरें दुकान के कोने में रखे पुराने अखबारों के ढेर पर थीं, मगर उसका ध्यान कहीं और था। उसकी आंखें जैसे खाली थीं, लेकिन दिमाग में विचारों का तूफान चल रहा था। उन अखबारों के पन्नों पर भले ही पुरानी खबरें छपी थीं, मगर सुनील के मन में वो खबरें नहीं, बल्कि उसके अपने सपने गूंज रहे थे—जॉब और सलीम खान से मिलने का सपना।
धनंजय ने देखा कि सुनील कुछ ज़्यादा ही खामोश है। उसने हल्का सा सुनील की पीठ पर हाथ जमाया,
धनंजय : अरे, क्या हुआ? चाय पीने आए हैं या जिंदगी के गहरे राज़ सुलझाने?
धनंजय ने चाय का पहला घूंट लिया और आंखें बंद कर लीं, जैसे उसने दुनिया की सबसे बेहतरीन चाय पी हो।
धनंजय : सपने पूरे करने का तरीका बहुत सिंपल है, भाई। सपनों के पीछे भागो मत, उन्हें अपने पीछे भागने पर मजबूर करो!
सुनील उसके इस जवाब पर हल्की-सी मुस्कान ला सका, पर वो मुस्कान पूरी नहीं थी—जैसे बादल के पीछे छुपा सूरज। तभी धनंजय ने उससे फिर कहा,
धनंजय : भाई, ऐसे देवदास बनकर तो मत बैठ।।
सुनील (थोड़ा झल्लाते हुए) : तो करूं क्या? हर तरफ से रास्ते बंद हैं। हर कोई सिर्फ experience मांगता है, और मेरे पास कुछ नहीं। अब ये भी मत कहना कि कोई चमत्कार हो जाएगा।
धनंजय : अरे चमत्कार की बात कौन कर रहा है? लेकिन यार, तूने कभी सोचा कि तू खुद ही अपने सपनों के पीछे क्यों नहीं भाग रहा? दूसरों के रास्ते मत देख, अपना रास्ता खुद बना।
सुनील : बड़ी-बड़ी बातें करना आसान है, धनंजय। लेकिन जब असल जिंदगी में हर कदम पर असफलता मिलती है, तो ये बातें सिर्फ किताबों में अच्छी लगती हैं।
धनंजय : देख सुनील, मैं मानता हूं कि रास्ता आसान नहीं है। लेकिन क्या तूने कभी सोचा है कि तूने खुद को कितनी जल्दी हार मानने दिया है? तूने थिएटर छोड़ दिया, सपनों को छोड़ दिया, और अब खुद को भी छोड़ने की कगार पर है।
सुनील : क्या करूं धन्नो? घर में मां-बाप की उम्मीदें हैं। दुकान है, जिसे संभालना है। और यहां मैं... बस एक लूजर बनकर रह गया हूं। सबके लिए सिर्फ जिम्मेदारियां रह गई हैं, सपने नहीं।
धनंजय : भाई, जिम्मेदारियां सबकी होती हैं। लेकिन क्या जिम्मेदारियां मतलब यह है कि तू अपनी पहचान ही खो दे? तूने कितनी बार कहा है कि तुझे अपनी एक्टिंग से प्यार है। तुझे सलीम खान जैसा बनना है। फिर क्यों खुद को रोक रहा है? अगर तेरी पहचान तुझसे छिन गई, तो यह जिंदगी किसी काम की नहीं।
सुनील : काम की तो अभी भी नही है, न काम मिल रहा है, न सलीम खान। सारे भगवान से मांगकर देख लिया, लेकिन कुछ नही हो रहा
धनंजय : भाई, चमत्कार भी सही जगह मांगने पर ही होते हैं। चल, शनि मंदिर चलते हैं। सुना है, वहां की पूजा से सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं। तेरी किस्मत का पहिया वहीं घूम जाएगा।
सुनील : तेरे पास इसके अलावा कोई और उपाय ही नहीं बचा।
धनंजय (मुस्कुराते हुए) : भाई, उपाय तो मेरे पास बहुत हैं, लेकिन मुझे लगता है कि इस वक्त तुझे शनि देव की जरूरत है। तू उनकी पूजा कर, फिर देख, कैसे तेरी लाइफ सेट हो जाती है
चायवाला, जो अब तक दोनों की बातें सुन रहा था, बीच में आ गया। उसकी उम्र करीब 28 साल होगी, चेहरा झुर्रियों से भरा, लेकिन आंखों में अनुभव की चमक थी। उसने अपनी मटमैली शर्ट से हाथ पोंछे
चायवाला : धनंजय भाई सही कह रहे हैं। शनि देव वाकई बहुत शक्तिशाली हैं। मेरा भी बुरा समय चल रहा था, लेकिन उनकी पूजा से सब ठीक हो गया।
सुनील : क्या हुआ था तुम्हारे साथ?
चायवाला : पहले मेरी भी हालत आपकी जैसी ही थी। दुकान नहीं चलती थी, घर में पैसों की तंगी रहती थी। ऊपर से बीमारियां भी पीछा नहीं छोड़ रही थीं। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं बदला। फिर किसी ने मुझे शनि देव की पूजा करने को कहा। पहले तो मुझे भी आपकी तरह ये सब बकवास लगा, लेकिन जब सारी कोशिशें बेकार हो गईं, तो मैंने भी जाकर पूजा कर ली। साहब, उसके बाद से जैसे चमत्कार हो गया। धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा। अब ये दुकान देखिए, पहले से अच्छा चल रहा है। घर में शांति है।
धनंजय : शांति तो इसके घर पर भी है, लेकिन उनसे क्या?
सुनील : अबे वो मेरी मां की बात नही कर रहा, वो सुकून वाली शांति की बात कर रहा है।
धनंजय : हां समझ गया, लेकिन तू भी मुद्दे की बात समझ, मैं तो पहले ही कह रहा था। शनि देव बाकी भगवानों से अलग हैं। उनका गुस्सा और प्यार दोनों extreme में होता है। इसलिए उन्हें खुश रखना बहुत जरूरी है।
सुनील (थोड़ा सख्त लहजे में) : तुम दोनों से ये सब सुनने में अच्छा तो लग रहा है, लेकिन क्या सच में ये सब काम करता है? मुझे तो ये सब बस मन को तसल्ली देने का तरीका लगता है।
चायवाला : भैया, आपका यकीन ही सबसे बड़ी बात है। शनि देव को आप खुश कर लीजिए, फिर देखिए कैसे आपके रास्ते खुद-ब-खुद खुलने लगते हैं।
सुनील : ठीक है। लेकिन अगर ये सब काम नहीं किया, तो मैं इसके लिए तेरा ही गला पकडूंगा।
धनंजय : तू फिक्र मत कर। शनि देव तुझे निराश नहीं करेंगे। क्या पता उनकी वजह से तेरा सलीम खान से मिलने का सपना भी पूरा हो जाए। लेकिन इसकी एक शर्त है?
आखिर धनंजय की वो शर्त क्या थी? आगे अब क्या होगा? क्या शनि देव, सुनील की ये सारी परेशानियां खत्म हो पाएगी? क्या सुनील की साढ़े साती सच में खत्म हो पाएंगे?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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