सुनील दुकान में बैठा हुआ था। शाम का समय था, दुकान में बस एक पुराना पंखा धीमी रफ्तार से घूम रहा था। रमेश, सुनील के पिता, काउंटर के पीछे बैठे हिसाब-किताब में लगे थे। बाहर गली में बच्चे खेल रहे थे, और दुकान में इक्का-दुक्का कस्टमर्स आ रहे थे।

तभी दरवाज़े से अचानक धनंजय अंदर भागता हुआ आया। उसका चेहरा पसीने से तर था, और उसकी सांसें तेज़  चल रही थीं।

सुनील (हैरानी से) : तुझे क्या हुआ? हांफ क्यों रहा है?

धनंजय कुछ देर तक कुछ बोल नहीं पाया। उसने बस इशारे से सुनील को शांत रहने को कहा और गहरी सांसें लेने लगा।

धनंजय : वो... रिजल्ट... कॉलेज का रिजल्ट आ गया है!

रमेश (जोश से): क्या रहा रिजल्ट? बता? सुनील पास हुआ या नहीं?

धनंजय ने सुनील की तरफ देखा। उसके चेहरे पर हल्की उदासी थी। सुनील का दिल अचानक जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने धनंजय की आंखों में देखा, जैसे वो सच्चाई को पहले से ही समझ गया हो।

सुनील (धीमी आवाज़में) : बोल न, क्या हुआ?

धनंजय  :  रिजल्ट देख आया हूं। तेरे मार्क्स कम रह गए। और मेरे भी। पास तो हो गए लेकिन मास्टर्स में एडमिशन.

ये सुनते ही पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया। रमेश ने अपना चश्मा उतारकर सुनील की तरफ देखा। उनकी आंखों में एक गुस्सा और निराशा साफ झलक रही थी।

रमेश (गुस्से में) : मैं पहले ही कहता था कि पढ़ाई पर ध्यान दे। ये गाने-वाने का चक्कर छोड़ और पढ़ाई कर। पर तुझे तो अपने सपनों का भूत सवार है! अब देख, क्या मिला? अब मास्टर्स कैसे करेगा?

सुनील कुछ नहीं बोला। उसका चेहरा एकदम सफेद पड़ गया था। वो अपने पिता की बातें सुन रहा था, लेकिन उसकी आंखें कहीं और देख रही थीं। मानो वो इस दुनिया से अलग किसी और जगह चला गया हो।

धनंजय ने उसे कंधे पर हाथ रखकर हौसला देने की कोशिश की

धनंजय : भाई, मैं जानता हूं कि तुझे बुरा लग रहा है। लेकिन अगली बार फिर से कोशिश करेंगे, अच्छे मार्क्स लाएंगे और दिल्ली यूनिवर्सिटी के उस कॉलेज में ही एडमिशन लेंगे।

रमेश (गुस्से से) : अगली बार? अगली बार भी नंबर कम आए तो। वैसे भी पढ़ाई-लिखाई में मन लगाना पड़ता है। तुम दोनो के बस की बात नहीं है। अब ये दुकान संभाल। यही इसके लायक काम है।

सुनील ने रमेश की बातों पर कोई रिएक्शन नहीं दिया। वो चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसके हाथ अब भी पसीने से भीग गया।

सुनील अपने कॉलेज के रिजल्ट का कई महीनो से इंतजार कर रहा था। दिन-रात उसकी आँखों में बस एक ही सपना था, मास्टर्स के लिए दिल्ली के एक बड़े कॉलेज में एडमिशन लेना, वो भी उसी कॉलेज में जहां सलीम खान पढ़े थे। उसने सोचा था की इस कॉलेज में मास्टर डिग्री करने के बाद उसकी जिंदगी एक नई दिशा में बढ़ेगी, और फिर एक दिन वो सलीम खान जैसा आदमी बनेगा, ये था उसका सबसे बड़ा सपना। धनंजय भी सुनील के साथ उसके इस सपने में साथ था। दोनों के सपने एक जैसे थे, जहां सुनील को सलीम खान जैसा बनना था, वही धनंजय ने सुना था की दिल्ली की लड़कियां बहुत सुंदर होती है और आराम से दोस्त बन जाती है। इसलिए वो दोनो ग्रेजुएशन से ही यही सोच रहे थे। सुनील धनंजय से अक्सर यही कहता था,

सुनील : एक दिन हम दिल्ली जाएंगे, सलीम खान वाले कॉलेज में एडमिशन लेंगे और वहां से हमारी जिंदगी बदल जाएगी। फिर हम भी बड़े आदमी बनेंगे।

धनंजय : हाँ यार, तू देखना, हमारी मेहनत रंग लाएगी और हम दिल्ली में अपनी एक पहचान बनाएंगे। दिल्ली में जाकर लड़कियों से दोस्ती करूंगा। तू भी कर लियो भाई.

सुनील : मैं किसी लड़की से प्यार नही करता, लड़कियां मुझसे प्यार करती है। वैसे भी मैं जाकर लड़कियों को बोलूंगा।“ सुनील नाम तो सुना होगा”

धनंजय : हां, तू तो सलीम खान के डायलॉग मार मारके ही लड़किया पटा लेगा, लेकिन मेरा क्या?

दोनों के मन में एक मजबूत इरादा था और यही सोचते हुए उन्होंने रिजल्ट के दिन का इंतजार किया था। दोनो को पता था की उनके मार्क्स अच्छे ही आयेग। अब जाकर रिजल्ट का दिन आ गया था, वैसे तो सुनील और धनंजय दोनों ने उम्मीद की थी कि इस बार उनका रिजल्ट बहुत अच्छा आएगा। लेकिन आज जब रिजल्ट आया, तो दोनों के चेहरे पर मायूसी थी। दोनो के नाम के साथ उतने अंक नहीं थे जितने उसने सोचे थे। अब दोनों वो दिन याद करते हुए एक-दूसरे को देख रहे थे। यही वो समय था, जब उनकी उम्मीदें चूर-चूर हो रही थीं, और उनका सपना धीरे-धीरे धुंधला हो रहा था। सामने दुकान पर ही सुनील के पापा रमेश बैठे थे। जो उसे अभी भी लेक्चर दे रहे थे लेकिन सुनील अपने पापा की बातो को अनसुना करके, दुकान से घर चला गया। फिर सुनील चुपचाप अपने कमरे में चला गया। उसका दिल भारी था, और मन में ख्याल आ रहा था कि उसने बहुत मेहनत की थी, फिर भी रिजल्ट उसकी उम्मीदों के मुताबिक क्यों नहीं आया। क्या उसकी मेहनत वाकई बेकार थी? क्या वो कभी सलीम खान से मिल पाएगा? क्या उसकी सारी मेहनत अब भी किसी काम की नहीं रही?

सुनील के कमरे में घना सन्नाटा था, और वो अपनी कुर्सी पर बेमन से बैठा हुआ था। तभी उसके पापा, रमेश, कमरे में आए। वो हमेशा की तरह सीरियस थे, और उनकी आंखों में गुस्सा था।

रमेश : अब क्या करने का सोचा है? रिजल्ट तो आ गया है। अब बताओ, आगे क्या करना है?

सुनील : पापा, मुझे तो सलीम खान से मिलना है, और उसके जैसा बनना है। वही मेरा सपना है। मैं उससे बहुत प्यार करता हूं, एक दिन के लिए नही बल्कि जिंदगीभर के लिए

उसकी आवाज़में एक अजीब सा खामोशी और उदासी थी, जैसे वो किसी नई शुरुआत के लिए तैयार न हो। रमेश की आंखों में गुस्सा था,

रमेश  : तुम क्या समझते हो? ये सब बकवास है। तुम्हारे पास अब वक्त नहीं है इन बेकार बातों में उलझने का। तुम काम करो या फिर दुकान पर आकर बैठो। जो भी करना है, जल्दी से फैसला करो।

सुनील की आँखें भर आईं, लेकिन वो कुछ नहीं बोला। वो जानता था कि अगर उसने अपने पापा से कुछ कहा तो वो और भी गुस्से में आ जाएंगे। लेकिन अब उसका मन सलीम खान से मिलने का था, और वो जानता था कि इस रास्ते पर जाने के लिए उसे सिर्फ अपना आत्मविश्वास और मेहनत ही चाहिए।

रमेश : तुम समझते क्यों नहीं? अब तक तुमसे कुछ हासिल नहीं हुआ, और तुम अभी भी हवा में उड़ रहे हो। अगर तुम चाहते हो कि हम तुम्हारे सपने को सच करें, तो तुम्हें काम करना होगा। दुकान पर बैठो, घर का ख्याल रखो और खुद को बिजी रखो। ये सब सोचकर तुम अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो।


इस बीच, सुनील की मां, शांति, कमरे में आईं और देखा कि दोनों के बीच माहौल खटास से भरा हुआ था। शांति ने सुनील को देखा, उसकी आंखों में गहरी उदासी थी, और पापा रमेश की आंखों में गुस्सा। वो जानती थी कि उनका बेटा क्या चाहता है, लेकिन उसे यह भी पता था कि उसकी सोच में बदलाव लाना जरूरी था।  

शांति : ज़रा सुनिए, बेटा हमारा ही तो है, आप उसके सपनों को ऐसे क्यों तोड़ रहे हो?

रमेश : क्या तुम भी उसकी बेवकूफी में शामिल हो गई हो? ये सब बकवास है। सलीम खान से मिलना और क्या? भाईसाब से पढ़ाई भी नहीं हुई ढंग से। बस ग्रेजुएशन पास हुई है, वो भी इतने कम नंबर से, अब इन्हे मुंबई जाना है, क्या ये सपने भी कभी सच होते है भला?

शांति : हम सभी की जिन्दगी में कुछ न कुछ सपने होते हैं। अगर सुनील का सपना यही है, तो हमें उसका साथ देना चाहिए, पर उसकी सोच को सही दिशा में मोड़ने की जरूरत है।

फिर शांति सुनील के पास गई और उसे प्यार से गले से लगा लिया।

शांति : बेटा तुम्हारा सपना बहुत बड़ा है, और हम जानते हैं कि तुम में वो जुनून भी है, लेकिन एक कदम एक साथ बढ़ाना होगा। तुम्हें ये समझना होगा कि जीवन में सफलता केवल एक ही रास्ते से नहीं आती। तुम्हें संघर्ष भी करना होगा और सही दिशा में अपने कदम बढ़ाने होंगे।

सुनील : लेकिन मम्मी, अगर मैं ये सब करता हूं, तो मैं कभी सलीम खान से कैसे मिल पाऊंगा? सलीम खान के लिए मेरा दिल पागल है। मुझे उससे मिलना है

शांति : किसी भी महान इंसान तक पहुंचने के लिए तुम्हें अपनी journey पूरी करनी होगी। तुम्हारा सपना सच हो सकता है, लेकिन इसके लिए तुम्हें अपने रास्ते पर विश्वास करना होगा। तुम चाहे जितने भी छोटे कदम उठाओ, एक दिन तुम्हारे सपने जरूर पूरे होंगे।

सुनील : मां, आप सही कहती हैं। मुझे मेहनत करना होगी। लेकिन पापा को बोलो की वो मुझे इसके लिए थोड़ा टाइम दे ।

रमेश : ठीक है, तुम्हारी मां के बोलने पर मैं तुम्हे थोड़ा टाइम देता हूं। तुम डिसाइड कर लो आगे क्या करना है और मुझे बताओ? नही तो दुकान संभालो।

इसके बाद सुनील ने एक गहरी सांस ली और अपनी मां के शब्दों को मन में बसा लिया। ये वो पल था जब उसने महसूस किया कि जीवन में सिर्फ सलीम खान से मिलने की चाहत नहीं, बल्कि अपनी मेहनत से सफलता पाने की भी जरूरत थी। वो फिर से अपने सपने की तरफ बढ़ने के लिए तैयार था, लेकिन अब उसने ये समझ लिया था कि उसे अपनी यात्रा में छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी मेहनत करनी होगी। लेकिन अब सुनील आगे क्या सोचेगा?

क्या सुनील अपने सपने की पहली सीढ़ी पर कदम रख पाएगा? क्या उसका जुनून उसे मुंबई तक ले जाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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