सुनील अपने कमरे के कोने में बिस्तर पर यूं ही फैला पड़ा था, जैसे किसी पुराने फिल्म के ट्रैजेडी हीरो की तरह, आंखें छत की तरफ टिकाए हुए।
तभी सुनील के कमरे का दरवाज़ा हल्का सा खुला, सुनील ने सिर उठाया, और देखा कि उसकी मां, शांति कमरे में खड़ी थीं। वहीं सुनील अभी भी देवदास की तरह लेटा हुआ था, उसकी मां धीरे से उसके पास आईं और उन्होंने उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया। फिर उसे अपनी बाहों में समेट लिया। जिसके बाद शांति ने उसके बालों को धीरे-धीरे सहलाया, उनकी उंगलियों की नर्मी सुनील के दिल तक उतर रही थी। वो कुछ देर तक बिना कुछ बोले बस यूं ही खामोश रही।
सुनील की आंखों से अचानक आंसू की एक बूंद निकलकर शांति की गोदी में गिर पड़ी। शांति ने हल्की मुस्कान के साथ उसके गाल पर हाथ रखा, जैसे वो आंसू पोंछना चाहती हों, पर बिना पोंछे ही सारी तकलीफ अपने दिल में समेट ली।
शांति : क्या हो गया बेटा?
फिर उसकी मां ने उसकी पीठ थपथपाते हुए प्यार से पूछा,
शांति : तुम ऐसे क्यों बैठे हो?
सुनील कुछ नहीं बोला। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वो इस बात को किसी से शेयर नहीं करना चाहता था। वो चुप था, जैसे देवदास की तरह उसने भी अपने दर्द को अपने अंदर समेट लिया था
सुनील : मां, सब कुछ खो दिया मैंने, सब कुछ।
मेरा सपना... वो भी अधूरा ही रह गया। आप जानती हैं ना, मैं कितने सालों से सलीम खान से मिलना चाहता था, बस वो एक मौका चाहता था। अब तो वो मौका भी चला गया, मैं हार गया मैं। मैं हार गया।
शांति : बेटा, तुम सच में सोचते हो कि तुम्हारा सपना खत्म हो गया?
शांति ने अपने बेटे की आंखों में झांकते हुए पूछा,
शांति : बेटा, तुम बस अपने दिल की सुनो।
सुनील : क्या आप नहीं समझ पा रही मै क्या बोल रहा हूं? मेरे पास अब कोई मौका नहीं है। सब कुछ बेकार हो गया।
शांति : मैं सब समझ रही हूं बेटा। तुम खुद को मत भूलो, तुम वही हो जिसने अपने सपनो के लिए क्या क्या नहीं किया। तुमने कभी हार नहीं मानी, तुमने कभी रुकने का नाम नहीं लिया। और यही तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है।
सुनील : लेकिन अब क्या? मैं सलीम खान से नहीं मिल पाया, और अब मुझे मुंबई जाने का मौका भी नहीं मिलेगा। तो क्या फायदा?
शांति ने सुनील की आंखों में उदासी की झलक देखी। उसने उसे गले से लगा लिया,
शांति : तुमने कभी हार नहीं मानी, और यही तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी जीत है। क्या हुआ अगर तुम्हें सलीम से मिलने का मौका नहीं मिला, लेकिन तुम्हारा संघर्ष कभी बेकार नहीं जाएगा। एक दिन तुम्हारे सपने जरूर पूरे होंगे, बेटा।
शांति ने सुनील की आंखों से आंसू पोंछे
शांति : तुम्हें बस इंतजार करना होगा। तुमने जो मेहनत की है, वो एक दिन रंग लाएगी। कभी हार मत मानना, तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा।
शांति की बातों ने सुनील के दिल में हलचल मचा दी। धीरे-धीरे वो अपनी मां की कही बातें सोचने लगा। क्या वो सच में हार मान चुका था? क्या वो अपनी जिद से पूरी तरह टूट गया था? उसने अपने दिल की गहराइयों में झांकते हुए महसूस किया कि उसका संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ था।
सुनील : मां, क्या आप सच में सोचती हैं कि मैं कभी सलीम खान से मिल पाऊंगा?
शांति : बिलकुल, बेटा। तुमसे मिलने के लिए सलीम खान इंतजार कर रहा होगा। तुम्हारा समय आएगा, और तब तुम देखोगे कि तुम्हारा जोश किसी न किसी दिन तुम्हें उसकी मंजिल तक ले जाएगा
सुनील ने एक गहरी सांस ली, जैसे अपनी उलझनों को खुद से दूर करने की कोशिश कर रहा हो। मां की कही बातें उसके दिल में कहीं गूंज रही थीं।
शांति : जिंदगी में सब कुछ वैसे नहीं चलता, जैसे तुम सोचते हो, सुनील। कभी-कभी हमें अपने सपनों से पहले अपनी जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है। यही असली ताकत है।
सुनील को यह बात समझ आ गई थी, लेकिन उसे लगा कि उसके सपनों का रास्ता कहीं धुंधला हो गया है।
सुनील ने थिएटर ग्रुप छोड़ दिया था। जहां एक समय उसका दिल धड़कता था। वहां की रोशनी, तालियां, और वह जुनून जिसने उसे हर बार उसे सलीम खान जैसा महसूस कराया था, अब सब कुछ अतीत बन चुका था। उसकी जगह अब बरेली की फेमस दुकान जय माता दी स्टोर ने ले ली थी।
यह दुकान बरेली के बड़े बाज़ार में थी, और हर दिन वहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी। इलाके में यह दुकान इतनी फेमस थी कि लोग मजाक में कहते, अगर जय माता दी स्टोर पर नहीं मिला, तो समझो दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा।
सुनील के पिता हर दिन सुबह से लेकर शाम तक दुकान पर मेहनत करते। वह चाहते थे कि सुनील अब दुकान संभाले। सुनील ने मां के कहने पर दुकान पर बैठना तो शुरू कर दिया, लेकिन उसका दिल अब भी वहीं था—थिएटर, एक्टिंग और अपने सपनों में।
दुकान पर बैठना भले ही उसकी मजबूरी बन गई थी, लेकिन उसके अंदर का फिल्मी कीड़ा अभी भी पूरी ताकत से ज़िंदा था। अब सुनील ने ठान लिया था कि वो अपने सपनों को मरने नहीं देगा। दुकान पर बैठने के साथ-साथ वह किसी नई योजना के बारे में सोचने लगा। वह जानता था कि उसे मेहनत करनी होगी, लेकिन इस बार वह खुद को हर हाल में साबित करेगा। दुकान पर बैठना उसकी जिम्मेदारी थी, लेकिन मंच पर चमकना उसका सपना। और वह इन दोनों के बीच का रास्ता जरूर ढूंढेगा। जैसे ही दुकान में कदम रखा, पापा ने उसे देखा और अपना माथा पकड़ लिया
पापा : सुनील! फिर लेट! तुझसे टाइम पर आना नहीं होता। जिम्मेदारी कभी सीखी नहीं। कब समझेगा कि जिंदगी कोई फिल्म नहीं है!
सुनील : पापा, जिंदगी भी तो एक फिल्म ही है। और मैं फिल्म “दिल मेरा पागल है” का राहुल हूं, जो अपने सपनों को लेकर जुनूनी है। लेकिन फिलहाल आपका बेटा आपकी दुकान संभालने को तैयार है।
पापा : जी बस! ये फिल्मी डायलॉग अपने पास रख और काउंटर संभाल। मैं थोड़ी देर के लिए बाहर जा रहा हूं। ध्यान रखना, सब सही-सलामत रहे। कोई गड़बड़ न हो।
सुनील : पापा, ये दुकान अब कोच कबीर खान के हाथ में है। सब परफेक्ट रहेगा।
पापा जी दुकान के गेट से बाहर निकले तो उनके कदमों की आवाज़ धीरे-धीरे दूर होती चली गई। सुनील एक पल के लिए ठिठक गया, जैसे उसकी सांसें भी थम गई हों। लेकिन अगली ही पल, दुकान के बाहर का माहौल पूरी तरह बदल गया।
जैसे ही पापा जी की गैरमौजूदगी का एहसास हुआ, दुकान के दरवाज़े पर कस्टमर्स की भीड़ उमड़ पड़ी। लोग चप्पलें घसीटते हुए, पैरों की धूल उड़ाते, हड़बड़ाहट में अंदर घुसने लगे। कुछ के हाथ में लिस्ट थी, तो कुछ बस जल्दी में सामान उठाने आए थे। दुकान में अचानक गहमागहमी बढ़ गई।
सुनील काउंटर के पीछे खड़ा था, लेकिन उसे लग रहा था जैसे वो किसी फिल्मी सीन का हिस्सा बन गया हो। हर कस्टमर उसे किसी किरदार जैसा लग रहा था—
कोई राजेश खन्ना के अंदाज में चश्मा ठीक करते हुए बिस्कुट मांग रहा था, तो कोई अमिताभ बच्चन के स्टाइल में गरजती आवाज़ में, ओ भइया, एक किलो चीनी तौलना! चिल्ला रहा था।
सुनील की आंखों के सामने जैसे एक सिनेमा की रील चल रही थी—
एक बूढ़ी अम्मा धीरे-धीरे चलती हुई अंदर आईं, उनके हाथ कांप रहे थे जैसे स्लो मोशन शॉट में हों। एक लड़का साइकिल से उतरते हुए फिल्मी हीरो की तरह बाल झटकते हुए दुकान में घुसा। एक महिला अपने पल्लू को ठीक करती हुई ऐसे अंदाज में सामान मांग रही थी, जैसे किसी क्लाइमेक्स सीन में डायलॉग बोल रही हो।
सुनील कभी मुस्कराता, कभी हैरान होता। उसके लिए यह भीड़ सिर्फ कस्टमर्स नहीं थे, बल्कि हर कोई एक छोटे-छोटे रोल निभा रहा था, जैसे कोई फिल्म का सेट हो।
तभी दुकान पर एक लड़का आया, जिसने सुनील को पहचान लिया।
लड़का : अरे! आप तो वही हैं न, जो थिएटर में सलीम खान के डायलॉग इतने बढ़िया बोलते थे?
सुनील : हां, वो बस एक वक्त था। अब छोड़ दिया।
लड़का : छोड़ दिया? क्यों भैया? आप तो बहुत अच्छे थे। मैंने आपकी परफॉर्मेंस देखी है। आप तो हीरो जैसे लगते थे।
सुनील : जिंदगी में हर किसी को हीरो बनने का मौका नहीं मिलता। कभी-कभी बैकस्टेज में भी काम करना पड़ता है।
तभी दुकान पर सबसे पहले एक बुढ़िया आई। उसने आते ही सुनील की तरफ बिना देखे, बोलना शुरू कर दिया,
महिला : बेटा , 5 किलो चावल दे दो। लेकिन ध्यान रखना, अच्छे हों। अगर खराब निकले तो वापस आकर शिकायत करूंगी।
तभी सुनील ने चावल का थैला उठाया और मुस्कुराते हुए कहा,
सुनील : माँजी, ये चावल बिल्कुल ‘दिलवाले’ के राज और सिमरन जैसे हैं। एक बार ले जाइए, तो जिंदगीभर चलेंगे।
महिला : ये फालतू की बातें बंद कर और चावल दे। मैं यहाँ सलीम खान की फिल्म देखने नहीं आई।
सुनील : बरेली के लोग मेरे टैलेंट को नहीं समझते। पापा सही कहते हैं, इस दुकान पर सिर्फ ‘गब्बर’ टाइप लोग आते हैं।
इसके बाद एक आदमी दुकान में घुसा। उसके हाथ में लंबी-चौड़ी लिस्ट थी। उसने सीधे कहा,
आदमी : भाई, 200 ग्राम धनिया, 100 ग्राम हल्दी, और आधा किलो बेसन देना। लेकिन अच्छे ब्रांड का हो।
सुनील ने सामान निकालते हुए कहा,
सुनील : साहब, यहाँ जो भी सामान मिलता है, वो ‘कल है या नही’ की तरह फ्रेश और A1 क्वालिटी वाला होता है। चिंता मत कीजिए।
आदमी : फिल्मों के डायलॉग मारना बंद कर और सामान दे। मुझे जल्दी है।
इसी बीच एक महिला आई। उसने आकर कहा,
महिला : भैया, पाँच किलो आटा देना। ध्यान रखना कि थैला फटा हुआ न हो।
सुनील ने बड़े आत्मविश्वास से आटे का थैला उठाया और महिला को थमाया। लेकिन जैसे ही थैला उसके हाथ से छूटा, पूरा आटा फटकर जमीन पर बिखर गया।
महिला : अरे! ये क्या किया? मेरे कपड़े खराब हो गए। मालिक को बुलाओ।”
सुनील : माँजी, प्लीज शांत हो जाइए। यह आटा नहीं, ‘बहुत कुछ होता है’ का राहुल और अंजली है। यह जहाँ भी गिरता है, इश्क फैला देता है।
महिला : अपना फिल्मी डायलॉग बंद कर। तुझे सलीम खान तो मैं बनवाती हूं, रुक तेरा मालिक कहाँ है?
सुनील : सॉरी आंटी आप एक काम करिए, आप प्लीज दूसरा आटा ले जाइए वो भी फ्री में।
सुनील ने किसी तरह महिला को दूसरा आटे से भरा थैला देकर मना लिया, लेकिन उसकी परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई। थोड़ी देर बाद उसके पापा पापा वापिस आ गए। उन्होंने दुकान का हाल देखा तो गुस्से से आगबबूला हो गए। आटा फर्श पर फैला हुआ था, पान मसाले के पैकेट उलटे-सीधे पड़े थे, और सुनील खुद ‘मैं हूं तेरा” फिल्म के मेजर राम की तरह काउंटर पर बैठे-बैठे मुस्कुरा रहा था।
पापा जी : सुनील! ये क्या किया? तुझसे दुकान संभाली नहीं जाती। आटा खराब, ग्राहक नाराज, और तू यहाँ मजे में बैठा है।
सुनील : पापा, आपने कहा था कि दुकान संभालो। मैंने ‘भगवान ने बना दी जोड़ी’ की तरह अच्छे से संभालने की पूरी कोशिश की। लेकिन शायद मैं ‘दिल से’ थोड़ा ज्यादा एक्टिंग कर गया।
पापा जी : तेरे सपने, तेरी एक्टिंग ये दुकान तुझसे नहीं संभलेगी। एक बार तेरा रिजल्ट आ जाए फिर तुझे सीधा करता हूं।
सुनील : पापा, एक दिन जब मैं सलीम खान जैसे बनूंगा, तो ये दुकान नहीं, ये नेशनल म्यूजियम बन जाएगी। तब आप गर्व से कहेंगे कि सुनील पापा कार्णिक मेरा बेटा है।
पापा जी ने उसकी इस बात पर कोई जवाब दिया और खीझते हुए हिसाब-किताब संभालने लगे, और सुनील सलीम खान के बाकी फिल्मों के डायलॉग्स सोचने लगा। तभी धनंजय दुकान पर भागता हुआ आया और हाफने लगा,
सुनील : तुझे क्या हुआ? हाँफ क्यों रहा है?
धनंजय : वो कॉलेज का रिज़ल्ट?
पापा : क्या रहा रिजल्ट, बता?
धनंजय ने सुनील की तरफ उदासी से देखा, आखिर सुनील और धनंजय के कॉलेज का रिजल्ट क्या आया था? क्या वो दोनो फेल हो गए थे? आखिर अब सुनील के सपनो का क्या होगा क्या सुनील को अब अपने पिता की दुकान ही संभालनी पड़ेगी? आखिर अब आगे क्या होगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.