मंच पर खड़ा सुनील, अपनी दिल की धड़कनों को महसूस कर रहा था। चारों तरफ एक अजीब-सी खामोशी पसरी हुई थी। उस खामोशी में न जाने कितनी उम्मीदें, न जाने कितनी कहानियां छुपी थीं। दर्शकों की नज़रें उसकी तरफ थीं, हर चेहरा किसी जवाब की तलाश में था। मंच पर जलती रोशनी के बीच सुनील की आंखों में एक अलग ही चमक थी। उसने चारों ओर नजर डाली, कुछ चेहरों में support, कुछ में शक, और कुछ में जोश था।
सुनील ने गहरी सांस ली। ये पल उसकी मेहनत का नतीजा था, उसके सपनों का पहला पड़ाव। उसके हाथ थोड़े कांप रहे थे, लेकिन दिल में विश्वास था। उसने माइक को थोड़ा और करीब किया, जैसे अपनी आवाज़को और ज्यादा ताकतवर बनाना चाहता हो। मंच के पीछे रिया, धनंजय, और मिस्टर वर्मा खड़े उसे देख रहे थे। रिया के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, मानो वो कह रही हो, तुम ये कर सकते हो।
सुनील ने एक पल के लिए अपनी आंखें बंद कीं। उसके कानों में सलीम खान के शब्द गूंजे, अगर किसी चीज़ को पूरे मन से चाहो, तो पूरी दुनिया उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है। ये एक ऐसा पल था, जहां वो खुद को सलीम खान के सामने खड़ा महसूस कर रहा था।
उसने अपनी आंखें खोलीं और दर्शकों की तरफ देखते हुए बोलना शुरू किया,
सुनील (शुरुआत करते हुए) : हेलो my name is khan, Saleem khan
मैं उस शहर का लड़का हूं, जहां सपनों का मोल नहीं होता। जहां ख्वाब देखना एक गुनाह माना जाता है। लेकिन मैंने ये गुनाह किया। मैंने सपने देखे, और उन्हें जीने की कोशिश की।
उसके शब्द सीधे दर्शकों के दिलों में उतर रहे थे। उसकी आवाज़में ऐसा दर्द था, जो उसकी कहानी को सच साबित करता था। जैसे-जैसे वो बोलता गया, उसकी आवाज़में गहराई बढ़ती जा रही थी।
सुनील (आगे बढ़ते हुए) : लोगो ने कहा था, सपने मत देखो, क्योंकि सपने देखने वाले अक्सर हार जाते हैं। लेकिन मैंने उनके खिलाफ जाकर ख्वाब देखा। मैंने देखा कि मैं एक दिन उस मुकाम पर पहुंचूंगा, जहां मुझे देखकर मेरे शहर का हर लड़का कहेगा कि सपने देखना गलत नहीं है।
दर्शकों में से कुछ लोगों ने धीरे-धीरे सिर हिलाया, जैसे वो उसकी बातों से सहमत हों। सुनील की आंखें अब नम हो चुकी थीं, लेकिन ये आंसू दुख के नहीं थे। ये आंसू उसके जुनून का हिस्सा थे।
उसने अपने हाथों को हल्का फैलाया
सुनील : आज मैं यहां खड़ा हूं, अपने ख्वाब को जीने के लिए। ये ख्वाब सिर्फ मेरा नहीं है, ये उन सबका है, जो खुद को किसी रोशनी से जोड़ना चाहते हैं। जो अपनी जिंदगी को बेहतर बनाना चाहते हैं।
मंच की रोशनी थोड़ी धीमी हो गई, और उसकी आवाज़पूरे हॉल में गूंजने लगी। हर शब्द दर्शकों को उसकी कहानी का हिस्सा बना रहा था। उसकी आंखों में अब भी उम्मीद की चमक थी, और उसके हर हाव-भाव में आत्मविश्वास था।
सुनील : अगर हम अपने ख्वाब को जीने की कोशिश करते रहें, तो एक दिन वो ख्वाब सच हो ही जाएगा।
जैसे-जैसे सुनील के शब्द हवा में गूंजते गए, उसकी आवाज़ में एक अनोखी गहराई और ताजगी भरती चली गई। हर डायलॉग के साथ उसके चेहरे के हाव-भाव और आंखों की चमक और तेज़ होती जा रही थी। उसकी सांसें तेज़ थीं, लेकिन उसका कॉन्फिडेंस उससे भी ज्यादा मजबूत। उसके शब्द सिर्फ स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं थे—वो उसके दिल से निकल रहे थे, जैसे हर एक लाइन उसके अपने दर्द, संघर्ष और सपनों की कहानी कह रही हो।
हॉल में बैठे दर्शकों की आंखें सुनील पर टिकी थीं। हर कोई उसके डायलॉग्स में डूब चुका था। सुनील की आंखों से आंसू बहने लगे, लेकिन ये आंसू दुख के नहीं थे—ये उन सपनों के थे जिन्हें उसने अपनी आवाज़ में पिरो दिया था।
सुनील : क्योंकि ये सिर्फ मेरा संघर्ष नहीं है, ये हर उस इंसान की कहानी है, जिसने कभी हार मानने से इनकार किया।
उसके आखिरी शब्द जैसे पूरे हॉल में गूंज उठे।
फिर एक पल के लिए, सब कुछ थम सा गया। सुनील की सांसें भारी थीं, लेकिन दिल हल्का महसूस हो रहा था। वो स्टेज पर खड़ा था, अकेला, लेकिन शायद पहली बार उसे इतना पूरा महसूस हुआ।
कुछ सेकंड का सन्नाटा... फिर अचानक तालियों की गूंज पूरे हॉल में भर गई।
धीरे-धीरे वो तालियां गूंज में बदल गईं, जैसे हर कोई अपने-अपने तरीके से सुनील के जज़्बे को सलाम कर रहा हो।
सुनील के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान खिल गई। वो जानता था—उसने अपना सबसे अच्छा दिया है।
उसके कदम मंच से बाहर की ओर बढ़े, लेकिन वो जोश अब भी उसके दिल में धड़क रहा था।
मंच के पीछे रिया, धनंजय और मिस्टर वर्मा उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
उसका दिल गर्व से भरा हुआ था। वो जानता था कि ये उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा दिन था—जहां उसने सिर्फ दूसरों को नहीं, बल्कि खुद को साबित किया था।
स्टेज की रोशनी भले ही धीमी हो गई थी, पर सुनील के अंदर जलती उम्मीद की लौ अब पहले से कहीं ज्यादा तेज़ थी।
रिया (मुस्कुराते हुए) : सुनील, तुमने कमाल कर दिया! मुझे पूरा भरोसा है, इस बार तुम जरूर जीतोगे।
धनंजय (जोश में) : हाँ, भाई! तूने सबकी छुट्टी कर दी। अब तो ये ट्रॉफी पक्की तेरी है।
सुनील ने हल्की मुस्कान दी, पर उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो चुकी थीं। पसीने की हल्की बूंदें उसकी पेशानी पर चमक रही थीं, मगर उसने खुद को संभाले रखा। उसकी नज़रें अब अनाउंसर पर टिकी थीं, जो मंच पर खड़ा था, हाथ में एक सफेद लिफाफा पकड़े हुए।
पूरा हॉल अचानक खामोश हो गया, जैसे किसी ने एक पल के लिए समय को रोक दिया हो। दर्शकों की निगाहें मंच पर जमी थीं, और उस सन्नाटे में सिर्फ अनाउंसर की सांसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। सुनील के कानों में तालियों की गूंज अभी भी हल्की-हल्की बज रही थी, मगर अब वो सब धुंधला सा लग रहा था।
अनाउंसर : दोस्तों, ये फेस्टिवल हमारे शहर के सभी प्रतिभाशाली कलाकारों के लिए था। लेकिन हर प्रतियोगिता में एक ही विजेता होता है। और इस फेस्टिवल का विजेता है...
सुनील का दिल तेज़ ी से धड़क रहा था। उसने आंखें बंद कर लीं और सलीम खान की एक लाइन याद की,
कहते हैं अगर किसी चीज़ को पूरे मन से चाहो, तो पूरी दुनिया उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है।
अनाउंसर ...राहुल शर्मा!
हॉल तालियों से गूंज उठा, लेकिन सुनील के लिए जैसे सबकुछ थम गया। उसका दिल टूट चुका था। क्योंकि अनाउंसर ने जो नाम लिया, वो सुनील का नहीं था। वो अपनी जगह पर खड़ा रहा। रिया और धनंजय ने उसे सहारा देने की कोशिश की, लेकिन वो कुछ बोल नहीं पाया।
रिया (हैरानी से) : क्या? राहुल शर्मा? ये कैसे हो सकता है? सुनील की परफॉर्मेंस उससे कहीं बेहतर थी!
धनंजय : हद है! सबकुछ फिक्स है। यहाँ भी राजनीति घुस गई।
मिस्टर वर्मा : सुनील, मुझे पता है कि ये तुम्हारे लिए कितना मुश्किल है। लेकिन जिंदगी में ऐसे मौके बार-बार आते हैं। हमें हार मानने की जरूरत नहीं है।
लेकिन सुनील शांत खड़ा रहा। उसकी आंखें लाल थीं, और चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
रिया ने सुनील का हाथ पकड़ा और उसे वहां से ले जाने की कोशिश की।
रिया : चलो, सुनील। यहां खड़े रहकर कुछ नहीं बदलेगा। तुमने अपना सबसे अच्छा दिया। ये उनकी हार है, तुम्हारी नहीं।
लेकिन सुनील चुपचाप था। वो धीरे-धीरे हॉल से बाहर निकला और एक कोने में जाकर बैठ गया। रिया उसके पास गई।
रिया : सुनील, तुम्हें पता है, सलीम खान ने भी अपनी जिंदगी में बहुत संघर्ष किया था। उन्होंने भी हार देखी थी। पर उन्होंने कभी अपने सपने को मरने नहीं दिया। तुम भी ऐसा ही कर सकते हो। ये सिर्फ एक फेस्टिवल था। असली लड़ाई अभी बाकी है।
सुनील : रिया, क्या तुम्हें लगता है कि मैं कभी मुंबई जा पाऊंगा? क्या मेरा सपना सिर्फ सपना ही रहेगा? मैंने अपना सबकुछ दे दिया, फिर भी हार गया। अब कैसे यकीन करूं कि जिंदगी मुझे अगला मौका देगी?
रिया : सुनील, तुम्हारा सपना अभी खत्म नहीं हुआ है। तुम हार नहीं मान सकते। हार तो वो होती है, जब इंसान कोशिश करना छोड़ देता है।
धनंजय : सर, ये फिक्स था। मुझे पहले से शक था। उस राहुल शर्मा की परफॉर्मेंस इतनी खराब थी, फिर भी उसे जीत दे दी गई।
मिस्टर वर्मा : मुझे भी यही लग रहा है। कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर हुई है।
धनंजय : क्या? राहुल बरेली के विधायक का भतीजा है? ये तो साफ घपला है। उसी के चाचा ने उसे जीत दिलाई है। ये फेस्टिवल नहीं, मजाक है।
मिस्टर वर्मा : सुनील, हमें सच्चाई पता चली है। ये फेस्टिवल फिक्स था। जो लड़का जीता है, वह विधायक का भतीजा है। उसे उसके चाचा की वजह से ये जीत मिली है।
धनंजय (गुस्से में) : यार, हर जगह यही हालत है। मेहनत करने वालों को कभी उसका फल नहीं मिलता। बस पैसा और पावर ही चलता है।
सुनील ने उनकी बातें सुनीं, लेकिन वो कुछ नहीं बोला। वो चुपचाप वहां से उठा और बाहर चला गया। रिया ने उसे रोकने की कोशिश की
रिया : सुनील, सुनो तो सही।
सुनील : रिया, मैं ठीक हूं। बस थोड़ा अकेला रहना चाहता हूं।
वो धीरे-धीरे अपने घर की तरफ बढ़ गया, मानो पूरी दुनिया उसकी पीठ पर बोझ बन गई हो। रास्ते भर उसके दिमाग में यही सवाल घूमते रहे "क्या मेरी मेहनत का कोई मतलब नहीं? क्या मेरा सपना सिर्फ एक सपना ही रहेगा?
उसे सलीम खान की वो लाइन याद आई,
हार के डर से कभी जीतने की कोशिश मत छोड़ना, कोशिश करते रहना।
लेकिन आज, वो खुद को कमजोर महसूस कर रहा था। उसे लगा जैसे उसका सपना उससे कोसों दूर हो गया हो।
सुनील घर पहुंचकर अपने कमरे में चला गया। उसने दरवाजा बंद किया और चुपचाप अपनी टेबल पर रखे सलीम खान के पोस्टर को देखा। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन कहीं न कहीं, उसके दिल में एक छोटी-सी उम्मीद अब भी बची हुई थी।
सुनील अपने कमरे में अकेला बैठा था, उसकी आंखों में गहरी निराशा थी। पूरे कमरे में सलीम खान के पोस्टर हर दीवार पर लगे थे। वह एक-एक पोस्टर को देख रहा था, जैसे उनमें कहीं उसका सपना और उसकी उम्मीदें समाई हुई हों। हर पोस्टर में सलीम खान की मुस्कान थी, लेकिन सुनील की आंखों में अब वही मुस्कान खो चुकी थी।
सुनील : क्या मेरे नसीब में आपसे मिलना ही नहीं है?
उसने अचानक सलीम के पोस्टर की तरफ देखकर बड़बड़ाया, उसकी आवाज़में गहरी हताशा थी।
सुनील : पहले आप बरेली आने वाले थे, लेकिन आप नहीं आए। मैंने तो सूट-पैंट भी ले लिया था, सोचा था कि इस बार मौका मिलेगा। फिर अब जब मुंबई जाने का मौका आया था, आपसे मिलने का, तो वो भी हाथ से निकल गया। शायद मेरा नसीब ही खराब है।
सुनील ने फिर सिर झुका लिया। उसकी नजरें वही पोस्टर और वहां की दीवारों पर थीं, लेकिन उसकी सोच कहीं और चली गई थी।
सुनील ने अब अपना सिर अपनी हथेलियों में छुपा लिया और गहरी सांस ली। एक-एक पल उसे भारी महसूस हो रहा था। वो अपनी मेहनत को सोचता और फिर अपने टूटे सपनों को। वो उन हजारों दिनों की कड़ी मेहनत को याद करता जब उसने रात-रात भर जागकर अपनी परफॉर्मेंस पर काम किया था, उन पलों को याद करता जब उसने रिया और मिस्टर वर्मा के साथ घंटों प्रैक्टिस की थी। लेकिन आज, वो सब कुछ बेकार लग रहा था।
सुनील : क्या सच में मेरा सपना कभी पूरा नहीं हो सकता?
कमरे में घना सन्नाटा था, और सुनील की निराशा हर कोने में फैली हुई थी। वो ये सोचने लगा था कि शायद वो कभी उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाएगा, जहां वो सलीम खान से मिल पाएगा। क्या उसकी मेहनत बेकार गई? क्या ये सब एक सपना था, जो कभी पूरा नहीं हो सकता था?
तभी अचानक दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई। आखिर दरवाज़े पर कौन था? सुनील को क्या अभी भी कुछ सरप्राइज मिलना बाकी था?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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