माया जल महल के बाहर पहुंच जाती है।

माया- "सुनीता...तू यही बाहर इंतजार कर, मैं बात करके आती हूं।"

सुनीता- "ठीक है राजकुमारी जी।"

माया- "अब तू तो मेरी टांग मत खींच। अब मुझे यह खेल खत्म करना है। आज सच- सच बता दूंगी मैं राजकुमार को।"

सुनीता- "क्या पता उसने भी कुछ बताने ही यहां पर बुलाया हो?"

माया- "देखते हैं, क्या होता है?"

माया अर्जुन के कहने पर जल महल के अंदर जाती है। पूरा जल महल इस तरह सजाया गया था जैसे बहुत बड़ा फंक्शन हो। हजारों लाल रंग के गुब्बारे से जल महल सजा हुआ था। लाइटिंग इतनी शानदार थी की कोई भी मंत्र मुग्ध हो जाए। वहां की सजावट देख माया हैरान हो गई। वो इस सजावट में इतनी खो गई की उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या कहने आई थी।

वो अचानक वह पलटती है और उसके सामने सूट बूट में अर्जुन राठौर खड़ा हुआ रहता है। अर्जुन को देखकर एकदम सहम जाती है।

माया (हड़बड़ाकर)- "अरे...आप आ गए?"

अर्जुन- "कितना इंतजार करवाया आपने, मैं कब से आपका इंतजार कर रहा था।"

माया- "सॉरी...सॉरी मुझे लेट हो गया, पर मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं।"

अर्जुन ने होठों पर उंगली रखते हुए कहा- "नहीं अभी कुछ नहीं कहना है, अब इतना बड़ा इंतजाम किया है मैंने। इतनी सजावट की है तो कुछ स्पेशल ही कहना होगा मुझे, तभी की है और आप अगर यहां पर आई हो तो इसका मतलब यह है कि आप मेरी बात सुनना चाहती हो। तो बस मुझे अपनी बात बोलने दीजिए।"

माया- "पर अर्जुन जी, मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है।"

अर्जुन- "जरूरी बात सब बाद में, पहले जो मैं कहना चाह रहा हूं वो सुन लीजिए।"

अर्जुन एक चुटकी बजाता है और वहां की सारी लाइट डिम हो जाती है। सिर्फ माया के ऊपर एक फ्लैशलाइट चमकती है जो सिर्फ उसी के ऊपर रहती है। 

अर्जुन माया के सामने अपने घुटनों पर बैठ जाता है और अपनी जेब से एक हीरे की अंगूठी माया की तरफ करता है। 

माया- "राजकुमारी मायाकुमारी को मेरी तरफ से एक छोटा सा तोहफा।"

माया अपने आप को सच में राजकुमारी समझने लगी थी। वो इस सजो सजावट में और अर्जुन के प्रभाव में इतना खो गई थी कि वो जो खाने आई थी वो उसे याद ही नहीं रहा। वो अर्जुन से बहुत ज्यादा अट्रैक्ट हो गई थी। अब उसे सिर्फ अर्जुन की बातें ही सुनाई दे रही थी। 

अर्जुन- "प्रिंस...हमारी शादी तय हो चुकी है पर मैं चाहता था कि मैं ऑफीशियली आपको शादी के लिए प्रपोज करूँ,  और इसीलिए मैंने आपको यहां पर बुलाया है। उम्मीद है आपको बुरा नहीं लगा होगा।"

माया "ना" में अपना सर हिला देती है।

अर्जुन- "मायाकुमारी...मैं आपसे शादी करना चाहता हूं, और आपको देखते ही मुझे आपसे प्यार हो गया है। क्या आप मेरे प्यार को कबूल करेंगी?"

यह सुनते ही माया सातवें आसमान पर पहुंच जाती है। पहली बार किसी लड़के ने माया को इस तरह प्रपोज किया था। माया का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसे अपना दिल संभल नहीं रहा था मानो अभी बाहर आ जाएगा। माया की आंखों में खुशी के मारे आंसू टपकने लगे थे क्योंकि पहली बार उसके पास एक रिश्ता बनाने का मौका था। 

अर्जुन- "राजकुमारी मायाकुमारी जी, जल्दी आपका जवाब दीजिए। मैं घुटनों पर बैठा हूं। क्या है आपका जवाब, हां या ना?"

माया- "मेरा जवाब कुछ भी हो, आपकी शादी तो मुझसे हो रही है ना, पर आपकी बात का जवाब मैं देना चाहती हूं। मैं आपसे प्यार करने लगी हूं, और आपसे ही शादी करूंगी।"

यह सुनते ही अर्जुन का दिल भी तेजी से धड़कने लगता है। उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। वो माया की तीसरी उंगली में अपनी डायमंड रिंग पहना देता है। 

माया बहुत खुश हो जाती है और अचानक उसे ख्याल आता है कि वह क्या कहना है आई थी अर्जुन से।

माया असमंजस मे रहती है। मन मे अन्तर्ध्वन्ध चल रहा था।

माया (अपने आप से)- "क्या कर रही है माया, तू इसकी हकदार नहीं है। ये किसी और का हक है और अर्जुन कोई और समझ के तुझे प्रपोज कर रहा है। क्या कर रही है तू? बता दे अपना सच बता दे।"

दूसरा मन- "माया...क्या कर रही है? जब तक यह झूठ तेरे साथ है अर्जुन तेरे साथ है, और आज तक तेरा अपना कहलाने वाला कोई रिश्ता नहीं है। पहली बार कोई रिश्ता बन रहा है तो उसे झूठ की बुनियाद पर मत बना, जाने मत दे। सच मत बताना।"

माया- "क्या सोच रही हैं आप?"

माया- "कुछ नहीं, कुछ नहीं।"

अर्जुन- "आपको भी तो कुछ कहना था ना मुझसे?"

माया- "मुझे...नहीं नहीं...कुछ खास नहीं।"

अर्जुन और माया कुछ फॉर्मल बातें करते हैं और फिर अर्जुन खुद माया को छोड़ने जल महल के बाहर आता है। वहां पर सुनीता पहले से खड़ी हुई होती है। माया अर्जुन से विदा लेती है।

अर्जुन- "क्या मैं कहीं पर छोड़ दूं?"

माया- "नहीं, हम यहाँ राजकुमारी बनकर नहीं आए, एक आम इंसान बनकर आए हैं। ऑटो से ही जाएंगे।"

अर्जुन- "ठीक है, मुझे आपका इंतजार है अपनी जिंदगी में।"

तब माया मुस्कुरा कर ऑटो में बैठ जाती है और सुनीता और माया दोनों हॉस्टल के लिए निकल जाते हैं।

हॉस्टल जाकर माया अपने कमरे में जाती है।

सुनीता- "बहुत हो गया यार, अब तो तुझे बताना ही पड़ेगा की अंदर क्या हुआ था? पूरे रास्ते से पूछते आ रही हूं बताना क्या हुआ?"

माया- "क्या बताऊं सुनीता, मैं गई तो थी अपनी बात बताने, पर प्रिंस की सारी बातें सुनी,  पहली बार किसी इंसान ने मुझे इस तरह से प्रपोज किया?"

सुनीता- "क्या...क्या बोल रही है तू?"

माया सुनीता को सारा हाल सुनाती है और सुनीता का मुंह खुला का खुला रह जाता है।

सुनीता- "क्या कह रही है, क्या कर दिया ये तूने?"

माया- "तू भी ना, पहले तो मुझे बड़ा चढ़ा कर कहती थी कि हां कर दे, जो होगा देखा जाएगा और अब कह रही है क्या कर दिया मैंने।"

सुनीता- "माया, मजाक तक ठीक था और तुझे सगाई की डेट भी नहीं पता है।"

माया- "मुझे पता है कि प्रिंस मुझे कभी नहीं मिलेगा और जिस तरह से उसने मुझे प्रपोज किया ना, आज तक किसी ने नहीं किया है। मैं मना ही नहीं कर पाई चाहकर भी, वो बात भी नहीं बोल पाई जो मैं कहना चाहती थी। चाहे 2 दिन, 4 दिन, 6 दिन, 8 दिन, जितने दिन भी हो। मैं अर्जुन की मंगेतर बनकर जीना चाहती हूं। मुझे मालूम है कि मैं मेरे लिए चांद तोड़ने के बराबर है। कुछ पल की खुशी से मैं जिंदगी भर खुश हो जाऊंगी और सगाई के पहले खुद अर्जुन को जाकर सच बता दूंगी, पता नहीं मेरी हिम्मत क्यों नहीं हुई। आज बोलना चाहती थी पर अर्जुन ने इतनी अच्छी तरह से प्रपोज किया कि मेरी हिम्मत ही नहीं हुई बोलने की।"

सुनीता को माया की बात सुनकर थोड़ा डर लगने लगा था।

इधर उसी रात महाराजा रतन सिंह को महाराजा मान सिंह का फोन आता है।

रतन सिंह- "हां मानसिंह बोलो।"

मानसिंह फोन पर कुछ कहता है और रतन सिंह के माथे पर सिलवटें पढ़ने लगती है।

रतनसिंह- "क्या बोल रहे हो?"

मानसिंह- "हमें सगाई दो दिन के अंदर ही करनी पड़ेगी, वरना अगले 6 महीना तक कोई मुहूर्त नहीं है।"

रतन सिंह- "दो दिन में कैसे तैयारी होगी?"

मानसिंह- "तैयारी क्या करनी है, हमें बस लड़के लड़कियों को मिलवाना है, रिंग बदलना है, मेहमानों को फोन करना है बाकी सारी तैयारियां हमें करनी ही होगी। 6 महीने नहीं रुक सकते और ना ही माया रुकेगी, उसे भी न्यूयॉर्क वापस जाना है।"

रतन- "ठीक है मान, तो फिर सगाई दो दिन में ही होगी।"

मानसिंह- "ठीक है।"

उधर राजकुमारी के कमरे का दरवाजा एक दासी खोल देती है।

राजकुमारी मायाकुमारी- "क्या हुआ, क्या खबर लायी हो...?"

दासी- "राजकुमारी जी, 2 दिन के बाद आपकी रतनगढ़ के राजकुमार अर्जुन सिंह राठौर के साथ सगाई पक्की हो चुकी है। महाराज ने अभी बात की है।"

यह सुनकर राजकुमारी माया कुमारी के होठों पर एक मुस्कान आ जाती है।

मायाकुमारी- "बचपन से जिस दिन का मैं इंतजार था, वो दिन आ चुका है। अर्जुन उस दिन मैं अपने दिल की बात तुम्हें कहूंगी।"

राजकुमारी शर्मा के वापस आईना देखने लगती है।

आखिरकार 2 दिन बाद सगाई का दिन आ जाता है और सुनीता सुबह- सुबह जल्दी बेड पर सोई हुई माया को झिंझौड़ कर उठाने लगती है। 

माया (चिढ़ते हुए)- "क्या हुआ, क्या कर रही है तू, पागल हो गई है क्या, सोने दे मुझे?"

सुनीता- "अरे सोएगी तो सोती रह जाएगी, उधर तेरी दुनिया उजड़ जाएगी।"

माया (नींद में) - "अरे ऐसा क्या हो गया?"

सुनीता- "तेरे प्रिंस अर्जुन की सगाई है आज।"

यह सुनते ही माया के जैसे होश उड़ गए, उसकी नींद जाने कहां उड़ गई। 

माया (आँख मसलते हुए)- "क्या बोल रही है तू, क्या बकवास कर रही है?"

सुनीता- "पूरे रतनगढ़ में खबर फैल चुकी है। आज रतनगढ़ के राजकुमार की सगाई हो रही है सज्जनगढ़ की राजकुमारी के साथ। नगर भोज का आमंत्रण है।"

यह सुनते ही माया की आंखों से आंसू बहने लगते हैं।

माया- "नहीं...ये नहीं हो सकता।"

सुनीता- "मैंने तो पहले ही तुझे कहा था कि उसे सच बता दे।"

माया- "मुझे क्या पता था कि 2 दिन में सगाई हो जाएगी, मुझे तो लगा था कि होंगे कुछ दिन, कुछ दिन उसके साथ बिता लूंगी।"

सुनीता- "अब देर मत कर, जल्दी से तैयार हो, हमें निकालना है।"

माया - "मुझे भी जाना है, मुझे अर्जुन से मिलना है। उसे सच बताना है।"

सुनीता- "ओ महारानी, आप राजकुमारी सिर्फ अर्जुन के लिए हो, उसकी नजरों में हो। दुनिया की नजरों में नहीं हो, तुम्हें वहां आम इंसान बनकर ही जाना पड़ेगा और राजघराने के फंक्शन की जगह पर तो कोई भी आम आदमी नहीं जा सकता। वहां सिर्फ VVIP लोग शामिल होंगे।"

माया- "मुझे कुछ नहीं पता, मुझे आज के आज अर्जुन से मिलना है, उसे सच बताना है।"

सुनीता- "चल तू तैयार हो, हम चलते हैं, कुछ जुगाड़ करेंगे।"

माया- "ठीक है।"

माया तैयार होने चली जाती है।

अर्जुन हंसी खुशी राजमहल में अपनी सगाई की तैयारी में लगा रहता है। अर्जुन पूरी तरह से तैयार हो जाता है और उसे पगड़ी पहनाते हुए पदमा देवी पूछती है।

पद्मदेवी- "कैसे लग रहे है हमारे कुँवर?"

अर्जुन- "अब ये तो आप ही बता सकती हैं, कोई पूछने की बात है मां, अच्छा ही लग रहा होऊंगा, पर मुझे समझ में नहीं आता सगाई तो कुछ दिन बाद होने वाली थी, अचानक से दो ही दिन में सगाई?"

पदमा देवी- "अरे बेटा, माया को न्यूयॉर्क वापस जाना है। उसकी छुट्टियां खत्म होने वाली है और अगले 6 महीने तक कोई अच्छा मुहूर्त नहीं है। उनके गुरुजी ने है तारीख निकाली है। तो आज सगाई का प्रोग्राम रख दिया।"

अर्जुन (मन में)- "चलो अच्छा है, आज फिर से आपसे मुलाकात हो जाएगी।"

पदमा देवी अर्जुन की नजर उतारने लगती है।

पद्मदेवी- "कितने अच्छे लग रहे हैं, कितने सुंदर लग रहे हैं हमारे कुँवर, लगता है कुँवर को काला टीका लगाना ही पड़ेगा, कितनों की नजर लगेगी आज।"

अर्जुन (बडबडाते हुए)- "मुझे तो सिर्फ एक की ही नजर लगनी चाहिए।"

पदमा देवी- "क्या कहा आपने?"

अर्जुन- "कुछ नहीं माँ,  कुछ नहीं।"

सुनीता और माया अफरा तफरी में राजमहल पहुंच जाते हैं। तब वहां पर उन्हें दरबान रोक लेता है।

दरबान- "कहां जा रही है आप लोग?"

सुनीता- "जी, हमें सगाई के फंक्शन में जाना है।"

दरबान दोनों को ऊपर से नीचे तक देखता है।

दरबान- "कौन है आप लोग..?"

सुनीता- "मेरा नाम सुनीता है, और ये मेरी सहेली माया, हम राजकुमार को जानते हैं। हमें सगाई में बुलाया है।"

दरबान- "अच्छा...आपको सगाई में बुलाया है?"

माया- "हां, पर आप इतनी बातें क्यों कर रहे हो, गेट खोलो, हमें अंदर जाना है।"

दरबान- "1 मिनट, 1 मिनट, जरा आप 1 मिनट साइड हो जाइए।"

माया और सुनीता एक साइड में खड़ी होती है और तब उनके पीछे से लंबी- लंबी बड़ी- बड़ी गाड़ियां, एक के बाद एक गेट के अंदर जाती है और दरबान उन्हें सेल्यूट मारता है। 

सुनीता और माया एक दूसरे का मुंह देखती है।

दरबान- "इनविटेशन इसे कहते हैं, चलो जाओ यहां से। मेरे पास इतना टाइम नहीं है कि तुम लोगों से बहस करूँ, दूसरे गेट से आओ, जहां से आम जनता को बुलाया गया है वहीं से तुम्हारी एंट्री है, वहीं से भोजन करके वहीं से बाहर निकलना है। राजकुमार से मिलने की परमिशन किसी को नहीं है, सिर्फ वीआईपी लोगों को है।"

 

आगे क्या होगा?

क्या सुनीता और माया फंक्शन में जा पाएंगी? क्या अर्जुन को सच पता चलेगा? क्या गुजरेगी राजकुमारी पर जब उसे सच्चाई पता चलेगी?

जानने के लिए पढिये कहानी का अगला भाग।

 

 

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