अर्जुन को देखकर माया के होश उड़ जाते हैं। उसकी आंखें बड़ी-बड़ी हो जाती है। उसका मुंह खुला का खुला रह जाता है उसके माथे से पसीना टपकने लग जाता है। 

माया (घबराकर) -"क्या कर दिया तूने माया, सीधे प्रिंस से पंगा ले लिया, और खुद राजकुमारी बनकर उनके सामने चली गई, अरे तू तो नकली राजकुमारी थी। वो तो असली के राजकुमार है। हे भगवान...क्या कर दिया मैंने। तालाब में रहकर मगर से बैर कर लिया, माया तू तो गई...  तू तो गई। अब प्रिंस तुझे छोड़ेगा नहीं, तेरी खैर नहीं है। अगर सलामती चाहती है तो यहां से चली जा।"

माया उल्टे पैर वहां से चली जाती है बिना किसी को बताएं।

शर्मा जी -"आईये रानी सा, आईये कुँवर सा... अंदर चलिए।"

शर्मा जी अपने ऑफिस में दोनों का बहुत स्वागत करवाते हैं। चाय नाश्ता उनके सामने रखते थे।

महारानी पदमा देवी -"शर्मा जी हम कुछ नहीं लेंगे। हम तो सिर्फ अपने कुँवर के हाथों आपके आश्रम को कुछ डोनेशन देने आए हैं। हम चाहते हैं कि अनाथ बच्चों को किसी भी तरह की कोई कमी ना रहे। वैसे भी हमारे ट्रस्ट की तरफ से उनकी स्कूली शिक्षा तो हो ही रही है, पर बाकी जरूरत की चीज भी इन्हें मिलती रहे इसका हम ध्यान रखेंगे।"

शर्मा जी -"आप जैसे लोगों की वजह से ही यह दुनिया में अच्छाई अभी तक जिंदा है, अब देखिए ना आपसे कुछ ही देर पहले एक अनाथ लड़की भी यहां पर थी जो नौकरी करती है और अपने खर्च निकाल कर बाकी सारा पैसा ऐसा अनाथ आश्रम में दान कर रही है। माया नाम है उसका।"

माया का नाम सुनते ही अर्जुन के कान खड़े हो जाते हैं।

अर्जुन -"क्या नाम बताया आपने?"

शर्मा जी -"जी...माया, अभी अभी यहीं पर है आश्रम में।"

अर्जुन -"क्या आप उन्हें बुला सकते हैं?"

पद्मदेवी -"कुँवर...क्या कर रहे हैं आप, उस लड़की का नाम माया है, वो राजकुमारी माया नहीं है।"

अर्जुन -"माँ..हम तो सिर्फ देखना चाहते हैं कि वो लड़की कौन है जो अनाथ बच्चों के लिए इतना कर रही है।"

शर्मा जी -"हां हां बिल्कुल, वो तो चाहती थी आपसे मिलना।"

तब शर्मा की घंटी बजा कर प्यून को बुलाते हैं और प्यून आकर खड़ा होता है।

शर्मा जी -"बंसीलाल...जरा वो माया बेटी को बाहर से बुला देन, वो बच्चों के साथ पार्क में बैठी है।"

बंसीलाल -"माया दीदी तो जा चुकी है।"

शर्मा जी (हैरान) -"पर अभी-अभी तो उसने कहा था कि वह रानी सा से मिलना चाहती है।"

पदमा देवी -"शर्मा जी, हम उस लड़की से फिर कभी मिल लेंगे, हम जरा जल्दी में है। क्या हम जो काम करने आए हैं वो कर ले। मिलना जुलना तो बाद में भी होता रहेगा।"

शर्मा जी -"जी जी ठीक है।"

महारानी अपने बैग में से चेक बुक निकलती है और उसमें से 10 लाख का चेक लिखकर साइन कर देती है और अर्जुन का देती है।

पद्मदेवी -"कुँवर सा...चेक शर्मा जी को दे दीजिए।"

अर्जुन के हाथों 10 लाख का चेक शर्मा जी ग्रहण कर लेते हैं।

शर्मा जी -"धन्यवाद आपका, बहुत-बहुत धन्यवाद महारानी सा।"

पद्मदेवी -"शर्मा जी और भी कोई जरूरत हो तो आप मुनीम जी को बतला दीजिएगा, पर बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं आनी चाहिए।"

रानी सा अपनी बातें कर रही थी पर अर्जुन का ध्यान उस माया नाम पर ही टिका हुआ था।

अर्जुन (मन मे) -"पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम यहीं कहीं आसपास हो राजकुमारी। बहुत इच्छा है आपसे दोबारा मिलने की।"

माया आश्रम से बाहर आती है, बहुत घबराई हुई रहती है। आश्रम से थोड़ी दूर आने के बाद एक लंबी सांस लेती है अपने बैग में से अपनी बोतल निकलती है और पानी के दो घूट पीती है।

माया -"थैंक गॉ, मेरा सामना राजकुमार से नहीं हुआ, वरना आज तो भांडा फूट जाता।"

राजकुमारी पानी पीकर बोतल बैग में रखती है और पलट कर जैसे ही जाने लगती है कि वो किसी से टकरा जाती है। जब वह देखती है तो उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है। 

सामने अर्जुन सिंह राठौड़ खड़ा हुआ था। अर्जुन को देखते ही माया के पैरों तले जमीन खसक जाती है।

अर्जुन को अपने सामने यूं देखकर माया घबरा जाती है पर वो ना घबराने का एक्टिंग करती है।

माया -"आप कौन है?"

अर्जुन -"ऊपर वाले ने इतनी बेकार सूरत भी नहीं बनाई है कि एक बार जो देखे वो इतनी जल्दी भूल जाए, पर आप तो 24 घंटे में भूल गई हमें।"

माया (बडबडाते हुए) -"हम...हम राजकुमारी हैं, हम हजारों लोगों से मिलते हैं। हम किस-किस को याद रखेंगे।"

अर्जुन -"उसे तो याद रखेंगे ना, जिसके साथ आपका जीवन भर का रिश्ता जुड़ने वाला है।"

माया हैरान रह जाती है और वह घुरकर अर्जुन को देखने लग जाती है।

अर्जुन -"अरे...आप तो ऐसे हैरान हो गयी, जैसे आपको कुछ पता ही नहीं।"

माया -"क्या नहीं पता मुझे?"

अर्जुन -"तो चलिए, मैं आपको अपना इंट्रोडक्शन जरा अच्छे से दे देता हूं।"

अर्जुन अपने सूट को थोड़ा ठीक करता है, अपनी कॉलर को ठीक करते हुए गले की खराश को ठीक करता है।

अर्जुन -"हाय...मेरा नाम है कुँवर अर्जुन सिंह राठौड़, प्रिंस ऑफ़ रतनगढ़। वही प्रिंस जिससे कल ही आपका रिश्ता तय हुआ है। हम दोनों के पिताजी ने हमारा रिश्ता तय कर दिया है। ये बात तो आपको पता चल ही गई होगी।"

ये सुनते ही माया के होश उड़ जाते हैं। 

माया (मन में) -"अरे बाप रे...मतलब सज्जनगढ़ की राजकुमारी के साथ इनका रिश्ता तय हो गया, है भगवान...अब मैं क्या करूं?"

अर्जुन (मुस्कुराते हुए) -"आप तो इस तरह हैरान हो गई, जैसे मैंने कोई ऐसी बात बोल दी हो जो आपको पता ही नहीं?"

तब माया अर्जुन की तरफ पीठ करके खड़ी हो जाती है।

माया -"किसने कहा...? मुझे पता नहीं था, बस वो मैं आपको पहचान नहीं पाई, और मुझे नहीं पता था कि आप भी प्रिंस है।"

अर्जुन -"बचपन में हम साथ में खेला करते थे, ये तो याद होगा ना आपको, और बहुत लड़ते भी थे हम एक दूसरे से। मुझे नहीं पता था कि आप बड़ी होकर इतनी बदल जाएंगी कि हमें भूल ही जाएंगी।"

माया -"ऐसी बात नहीं है, हम भूले नहीं है। हमें भी सब याद है, बस सूरत बदल गई तो पहचान नहीं पाए।"

माया के मन में असमंजस चल रही थी।

माया -"माया...क्या कर रही है तू, कितना बड़ा खेल खेल रही है। अगर कुंवर सा को सच पता चल गया तो तेरी खैर नहीं, क्या करूं...सच बता दूं कि मैं राजकुमारी नहीं हूं। नहीं...नहीं...अभी नहीं। अभी सच बताया तो कुँवर को गुस्सा आ जाएगा। पता नहीं क्या कर जाए। कौन बचाएगा मुझे? वैसे भी यह राजघराने के लोग बहुत खतरनाक होते हैं। मेरे आगे कोई है ना पीछे, मैं अभी सच नहीं बता पाऊंगी पर सही मौका देखकर सच बताऊंगी जरूर।"

अर्जुन -"किस सोच में पड़ गई आप?"

माया -"आपको तो पता ही होगा, शादी तय होने के बाद लड़का लड़की एक दूसरे से मिलते नहीं है, बात नहीं करते हैं। इस परंपरा के बारे में आपको नहीं बताया गया क्या?"

अर्जुन -"बताया तो गया है, पर मुझसे रहा नहीं गया। मैं एक बार आपसे अच्छे से मिलना चाहता हूं।"

माया -"शादी तक रुक जाईये कुँवर सा, फिर अच्छे से देख लेना।"

ये कहते हुए माया वहां से जाने लगती है। माया के अचानक कदम रुक जाते हैं, क्योंकि माया का दुपट्टा पीछे से किसी ने पकड़ लिया था। तब माया बिना मुड़े ही अर्जुन से कहती है।

माया -"हमने तो सुना था कि रतनगढ़ के लोग औरतों का बड़ा ही सम्मान करते हैं। हमने आपसे बात करने के लिए मना क्या किया, आपने तो हमारा दुपट्टा पकड़ लिया। ये किस तरह का सम्मान हुआ?"

माया गुस्से में पलट कर देखती है तो माया का दुपट्टा झाड़ियां में अटका हुआ था और अर्जुन वहां नहीं था। माया अर्जुन को इधर-उधर देखती हैं पर अर्जुन दिखाई नहीं देता। अचानक जैसे ही माया पलटती है तो अर्जुन उसके सामने आता है।

अर्जुन -"रतनगढ़ में महिलाओं का सम्मान आज भी होता है और मैं अपनी लिमिट जानता हूं, अपनी मर्यादा जानता हूं। आपकी मर्जी के बगैर मैं आपको हाथ तक नहीं लगाऊंगा। मैं तो चाहता हूं कि शादी से पहले हम एक दूसरे को अच्छे से जान ले, इसलिए आपसे एक बार मिलना चाहता था। अगर आपको सही लगे तो आज शाम मैं जल महल में आपका इंतजार करूंगा, अगर आप आयी तो मुझे अच्छा लगेगा और नहीं आयी तो भी कोई शिकायत नहीं होगी। मैं आपकी मजबूरी समझ सकता हूं।"

यह कहते हुए अर्जुन वहाँ से चला जाता है और अर्जुन के ये शब्द माया के दिल पर ऐसे लगते हैं की माया का दिल जीत लेते हैं और इस वक्त से अर्जुन के लिए माया का दिल धड़कने लगता है।

उधर रानी पदमा देवी अर्जुन को ढूंढ रही थी। अर्जुन अचानक उनके सामने आता है।

पदमा देवी -"कहां चले जाते हैं आप?"

अर्जुन -"कुछ नहीं माँ सा, बस मैं आश्रम का चक्कर लगा रहा था।"

पदमा देवी -"हमें निकलना है, हमें देर हो रही है।"

अर्जुन -"हां...मां चलते हैं।"

शर्मा जी से विदा लेकर रानी पदमा देवी और अर्जुन वहां से निकल जाते हैं।

अर्जुन तो वहां से निकल जाता है पर माया के दिल में हमेशा के लिए उतर जाता है। अब उसका दिल अर्जुन के लिए धड़कने लगता है, बिना ये सोचे की अर्जुन किसी और की अमानत है। माया ये भी भूल जाती है कि वो एक अनाथ है और अर्जुन राजघराने का राजकुमार।

माया परेशान होकर अपने हॉस्टल पहुंचती है और वहां पर सुनीता उसके कमरे में आती है।

सुनीता -"कहां चली गई थी यार, कब से तेरा इंतजार कर रही हूँ।"

माया (घबरा कर) -"तू अभी इधर आ ..."

माया कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर देती है तब सुनीता घबरा जाती है।

सुनीता -"क्या हुआ तुझे?"

माया -"तेरे शर्त के खेल की वजह से पता है आज मैं कितनी बड़ी प्रॉब्लम में फस गई हूं।"

सुनीता -"कौन सी प्रॉब्लम, क्या हुआ कुछ बताएगी?"

माया अपना सर पकड़ लेती है।

माया -"पता है तुझे आज क्या हुआ है?"

माया फिर सुनीता को पूरा मामला बताती है। सुनीता के भी सुनकर होश उड़ जाते हैं। पहले तो सुनीता थोड़ी गंभीर होती है और फिर जोर से खिल खिलाकर हंसने लगती है।

सुनीता -"तू भी यार कितना टेंशन ले रही है, अरे कोई इतनी बड़ी बात नहीं है जितनी तू उसे बना रही है।"

माया (हैरान) -"क्या बोल रही है, इतनी बड़ी बात नहीं मतलब?"

सुनीता -"अरे हां यार, एक छोटा सा झूठ बोला है। जाकर सॉरी बोल देना उसमें क्या है।"

माया -"तू पागल है क्या, तू जानती नहीं वो आदमी कौन है? रतनगढ़ का प्रिंस है। मैंने उसे अगर सब सच्चाई बता दी और उसे गुस्सा आ गया तो, पता है ना क्या कर सकता है वो, मेरा रतनगढ़ में रहना दुश्वार हो जाएगा।"

सुनीता -"तू फालतू में टेंशन ले रही है, देख तुझे शाम को बुलाया है ना उसने, तो जा वहां पर।"

माया -"तू पागल हो गई है क्या, मैं नहीं जाने वाली उससे मिलने।"

सुनीता -"अरे यार...तू समझ क्यों नहीं रही। तू वहां जाकर अपना सच बता दे सिंपल। अभी सिर्फ शादी की बात हुई है, शादी हुई नहीं है और तुझे सिर्फ शादी के पहले अपना सच बताना और क्या। मेरी बात मन तो तू जा।"

माया (घबराकर) -"यार मुझे बहुत डर लग रहा है।"

सुनीता -"तू डर मत और तुझे लगता है तो मैं भी तेरे साथ चलती हूं।"

माया -"हां तू भी चल मेरे साथ, पर तुझे मेरी असिस्टेंट बनकर ही चलना होगा।"

सुनीता -"जो हुक्म मेरी राजकुमारी, और वैसे भी राजकुमारी के साथ तो एक दासी होती है। मैं तेरी दासी बनकर चलूंगी।"

माया -"तुझे हर समय मजाक सूझता रहता है, मुझे पता है कितनी टेंशन हो रही है?"

सुनीता -"टेंशन मत ले, मैं हूं ना।"

उधर गाड़ी में बैठा बैठा अर्जुन माया से हुई मुलाकात के बारे में सोचता रहता है और उसी की यादों में खोया रहता है और इधर माया भी रह कर अर्जुन के बारे में ही सोचती रहती। ना चाहते हुए भी उसे अर्जुन का ही ख्याल आते रहता है। दोनों एक दूसरे के ख्यालों में डूबे हुए।

कुछ घंटे बीतते हैं और शाम हो जाती है। माया अपनी सहेली सुनीता के साथ टैक्सी पकड़ कर जल महल के बाहर आ जाती है। 

सुनीता -"ये प्रिंस है ना, बड़ा रोमांटिक लगता है। क्या लोकेशन चुनी है अपनी मुलाकात के लिए। सरोवर के बीचो-बीच महल, जल महल। अगर कोई मुझे ऐसी जगह मिलने बुलाता तो मैं उसे कभी मना ही नहीं करती।"

माया सुनीता को आंख दिखती है और दोनों अंदर जाने के लिए तैयार खड़े होते हैं।

 

आगे क्या होगा?

क्या अर्जुन माया की सच्चाई जान पायेगा? क्या होगा अर्जुन और माया की मुलाक़ात का परिणाम?

जानने के लिए पढिये कहानी का अगला भाग।

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