रतन सिंह और महारानी पद्मदेवी महल पहुंच जाते हैं। 

पद्मदेवी -"महाराज...एक बात कहें बुरा तो नहीं मानेंगे?"

रतन सिंह -"बोलिए महारानी।"

पदमा देवी -"महाराज...एक बार इस बारे में कुंवर से बात कर लेते तो?"

रतन सिंह -"महारानी सा...आज तो आपने यह बात बोल दि पर हम चाहते हैं कि आगे हम आपके मुंह से ये नहीं सुनें।"

पदमा देवी हैरान हो जाती हैं।

महाराज रतन सिंह -"हमारे खानदान की यही परंपरा है, बच्चों का रिश्ता उनके मां-बाप ही तय करते हैं। हमारा रिश्ता हमारे मां-बाप ने तय किया था और उनका उनके मां-बाप ने।"

पदमा देवी -"महाराज...वो जमाना अलग था, अब ज़माना बदल चुका है।"

रतन सिंह -"पहले भी सूरज चांद थे, आज भी है और हमेशा रहेंगे। परंपराएं जमाने को देखकर नहीं बदलती और हमारे खानदान में परंपरा जान से ज्यादा कीमती होती है। बेहतर होगा कि आप अर्जुन को बता दें कि हमने उनका रिश्ता राजकुमारी माया कुमारी के साथ तय कर दिया है। उनकी मर्जी हो या ना हो, उन्हें ये शादी करनी होगी। ये हमारा फैसला है।"

पदमा देवी -"पर महाराज, अभी अर्जुन की उम्र ही क्या है?"

रतन सिंह -"आपकी क्या उम्र थी जब आपकी शादी हुई थी और हमारी क्या उम्र थी?"

पदमा देवी निशब्द हो जाती है।

रतन सिंह -"हम आपको याद दिलाते हैं, हम 15 साल के थे और आप 12 साल की, और कुंवर सा हमारे 23 साल के हो चुके हैं। हमारे खानदान की परंपरा के हिसाब से वो शादी के लिए लेट हो चुके हैं। हम और देरी नहीं करना चाहते हैं। हम जल्द से जल्द उनकी शादी करके उनके राजतिलक की तैयारी करना चाहते हैं। अब वह हमारी गद्दी संभालेंगे।"

यह कहकर महाराज वहां से चले जाते हैं। रानी पद्मावती अपने बेटे को लेकर टेंशन में रहती है।

उधर अर्जुन घूम कर महल में आता है पर उसके दिल दिमाग पर माया कुमारी का खुमार चढ़ा होता है। उसी के बारे में सोच रहा होता है। सोचते सोचते अपनी मां से टकरा जाता है।

पदमा देवी -"क्या कर रहे हो कुँवर,  देख कर चलिए।"

अर्जुन सिंह -"सॉरी...सॉरी मां, वो मैं कहीं खोया हुआ था।"

पदमा देवी -"कहां खोए हुए थे?"

अर्जुन -"वो सब छोड़िए, आप बताइए आपने भोजन किया?"

पदमा देवी -"हम आपके बिना कैसे खा सकते हैं।"

अर्जुन -"माँ, आप भी न, मैं यहाँ नहीं था तब आप भूखी रहती थी क्या?"

पदमा देवी -"वो सब छोड़िये, आप बताइए आपको स्टेट कैसा लगा?"

अर्जुन अभी भी माया कुमारी के ख्यालों में था।

अर्जुन -"बहुत सुंदर, कितना बदल गया है हमारा स्टेट। बड़े-बड़े बाजार बन गए हैं, दुकान बन गई हैं, सड़क बन गई है और बहुत ही सुंदर हो गया है। बड़ी-बड़ी आंखें, गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ, लंबे सुनहरी बाल।"

पदमा देवी (चौंककर) -"ये आप हमारे स्टेट की बात कर रहे हैं या किसी लड़की की?"

अर्जुन को तब अहसास होता है।

अर्जुन (बड़बड़ाते हुए) -"माँ...माँ वो मैं कहां किसी लड़की की बात करूंगा, मैं...मैं तो स्टेट की तारीफ कर रहा था। अच्छा स्टेट हो गया है, कितना कुछ बदल गया है।"

पदमा देवी थोड़ा सा मुस्कुरा देती है।

पद्मदेवी -"बताइए...किस से मिलकर आए हैं आप, कौन हैं वो?"

अर्जुन -"नहीं मां...ऐसी कोई बात नहीं है।"

पदमा देवी -"देखिए...माँ से मत छुपाइए वरना अभी हम मुनीम जी को बुलवाकर सब कुछ पता करवा लेंगे। हमारे लिए बड़ी बात नहीं है।"

अर्जुन -"ठीक है माँ, बताते हैं। रास्ते में एक लड़की मिल गई थी।"

पदमा देवी का मुंह उतर जाता है। 

अर्जुन -"क्या हुआ, लड़की का सुनकर आपका मुंह क्यों उतर गया?"

पदमा देवी -"कुँवर...हम आपको कुछ बताना चाहते हैं।"

अर्जुन -"बोलो माँ, क्या हुआ?"

पदमा देवी अर्जुन के रिश्ते के बारे में सारी बात अर्जुन को बता देती है। यह सुनकर अर्जुन भी परेशान हो जाता है।

अर्जुन -"महाराज, ऐसा कैसे कर सकते हैं? मैं तो मजाक में ही हिटलर महाराज कहता था, उन्होंने तो सच में हिटलर वाला काम कर दिया। ये तो सरासर तानाशाही है।"

पद्मदेवी -"अब इसे तानाशाही समझो या हमारे खानदान की परंपरा, अब जो है यही है और आप तो जानते हैं कि हमारे खानदान में जुबान की कीमत जान से भी ज्यादा होती है और महाराज जुबान दे चुके हैं सज्जनगढ़ के महाराज को।"

अर्जुन बातों बातों में यह भूल ही गया था की बात सज्जनगढ़ की हो रही है।

अर्जुन -"माँ... क्या बोल रही हो आप? सज्जनगढ़ के महाराज की बेटी के साथ हमारा रिश्ता तय करके आ गए।"

अचानक अर्जुन बोलते बोलते रुक जाता है।

अर्जुन -"क्या...क्या कहा आपने? फिर से बोलिए?"

पदमा देवी -"मैंने कहा कि तुम्हारे पिताजी तुम्हारा रिश्ता तय करके आ गए साजनगढ़ के राजकुमारी से, क्या नाम था उनका?"

अर्जुन -"माया कुमारी।"

पदमा देवी (हैरान) -"आपको कैसे पता चला उनका नाम, हमने तो आपको बताया नहीं?"

तब अर्जुन खुशी से उछल पड़ता है और अपनी मां को गोद में उठाकर गोल-गोल घूमने लगता है।

अर्जुन -"अरे मां, आपने इतनी बड़ी खुशखबरी दि है कि हमारा दिल खुश हो गया है।"

पदमा देवी -"क्या बोल रहे हैं आप? हम कुछ समझ नहीं पा रहें हैं। अभी तो आप नाराज हो रहे थे और अभी खुश हो रहे हैं। हमारे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, मामला क्या है?"

अर्जुन माया कुमारी से मिलने की पूरी बात अपनी मां को बताता है और उसकी मां भी खुश हो जाती है।

पद्मदेवी -"सच...मतलब आप दोनों एक दूसरे से मिल चुके हैं।"

अर्जुन -"नहीं...सिर्फ मैं उनसे मिला हूं, वो मुझे नहीं मिली।"

पदमा देवी -"मतलब?"

अर्जुन -"माँ...अभी मुझे पता है कि वो सज्जनगढ़ की राजकुमारी है, पर उसे नहीं पता कि मैं कौन हूं?"

पदमा देवी -"पर आपने क्यों नहीं बताया?"

अर्जुन -"बस थोड़ी टांग खींच रहा था, वो सब छोड़िए। अब तो मिल सकता हूं ना?"

पदमा देवी -"भूल कर भी ये बात अपने पिताजी के सामने मत कह देना।"

अर्जुन -"पर क्यों माँ? अब तो सब सॉल्व हो चुका है ना, मुझे लड़की पसंद है, आपने मेरा रिश्ता तय कर दिया है और क्या बाकी रह गया?"

पदमा देवी -"हमारे खानदान की परंपरा है की शादी,  सगाई से पहले लड़का लड़की एक दूसरे को नहीं देखते हैं। उनके माता-पिता ही बच्चों का रिश्ता तय करते हैं और वो सीधे सगाई के दिन एक दूसरे को देखते हैं, अगर यह बात महाराज को पता चली तो वो बहुत नाराज होंगे। इसलिए भूलकर भी उन्हें ये मत बता देना कि आप दोनों ने एक दूसरे को देख लिया।"

अर्जुन -"ये कैसी परंपरा है?"

पदमा देवी -"हमें बहुत टेंशन हो रही थी कुँवर, कि आपकी मर्जी के खिलाफ आपका रिश्ता तय हो गया, पर हमें खुशी है कि आपको लड़की पसंद है।"

अर्जुन -"खुश तो मैं भी हूं बहुत।"

उधर माया कुमारी अपनी असिस्टेंट सुनीता के साथ एक रेस्टोरेंट में आती है। एक खाली टेबल पर बैठ जाती है उसकी असिस्टेंट सुनीता पास में उसका बैग लेकर खड़ी होती है। तभी वहां पर चार-पांच और लड़कियां आती है और राजकुमारी माया कुमारी को घूर कर देखने लग जाती है। राजकुमारी माया भी उन्हें एक-एक करके देखती है फिर वो पांचो लड़कियां एक दूसरे को देखती हैं और फिर मुस्कुराते हुए तालियां बजने लगती है। राजकुमारी माया के चेहरे पर भी हंसी आ जाती है और माया कुमारी के आसपास टेबल पर वो चारों लड़कियों आकर बैठ जाती है। 

कल्पना -"मान गए माया, सच में तु बहुत ही बड़ी एक्टर बनेगी, मेरी बात मान तो मुंबई चली जा, क्या एक्टिंग कि तूने राजकुमारी की और सच में राजकुमारी लग भी रही थी।"

माया -"मुंबई तो मैं जाऊंगी एक दिन। मुझे मेरा सपना पूरा करना है, एक्टिंग नहीं करनी। मुझे लॉयर बनना है। अब एक जैसे नाम होने का फायदा तो उठाऊंगी ना। मेरा नाम माया, राजकुमारी का नाम माया कुमारी और उस दिन तूने मुझे चैलेंज दिया था कि जो पहली गाड़ी गेट से आएगी उसको मुझे बेवकूफ बनाना है, तो बस मैंने एक्सेप्ट कर लिया।"

कल्पना -"तुझे डर नहीं लगा, अगर तुझे कोई पहचान लेता तो?"

माया -"मैं इंसान को देखकर ही समझ जाती हूं कि वह रतनगढ़ का है या बाहर का। वो यहां का नहीं था, विलायती लग रहा था एनआरआई। उसे नहीं पता होगा कि यहां की राजकुमारी कौन है और वैसे भी अगर वो मुझे पहचान लेता तो मेरा भांडा फुट जाता।"

कल्पना -"मान गए तुझे।"

माया -"मानना बाद में, पहले मेरी शर्त के हजार रुपए निकाल।"

कल्पना हजार रुपए निकाल कर टेबल पर रख देती है।

सुनीता -"₹200 मुझे भी दे दे, मैंने भी तेरी एक्टिंग में तेरा साथ दिया है। तेरी दासी बनकर तेरे साथ चली हूं।"

माया -"अरे मेरी जान, दे दूंगी टेंशन क्यों ले रही है।"

माया अपनी सहेलियों के साथ खूब हंसती है और उधर अर्जुन माया कुमारी के ख्यालों में डूबा रहता है।

अर्जुन माया कुमारी के ख्यालों में डूबा हुआ कब सो जाता है पता ही नहीं चलता। सुबह नाश्ते की टेबल पर अर्जुन आता है।

पदमा देवी -"कुंवर...चलिए, हमें आपको लेकर कहीं जाना है।"

अर्जुन -"मां...मुझे लेकर, कहां पर?"

पदमा देवी -"पता चल जाएगा, आप चलिए तो सही।"

अर्जुन (मन में) -"मुझे तो आज राजकुमारी को ढूंढने जाना है, क्या करूं? सज्जनगढ़ जा नहीं सकता और राजकुमारी से मिलना है। एक बार में मन नहीं भरा है, अगर वो रतनगढ़ के बाजार में आई थी तो वो आज भी आ सकती है। मुझे कोई ना कोई बहाना बनाना पड़ेगा।"

पद्मदेवी -"क्या सोच रहे हैं?"

अर्जुन -"माँ...माँ आज मुझे कुछ काम है, हम फिर कभी चल देंगे।"

पदमा देवी -"नहीं...हमें आज और अभी ही चलना है, हमें आपके हाथों से कोई शुभ काम करवाना है इसलिए आपकी जरूरत है।"

अर्जुन -"अरे आप को अगर शुभ काम करवाना तो मैं हाथ लगा देता हूं आप करवा दीजिए।"

पदमा देवी -"कुँवर... हमने कहा ना, आप हमारे साथ चल रहे हैं मतलब चल रहे हैं, हमें पता है आपको कोई काम नहीं,  आपको सिर्फ स्टेट घूमना है। आप हमारे साथ आज जयपुर चलिए, बाकी काम बाद में।"

अर्जुन -"जयपुर जाना पड़ेगा?"

पदमा देवी -"हमने जयपुर का बोला है, लंदन का नहीं जो आप इतना मुंह बना रहे हैं। पास में ही है जयपुर।"

अर्जुन -"ठीक है माँ सा, आप कहती है तो आपके साथ चलना ही पड़ेगा शुभ काम के लिए।"

इधर जयपुर के सरस्वती अनाथालय में माया अनाथालय के मैनेजर से मिलती है।

माया -"यह लीजिए शर्मा जी, ये अनाथ बच्चों के लिए मेरी तरफ से छोटा सा डोनेशन है।"

शर्मा जी -"माया बेटी, जब से तुम्हारी नौकरी लगी है तब से हर महीने तुम बिना बोले यहां पर आती हो और अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा यहां पर डोनेट कर जाती हो। सच में तुम्हारे जैसी लड़कियां आजकल मिलती कहां है।"

माया -"अब मैं इतने पैसों का क्या करूंगी शर्मा जी। अनाथ हूं, अकेली रहती हूं, वर्किंग वूमेन हॉस्टल में रहती हूं। वहां इतना ज्यादा खर्च होता नहीं है रहने और खाने का, और मैं अनाथ होने का दर्द जानती हूं। तो अगर मेरी तरफ से कुछ मदद इन अनाथ बच्चों की हो जाए तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है, और वैसे भी मुझे ज्यादा पैसों का लालच भी नहीं और जरूरत भी नहीं है। मैं अपनी जरूरत के पैसे कमा लेती हूं और उतने में मेरी पूर्ति हो जाती है।"

शर्मा जी -"भगवान तुम्हें खुश रखे, और इन बच्चों की दुआ से तुम बहुत तरक्की करो।"

माया -"ये दुआ ही तो काम आती है, पैसों का क्या है, आते जाते रहते हैं और वो हमारे साथ कभी नहीं जाते। सिर्फ दुआ ही साथ जाती है।"

तभी वहां लैंडलाइन फोन बजता है और शर्मा जी फोन उठाते हैं।

शर्मा जी -"हेलो।"

शर्मा जी बात करते-करते एकदम से अपनी कुर्सी से खड़े हो जाते हैं।

शर्मा जी -"खंबाघनी रानी सा...जी बोलिए...जी ठीक है...ठीक है...बिल्कुल मैं यही हूं...मैं बिल्कुल आ जाइए।"

माया (हैरान) -"क्या हुआ शर्मा जी, आप एकदम से खड़े हो गए।"

शर्मा (हड़बड़ाहट में) -"देखो कभी-कभी तो हमको पैसों की जरूरत होती है और पैसे पास में होते नहीं है, और आज  तुमने डोनेशन दे दिया, और अभी-अभी रतनगढ़ की रानी सा का फोन आया था। वो भी यहां डोनेट करना चाहती हैं और खुद अपने कुंवर सा को लेकर यहां पर आ रही है। उनके हाथों से डोनेट करवाने। बस कुछ ही देर में आने वाले हैं। तुम थोड़ी देर रुको तो तुम भी देख लेना।"

माया -"ठीक है शर्मा जी, मैं यही बच्चों के साथ थोड़ी बातें कर लूं।"

शर्मा जी -"बिल्कुल...बिल्कुल जाओ।"

माया वही अनाथ बच्चों के साथ बातें करती है उनके साथ खेलती है।

अनाथ आश्रम के पार्क में शर्मा जी और माया बातें कर रहे थे।

शर्मा जी -"लो आ गई रानी सा, मैं जाता हूं उनका स्वागत करना पड़ेगा मुझे, तुम यही रहना।"

माया -"ठीक है शर्मा जी।"

माया भी रानी सा के काफिले को देखती है। तीन बड़ी-बड़ी गाड़ियां आकर आश्रम में रूकती है, जिसमें से आगे की गाड़ी में से बॉडीगार्ड बाहर आते हैं। बीच वाली बड़ी गाड़ी में से एक तरफ का दरवाजा खुलता है और उसमें से महारानी पदमा देवी निकलती है। शर्मा जी हाथ जोड़कर उनका स्वागत करते हैं। रानी सा भी हाथ जोड़ती हैं और तब रानी सा दूसरी तरफ इशारा करती हैं और दूसरे गेट से सूट बूट पहने हुए आंखों में चश्मा लगाए राजकुमार अर्जुन सिंह राठौड़ गाड़ी से बाहर निकलते हैं। अर्जुन बाहर आकर शर्मा जी को नमस्ते करते हैं। रानी सा उनका इंट्रोडक्शन करवाती हैं।

पदमा देवी -"यही हैं, हमारे कुमार सा...कुँवर अर्जुन सिंह राठौड़, रतनगढ़ के प्रिंस।"

अर्जुन को देखकर माया के होश उड़ जाते हैं। उसकी आंखें बड़ी-बड़ी हो जाती है। उसका मुंह खुला का खुला रह जाता है। उसके माथे से पसीना टपकने लग जाता है। 

 

आगे क्या होगा?

अर्जुन की सच्चाई जानकर क्या होगा माया का अगला कदम? क्या अर्जुन को माया का सच पता चल पाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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