सुबह-सुबह अर्जुन तैयार होकर नाश्ते पर आता है।

पद्मदेवी -"अरे वाह...आज तो कुँवर बहुत जच रहे हैं, कहां जाने की तैयारी हो रही है?"

अर्जुन -"माँ...सोच रहे हैं कि स्टेट घूम लें, 5 साल बाद आए हैं। हम भी तो देखें कि हमारे स्टेट में क्या कुछ बदला है, पहले वाला रतनगढ़ है या कुछ बदल गया है।"

पदमा देवी -"गए वो राजा रजवाड़ों के जमाने जब स्टेट का जिम्मा उनके ऊपर रहता था। आजकल लोकतंत्र है, राजा तो सिर्फ नाम के रह गए। वैसे बहुत कुछ बदल गया है रतनगढ़ में, घूम लीजिये पर गुप्ता जी को लेकर जाईये। मुनीम जी को सब पता है रतनगढ़ के बारे में।"

अर्जुन -"अरे नहीं मां,बहम अकेले चले जाएंगे गुप्ता जी को क्यों परेशान कर रही हैं। कहीं हिसाब-किताब में गड़बड़ हो गई तो हिटलर महाराज हमारी क्लास ले लेंगे।"

पदमा देवी -"बदमाश।"

अर्जुन -"अरे मां, हम चले जाएंगे बोल तो रहे हैं।"

पदमा देवी -"कुँवर...मां की बात मान लेनी चाहिए, बोल रहे हैं ना, गुप्ता जी को लेकर जाईये। आप भले ही रतनगढ़ के हैं पर एक से भले दो हो तो क्या बुराई है।"

अर्जुन -"ठीक है मां, आप कह रही है तो हम गुप्ता जी को साथ ले चलते हैं।"

पदमा देवी -"गुप्ता जी..।"

गुप्ता जी अपने हाथ में एक फाइल लेकर आते हैं।

गुप्ता जी -"जी महारानी सा।"

पदमा देवी -"गुप्ता जी, आप कुंवर को स्टेट दिखा कर ले आईये।"

गुप्ता जी -"जी रानी सा, चलिए हुकुम।"

अर्जुन गुप्ता जी के साथ स्टेट घूमने के लिए निकल जाता है।

गुप्ता जी -"हुकुम...कहां जाना पसंद करेंगे पहले?"

अर्जुन -"गुप्ता जी, वो रतनगढ़ का बड़ा बाजार जहां लगता था, हम बहुत जाते थे वहां पर, बड़ी रौनक रहती थी वहां। पर क्या अभी भी वहां पर ऐसे ही रौनक रहती है?"

गुप्ता जी -"कुँवर सा,वहां पर बहुत कुछ बदल गया है। बड़ी-बड़ी दुकानें आ गई है। छोटी दुकान है पर काम ही लगती हैं।"

अर्जुन -"तो पहले वही चलिए, वहां से आगे सोचते हैं कहां जाना है।"

गुप्ता जी -"जी कुंवर सा...ड्राइवर,बड़ा बाजार ले चलो।"

कुछ ही देर में अर्जुन की गाड़ी बड़ा बाजार पहुंच जाती है। बड़ा बाजार की रौनक देखकर अर्जुन बहुत खुश होता है। कार से उतरते ही अंगड़ाई लेता है।

अर्जुन -"अच्छा,तो यह है हमारा रतनगढ़। अपने देश की मिट्टी की खुशबू की बात ही अलग है। वाह...मजा आ गया।"

उधर रतन सिंह और पदमा देवी भी अपनी गाड़ी से महल से निकल जाते हैं।

पदमा देवी -"आज आपने बताया नहीं कि हम कहां जा रहे हैं। सुबह-सुबह जल्दी तैयार होने का बोल दिया। अब तो बता दीजिए।"

रतन सिंह -"पता चल जाएगा आपको महारानी जी,इतनी जल्दी क्या है। वो आजकल के बच्चे कहते हैं ना, सरप्राइज। बस यही समझ लीजिए।"

पदमा देवी -"अच्छा...तो महाराज को भी सरप्राइज देने का शौक चढ़ा है।"

रतन सिंह -"बस कुछ ऐसा ही समझ लीजिए, बस कुछ देर का इंतजार कीजिए। आपको सरप्राइज मिल जाएगा।"

थोड़ी ही देर में गाड़ी सज्जनगढ़ के महल पहुंच जाती है।

पदमा देवी (हैरान होकर) -"हम लोग सज्जनगढ़ क्यों आए हैं?"

रतन सिंह -"महारानी जी, थोड़ा सब्र रखिए। मैंने कहा ना सब पता चल जाएगा आपको। आज हमें अपने दोस्त से मिलने की इच्छा हुई तो हमने सोचा आपको भी ले चलते हैं।"

पदमा देवी -"यहां पर आना था तो पहले बोल देते। हम कुछ गिफ्ट तो रखवा लेते गाड़ी में।"

रतन सिंह -"वो हमने पहले ही रखवा लिए है महारानी जी, आप चिंता न कीजिए।"

गाड़ी सज्जनगढ़ के महल पहुंचती है और महाराज मानसिंह खुद स्वागत के लिए दरवाजे पर खड़े होते हैं।

मान सिंह -"आईये महाराज...स्वागत है आपका।"

रतन सिंह भी हाथ जोड़कर मानसिंह के स्वागत सत्कार को स्वीकार करते हैं। मानसिंह की पत्नी महारानी रूपा देवी भी पदमा देवी से मिलकर बहुत खुश होती है, और दोनों गले मिलते हुए महल के अंदर प्रवेश करते हैं।

पदमा देवी और रूपा देवी अलग चली जाती है और मानसिंह और रतन सिंह बात करने के लिए अलग बैठक में चले जाते हैं।

मानसिंह -"रतन...आज हमारे बचपन का सपना पूरा होने जा रहा है।"

रतन सिंह -"सही कह रहा है मान, हमने जो बचपन में एक दूसरे से वादा किया था,आज वो सच होने जा रहा है। माया बेटी किधर है, अब तो बहुत बड़ी हो गई होगी? बहुत बचपन में देखा था उसे।"

मानसिंह -"हां...अभी कुछ ही दिन हुए हैं न्यूयॉर्क से आई है छुट्टी मनाने।"

रतन सिंह -"कहां है वो, हम भी देखना चाहते हैं उसे।"

मानसिंह -"बाहर घूमने गई है, बोल रही थी, पापा बहुत दिनों से अपना स्टेट नहीं देखा है तो बस स्टेट देखने गई है।"

रतन सिंह -"वाह...क्या संयोग है।"

मानसिंह -"क्यों...क्या हुआ?"

रतनसिंह -"आज हमारे कुँवर भी स्टेट देखने ही गए हैं, मतलब दोनों की पसंद भी मिलती है।"

मानसिंह -"वाह भाई...ये तो बड़ी अच्छी बात है। हा… हा…हा…।।"

रतन सिंह -"हाँ...तो फिर बात पक्की करें ?"

मानसिंह -"रतन....मेरे मन में एक सवाल है ?"

रतन -"कैसा सवाल ?"

मानसिंह -"रतन...हमारे जमाने की बात अलग थी। हमारे रिश्ते हमारे मां-बाप ने तय किए थे और उनके,उनके मां-बाप ने। ये परंपरा सालों से चली आ रही है, पर अब जमाना बदल रहा है। हमारे बच्चे विदेश में पढ़कर आए हैं। उनकी सोच पर असर पड़ा होगा, मैंने माया से बात की है। माया को इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं है, बल्कि माया तो खुश है कि उसका रिश्ता अर्जुन से जुड़ रहा है, पर क्या तुमने अर्जुन से बात की।"

रतन -"मानसिंह... एक बार मैंने जुबान दे दी है, तो इसका मतलब अर्जुन का रिश्ता माया से ही होगा। उसे भगवान भी आकर टाल नहीं सकता। हमारे खानदान की परंपरा है जुबान की कीमत जान से भी ज्यादा होती है। हमें कुँवर के रिश्ते के लिए उनसे पूछने की ज़रूरत नहीं है।"

मानसिंह -"तो फिर तो हो गई बात पक्की,मुंह मीठा करो।"

रतन सिंह भी मुंह मीठा करते हुए मानसिंह के गले लग जाता है। इतने में पदमा देवी और रूपा देवी दोनों आ जाती है।

पद्मदेवी -"अरे किस बात का मुंह मीठा किया जा रहा है?"

तब मान और रतन दोनों एक दूसरे को देखते हैं और मुस्कुराते हैं।

रतन -"महारानी जी, आप सरप्राइज देखना चाहती थी न, चलो...अब सरप्राइज खोल देते हैं।"

मानसिंह -"ठीक है।"

पदमा देवी -"क्या मतलब, मैं समझी नहीं?"

रतन सिंह -"हमने कुंवर सा का रिश्ता तय कर दिया है, हमारे मित्र मानसिंह की बेटी राजकुमारी माया देवी के साथ।"

यह सुनकर रूपदेवी तो बहुत खुश होती है, पर पदमा देवी इतनी खास खुश नहीं होती, और वो झूठ मुठ खुश होने का नाटक करती है।

रतन सिंह पदमा देवी की झूठी हंसी समझ जाते हैं, पर उस वक्त कुछ नहीं बोलते।

उधर कुँवर अर्जुन मार्केट में घूम रहा था और तभी वो सामने से आई हुई एक लड़की से टकरा जाता है। अर्जुन और लड़की गुत्थमगुत्था हो जाते हैं और अर्जुन लड़की को गिरने से बचाने के लिए उसका हाथ पकड़ लेता है, और उसे गिरते हुए संभाल लेता है। लड़की के बाल इतने घने थे कि उसके बाल उसके चेहरे को पूरी तरह से ढक रहे थे। तभी एक हवा का झोंका आता है और उसके बाल को उनके चेहरे पर से हटा देता है। जैसे ही बाल चेहरे पर से हटते हैं अर्जुन की नजर उस लड़की के चेहरे से हटती नहीं है। भूरी भूरी आंखें, भूरे बाल, गोरा रंग, गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ। पुरी की पूरी राजकुमारी लग रही थी। अर्जुन का तो दिल उसे देखते ही धड़क उठता है और लड़की गुस्से में आधी हवा में लटकी हुई अर्जुन को घूर रही थी और उसे इशारे से उसे उठाने के लिए कह रही थी। अर्जुन उसमें इतना खोया हुआ था कि सिर्फ उसके चेहरे को देख रहा था। 

अर्जुन उस लड़की के इशारे समझता है और उसे उठाकर खड़ा करता है।

लड़की (गुस्से में) -"तुम्हें दिखाई नहीं देता क्या कि हम आ रहे हैं सामने से? सुंदर लड़की देखी कि नहीं की इन लड़कों को टकराने के बहाने मिल जाते हैं और फिर बाद में सॉरी कहते हैं।"

अर्जुन हैरान रह जाता है क्योंकि उसकी गलती थी ही नहीं। वो लड़की खुद टकराई थी।

गुप्ता जी -"आप जानते भी हैं, आप किस से बात कर रही हैं ? यह है हमारे…।"

अर्जुन हाथ के इशारा करता है और गुप्ता जी चुप हो जाते हैं।

लड़की -"आजकल हर कोई यही बोलता है कि आप इन्हें जानते हैं, आप उन्हें जानते हैं,पर हम को सब जानते हैं और हमसे उलझने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता, क्योंकि हम हैं सज्जनगढ़ की राजकुमारी माया कुमारी।"

अर्जुन (हैरान) -"तुम माया हो,माया कुमारी ?"

मायाकुमारी अर्जुन को घर कर देखने लगती है।

अर्जुन -"मेरा मतलब, आप माया कुमारी जी हैं, सज्जनगढ़ की राजकुमारी?"

मायाकुमारी -"हां, शायद मैंने पहले भी इसी भाषा में बोला था। आपको कोई शक है क्या?"

अर्जुन -"पर आप रतनगढ़ में क्या कर रही है?"

माया कुमारी -"तो रतनगढ़ आपका है क्या? मेरे कहने का मतलब है कि हम सज्जनगढ़ में घूमे या रतनगढ़ में, ये हमारे अंकल का स्टेट है। हमारे पिताजी और रतनगढ़ के महाराज अच्छे दोस्त हैं तो हम यहां आ सकते हैं। अब आपकी तारीफ सुनने में हमें कोई इंटरेस्ट नहीं है। क्योंकि आपकी तारीफ इतनी खास होगी नहीं और आपने जो हमसे टकराने की गुस्ताखी की है उसके लिए हम आपको माफ कर सकते हैं क्योंकि आज हमारा मूड बहुत अच्छा है, वरना आपको सजा दिलवाते।"

अर्जुन (हाथ जोड़कर) -"आपका बहुत-बहुत धन्यवाद राजकुमारी जी, आपने हमें माफ किया। आगे से ऐसी गलती नहीं होगी। वैसे इस नाचीज़ को अर्जुन कहते हैं।"

माया कुमारी -"हमें आपका नाम जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है, जाईये...आप भी क्या याद रखेंगे। हमने आपको माफ किया।"

माया कुमारी वहां से जाने लगती है। 

माया अपने साथ आई एक लड़की से कहती है, "चलिए सुनीता,हमें और भी बहुत काम है।"

माया कुमारी वहां से चली जाती है और अर्जुन उसी को देखता रहता है।

गुप्ता जी -"आपने उन्हें बताया क्यों नहीं की आप रतनगढ़ के प्रिंस है।"

अर्जुन -"गुप्ता जी,रहने दीजिए। राजकुमारी जी का दिल टूट जाता,वैसे हम जानते हैं इन्हें। बहुत शरारती है ये, बचपन में भी ऐसी ही थी। 10-12 साल के थे हम तब इससे मिले थे। 10 साल में कितनी बदल गई है और बहुत सुंदर भी हो गई है। हम अपना परिचय अलग अंदाज में देंगे।"

इधर सज्जनगढ़ से लौटते हुए।

रतन सिंह -"हमें यकीन है की राजकुमारी माया कुमारी और हमारे कुँवर की जोड़ी बहुत खूब जमेगी।"

 

आगे क्या होगा?

क्या होगा अर्जुन और माया के बीच? क्या माया अर्जुन को पहचान पाएगी?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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