उधर घर पर माया अकेले कमरे में बैठे-बैठे अपनी बेटी को याद करती है और उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। सिमरन को गए हुए लगभग डेढ़ महीना हो चुका था और तभी कमरे में अर्जुन आता है। 

अर्जुन -  "तो हो गया तुम्हारा बदला पूरा,दिलवा दी कातिल को सजा?"

माया कुछ कहती नहीं बस उसकी आंखों से आंसू बहते रहते हैं।

अर्जुन (रोते हुए) -"आज खुश तो बहुत होगी तुम,कि तुमने अपनी बेटी का बदला पूरा कर लिया,पर मेरा क्या? मेरा बदला कब पूरा होगा? मैंने जो सिमरन की चीता पर कसम खाई थी वो तो पूरी होते होते रह गई। अब क्या करूंगा मैं?"

माया फिर भी चुप रहती है पर उसके आंसुओं का गुबार इस कदर सैलाब की तरह आंखों से निकलता है। माया सहन नहीं कर पाती और फूट-फूट कर रोने लगती है।

माया (चिल्लाती) -  "सिमरन ssssssSs।"

इस तरह माया को टूटता हुआ देखकर अर्जुन दौड़कर माया को संभालता है।

अर्जुन -  "माया...माया संभालो अपने आप को।"

माया और अर्जुन भी फूट-फूट कर रोने लगता है। दोनों एक दूसरे से गले मिलकर लिपटकर जोर-  जोर से रोने लगते हैं। 

माया -  "अर्जुन...मुझे माफ कर दो,मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हें गलत समझा। तुम्हें सिमरन की मौत का जिम्मेदार समझा। तुम्हारी कोई गलती नहीं थी।"

अर्जुन (रोते हुए) -  "माया...मैं समझ सकता हूं तुम दौर से गुजर रही हो, मुझे तुम्हारी बातों का बुरा नहीं लगा। अगर तुम्हारी जगह मैं भी होता तो मैं भी तुम्हें जिम्मेदार ठहराता। माया प्लीज मेरी एक बात मानो,मुझे वो पुरानी वाली माया लौटा दो। मुझे यह रोती हुई माया अच्छी नहीं लगती। मुझे प्लीज वही खिलखिलाती पुरानी वाली माया लौटा दो।"

माया (रोते हुए) -  "नहीं...नहीं हो पाएगा मुझसे, नहीं हो पाएगा। मेरी बेटी सिमी।"

अर्जुन -  "माया...मैं आज भी तुमको उतना ही प्यार करता हूं जितना पहले किया करता था, जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था। मुझे वही माया दोबारा लौटा दो माया...प्लीज...प्लीज वही माया लौटा दो।"

अर्जुन माया के आगे हाथ जोड़ते हुए फूट-  फूट कर रोने लगता है।

अर्जुन और माया पुरानी यादों में खो जाते हैं।

2001,रतनगढ़

 

रतनगढ़ पैलेस को आज दुल्हन की तरह सजाया गया था। नौकर चाकर हवेली को सजाने में इधर-  उधर काम कर रहे थे। महाराज रतन सिंह राठौड़ और महारानी पदमा देवी इन तैयारी को देखकर आपस में बात कर रहे थे।

रतन सिंह राठौड़ -  "तो महारानी सा...आज आपका आंख का तारा लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी करके आ रहा है।"

पदमा देवी -  "अब आपको क्या बताएं,हम अपने कुंवर के लिए कितने तरसे हैं। पूरे 5 साल के बाद लौट रहे हैं कुंवर।"

रतन सिंह -  "आप तो अपने बेटे से हर हफ्ते बात कर लेती हैं, पर हमारी तो बात ही नहीं होती है।"

पदमा देवी -  "मां बेटे का रिश्ता ही अलग होता है । पिता से बेटा जरा डरता है ।"

रतन सिंह -  "पिता कोई राक्षस थोड़ी होता है जो डरने की बात हो। हम भी अपने बेटे से बहुत प्यार करते हैं।"

पदमा देवी -  "पर आपने तो कभी अपना प्यार जताया ही नहीं,हमेशा उसे डांटते रहते हैं।"

रतन सिंह -  "बाप की डांट में भी उसका प्यार छुपा होता है, बाप कभी अपना प्यार जताया नहीं करते, और माँ अपना पूरा प्यार जता देती है। बस यही फर्क है मां और बाप के प्यार में।"

पदमा देवी -  "चलिए, अब ये बातें छोड़िए, बताइए हमारे कुँवर कब आ रहे हैं? कितनी देर हो गई है आपने गाड़ी भेजी या नहीं एयरपोर्ट पर?"

रतन सिंह -  "मुनीम जी गए हुए हैं एयरपोर्ट पर कुँवर को लेने, आते ही होंगे।"

तभी गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनाई देती है और पदमा देवी खुशी के मारे उछल जाती है।

पद्मदेवी -  "लगता है कुंवर सा आ गए, मैं जाती हूं आरती की थाली लेकर आती हूं।"

पदमा देवी आरती की थाली लेने दौड़ पड़ती है।

गाड़ी महल के गेट पर आकर रूकती है और आगे का दरवाजा खोलकर मुनीम जी बाहर निकलते हैं और तुरंत गाड़ी के पीछे का दरवाजा खोलते हैं। पदमा देवी गेट पर आरती की थाली लेकर खड़ी होती है और वहां पर नौकर नौकरानी फूलों के हार लेकर और फूलों की टोकरी लेकर सीढ़ियों पर स्वागत के लिए खड़े होते हैं। गाड़ी का दरवाजा खोलते ही गाड़ी से कुँवर अर्जुन सिंह राठौड़ बाहर निकलते हैं और अर्जुन को देखकर पदमा देवी बहुत खुश होती है और अपने हाथों से उनकी नजर उतारती हैं।

पद्मदेवी -  "नजर ना लगे हमारे लाल को किसी की,कितने सुंदर लग रहे हैं।"

अपनी मां को देखकर अर्जुन सिंह सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर आता हैं और नौकर चाकर उनके ऊपर फूलों की वर्षा कर देते हैं।

अर्जुन आकर अपनी मां के पैर छूते हैं और मां की आंखों में आंसुओं की धारा बहने लगती है और वो ऐसे ही अपने बेटे की आरती उतारती है।

अर्जुन -  "ये क्या मां, आरती के साथ-  साथ यहां पर आंसुओं की बारिश भी हो रही है क्या?"

पद्मदेवी -  "ये तो खुशी की आंसू है कुँवर। 5 साल बाद आए हैं आप, आपको अपनी मां की याद नहीं आती है क्या?"

अर्जुन -  "18 की उम्र में आपने भेजा था, 23 की उम्र में वापस लौटे हैं और वैसे भी आपसे हर हफ्ते बात तो होती है ना हमारी।"

पदमा देवी -  "आवाज सुनने में और देखने में फर्क होता है कुँवर।"

अर्जुन अपनी मां के साथ महल में प्रवेश करता हैं। 

अर्जुन -  "वाह...महल तो पहले से भी ज्यादा सुंदर हो गया, ये इतना ही सुंदर था या हमारे आने की खुशी में कुछ ज्यादा ही सजावट कर दि इसकी।"

पदमा देवी -  "वो सब छोड़िए, पहले आप यह बताइए कि आपने कुछ खाया या नहीं? इतनी लंबी फ्लाइट लेकर आए हैं और हमें मालूम है आपने कुछ खाया तो होगा नहीं?"

अर्जुन -  "मां भूख तो बहुत लगी थी और मैंने खाया भी था पर वो क्या है ना कि घर के खाने को बहुत मिस करता था। आप जल्दी से खाना लगाइए।"

पदमा देवी -  "महाराज से नहीं मिलेंगे पहले?"

अर्जुन धीरे से पदमा देवी के कान में कहता है।

अर्जुन -  "अरे...हमारी हिम्मत नहीं है अभी हिटलर महाराज से मिलने की।"

पदमा देवी -  "बदमाश...आप भी ना, अपने पिता को कोई हिटलर कहता है क्या?"

अर्जुन -  "अरे माँ...उनके सामने जाने से ही डर लगता है।"

मां बेटे बात कर ही रहे थे कि अचानक पीछे से एक बुलंद आवाज आती है।

महाराजा रतन सिंह राठौर -  "आ गए आप?"

आवाज सुनकर ही अर्जुन कि ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह जाती है और वह पलट कर देखता है तो वहीं से खड़ा हो जाता है।

अर्जुन (हिचकिचाते) -  "हां पापा...हम...हम अभी आए हैं बस,हम आपके पास आने वाले थे।"

रतन सिंह -  "तो आ जाइए।"

अर्जुन डरते डरते पापा के पास जाता हैं और उनके पर छूता हैं। 

रतन सिंह -  "खुश रहिए। बहुत लंबे चौड़े हो गए हैं आप,हमसे भी ऊंचे।"

अर्जुन -  "बस आपकी ही परछाई हूँ पापा।"

रतन सिंह -  "क्या कहा आपने?"

अर्जुन (बड़बड़आते हुए) -  "मेरा मतलब...कुछ नहीं...कुछ नहीं पापा,बस अब हाइट पर तो मेरा कंट्रोल नहीं है ना।"

रतन सिंह (हंसते हुए) -  "हा… हा…हा… आपकी मजाक करने की आदत अभी तक गई नहीं है। आप फ्रेश हो जाइए। हम आपको भोजन पर मिलते हैं।"

अर्जुन -  "जी पापा।"

पिताजी के जाने के बाद पदमा देवी अर्जुन के पास आती है।

पद्मदेवी -  "अपने पिता से इतना डरते क्यों है आप,बिना घबराए भी तो बात कर सकते हैं ना। वो आपसे बहुत प्यार करते हैं।"

अर्जुन -  "बाप रे बाप, ये प्यार है?"

पदमा देवी -  "वो अपना प्यार जताते नहीं है पर आपसे बहुत प्यार करते हैं। रोज हमसे पूछते थे कि आप कैसे हैं आपकी तबीयत तो ठीक है? आपके बारे में हर एक बात पूछते।"

अर्जुन -  "अरे मां हिटलर महाराज की बातें बाद में कर लेंगे। भूख लगी है पहले खाना लगाइए।"

पदमा देवी (हंसते हुए) -  "चलो ठीक है। बदमाश।"

रात को सोने से पहले अर्जुन महल के गार्डन में टहल रहा था तभी वहां पदमा देवी आती है। 

अर्जुन -  "मां...आप सोई नहीं?"

पदमा देवी -  "हमारा बेटा 5 साल बाद आया है, हमारी आंखों में नींद कैसे आएगी।"

अर्जुन -  "आपका बेटा 5 साल बाद आया है, पर अब यहीं रहेगा आपकी आंखों के सामने। आप मेरे लिए अपनी नींद मत खराब कीजिए, आपकी सेहत के लिए अच्छा नहीं है आप सो जाइए।"

पदमा देवी -  "मैं सो जाऊंगी कुँवर, थोड़ी बातें करना चाहती हूं।"

अर्जुन -  "हां तो पूछिए, क्या पूछना चाहती हैं?"

पदमा देवी -  "हां तो कुँवर बताइए लंदन के बारे में, अपने दोस्तों के बारे में, कोई पसंद आई या नहीं ?"

अर्जुन -  "माँ...मैं वहां पढ़ने गया था,लड़की देखने नहीं।"

पदमा देवी -  "हां हां हम आपकी मां है,आप हमें क्यों बताएंगे।"

अर्जुन -  "नहीं मां, ऐसी बात नहीं है, अब हम एकलौते है ना। अब हम बात करें भी तो किससे। आपसे ही बात कर पाते हैं वरना वो हिटलर महाराज तो।"

पदमा देवी -  "आप बार-  बार अपने पिताजी को हिटलर क्यों बोलते हैं?"

अर्जुन -  "यह हमारा प्यार है माँ।"

पदमा देवी -  "अच्छा छोड़िये वो सब, ये बताइए कि हमारे बेटे पर कोई लड़की फिदा नहीं हुई हो ऐसा हो नहीं सकता,जरूर कोई ना कोई तो होगी लंदन में?"

अर्जुन (हंसते हुए) -  "उन फिरंगी लड़कियों में हमें कोई इंटरेस्ट नहीं है। हमें तो पूरे देसी लड़की पसंद है...हिंदुस्तानी, जिसमें मिट्टी की खुशबू आ सके,जो मिट्टी से जुड़ी हो।"

इधर महाराजा रतन सिंह राठौड़ अपनी पड़ोसी रियासत सज्जनगढ़ के महाराज मानसिंह राजपूत को कॉल करते हैं।

मानसिंह -  "हेलो।"

रतन सिंह -  "खंबाघनी मानसिंह, हम बोल रहे हैं रतन।"

मानसिंह (हंसते हुए) -  "महाराज रतनसिंह खंबा घनी, अभी-  अभी में तुझे ही याद कर रहा था।"

रतन -  "चल रहने दे, तेरी यह पुरानी आदत है जब भी मैं फोन करता हूं तू कहता है कि मैं ही याद कर रहा था।"

मानसिंह -  "हा…हा…हा…।"

रतन -  "अरे...मैंने तुझे एक खास बात बताने के लिए फोन किया था।"

मानसिंह -  "हां बोल, क्या बात है?"

रतन सिंह -  "हमारे कुँवर, अर्जुन सिंह राठौड़ लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस आ गए है।"

मानसिंह -  "अरे वाह...मतलब अब हमारा सपना पूरा हो सकता है।"

रतन -  "हां....जो वादा हमने बचपन में किया था, अब उसे पूरा करने का समय आ चुका है।"

मानसिंह -  "मैं बहुत खुश हूं रतन,बहुत खुश।"

रतन -  "खुश तो मैं भी हूं, अब हमारी दोस्ती रिश्तेदारी में बदलने वाली है।"

रतन सिंह और मानसिंह दोनों इस बात से बहुत खुश होते हैं।

 

आगे क्या होगा?

अर्जुन का रिश्ता तय हो गया,क्या होगा अब? कौन है जिससे अर्जुन का रिश्ता तय हुआ?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

Continue to next

No reviews available for this chapter.