नई दिल्ली के कनॉट प्लेस की रंगीन शामों की कुछ अलग ही बात होती है! छोटे शहर से आए लोगों के लिए कनॉट प्लेस जिसको प्यार से सब सी.पी. कहते हैं, किसी ख्वाब से काम नहीं होती।
रांची जैसे छोटे शहर से दिल्ली आया था रोहन मेहरा कुछ ऐसे ही सपने लेकर। दिल्ली में ऐसा बस गया रोहन कि फिर कभी वापस लौटने की हिम्मत नहीं कर पाया। हालांकि रोहन रांची का रहने वाला है जहां के लोग इस बात का दम भरते हैं कि रांची शहर किसी भी मामले में कम नहीं है पर हम इस विवाद में नहीं पड़ते हैं।
सत्ताईस साल का रोहन, वैसे तो अपनी उम्र से कम ही दिखता है, पर वह ज़ेहनी तौर पर काफ़ी मज़बूत है। वह अपनी ज़िंदगी के हर फ़ैसले खुद लेता है लेकिन जहाँ बात आती है उसके माँ के फैसलों की, वहाँ वह कोई दखल नहीं देता। वैसे इस शहर ने रोहन को बहुत कुछ दिया है पर इसके बावजूद, रोहन उदासी में अपने दिन-रात काट रहा है। अगर कोई उसका साथी है, तो वह है बबलू। कहने को तो बबलू उसका नौकर है, पर वास्तव में उसका रोल इससे कहीं ज़्यादा बढ़कर है। कभी लोकल गार्डीयन, कभी माँ-बाप के अवतार, कभी पर्सनल शेफ तो कभी दोस्त। यह बात बबलू खुद भी जानता है।इन सब में एक काम है जो बबलू को सबसे ज़्यादा करना पड़ता है और वो है रोहन का इंतज़ार! रोहन तब आँखें खोलता है, जब सब सोने की तैयारी करते हैं और वह घर वापस तब आता है, जब आसमान में सूरज उगने लगता है। उसका काम ही कुछ ऐसा था। इसी बीच बबलू को करना पड़ता है इंतज़ार कि रोहन घर वापस कब आएगा? अकेले आएगा, या किसी के साथ?
अभी शाम के 6 बज रहे थे। यह रोहन के उठने का समय था।
रोहन के फ़ोन में उसकी माँ की 10 मिस्ड कॉल थीं… बबलू कई बार रूम में आकर देख चुका था लेकिन रोहन के उठने का कोई आसार नज़र नहीं आया उसको। बबलू ने डरते-डरते बबलू ने रोहन को आवाज़ दी..
बबलू:
भईया ! माँ जी बार बार फोन कर रही हैं… आज आपको कहीं जाना नहीं है??
ऐसा नहीं था कि बबलू को रोहन से कहने के लिए कभी सोचना पड़े लेकिन उसे अपनी हदें मालूम थी। रोहन के कमरे में अंधेरा था। बबलू ने कमरे की लाइट्स ऑन कर दी… रोहन की नींद अब हल्की हल्की खुलने लगी थी।
बबलू का सवाल, “कहीं जाना नहीं है?” रोहन के दिमाग में गूंज रहा था… वो नींद में ही अचानक उठकर बैठ गया।
बबलू की बात सुनकर रोहन ने अपनी माँ को कॉल करने के लिए फोन उठाया लेकिन कुछ सोचकर उसने फोन साइड में रख दिया। शायद उसे लगा कि वो माँ से क्या बात करेगा क्यूंकी उसके पास कहने के लिए कुछ था ही कहाँ? उसने हमेशा अपने दर्द और तकलीफ किसी से बांटे ही नहीं। वो अपनी माँ से बहुत प्यार करता था… और वो जो कुछ भी कर रहा था अपनी माँ के लिए ही तो कर रहा था।
रोहन :
लाइट ऑफ कर दे बबलू, और मेरे लिए कॉफ़ी ले आ…और हां मेरे कपड़े निकाल दे… सुन.. वो कब गई?? निशा..अर्रे नहीं क्या नाम था उसका काजल ? क्या नाम बताया था उसने!!! खैर छोड़ कॉफ़ी ले आ…और सुन, माँ ने क्या कहा?
बबलू: हाँ भईया माँ जी से बात तो हुई… मुझे लगता है उनकी तबियत ठीक नहीं थी.. बात करते हुए उनकी सांसे फूल रही थीं… उसके बाद कंचन दीदी ने फोन काट दिया..
ये सुनते ही रोहन परेशान हो गया लेकिन उसने अपनी परेशानी ज़ाहिर नहीं होने दी। रोहन के लिए परेशान दिखना मतलब कमज़ोर दिखना और यह रोहन को बिल्कुल मंजूर नहीं था। उसने बात बदलते हुए उसने बबलू से पूछा……
रोहन- कल रात जो लड़की आई थी, कब गई??
बबलू : भईया , वो लड़की तो सुबह होते ही चली गई..
रोहन : कुछ कहा भी या ऐसे ही बिना कुछ कहे चली गई???
बबलू : कुछ भी नहीं कह भईया …मैंने उन्हें रुकने को कहा भी, तो भी वो नहीं रुकी… मैंने कहा भी की भईया के उठने तक आप रुक जाओ..
रोहन : कितना बोलता है… अच्छा ये सब छोड़ जा मेरे लिए कॉफ़ी ले आ.. आँखें नहीं खुल रही है मेरी… सिर दर्द से फटा जा रहा है!
रोहन ने बबलू की बातें अनुसनी कर दी। शायद उस लड़की में उसे कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। ये उसके लिए कोई नयी बात नहीं थी। हर रात रोहन के साथ कौन आता है, कौन जाता है बबलू ने यह सब कभी जानने की कोशिश नहीं की। अंधेरे में ही रोहन ने कमरे की खिड़कियां खोल दीं। बाहर के शोर ने कमरे की ख़ामोशी को तोड़ दिया। न चाहते हुए भी रोहन जाग गया। पीछे से बबलू ने कॉफी को टेबल पर रखते हुए कहा…
बबलू : भईया कपड़े निकाल दिये हैं… खाने के लिए कुछ लाऊं क्या???
रोहन : अभी नहीं चाहिए.. तू जा अपना काम कर…
बबलू - भईया!! माँ जी से बात हो गई?
रोहन : यहीं खड़ा है अभी तक? भाई मुझे अकेला छोड़ेगा?
बबलू : वो बात नहीं है भईया जी… माँ जी बहुत परेशान हैं..
आपने उनसे बात नहीं की है… वो आपसे मिलने यहां आना चाहती हैं…
रोहन : क्या… माँ ने कहा कि वो यहां आयेंगी?
जिस माँ के लिए वो जी रहा है.. उस माँ का सामना क्यों नहीं करना चाहता था? शायद उसने अपनी माँ को जब पहली बार डरा, सहमा देखा था, वो कहीं दूर भाग जाना चाहता था। अपनी बेबसी.. अपनी लाचारी से दूर और इसलिए रोहन ने अपना शहर भी छोड़ दिया था। उसे ऐसा लगता था कि शहर से दूर जाएगा तो शायद माँ के दर्द कम देखने पड़ेंगे। खिड़की से होते हुए ये कमबख़्त हवा उसे छू कर वह सब याद दिला रही थी जिसे भूलने की कोशिश वह हर रोज़ करता था…
जाने कितने राज़ रोहन के सीने में दफ़न थे। रोहन की ज़िंदगी भी एक राज़ थी। तभी उसके फ़ोन में एक मैसेज आया… लिखा था - ‘आज रात का फिक्स कर दिया है। कहां और कितने बजे पहुंचना है, थोड़ी देर में बताता हूं।’ यह मैसेज रोहन के मैनेजर, विवेक का था जो उसके दोस्त से थोड़ा कम था। रोहन की सारी प्लैनिंग वही करता था।
विवेक का मेसेज पढ़ने के बावजूद उसका ध्यान अब भी माँ की तबीयत पर था।
रोहन : आख़िर माँ मुझसे मिलने क्यों आना चाहती है?? कंचन तो है उनके साथ… फिर क्यों परेशान है माँ?
कंचन : हेलो! सर
रोहन : वहां सब ठीक है?? माँ कैसी है?
कंचन : ठीक है लेकिन…
रोहन : लेकिन क्या? अगर कोई प्रॉब्लेम थी तो मुझे कॉल क्यूं नहीं किया… कंचन मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी..
रोहन कंचन पर पूरा भरोसा करता था… वो जानता था कंचन के साथ होने का मतलब माँ के बारे में उसे कोई टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है.. कंचन और रोहन की माँ के बीच एक अलग ही रिश्ता बन चुका था।
पहले तय हुआ था कंचन माँ की देखभाल के लिए सुबह-शाम उनके साथ रहेगी लेकिन वक्त के साथ रोहन की माँ और कंचन बेहद करीब हो गए थे… इतना कि कंचन ने उनके साथ ही रहने का फ़ैसला कर लिया था। वह रोहन की माँ को अपनी माँ की तरह मानने लगी थी।
रोहन की माँ, हेमलता जी भी कंचन को अपनी बेटी की तरह चाहने लगी थी।
कंचन के आ जाने से हेमलता जी के जीवन का सूनापन थोड़ा कम हो गया था।
कंचन पढ़ी लिखी है लेकिन परिवार पर आई आर्थिक मुश्किलों की वजह से वो रोहन के माँ की ‘केयर-टेकर’ की नौकरी कर रही थी। इस दुनिया में उसका कोई नहीं है - यह बात, कंचन जब भी हेमलता जी से कहती तो उनका जवाब आता….
रोहन की माँ, हेमलता : कंचन, कितनी बार कहा है, मैं तुम्हारी माँ हूँ और तुम मेरी बेटी… यू आर नॉट अलोन।
यह कहते हुए दोनों की आंखें नम हो जातीं … एक अजीब-सा रिश्ता बन गया था उन दोनों के बीच।
जहाँ कंचन और रोहन की माँ का एक रिश्ता-सा बन गया था, वहीं दूसरी ओर, रोहन हर रिश्ते से दूर भागता था। एक अजीब-सी ज़िंदगी जी रहा है जिसमें न कोई दोस्त था और न ही कोई रिश्ता। उसके फ़ोन पर विवेक का एक और मैसेज आया। लिखा था - मीटिंग फिक्स्ड, E45, प्रीत विहार… ऑल द बेस्ट!
क्या मतलब था इस मैसेज का?
किस चीज़ की मीटिंग होने वाली थी?
क्या होने वाला था E45 प्रीत विहार में?
आखिर ये मीटिंग, रोहन की ज़िंदगी को किस मोड़ पर ले जाएगी ?
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