संध्या हैरानी से सबको देख रही थी। उस कमरे के अंदर, सब कुछ रुका हुआ था। संध्या ने कलाई पर बंधी अपनी घड़ी देखी, घड़ी नहीं चल रही थी। संध्या को यकीन आ गया कि उसने सच में समय को रोक दिया है लेकिन सवाल है कि कब तक? इसका जवाब संध्या के पास नहीं था। उसे तो यह भी पता नहीं चला की उसने ये क्या कर दिया है? और कैसे किया? और जो किया वो कितनी देर तक काम करेगा। किसी के पास चलता हुआ वक़्त कम होता है लेकिन संध्या के पास अभी रुका हुआ वक़्त कम था। उसने देखा कि काव्या जो बेहोश थी, उसकी साँसें चल रही थीं। संध्या ने उसे होश में लाने की कोशिश की। उसके चेहरे पर पानी मारा, काव्या को आवाज़ भी दी लेकिन उसको होश नहीं आया। संध्या panic करने लगी, उसे समझ नहीं आया कि काव्या को होश में वापस लाने के लिए क्या करे? संध्या नहीं जानती कि काव्या सिर्फ़ बेहोश नहीं थी, उसकी चेतना शक्ति इस वक़्त किसी और dimension में थी। वो कहीं भी हो सकती थी, किसी और दुनिया में, किसी और शहर में, किसी और जगह पर। पर काव्या, किसी अंजानी दुनिया में या किसी अंजानी जगह पर नहीं थी। वो अपनी पसंदीदा जगह पर थी, बनारस में। काव्या इस वक़्त, बनारस के एक घाट पर बैठी हुई है। वो अकेली नहीं है, उसके साथ एक 9 साल का लड़का बैठा हुआ है। उस लड़के ने काव्या का हाथ पकड़ा हुआ है और वो ठीक सामने बह रही गंगा को देख रहा है। तभी गंगा किनारे एक नाव आकर रुकी। उस लड़के ने काव्या से कहा कि वो देखो माँ, वो नाव फिर से आकर रुक गयी। ये नाव बार-बार हमारे सामने आकर क्यों रुक जाती है? काव्या ने अपने बेटे की बात सुनी और नाव को देखते हुए उससे कहा कि शायद ये नाव हमें घाट के दूसरी तरफ़ ले जाना चाहती है। उस जगह जहाँ हमें इस वक़्त होना चाहिए। दूसरे किनारे पर। ये सुनकर काव्या के बेटे ने फ़ौरन ही ना में सिर हिला दिया, फिर काव्या की तरफ़ देखते हुए बोला कि मुझे तो यहीं अच्छा लग रहा है। मुझे दूसरे किनारे पर नहीं जाना, अभी तो बिल्कुल नहीं। मुझे आपके साथ यहीं बैठे रहना है।  

Kavya : लेकिन हमेशा के लिए तो यहीं पर नहीं बैठ सकते ना! यहाँ से आगे भी तो जाना ही होगा। मेरे दोस्त मुझे ढूंढ़ रहे होंगे। मुझे वापस जाना चाहिए, उनके लिए भी और तुम्हारे लिए भी। वो नाव बार-बार आ रही है। क्या तुम चलोगे मेरे साथ?  

काव्या के बेटे ने उसका हाथ छोड़ दिया और अपनी जगह से उठते हुए बोला कि आप जाइए, ये नाव आपके लिए आई है। मेरे आने में अभी वक़्त है लेकिन जब तक मैं आता नहीं, अपना ध्यान रखियेगा। काव्या ने अपने बेटे को गले लगाया और नाव में बैठ गयी। “जल्दी आना”, नाव में बैठी काव्या ने कहा। कुछ ही देर में वो नाव गंगा के दूसरे किनारे पर आ गई। काव्या नाव से उतरी, उसने सामने देखा तो कुछ दूरी पर उसे वही अस्पताल दिखा, गुफ़ा से निकल कर जिसमें वो ख़ुद आ गयी थी या उसकी माँ उसे लाई थी। काव्या को माँ सिर्फ़ दिख रही थी, वो वहाँ थी नहीं। इस सबके पीछे सच में हृदय गुफ़ा है, या सच्चाई कुछ और ही है। कितनी भी देर हो, कितना भी वक़्त लगे, कितनी भी मुश्किलों से लड़ना पड़े, जीत हमेशा सच की ही होती है। झूठ और बुराई, अँधेरे की आड़ लेकर छुप सकते हैं लेकिन केवल तब तक जब तक कि सच्चाई की रोशनी से उनका पाला नहीं पड़ता। रोशनी की एक किरण काफ़ी होती है, अँधेरे को मिटाने के लिए। काव्या, रोशनी की वही एक किरण है। उसके होश में आते ही सच भी सामने आ जायेगा। उस कमरे के अंदर, जहाँ समय रुका हुआ है, संध्या पूरी कोशिश कर रही थी कि काव्या को होश में ला सके लेकिन जब संध्या को लगा कि इसमें वक़्त ज़ाया हो रहा है तो उसने काव्या को उठाया, उसका एक हाथ अपने कंधे पर डाला और कमरे से निकलकर लिफ़्ट के पास आ गयी। Ground floor पर आते ही संध्या, काव्या को लेकर जैसे ही lift से बाहर निकली, उसने देखा कि वहाँ गेट पर एक security guard खड़ा हुआ था। उसके हाथ में एक rifle थी, संध्या के साथ बेहोश खड़ी काव्या को देखकर वो गार्ड समझ गया कि हॉस्पिटल से एक patient को भगाया जा रहा है। उस गार्ड ने rifle load की और संध्या को चेतावनी देते हुए कहा - “अगर अपनी जान प्यारी है तो patient को छोड़ दो। डॉक्टर की मर्ज़ी के बिना यहाँ से कोई बाहर नहीं जा सकता। देखो लड़की, अगर तुम्हारा एक कदम भी आगे बढ़ा तो मैं गोली चला दूँगा।”  

Security guard एक बूढ़ा आदमी था, उसकी आँखों पर चश्मा भी नहीं था। संध्या को धमकी देने के बाद वो चश्में के लिए अपनी जेब टटोलने लगा। संध्या को यही मौका सही लगा, उसने गार्ड की तरफ़ ध्यान से देखा और फिर से समय को रोकने की कोशिश की लेकिन इस बार वैसा नहीं हुआ। तभी सीढ़ियों से होते हुए डॉक्टर विलास और बाकी लोग भी वहाँ आ गए। डॉक्टर विलास ने हैरानी से संध्या को देखा और कहा कि कोई उसपर हमला नहीं करेगा। इतना कहकर डॉक्टर विलास आगे बढ़े तो संध्या ने उन्हें अपनी जगह पर ही रुकने के लिए कहा। डॉक्टर विलास रुक गए और वहीं से अपना सवाल किया कि संध्या ने ऊपर कमरे में ऐसा क्या जादू किया था कि समय ही रुक गया।  \

Sandhya : मुझे नहीं पता, मैंने वो कैसे किया। मैंने तो सिर्फ़ तुम्हें कहा था, रुकने के लिए लेकिन कमरे में समय ही रुक गया। ऋषि ने कहा था कि मैं ऐसा कर सकती हूँ। मैंने उनकी बात पर विश्वास किया और वो हो गया। अब तुम मेरे सवाल का जवाब दो, यहाँ से निकल कर हृदय गुफ़ा में वापस जाने का दरवाज़ा कहाँ है?  

संध्या का सवाल सुनकर, डॉक्टर विलास समझ गए कि उसे सच्चाई नहीं पता। डॉक्टर विलास ने बताया कि ये जगह, ये हॉस्पिटल, ये हृदय गुफ़ा के बनाये किसी मायाजाल का हिस्सा नहीं है। ये असली जगह है। वो सब इस वक़्त हृदय गुफ़ा से बाहर हैं। उससे बहुत दूर हैं। डॉक्टर ने आगे कहा कि हृदय गुफ़ा में कई ऐसे secret passage हैं जो बाहर की दुनिया में खुलते हैं। जो हमें अलग अलग शहरों में कहीं भी पहुँचा सकते हैं। संध्या समझ गयी थी कि डॉक्टर सच कह रहा है तभी उसने संध्या को एक ऑफ़र दिया कि वो काव्या को यहीं छोड़कर वापस अपने घर जा सकती है, अपनी जान बचा सकती है। उसे गुफ़ा में वापस लौटने की कोई ज़रूरत नहीं है।

उस गुफ़ा के अंदर मेरे दोस्त हैं, उन्हें छोड़कर मुझे अपने घर नहीं जाना। हम सब साथ आये थे और उस गुफ़ा से साथ ही बाहर जायेंगे और रही बात काव्या को यहाँ छोड़ देने की तो वो तो होने से रहा। काव्या यहाँ से मेरे साथ ही जायेगी।  

अपनी बात कहकर संध्या, काव्या को लेकर तेज़ी से आगे बढ़ी लेकिन तभी गेट पर खड़े उस गार्ड ने गोली चला दी। गार्ड को चश्मा नहीं मिला था, गोली सीधा नर्स के माथे में लगी। वो फ़ौरन ही ज़मीन पर ढेर हो गयी और तभी काव्या को होश आ गया। आँखें खोलते ही उसने अपने पेट पर हाथ रखा। काव्या को लगा कि गोली उसको लगी है। संध्या ने उसे बताया कि वो ठीक है। काव्या, संध्या के गले लग गयी और खुश होते हुए रोने लगी। तभी उस गार्ड ने फिर से राइफ़ल लोड़ की लेकिन इस बार उसके गोली चलाने से पहले ही उसपर पीछे से हमला हुआ और एक ज़ोरदार दहाड़ से पूरा अस्पताल काँप उठा। संध्या और काव्या की मदद के लिए उनके सामने इंसानों की तरह बोलने वाला वही सफ़ेद शेर था जो गुफ़ा में आया था, आदित्य को दण्डित करने जब उसने सप्तऋषि के बैठने की जगह यानी उन चट्टानों को अपनी रिसर्च के लिए थोड़ा सा तोड़ने की कोशिश की थी। सफ़ेद शेर ने संध्या और काव्या से कहा कि आप दोनों मेरे साथ चलिए। हृदय गुफ़ा ने आप दोनों को वापस लाने का आदेश दिया है। तभी डॉक्टर विलास बोले कि ये कैसे हो सकता है? हृदय गुफ़ा ने तो किसी भी कीमत पर काव्या की यादाश्त मिटाने को कहा था।  

ये सुनकर वो सफ़ेद शेर गुस्से में बोला - “झूठ है ये, वो हृदय गुफ़ा का नहीं, असुरण का आदेश था। वो तो काव्या को मारना चाहता है लेकिन उसके पास मारने का अधिकार नहीं है इसीलिए उस असुरण ने ये चाल चली। आज से पहले, यहाँ जितनी भी लड़कियों की यादाश्त मिटाई गयी, उन सबके पीछे भी असुरण ही था।”

वहीं दूसरी तरफ़ आदित्य और श्रीधर, दौड़ रहे थे। उनके पास वक़्त कम था, उन्हें जल्दी से रुद्र के पास पहुँचना था। “उन दोनों में से, आज कोई एक ही ज़िंदा बचेगा” - 9 साल के उस लड़के इंदर के कहे शब्द आदित्य के कानों में बार-बार गूँज रहे थे। दौड़ते हुए, आदित्य को अचानक ही रुद्र की आवाज़ सुनाई दी। वो फ़ौरन ही रुक गया। रुद्र ने आदित्य से पीछे आने के लिए कहा। आदित्य को देख, श्रीधर भी रुक गया। उसने पूछा कि अब क्या हुआ? रुक क्यूँ गए?... याद है ना उस लड़के इंदर ने क्या कहा था, ज्यादा वक़्त नहीं है हमारे पास…  

आदित्य ने बताया कि उसने रुद्र की आवाज़ सुनी, वो पीछे की तरफ़ जाने के लिए कह रहा था। थोड़ा पीछे आने पर आदित्य को दीवार में एक सिम्बल दिखाई दिया। ये एक छोटे से साँप का निशान था, जो उल्टा लटका हुआ था, आदित्य ने जैसे ही उसे सीधा किया, वहाँ एक दरवाज़ा बन गया। आदित्य और श्रीधर जैसे ही उस दरवाज़े से अंदर आये उन्हें रुद्र दिखाई दिया। वो घुटनों पर बैठा था, उसके दोनों हाथ दो पिलर्स से बंधे हुए थे और रुद्र की गर्दन पर रंग लगा हुआ था। आदित्य और श्रीधर उसकी तरफ़ दौड़े लेकिन तभी अगुनि वहाँ आ गया। उसके हाथ में तलवार थी, अगुनि ने आदित्य और श्रीधर की तरफ़ मुस्कुरा के देखा और रुद्र की गर्दन को निशाना बनाकर, तलवार से हमला कर दिया।  

 

क्या बलि देने में अगुनि हो जायेगा कामयाब?

क्या रुद्र को बचा पाएंगे आदित्य और श्रीधर?  

कौन है असुरण और क्यों वो काव्या को मारना चाहता है?  

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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