जब ऋषि की आवाज़ संध्या के कानों में पड़ी, उस वक़्त वो चित्र के नीचे लगी ईंट को दबाने ही वाली थी लेकिन संध्या का हाथ रुक गया। उसने मुड़कर देखा लेकिन ऋषि वहाँ नहीं थे, केवल उनकी आवाज़ थी! संध्या से उन्होंने जो भी कहा वो सुनकर, संध्या को यकीन नहीं आया। यकीन इस बात का कि उसके अंदर, एक पूरे ब्रह्मांड जितनी शक्ति कैसे हो सकती है। वो तो बस एक इंसान है और आख़िर में कहा गया वो वाक्य कि तुम चाहो तो, समय भी रुक सकता है। ये सुनकर तो संध्या का सिर ही घूम गया। वो हैरानी से चारों तरफ़ देखने लगी। उसके अलावा वहाँ कोई नहीं था। संध्या ने बचपन से एक ही बात सुनी थी, वो हम सब ने भी कभी ना कभी सुनी ही होगी। घर के बड़े, बच्चों को ये सीख ज़रूर देते हैं कि समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता। आज जब संध्या को उसकी सीख से ठीक उल्टा कुछ बताया गया तो उसने इस नई सीख को एक्सेप्ट ही नहीं किया। उसे लगता है कि समय का रुक जाना, ये ना तो पॉसिबल है और ना ही प्रैक्टिकल…
संध्या के मन में सवाल थे तो उसने कई बार ऋषि को आवाज़ दी, लेकिन अपनी बात कह देने के बाद, अब ना ऋषि वहाँ थे और ना ही उनकी आवाज़। संध्या ने चित्र के नीचे लगी ईंट प्रेस कर दी और तभी पीछे वाली दीवार एक दरवाज़ा बन गयी। संध्या उसी दरवाज़े से अंदर चली गयी।
दूसरी तरफ़, श्रीधर और आदित्य उस मायावी अगुनि तक पहुँचने का रास्ता ढूँढ रहे थे। अपने हॉल से निकलकर वो बायीं तरफ़ मुड़े और एक गलियारे में आ गए थे। ये गलियारा बहुत ही लंबा था, श्रीधर और आदित्य बहुत देर से सीधे चले जा रहे थे, वो भी लगभग दौड़ते हुए। वे जल्दी से जल्दी रुद्र तक पहुँचना चाहते थे। थोड़ा और चलने पर आदित्य को अपने राइट में एक लड़का दिखाई दिया जो घुटनों में मुँह छुपाकर बैठा हुआ था। उसे देखते ही आदित्य रुक गया। उसने आगे निकल गए श्रीधर को आवाज़ दी तो श्रीधर दौड़कर वापस आया। उसने भी लड़के को देखा, आदित्य उसके पास जाने लगा तो श्रीधर समझ गया कि आदित्य अब उस लड़के की मदद करेगा। श्रीधर ने आदित्य को रोकते हुए कहा...
श्रीधर: हमारे पास वक़्त नहीं है। इस बच्चे की मदद कोई और कर देगा, अभी हमें सिर्फ़ रुद्र की मदद करनी है। अभी केवल एक ही लक्ष्य है, उससे भटको मत और ये बच्चा आराम से बैठा है, मदद माँग भी नहीं रहा है। वैसे ये कोई मायावी भी हो सकता है। हमें दूर ही रहना चाहिए, इस गुफ़ा में वैसे भी कोई भरोसे के लायक नहीं है।
श्रीधर की बात को सही मानकर आदित्य मुड़ गया। वो दोनों फिर से आगे की तरफ़ बढ़े ही थे कि तभी उस 9 साल के लड़के ने आदित्य का नाम लेते हुए कहा कि तुम कहाँ जा रहे हो आदित्य? मेरी मदद नहीं करोगे? मैं बहुत देर से यहाँ बैठा हूँ लेकिन कोई मेरी मदद नहीं कर रहा। तुम से पहले दो लोग और यहाँ से होकर गए थे, लेकिन वो भी नहीं रुके। उनमें से एक रुकना चाहता था, मेरी मदद भी करना चाहता था लेकिन दूसरे वाले अंकल ने उसे रुकने नहीं दिया। और तुम्हें पता है, वो दोनों हवा में उड़ते हुए जा रहे थे। मुझे भी हवा में उड़ना है?
आदित्य: तुम्हें मेरा नाम कैसे पता?
आदित्य के सवाल पर उस लड़के ने कहा कि उसे तो सबका नाम पता होता है। पता नहीं कैसे लेकिन वह ऐसा कर लेता है। लेकिन अब उस लड़के को घर जाना है। उसने आदित्य से पूछा कि क्या वह उसे घर ले जायेगा?
आदित्य: हाँ हाँ, मैं, मैं ले जाऊँगा तुम्हें घर लेकिन पहले ये बताओ कि वो दो लोग जो हमसे पहले यहाँ से गए थे, उनके नाम क्या थे? तुम मेरी मदद करो फिर मैं भी तुम्हारी मदद करूँगा।
9 साल के उस लड़के ने आदित्य की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाकर पहले उससे वादा लिया कि सही वक़्त आने पर वो उसकी मदद ज़रूर करेगा, उसे घर लेकर ज़रूर जायेगा। आदित्य ने हाथ मिलकर वादा कर दिया। लड़के ने फ़ौरन ही थोड़ी देर पहले गए दोनों लोगों के नाम बता दिये। वो नाम थे - अगुनि और रुद्र। नाम बताकर उस लड़के ने आगे कहा कि अब जल्दी करो, जाओ यहाँ से, वक़्त हाथ से निकला जा रहा है। उन दोनों में से, आज कोई एक ही ज़िंदा बचेगा।
आदित्य ने जाने से पहले उस लड़के का नाम पूछा, उसने अपना नाम बताया - “इंदर”
उधर, संध्या जब दरवाज़े के अंदर आई तो उसे सामने एक अस्पताल दिखा। अस्पताल के गेट पर कोई नहीं था, संध्या अंदर आ गयी। रिसेप्शन फर्स्ट फ्लोर पर था, वहाँ बैठी रिसेप्शनिस्ट ने संध्या को रोक लिया। उसने पूछा कि कहाँ जाना है और किससे मिलना है। संध्या ने फ़ौरन ही कहा कि उसकी दोस्त काव्या यहाँ पर है, एक बार प्लीज चेक कर दीजिये कि वो कौन से वार्ड में है? रिसेप्शनिस्ट ने कंप्यूटर में काव्या का नाम सर्च किया लेकिन काव्या का नाम वहाँ नहीं था। संध्या के कहने पर, रिसेप्शनिस्ट ने डबल चेक करने के बाद फिर से वही कहा कि काव्या नाम से यहाँ कोई एड्मिट नहीं है। वापस ग्राउंड फ्लोर पर जाने के लिए संध्या ने लिफ़्ट रोकी लेकिन ग्राउंड फ्लोर की जगह उसने 5वे फ्लोर का बटन प्रेस कर दिया। लिफ़्ट से बाहर निकलते ही संध्या ने आसपास देखा, वहाँ कोई नहीं था। कॉरिडोर के दोनों तरफ कमरे थे। हर कमरे के बाहर पेशंट के नाम की जगह नंबर लिखा हुआ था। संध्या ने बारी बारी से हर कमरा खोला लेकिन किसी भी कमरे में कोई भी नहीं था। सब कमरे खाली थे। संध्या सोच में पड़ गयी, ये कैसा हॉस्पिटल है जिसमें पूरे फ्लोर पर एक भी पेशेंट नहीं है। संध्या ने कैलकुलेट किया कि जिस रास्ते से काव्या आई थी, वो उसी रास्ते से आई है। दरवाज़ा खुला तो ठीक सामने ये हॉस्पिटल ही था, आसपास और कुछ नहीं है। इस हिसाब से तो काव्या को इसी हॉस्पिटल में होना चाहिए। अपनी दोस्त को ढूँढे बिना संध्या हार नहीं मानने वाली थी, उसने चौथे फ्लोर पर चेक करने का सोचा और लिफ्ट का बटन दबाया।
लिफ़्ट जैसे ही खुली तो उसमें से काव्या बाहर आई। एक नर्स ने उसे पकड़ा हुआ था। काव्या अपने होश में नहीं थी। उसे देखकर पता चल रहा था कि उसे नशे की दवा दी हुई है। नर्स ने संध्या को देखा और तपाक से बोली कि वो इस फ्लोर पर क्या कर रही है? यहाँ पे सिर्फ़ हॉस्पिटल स्टाफ अलाउड है। सवाल के जवाब में संध्या ने सवाल ही किया… काव्या के साथ ये क्या किया तुमने? छोड़ दो इसे। ये सुनते ही नर्स बोली कि उसने कुछ नहीं किया, बाकी लोगों की तरह तुम्हारी ये दोस्त भी यहाँ ख़ुद आई थी, अपनी मर्ज़ी से अपनी याददाश्त मिटाने के लिए। नर्स ने आगे कहा कि उसने तो अभी बस एनेस्थीसिया का इंजेक्शन दिया है, बाकी काम तो डॉक्टर विलास देखेंगे। इलेक्ट्रिक शॉक देके, पैशन्टस की याददाश्त वही मिटाते हैं।
ये सुनते ही, संध्या ने नर्स को पीछे हटने के लिए कहा। वो काव्या को एक रूम में ले आई और उसे बिस्तर पर लिटा दिया। संध्या ने नर्स से कहा कि कोई गलती हो गयी है, काव्या अपनी मर्ज़ी से यहाँ नहीं आई, ज़रूर कोई लाया होगा उसे। रिसेप्शन पर तो काव्या का नाम तक नहीं था। नर्स ने फिर सफाई देते हुए कहा कि वो जो रिसेप्शनिस्ट है, ज़रा कामचोर है, वो नाम लिखना भूल गयी होगी। वैसे मैं आपको बता दूँ कि ये हॉस्पिटल सिर्फ़ एक ही काम करता है जो है मेमोरी ईरैस करना और हम उन्हीं लोगों पर इस प्रोसीजर को करते हैं जो अपनी मर्ज़ी से यहां आते हैं। हमारा केवल एक रूल है कि एक बार जो यहाँ आ गया वो ख़ाली दिमाग के साथ ही यहाँ से जाता है, नहीं तो फिर कभी नहीं जाता है।
नर्स ने अब तक जो भी संध्या से कहा वो सब सच था। संध्या को लग रहा है कि कोई काव्या को गुफ़ा से निकाल के, यहाँ लेकर आया है लेकिन ऐसा नहीं है। गुफ़ा के अंदर, उस हॉल में काव्या को उसकी माँ दिखी थी, इस अस्पताल में आने तक काव्या को यही लग रहा था कि उसकी माँ उसके साथ है लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। असल में काव्या को माँ केवल दिख रही थी, वो वहाँ थी नहीं। काव्या सिर्फ़ हल्लुसीनेट कर रही थी, अब सवाल ये है कि काव्या हल्लुसीनेट क्यूँ कर रही थी… इसका जवाब एकदम सीधा है, हृदय गुफ़ा की वजह से। वो गुफ़ा चाहती है कि काव्या अपने बारे में सबकुछ भूल जाए। संध्या ने ख़ुद को शांत किया और ख़ुद से कुछ सवाल किये। उसे भी सीधा जवाब मिल गया कि काव्या के साथ अभी जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे हृदय गुफ़ा है। लेकिन हृदय गुफ़ा ने ये सब खेल क्यूँ रचा, इसका जवाब अभी किसी के पास नहीं, सिवाय काव्या के, जो कि अभी बेहोश है।
तभी वहाँ डॉक्टर विलास आ गए। वो तेज़ कदमों के साथ कमरे में दाख़िल हुए। डॉक्टर विलास के साथ दो लंबे-चौड़े सिक्युरिटी गार्ड और आये। उन दोनों ने आते ही संध्या को पकड़ लिया ताकि वो इस प्रोसीजर के बीच में रुकावट ना बने। संध्या ने डॉक्टर विलास से विनती करते हुए कहा कि काव्या की याददाश्त ना मिटायें। वो ऐसा नहीं चाहती है। डॉक्टर विलास बोले कि अगर उन्होंने काव्या को उसकी याददाश्त के साथ वापस लौटने दिया तो वो हृदय गुफ़ा उनकी ख़ुद की याददाश्त मिटा देगी।
डॉक्टर विलास के मुँह से हृदय गुफ़ा का नाम सुनकर संध्या समझ गयी कि वो नहीं रुकेंगे क्यूंकि यहाँ सब लोग उस गुफ़ा की शक्ति के ग़ुलाम हैं। डॉक्टर विलास ने काव्या को इलेक्ट्रिक चेयर पर बैठाया और फिर जैसे ही अपने टूल्स उठाये, संध्या को ऋषि के कहे शब्द याद आ गये। तभी संध्या ने पूरे ध्यान के साथ डॉक्टर विलास की आँखों में देखा। डॉक्टर विलास ने संध्या को देखा और तभी संध्या ने उन्हें रुकने के लिए कहा।
डॉक्टर विलास के साथ ही उस कमरे में बाकी सब कुछ भी रुक गया था। संध्या हैरान थी, उस कमरे के अंदर, उसने समय को रोक दिया था।
क्या काव्या को अस्पताल से निकाल लेगी संध्या?
आख़िर हृदय गुफ़ा क्यों मिटाना चाहती है, काव्या की याददाश्त?
और क्या वक़्त रहते श्रीधर और आदित्य, रुद्र को बचा लेंगे?
No reviews available for this chapter.