परीक्षा। यह ऐसा शब्द है जिससे बच्चे तो क्या, बड़े-बूढ़े भी काँपते हैं। हमारी जीवन रेखा को अगर कागज़ पर ड्रॉ करें तो ज़्यादातर लोग, उसको अचीव्मन्ट में मापते हैं और अचीव्मन्ट क्या होती हैं? जीवन की दिए हुई हर एक कठिन परीक्षा को पास कर लेना, वो भी डिस्टिंक्शन के साथ…। ज़्यादा भारी तो नहीं हो गया? वैसे, जितनी जल्दी हम इस बात को समझ लें, उतना ही बेहतर है।
आइये, अपनी कहानी पर वापस लौटते हैं… अभी थोड़ी देर पहले जब उस मायावी ने रुद्र से ये सुना कि श्रीधर ने उसे अपनी सच्चाई की ताकत से हराया है तो ख़ुद की शक्ति पर, ख़ुद के बनाये तिलिस्म पर उसका जो यकीन था, वो टूट गया और साथ ही टूट गया उसका अहंकार भी। अहंकार टूटा तो बदला लेने के लिए उस मायावी को और कुछ नहीं सूझा, उसने एक खंजर निकाला और श्रीधर की छाती के पार कर दिया। श्रीधर पर हमला पलक झपकते ही हुआ, ना श्रीधर हमले को रोक पाया और ना ही कोई और। श्रीधर ज़मीन पर गिरता उससे पहले ही आदित्य ने उसे संभाला और पिलर के पास बिठा दिया। आदित्य ने श्रीधर को यकीन दिलाते हुए कहा कि उसे कुछ नहीं होगा। वो इस घाव को अभी ठीक कर देगा, लेकिन घाव गहरा था। श्रीधर की छाती से खून तेज़ी से बह रहा था। आर्मी में रहते हुए श्रीधर ने बहुत से घाव झेले हैं, वो जानता है कि प्रॉपर मेडिकल ट्रीट्मन्ट के बिना इस घाव को ठीक नहीं किया जा सकता। तभी काव्या ट्राली में रखे ईमर्जन्सी बैग से एक कपड़ा और मेडिकल किट ले आई। आदित्य ने फ़ौरन ही ये कोशिश शुरू कर दी कि किसी तरह श्रीधर का बहता हुआ खून रुक जाए। उधर रुद्र और संध्या उस मायावी के सामने खड़े हुए थे। श्रीधर को खंजर लगते ही उसके बाकी साथी वहाँ से गायब हो गए थे। रुद्र को उस मायावी पर गुस्सा आ रहा था, अगर उसका बस चलता तो उस मायावी के खंजर को रुद्र अभी उसके सीने में उतार देता लेकिन अभी श्रीधर की जान बचाना ज़्यादा अहम था। रुद्र ने हाथ जोड़कर उस मायावी से कहा…
रुद्र: “हे मायावी, अपना दिया हुआ घाव, ये ज़ख़्म जो श्रीधर को दिया है, इसे वापस ले लो।”
ये सुनते ही वो मायावी हैरानी से रुद्र को देखने लगा। आगे आकर उसने रुद्र से पूछा कि तुम्हें ये कैसे पता कि मैं अपने दिये हुए ज़ख़्म को वापस ले सकता हूँ? रुद्र ने कहा कि वो जानता है कि उसके पास ये शक्ति होगी ही, क्योंकि हर बड़े मायावी के पास ऐसी शक्ति होती ही है। रुद्र ये भी जानता है कि हर मुसीबत का एक हल होता है, हर ज़ख़्म का एक मरहम और हर किसी की एक कीमत होती है। रुद्र उस मायावी की कीमत पूछता उससे पहले ही वो मायावी ख़ुद ही बोल पड़ा कि अगर मैं श्रीधर की जान बचा लूँ तो उसके बदले में मुझे क्या मिलेगा? ये सुनते ही संध्या बोली…
संध्या: क्या चाहिए तुम्हें? तुम जो कहोगे, हम वो करेंगे, लेकिन पहले श्रीधर का ज़ख़्म वापस लो, उसे पहले पूरी तरह से ठीक करो। देखो उसका खून बहे जा रहा है। प्लीज उसे ठीक कर दो, प्लीज अजय प्लीज!!!!
संध्या ने जैसे ही उस मायावी को अजय कहा, वो अपने असली रूप में आ गया। अब उसका चेहरा अजय का नहीं अपना ख़ुद का था। उस मायावी ने संध्या से कहा कि अब वो जो कहने जा रहा है, उस बात को ध्यान से सुने क्यूंकि वो उसे दोहराएगा नहीं। उसे ये पसंद नहीं कि एक ही बात को वो बार-बार समझाए। उस मायावी ने एकदम शांत भाव के साथ कहा…
मायावी अजय अका अगुनि: यहाँ दो बातें हैं। पहली ये कि मेरा नाम अजय नहीं अगुनि है और दूसरी बात ये कि मैं ताकत का पुजारी हूँ, मुझे ताकत चाहिए, इतनी कि मैं इस गुफ़ा से बाहर निकल सकूँ और जितनी चाहिए उतनी ताकत हासिल करने के लिए, मुझे एक बलि देनी है, एक ऐसे इंसान की बलि जो अपनी मर्ज़ी से मेरे साथ चले और जो इस गुफ़ा से बाहर निकल कर वापस इसमें लौट कर आया हो। बलि देकर, मुझे उस इंसान की शक्ति मिल जायेगी और मैं जिस तिलिस्म की वजह से यहाँ कैद हूँ वो टूट जायेगा और फिर अगुनि आज़ाद, हमेशा-हमेशा के लिए आज़ाद।
नेरैटर अगुनि की बात सुनकर रुद्र और संध्या समझ गए कि वो, कैप्टन अजय का रूप लेकर इसीलिए आया था ताकि श्रीधर को उसकी मर्ज़ी से अपने साथ ले जा सके। अगुनि जानता था कि श्रीधर गुफ़ा से बाहर निकल कर वापस आया है, लेकिन वो ये नहीं जानता कि श्रीधर समय में पीछे चला गया था, वो भी महाभारत काल में। वो इस गुफ़ा में, दुर्योधन से मिलकर वापस आया है। रुद्र और संध्या ने ये बात अगुनि से छुपाकर ही रखी। तभी रुद्र ने अगुनि से कहा कि तुम जैसा चाहते हो वैसा ही होगा लेकिन बलि के लिए तुम्हारे साथ श्रीधर नहीं मैं चलूँगा। वो भी अपनी मर्ज़ी से। ये सुनकर अगुनि मुस्कुरा दिया। रुद्र को देखने के बाद से ही अगुनि को ये लग रहा था कि वो कोई साधारण इंसान तो नहीं है। कुछ तो है उसके अंदर छुपा हुआ जिसे कोई देख नहीं पा रहा, समझ नहीं पा रहा। अगुनि ने पूछा कि वो इस गुफ़ा से कितनी बार बाहर जा चुका है। रुद्र ने बताया कि वो एक टूर गाइड है। इस हृदय गुफ़ा में उसका आना-जाना लगा रहता है। उसे इस गुफ़ा के चक्रव्यूह में घुसना भी आता है और बहार निकलना भी। वो लोगों को यहाँ लेकर आता है, इसीलिए यहाँ से बाहर कभी भी जा सकता है। उस पर हृदय गुफ़ा की तरफ़ से कोई पाबंदी नहीं है। वो एक आज़ाद पंछी है।
अगुनि बिना देर किये श्रीधर के पास आया और उसने आदित्य को हट जाने के लिए कहा। आदित्य पीछे हट गया तभी अगुनि ने अपना हाथ श्रीधर की छाती पर रखा और बहुत धीरे से कुछ बुदबुदाने लगा।
तभी पिलर के पास खड़ी काव्या ने देखा कि जहाँ वो चट्टानें हैं जिनपर सप्तऋषि बैठकर ध्यान किया करते थे, वहाँ काव्या को अपनी माँ दिखी। माँ ने हाथ के इशारे से काव्या को अपने पास बुलाया। सबका ध्यान श्रीधर की तरफ़ था तो काव्या को जाते हुए किसी ने नहीं देखा। माँ के पास आकर काव्या पहले तो उनके गले लगी फिर हैरानी से बोली कि वो यहाँ कैसे आई?... काव्या की माँ ने कहा कि वो यहाँ उसकी मदद के लिए आई हैं, वो काव्या को कुछ ऐसा बताने आई हैं जो उन्हें बहुत पहले बता देना चाहिए था। ये सुनकर काव्या बेचैन हो गयी। उसने पूछा कि वो क्या बताना चाहती हैं?... काव्या की माँ ने आसपास देखा, फिर काव्या के गले लगकर धीरे से उसके कान में कुछ कहा। माँ का कहा सुनते ही काव्या पीछे हट गयी। उसे माँ के कहे शब्दों पर यकीन नहीं हुआ। काव्या के दिल की धड़कन तेज़ हो चुकी थी, उसकी आँखों से आँसू गिरे, उसने ख़ुद को संभालने की बहुत कोशिश की लेकिन संभाल नहीं पायी। उसके पैरों में शक्ति खत्म हो चुकी थी, काव्या ज़मीन पर बैठ गयी तभी माँ ने काव्या के कंधे पर हाथ रखा और कहा कि उसे फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। सब संभाल लिया गया है। जिसके हिस्से में जीवन लिखा होता है उसे कोई मार नहीं सकता। काव्या ने आँसू पोंछे और माँ की तरफ़ देखते हुए कहा…
काव्या: वो कहाँ है? मुझे मिलना है उससे, देखना है उसे… अभी और इसी वक़्त। माँ, मुझे उसके पास लेकर चलिए, मैं, मैं और इंतज़ार नहीं कर सकती।
हृदय गुफ़ा के उस हॉल में, जहाँ सातवीं चट्टान रखी थी, उससे ठीक दस कदम आगे जाकर काव्या की माँ दायीं तरफ़ मुड़ गयी। थोड़ा आगे एक गलियारा था, उस गलियारे में एक चित्र था, उस चित्र के ठीक नीचे लगी एक ईंट को काव्या की माँ ने प्रेस किया तो पीछे वाली दीवार एक दरवाज़ा बन गयी। काव्या की माँ अपने साथ उसे दरवाज़े के अंदर ले गयी।
उधर पिलर से टेक लगाकर बैठे श्रीधर का खून अब नहीं बह रहा था। उसका घाव भर चुका था। श्रीधर उठा और उठते ही उसने वो किया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी, उस मायावी अगुनि को तो बिल्कुल भी नहीं। श्रीधर ने अगुनि की गर्दन दबोच ली और उसे पीछे की तरफ़ धकेलते हुए दीवार से लगा दिया। श्रीधर की आँखें एकदम से लाल हो गयीं, अगुनि घबरा गया। तभी श्रीधर गुस्से से बोला कि अगर वो अभी यहाँ से नहीं गया तो अजय का रूप लेकर उसे एक देशद्रोही बताने के जुर्म में वो उसकी जान ले लेगा। अगुनि ने मदद के लिए रुद्र की तरफ़ देखा, रुद्र ने आगे आकर श्रीधर को समझाया कि वो अगुनि को छोड़ दे क्यूंकि उसने श्रीधर को जीवन-दान भी दिया है। गुस्से में तमतमाकर श्रीधर बोला कि इस मायावी ने जान बचाई नहीं है, जान बचाने के बदले सौदा किया है। तभी रुद्र ने श्रीधर का हाथ पकड़कर उसे पीछे खींच लिया और अगुनि की साँस में साँस आई। रुद्र ने श्रीधर की आँखें देखी, उसे फिर यही लगा कि श्रीधर जब से महाभारत काल में दुर्योधन से मिलकर लौटा है, उसके अंदर कुछ तो बदल गया है।
रुद्र ने श्रीधर से पहले शांत हो जाने के लिए कहा और फिर उसे बताया कि अगुनि ने सौदा किया है और ये सौदा तुम्हारी ज़िंदगी से बड़ा नहीं है। इसके बाद रुद्र ने अगुनि को चलने के लिए कहा। इससे पहले कि कोई और कुछ कहता, अगुनि ने रुद्र का हाथ पकड़ा और उसे लेकर गायब हो गया। अगुनि अपने साथ रुद्र को कहाँ ले गया, ये कोई नहीं जानता। ख़ुद के लिए रुद्र का सैक्रिफाइस देखकर श्रीधर की आँखें भर आईं। आदित्य और संध्या के साथ मिलकर श्रीधर ने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वो रुद्र को सही सलामत वापस लेकर ही आयेंगे। वो जैसे ही आगे बढ़े, आदित्य ने देखा कि काव्या वहाँ नहीं थी। उसने फ़ौरन पूरे हॉल को चेक किया लेकिन काव्या कहीं नहीं थी। तभी ये तय हुआ कि संध्या, काव्या को ढूँढने जायेगी और रुद्र को वापस लाने की ज़िम्मेदारी आदित्य और श्रीधर की होगी। आदित्य और श्रीधर सामने बने गलियारे से बायीं तरफ़ मुड़ गए और संध्या दायीं तरफ़। थोड़ा आगे चलकर संध्या को एक और गलियारा दिखा।
उस गलियारे में जो चित्र था, उस चित्र के ठीक नीचे लगी एक ईंट को संध्या प्रेस करने ही वाली थी कि तभी उसे फिर से ऋषि की आवाज़ सुनाई दी। ऋषि ने संध्या से कहा - “समय बहुत कम है संध्या, जाकर बचा लो काव्या को। लेकिन ये आसान नहीं होगा, तुम्हें रोकने की पूरी कोशिश की जायेगी। बस ये याद रखना कि तुम्हारे अंदर, एक पूरा ब्रह्माण्ड है और उतनी ही शक्ति भी। तुम चाहो तो, समय भी रुक सकता है।”
समय कैसे रुक सकता है?
क्या सच में संध्या समय को रोक सकती है?
क्या समय रहते, काव्या और रूद्र को बचा पायेंगे उनके दोस्त?
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