इतने समय से हम ह्रदय गुफ़ा के अंदर क़ैद हैं। पर अब मैं, आपका सूत्रधार, आपको लेकर चलता हूँ, हृदय गुफ़ा से बाहर, समय में थोड़ा सा पीछे, जगह है देहरादून का एक छोटा सा गाँव और ये साल है 1997, इस गाँव में आज के जैसा शोर नहीं है, ना अब जैसी भीड़ है और ना ही इतनी भागदौड़। गाड़ियाँ कम हैं, स्कूटर और साइकिल ज़्यादा। संडे के दिन, संगीत पसंद लोगों के घरों में सुबह होते ही रेडियो लग जाता है, गीत सुने जाते हैं, गाये जाते हैं। वक़्त बर्बाद करने को इंटरनेट और मोबाईल  नहीं हैं। परिवार के लोग एक साथ बैठकर खाना खाते हैं और पिक्चर हॉल  में जाकर नई रिलीज़ हुई फ़िल्म को देखने का प्लान  ऐसे बनता है जैसे देश का बजट। राजदीप नेगी, सिनेमा पसंद आदमी हैं, सो महीने में एक फ़िल्म देखने का बजट वो निकाल ही लेते हैं। साल 1997 के एक शुक्रवार को एक फ़िल्म रिलीज़ होती है और फ़िल्म देखने के बाद राजदीप नेगी के सात साल के बेटे का पूरा जीवन बदल जाता है। उसे उसका लक्ष्य मिल जाता है। फ़िल्म का नाम था - बॉर्डर … और फ़िल्म देखकर जिस बच्चे ने ये तय किया था कि वो बड़ा होकर आर्मी जॉइन करेगा, उसका नाम था - अजय नेगी। 

बड़े होकर क्या बनोगे, ये सवाल जब स्कूल में पूछा गया तो  किसी ने कहा, ऐस्ट्रनॉट , कहीं से आवाज़ आई, डॉक्टर … फिर सिंगर, ऐक्टर,पेंटर… फिर आख़िर में जब अजय का नंबर आया तो उसने कहा - “इंडियन आर्मी”


 

स्कूल से निकलकर कॉलेज आने के बाद भी, वहाँ होने वाले दुनिया भर के डिस्ट्रैक्शनस  के बावजूद, अजय ने अपना लक्ष्य नहीं बदला। ऐसा नहीं है कि अजय के पास मौका नहीं था, कॉलेज में प्लेसमेंट सेल  ने उसे बहुत अच्छे पैकेज  के साथ जॉब ऑफर  की थी लेकिन अजय ने जॉब जॉइन  नहीं की। वो अपने दोस्तों की तरह अपने बचपन के सपने को नहीं भूला था। अजय ने इग्ज़ैम क्रैक किया, पूरी जान लगाकर ट्रेनिंग  की और जब एक रोज़ वो इंडियन आर्मी की वर्दी में अपने पिता के सामने आया और गर्व से उनका सीना चौड़ा हो गया। राजदीप नेगी ने बेटे को गले से लगाया और कहा… आई सलूट यू कैप्टन अजय ! 


 

कैप्टन अजय… एक साथी सोल्जर  ने अजय को आवाज़ दी और उसने अजय को मेजर  श्रीधर से मिलवाया जिसकी बहादुरी के किस्से सुन सुनकर अजय पहले ही श्रीधर का फ़ैन बन चुका था। श्रीधर और अजय में जल्दी ही दोस्ती हो गई। अजय के लिए श्रीधर उसके बड़े भाई जैसा था। श्रीधर जो हुक्म देता अजय फ़ौरन उसे पूरा कर देता। श्रीधर ने भी अजय को भाई की तरह ही ट्रीट  किया, मुश्किल वक़्त में उसका साथ दिया। जब एक जंग में श्रीधर को गोली लगी तो अजय ही उसे वक़्त रहते अस्पताल लेकर आया था। श्रीधर ने उस रोज़ एक वादा किया था कि जब तक उसकी साँस में साँस है, वो अजय को कभी कुछ नहीं होने देगा। श्रीधर ने अपना वादा नहीं निभाया। 


 

उधर, हृदय गुफ़ा के अंदर, उस हॉल  में अँधेरा छाया हुआ था। आदित्य और उसके दोस्तों को समझ नहीं आया कि एकदम से क्या हुआ है? वहाँ बहुत सी परछाइयाँ आ गयी थीं। उनमें से एक लंबी परछाई श्रीधर के पास आई, उसने श्रीधर का हाथ पकड़ा और उससे कहा - “हमारे साथ चलो” 

श्रीधर ने फ़ौरन ही अपना हाथ झटक दिया। और काव्या ने तुरंत टॉर्च  जला दी। टॉर्च  की रोशनी से वो सभी परछाइयाँ इधर उधर जाने लगीं। वो अपने लिए अँधेरा कोना ढूँढ रही थीं। काव्या ने बाकी सबको भी टॉर्च  दे दी। सबने टॉर्च  जलाई और अपने आसपास देखने लगे कि कहीं कोई परछाई तो नहीं। काव्या ने रुद्र से पूछा कि अब ये क्या नई मुसीबत है?... रुद्र के पास इसका जवाब नहीं था, उसने कहा कि इन परछाइयों को उसने भी पहले कभी नहीं देखा, शायद ये इस गुफ़ा का बनाया हुआ नया मायाजाल है लेकिन रुद्र को एक बात समझ नहीं आई कि उस एक परछाई ने श्रीधर का हाथ ही क्यों पकड़ा और उसे अपने साथ चलने के लिए क्यों कहा? 

तभी रुद्र ने गौर किया कि श्रीधर बाकी सब की तरह परेशान नहीं है। वो तो आराम से एक जगह खड़ा हुआ है, बिल्कुल ऐसे कि जैसे अभी कुछ हुआ ही नहीं। संध्या ने भी यही नोटिस किया और श्रीधर के पास आकर उससे पूछा… 


 

संध्या: श्रीधर, यू ओके ? इतने शांत क्यो खड़े हो? उस परछाई ने कुछ कहा था क्या? क्या कहा था उसने? 


 

श्रीधर: उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा कि हमारे साथ चलो! मैं उसके साथ नहीं जाने वाला। अब उसकी दुनिया अलग है और मेरी दुनिया अलग। मैंने कोशिश की थी कि ख़ुद को खत्म कर लूँ, ये सोचकर कि शायद उसकी माफ़ी मिल जाए लेकिन वो भी नहीं कर पाया। हुआ नहीं मुझसे और कभी शायद होगा भी नहीं! लेकिन मैं, मैं जाऊँगा नहीं उसके साथ, उसे ये समझना होगा, मेरी दुनिया अलग है अब! 


 

संध्या: क्या बोले जा रहे हो? किसे क्या समझना होगा? क्या तुम्हें पता है वो, वो परछाई किसकी थी? 


 

संध्या के ये पूछने पर कि क्या श्रीधर जानता है कि वो परछाई किसकी थी?... श्रीधर ने फ़ौरन ही हाँ में गर्दन हिला दी। तभी सारे टॉर्च  एक साथ बंद हो गए और अगले ही पल वो सभी परछाइयाँ वापस लौट आई। उनके आते ही सब कुछ एकदम शांत हो गया। हॉल  में अचानक ही सर्दी बढ़ गयी। सबको ऐसा लगा जैसे किसी ने वहाँ का टेम्परेचर  बदल दिया हो, उसे माइनस  डिग्री में सेट करके छोड़ दिया हो। उस लंबी सी परछाई ने फिर से आकर श्रीधर का हाथ पकड़ लिया और उससे साथ चलने के लिए कहा। श्रीधर ने फिर से हाथ झटका लेकिन इस बार उस परछाई ने हाथ नहीं छूटने दिया। परछाई के दोबारा कहने पर, श्रीधर ने बिना घबराये हुए ही कहा कि वो कहीं नहीं जाने वाला। रुद्र और बाकी सब श्रीधर की मदद के लिए आगे बढ़े तो वहाँ मौजूद बाकी परछाइयों ने सबको पकड़ कर एक ही जगह पर रोक लिया। रुद्र ने बहुत कोशिश की लेकिन वो ख़ुद को छुड़ा नहीं पाया लेकिन वो इतना समझ गया था कि ये परछाइयाँ यहाँ सिर्फ़ श्रीधर को लेने आई हैं तो श्रीधर इस वक़्त ख़तरे में है। श्रीधर, रुद्र को अँधेरे में दिख नहीं रहा था… वो मदद करना चाहता है लेकिन इस अँधेरे में, बंधे हाथों से मदद करे भी तो कैसे?... तभी आदित्य की आवाज़ श्रीधर के कानों में पड़ी! उसने श्रीधर से भागने के लिए कहा। जिस दरवाज़े से वो इस हॉल  में आये थे, आदित्य ने उसी दरवाज़े की तरफ़ भागने के लिए कहा। श्रीधर फ़ौरन भागा लेकिन उस परछाई ने श्रीधर को पकड़ कर रोक लिया और तभी वो परछाई अपने असली रूप में आ गयी, उसके साथ ही बाकी परछाइयाँ भी अपने असली रूप में आ चुकी थी। उन्होंने आदित्य और उसके दोस्तों को भी छोड़ दिया और तभी हॉल  में रोशनी हो गयी। आदित्य और बाकी सब ने वहाँ मौजूद उन फ़ौजियों को देखा! उन्हें देखकर अब कोई नहीं भागा। तभी श्रीधर के पीछे खड़ा हुआ कैप्टन अजय, सामने आया और श्रीधर को देखकर बोला… 


 

अजय: आपने वादा किया था, मुझसे भी और मेरे पिता से भी कि आप मुझे कुछ नहीं होने देंगे। लेकिन क्या किया आपने? मुझे अकेला छोड़कर चले गए। मुझे मरने के लिए छोड़ दिया दुश्मन के खेमे में। अपनी जान बचाकर और पीठ दिखाकर भाग गए। ये है आपकी बहादुरी? ये होता है देशप्रेम? पीठ भगौड़े दिखाते हैं सर ! अपने सिपाही को दुश्मन के हवाले कर देना, उसे वहाँ मरने के लिए छोड़ देना, ये होता है एक फ़ौजी का कर्तव्य? क्या मेरी और मेरे इन साथियों की जान लेकर चुकाया आपने, भारत माँ का क़र्ज़? 


 

श्रीधर: झूठ है, ये, ये सब झूठ है। अजय…. !!! मैंने किसी को दुश्मन के हवाले नहीं किया था। अजय मैंने, मैंने तुम्हें अकेला नहीं छोड़ा था, मुझे नहीं पता था कि तुम वहाँ थे। मैं आया तो था तुम्हें ढूंढ़ने… तुम्हें अपने साथ वापस ले जाने। पर मैं तुमको ढूँढता रहा लेकिन जब तुम मिले तो बहुत देर हो गयी थी। मेरी गलती बस ये थी कि मैंने ऑर्डर फॉलो नहीं किया। बटालियन  को लड़ने भेज दिया, दूसरी बटालियन  के आने का वेट  नहीं किया। मुझसे गलती हुई, मुझे समझना चाहिए था, मुझे पता होना चाहिए था कि दुश्मन पहले से घात लगाए बैठा था। हम पर हमला हुआ, लेकिन हमने दुश्मन को पीछे कर दिया था और ये, ये झूठ है, सब जो तुम कह रहे हो? सब झूठ है। झूठे हो तुम? मैं सच्चा हूँ, एक सच्चा देशभक्त, एक सच्चा फ़ौजी। 


 

अजय: अरे वाह, तुम तो कमाल हो मेजर साब ! तुम तो बिल्कुल नहीं आए मेरी बातों में! मुझे तो लगा था कि ये सब सुनकर, जो मैंने अभी कहा था, तुम अपने होश खो दोगे। जो मैं बोलूँगा वही नज़र आएगा तुम्हें। मेरे तिलिस्म की शक्ति से तो वही सब नज़र आना चाहिए था। जो आजतक किसी से नहीं हुआ वो कैसे किया तुमने? कैसे तोड़ा तुमने, मेरा ये तिलिस्म? 


 

श्रीधर नहीं जानता था कि उसके सामने जो अजय बनकर आया है, वो अजय नहीं एक मायावी है। उसके बनाये काले जादू का श्रीधर पर कोई असर नहीं हुआ था। यह एक और परीक्षा थी मेजर  श्रीधर के लिए। श्रीधर ने अंजाने में ही उसके तिलिस्म को तोड़ दिया था। लेकिन सवाल है कि कैसे? श्रीधर ने ये किया कैसे? और बार-बार ये गुफ़ा श्रीधर का टेस्ट  क्यों ले रही है? 


 

असल में जीवन के चलने का पैटर्न  बड़ा निराला है। वो हर मोड़ पर, हर वक़्त हमें सिखाएगा, फिर परीक्षा लेगा। हम सबके साथ ऐसा होता आया है, हमें मालूम है। और जिनको नहीं पता, उनके जीवन में सप्राइज़ टेस्ट  का होना अनिवार्य है। पर जब आप, बार-बार- परीक्षा देते हो, और अपनी गलतियों से नहीं सीखते, तो ज़िन्दगी, आपको और भी बड़ा test देती है। और वो तब तक आपका टेस्ट  लेती रहेगी जब तक आप वो पाठ सीख नहीं लेते। हो सकता है कि श्रीधर को अभी बहुत कुछ सीखना है…।

सवाल ये है कि श्रीधर ने कैसे तोडा वो जादुई तिलिस्म? इसका जवाब खुद श्रीधर के पास तो नहीं था लेकिन रुद्र के पास जवाब था। उसने उस मायावी की तरफ़ देखा और उसे बताया कि श्रीधर ने उसे अपनी सच्चाई से हराया है। हृदय गुफ़ा में चलने वाला सबसे बड़ा जादू केवल एक है और वो है, सच। जिसके पास सच की ताकत है, उस पर काले जादू का तिलिस्म काम नहीं करता। उस मायावी ने ये सुना और वो आग बबूला हो गया। तभी उसने कुछ ऐसा किया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। 

उस मायावी ने हवा में एक खंजर लहराया और श्रीधर की छाती के पार कर दिया। 


 

कौन है ये मायावी? 

क्यूँ अपने साथ ले जाने के लिए उसने चुना था श्रीधर को ही? 

और क्या अब श्रीधर की जान बचा पाएंगे उसके दोस्त? 




 

Continue to next

No reviews available for this chapter.