हृदय गुफ़ा में वापस लौटने के लिए, श्रीधर को कहीं कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। वो, यहाँ से वहाँ भागते हुए बस यही देख रहा था कि कहीं कोई निशान या एक पोर्टल  जैसा कुछ मिल जाए तो वो अपने समय में वापस लौट सकता है। जब कुछ नहीं मिला, तो हार कर, श्रीधर, वापस दुर्योधन के पास आकर बैठ गया। दुर्योधन की जंघा से खून अभी भी बह रहा था। श्रीधर ने पूछा कि क्या उसे और पानी चाहिए? दुर्योधन ने ना में सिर हिला दिया। कुछ देर दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई। दुर्योधन, अपने आख़िरी समय में अश्वत्थामा का इंतज़ार कर रहा था। अश्वत्थामा को प्रधान सेनापति बनाकर उसने आज्ञा दी थी कि पाँचों पाण्डवों के कटे हुए शीश, उसके सामने लाया जाए। वहीं श्रीधर को ये समझ नहीं आ रहा था कि हृदय गुफ़ा ने उसे यहाँ, इस टाइमलाइन  में क्यूँ भेजा है और वापस लौटने का कोई भी रास्ता उसे नज़र क्यूँ नहीं आ रहा।


 

श्रीधर को परेशान देखकर, ज़मीन पर घायल पड़े दुर्योधन ने पूछा… 


 

दुर्योधन  अगर तुम अपने समय में वापस नहीं लौट पाए तो क्या करोगे?


 

Shreedhar : “मैं भी एक योद्धा हूँ। अपने देश की सेना का एक सैनिक। सेना में, हमें सिखाया जाता है कि किसी भी समय, किसी भी परिस्थिति में, अपने देश, अपने सैनिक और अपने-आप को जीवित कैसे रखना होता है।” 


 

दुर्योधन ने श्रीधर की गहरी और उदास आँखें देखी और पूछा… 


 

दुर्योधन  जो युद्ध तुमने लड़ा, उसका परिणाम क्या था? तुम्हारी जीत हुई थी या हार?


 

श्रीधर अफ़सोस भरे लहजे में बोला कि उस युद्ध को तो वो जीत गए थे लेकिन उस युद्ध में वो अपने साथियों को बचा नहीं बचा पाया। उसके एक ग़लत फै़सले की वजह से आज उसका मित्र अजय इस दुनिया में नहीं है। 

श्रीधर की बातें सुनकर दुर्योधन ने कहा… 


 

दुर्योधन  मैं तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूँ। महाभारत के इस युद्ध में मैंने भी अपने सब लोगों को खोया है। अपने सबसे प्रिय मित्र कर्ण को भी लेकिन परिणाम जो भी रहा हो मुझे अपने किसी भी निर्णय का कोई पछतावा नहीं है। अगर सब कुछ फिर से हुआ और मुझे फिर से चुनाव करना पड़ा तो मैं पाण्डवों के साथ युद्ध ही करूँगा… एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकतीं। 


 

श्रीधर हैरान था कि दुर्योधन को इस बात का अफ़सोस ही नहीं कि उसकी कमांड के अन्डर इतने लोग मारे गए। बड़े-बड़े महारथी जिन्हें मार पाना तो दूर, युद्ध में हरा पाना भी मुमकिन नहीं था, वो सब मारे गए। पूरा कुरु ख़ानदान मिट गया, उसका राज्य उजड़ गया! पर कोई पछतावा नहीं! 

एक तरफ़ दुर्योधन था और दूसरी तरफ़ श्रीधर, जो पछतावे के कड़वे घूँट पिए जा रहा था। जिसे पछतावा था, जो बार बार अपनी उस एक गलती के लिए ख़ुद को कोसता रहता लेकिन दुर्योधन के साथ बैठकर, उससे प्रेरणा लेकर, श्रीधर ने तय किया कि वो अब और नहीं पछताएगा। ख़ुद को और तकलीफ़ नहीं देगा। उस रोज़ जंग में जो फ़ैसला उसने लिया था, वो फ़ैसला ग़लत था लेकिन उस फैसले के पीछे उसका इंटेंशन सही था। उसने बिल्कुल नहीं चाहा था कि उसकी बटालियन  का एक भी सिपाही ज़ख़्मी तक हो लेकिन जो हुआ, श्रीधर अब उसे बदल नहीं सकता। तो ख़ुद को दोष देकर तिल-तिल मरने का, अंदर ही अंदर ख़ुद को खत्म करने का कोई मतलब नहीं है। दुर्योधन ने देखा कि श्रीधर की आँखों से उदासी हट गई थी। तभी तालाब में श्रीधर को एक नाव दिखी। श्रीधर ने दुर्योधन को धन्यवाद कहा, उसकी आँखें खोलने और उसे सही राह दिखाने के लिए। श्रीधर ने जाने की आज्ञा माँगी। दुर्योधन ने आज्ञा दी और कहा… 


 

दुर्योधन  महाभारत के युद्ध में मुझे तो कभी विजयश्री का आशीर्वाद नहीं मिला लेकिन आज मैं तुम्हें विजयश्री का आशीर्वाद दे रहा हूँ, जीवन में आने वाले हर एक युद्ध के लिए। चाहे वो युद्ध असल रणभूमि में लड़ा जाए या अपने मन की रणभूमि में। 


 

श्रीधर दौड़कर तालाब के पास पहुँचा और झट से नाव में बैठ गया। श्रीधर के बैठते ही नाव उस तालाब के अंदर समा गयी। 


 

दूसरी तरफ़ हृदय गुफ़ा के अंदर मौजूद उस सफ़ेद शेर की आँखों में आँखें डालकर रुद्र ने उस सफ़ेद शेर से कहा! 


 

रुद्र: “जिसने तुम्हें यहाँ भेजा है, उससे कहना… रुद्र ज़िंदा है अभी। और रुद्र के होते उसके दोस्तों को कुछ नहीं हो सकता।” 


 

रुद्र के कहे ये शब्द सुनकर, वो शेर दो कदम और पीछे हट गया। तभी वहाँ मौजूद आदित्य, संध्या और काव्या ने जो देखा वो कभी सपने में भी नहीं सोच पाएंगे। वो सफ़ेद शेर, वो बोला, इंसानों की तरह, उनकी ही भाषा में। सफ़ेद शेर ने कहा कि वो केवल अपना काम कर रहा है। उसे हुक्म मिला तो वो आ गया। आदित्य को समझाओ कि वो ऐसा कुछ ना करे जो उसे नहीं करना चाहिए। अगर सप्तऋषि के बैठने के स्थान को आदित्य ने दोबारा तोड़ने की कोशिश की तो इस बार उसे कड़ा दण्ड मिलेगा… और दण्ड देने के लिए मेरे जैसे और भी आ जायेंगे। तुम, सबको नहीं रोक पाओगे रुद्र और ये मामूली इंसान हैं, मत भूलो कि दोस्ती बराबर वालों में होती है। 

सफ़ेद शेर की बात सुनकर रुद्र धीरे से बोला… 


 

रुद्र: ये मेरे दोस्त हैं, इन्हें मामूली इंसान समझने की भूल मत करना। और हाँ, तुम्हारे जैसे कितने भी आ जाएँ, मैं सबको रोक सकता हूँ और चाहूँ तो मार भी सकता हूँ। सिद्धा, अब तुम जाओ यहाँ से, तुमसे मिलकर मुझे आज अच्छा नहीं लगा तो फिर से ऐसे कभी मत मिलना। तब तक तो बिल्कुल नहीं जब तक तुम्हारे पाँव में ग़ुलामी की बेड़ियाँ हैं। 


 

वो सफ़ेद शेर जिसका नाम सिद्धा था, रुद्र की बात सुनकर उसने बस इतना कहा कि मालिक ख़ुश होंगे ये जानकर कि रूद्र अभी तक ज़िंदा है। सिद्धा आगे और कुछ नहीं बोला और जिस रास्ते से वो आया था, चुपचाप उसी रास्ते से वापस चला गया। आदित्य और बाकी लोग हैरानी से रुद्र को देख रहे थे। सब बिल्कुल हक्के-बक्के थे! उनकी आँखें फटी की फटी रह गयी थीं, उनके मन बहुत से सवाल थे लेकिन कहाँ से शुरू करें, इसका idea किसी को नहीं था। आदित्य ने कोई सवाल करने से पहले ये किया कि अपने टूल्स को वापस बैग में रख दिया। वो नहीं चाहता था कि उसकी वजह से उसके दोस्तों की जान खतरे में पड़े। तभी संध्या ने रुद्र से पूछा… 


 

संध्या: वो..... वो शेर, वो कौन था रुद्र? और तुम्हें कैसे जानता था? और वो हमारी तरह कैसे बोल रहा था? रुद्र प्लीज  सच-सच बताना, क्या कुछ ऐसा है जो हमें पता होना चाहिए लेकिन अभी तक नहीं पता, इस गुफ़ा के बारे में भी और तुम्हारे बारे में भी? 


 

रुद्र: वो शेर, उसका नाम तो तुमने सुन ही लिया, सिद्धा, सिद्धा है उसका नाम। वो मुझे जानता है क्योंकि मैं बहुत पहले से इस हृदय गुफ़ा में आता रहा हूँ। मेरे लिए ये जगह दूसरा घर है लेकिन वक़्त के साथ ये गुफ़ा बदलती रहती है इसलिए मेरा ये दूसरा घर, मुझे घर जैसा नहीं भी लगता है। सिद्धा - उसका काम है दण्ड देना। उन लोगों को जो गुफ़ा के नियम नहीं मानते। वो यहाँ भी इसीलिए आया था लेकिन मेरी वजह से रुक गया। हम कभी दोस्त हुआ करते थे, फिर उसने अपने लिए गुलामी का रास्ता चुन लिया और मैंने आज़ादी का। बाकी तुम लोग फ़िक्र मत करो, मेरे होते तुम में से किसी को कुछ नहीं होगा। 


 

रुद्र की बात सुनने के बाद आदित्य आगे आया और उसने माफ़ी माँगी और कहा कि ये खतरा उसकी वजह से आया था। वो आगे से ऐसी गलती दोबारा नहीं करेगा। असल में उसे नहीं पता था कि गुफ़ा के अपने कुछ नियम हैं और उन्हें फॉलो भी करना होता है। आदित्य ने संध्या से भी माफ़ी माँगी, उसकी बात ना मानने के लिए। संध्या ने आदित्य को माफ़ कर दिया। तभी आदित्य ने पूछा कि वो उसे बचाने के लिए शेर के सामने आकर क्यूँ खड़ी हो गयी थी। उसने इतना बड़ा खतरा क्यूँ उठाया?... 


 

संध्या ने आदित्य के सवालों को टालने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माना तो संध्या ने कहा कि उसे नहीं पता कि वो शेर के सामने आकर क्यों खड़ी हो गयी थी। उसे बस वही सही लगा तो उसने ऐसा कर दिया। संध्या का जवाब सुनकर आदित्य कुछ नहीं बोला, वो असल में जवाब सुन भी नहीं रहा था। संध्या बोल रही थी और आदित्य केवल उसकी आँखें देख रहा था, उन्हें पढ़ने की कोशिश कर रहा था। आदित्य ने किताबें बहुत पढ़ी हैं लेकिन कभी किसी की आँखें नहीं पढ़ी। बात करते हुए संध्या, आदित्य से आँखें चुरा रही थी तो वो ठीक से पढ़ भी नहीं पाया लेकिन जो उसे जानना था, वो उसने जान लिया था। जब आदित्य, संध्या के गले लगा तो काव्या और रुद्र एक-दूसरे की तरफ़ देखकर मुस्कुरा दिये। ठीक उसी वक़्त, श्रीधर जिस रास्ते से गया था, उसी रास्ते से गुफ़ा के अंदर, उस हॉल  में वापस आ गया। श्रीधर के आते ही, दीवार पर लगी उस पेंटिंग  में बना वो पोर्टल  बंद हुआ तो एक तेज़ रोशनी चमकी। तभी सब लोग, श्रीधर के पास आ गए। कोई कुछ पूछता, उससे पहले ही श्रीधर ने अपने दोस्तों को सारा किस्सा ख़ुद ही बता दिया कि वो समय में पीछे चला गया था और वहाँ वो दुर्योधन से मिला। वो काफी देर तक दुर्योधन के साथ था और उसे दुर्योधन से मिलकर अच्छा भी लगा। श्रीधर की बातें सुनकर, रुद्र इस बात से हैरान था कि हृदय गुफ़ा ने उसे दुर्योधन के सामने क्यूँ भेजा? फिर श्रीधर की आँखों में कुछ था जिसे देखकर रुद्र को अंदाज़ा लग गया कि वहाँ कुछ तो अलग हुआ है। दुर्योधन से मिलने के बाद, श्रीधर के अंदर कुछ बदलाव आया है। श्रीधर ने अपनी बात खत्म ही की थी कि तभी उस पूरे हॉल में अँधेरा छा गया। एक ठंडी हवा का झोंका उन सबके पास से गुज़रा। अचानक ही उस हॉल  में कहीं से, बहुत सी परछाइयाँ आ गयी। एक लंबी परछाई ने श्रीधर का हाथ पकड़ लिया और उससे कहा - “चलो हमारे साथ।”


 

क्या देखा रुद्र ने श्रीधर की आँखों में? 

क्या श्रीधर को और भी परीक्षाएं देनी हैं?

ये परछाइयाँ कौन थीं? किसकी थीं? 

आख़िर क्या है इन सवालों के जवाब?  


 

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