कुछ देर पहले, जब संध्या को ऋषि की आवाज़ सुनाई दी जिसने कहा कि अपने मन की आँखों से देखो। आँखें बंद करके संध्या ने ध्यान लगाया और अपने मन में झाँकने की कोशिश की और उसी अवस्था में उसने अपना बायाँ हाथ चट्टान पर रख दिया था। बंद आखों से संध्या को जो दृश्य दिखा उससे वो दंग रह गई! उन सात चट्टानों पर, सप्तऋषि ध्यान लगाकर बैठे हुए थे!
संध्या ने जब आदित्य को बताया कि यहाँ सप्तऋषि, एक साथ ध्यान किया करते थे तो उसने यकीन करने की जगह अविश्वास और कटाक्ष से उसकी बात को तोला। आदित्य को ऐसे मुँह बंद करके हँसता देख, संध्या चिढ़ गयी। उसे आदित्य पर गुस्सा आ रहा था लेकिन उससे कहीं ज़्यादा उसे ख़ुद पर ग़ुस्सा आ रहा था। क्योंकि चट्टान से निकली ऊर्जा ने जब आदित्य को दूर पटक दिया था तब उसके गिरते ही, संध्या, आदित्य से हुई गलती के लिए माफ़ी माँग रही थी। संध्या जिस आदित्य की परवाह कर रही थी, उसे उसकी कही बातों पर यकीन ही नहीं। क्योंकि वह एक साइंटिस्ट है। विज्ञान ही उसकी दुनिया है। हालांकि जब से उन चारों ने ह्रदय गुफ़ा में पाऊँ रखे थे, तब से उनके साथ अजीब, अलौकिक घटनाएं हो रही थीं, और इस बात पर आदित्य सोच नहीं रहा था।
आदित्य को यूँ हँसता देख, रुद्र को भी अच्छा नहीं लगा। उसने कहा कि अगर उसने अभी हँसना बंद नहीं किया तो उसे वाकई सज़ा मिल सकती है। जिस चट्टान पर आदित्य ने कील लगाई थी, रूद्र ने पास आकर, ग़ौर से उसे देखा… उस पर कील का कोई निशान नहीं था!
रुद्र: आदित्य, तुम मानो या ना मानो लेकिन संध्या सच कह रही है। यह नॉर्मल चट्टान नहीं है। इनमें सप्तऋषियों की ऊर्जा समाहित है। जिसकी चमक का कारण तुम अपनी साइंस में ढूँढ रहे थे, उसका जवाब तुम्हे नहीं मिलेगा। वो चमक सप्तऋषियों की ऊर्जा है।
आदित्य अब नहीं हँस रहा था, उसने भी पास आकर देखा लेकिन कील का निशान उसे भी कहीं नहीं दिखा। संध्या के कहे पर, आदित्य को अब आधा-अधूरा यकीन हो रहा था लेकिन पूरी तरह से नहीं। उसने कहा कि वो मेडिटेशन,वाइब्रेशन, और एनर्जी में मानता है लेकिन सप्तऋषि? सप्तऋषि यहाँ आये होंगे, इन रॉक्स पर बैठे होंगे, ये वो नहीं मान सकता। रुद्र कुछ कहने वाला था लेकिन रुक गया क्योंकि वो जान चुका है कि आदित्य को यकीन दिलाना मतलब दीवार पे सिर मारने के बराबर है। काव्या से बोतल लेकर आदित्य ने पानी पिया और उससे पूछा कि उसे क्या लगता है? वो क्या सोचती है एक राइटर के तौर पर? क्या सप्तऋषि सच में थे, या वो एक बड़ी कहानी का एक ज़रूरी हिस्सा हैं, बस? आदित्य को सिर्फ़ प्रूफ चाहिए था। जिस बात का स्कीनटिफ़िक प्रूफ नहीं, वो आदित्य के लिए सिर्फ़ एक कहानी है, एक फिक्शन जो लिखा गया लोगों के मनोरंजन के लिए और सोसाइटी को रहने लायक बनाए रखने के लिए। आदित्य के सवाल पर काव्या ने बस इतना कहा कि जो लिखा गया है, जो हमें कहानी की तरह सुनाया जाता है, वो अक्सर सच नहीं होता लेकिन वो पूरी तरह से झूठ हो, ऐसा भी नहीं होता। मानो तो सब सच है और ना मानो तो सब झूठ। इस पर कटाक्ष भरे स्वर में आदित्य बुदबुदाया…
आदित्य: हाँ, लगता है की हॉलिवुड के अवेंजर्स का यह देसी रूपांतरण है!
काव्या: और कुछ देर पहले जो तुम गदा-युद्ध कर रहे, वो क्या था? प्लेस्टेशन सिमुलेशन?
फिर काव्या ने शांत मन से कुछ सोचा और आगे कहा…
काव्या: आज हम लोग यहाँ हैं, इस हृदय गुफ़ा में, हमसे पहले और भी लोग आये थे यहाँ। हमारी ही तरह खोज करने, इस गुफ़ा के रहस्य को जानने, दुनिया में अपना नाम बनाने लेकिन उनमें से हम एक का भी नाम नहीं जानते… पता है ऐसा क्यूँ है आदि?
आदित्य: पता है, उनके पास कभी कोई प्रूफ नहीं था… यहाँ होने का दावा बहुत से लोग कर चुके हैं लेकिन किसी के पास कोई प्रूफ नहीं है लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूँगा काव्या, मैं यहाँ से बाहर निकलूँगा और वो भी प्रूफ के साथ।
उधर एक पिलर से टेक लगाकर बैठे श्रीधर को इन सब बातों से अभी कोई मतलब नहीं था। वो अपनी जगह पर ही शांति से बैठा हुआ था लेकिन वो केवल बाहर से दिखने में शांत लग रहा था… उसके अंदर तो एक तूफ़ान उठा हुआ था। एक जंग छिड़ी हुई थी। उसने पिछले वाले चैम्बर में जो देखा वो सच था या झूठ? वहाँ युद्ध भूमि में, जो खून में लथपथ, ज़मीन पर पड़ा हुआ था, वो सच में दुर्योधन ही था या कोई और? श्रीधर कुछ समझ पाता, अपने मन में चल रही उलझन को सुलझा पाता, उससे पहले ही श्रीधर की नज़र सामने की दीवार पर पड़ी। इस हॉल का वो हिस्सा खाली था, वहाँ रोशनी भी नहीं थी, लेकिन अब वहाँ एक लैम्प जल रहा था और दीवार पहले की तरह खाली नहीं थी, उसपर एक चित्र बना हुआ था। श्रीधर अपनी जगह से उठा और दीवार के पास आ गया। उसने लैम्प उठाया और उसकी रोशनी में चित्र को देखने लगा। श्रीधर ने जो देखा, वो देखकर उसकी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। दीवार पर उसी का चित्र बना हुआ था। चित्र में भी, वो एक लैम्प लेकर खड़ा था और ठीक सामने हैरानी से कुछ देख रहा था। तभी, लैम्प बंद हो गया और तस्वीर में एक रास्ता बन गया। ये देखने में किसी अँधेरी सुरंग जैसा लग रहा था। श्रीधर उस अँधेरी सुरंग में नहीं जाना चाहता था, वो वापस मुड़ गया लेकिन तभी उस अँधेरी सुरंग से एक हाथ बाहर आया और उसने श्रीधर को अंदर खींच लिया। उस हाथ ने, श्रीधर को सुरंग से निकालकर एक ऐसी जगह फेंक दिया जहाँ उसे नहीं होना चाहिए था। श्रीधर उठा तो उससे उठा नहीं गया। उसने देखा कि वो ज़ख़्मी था। उसके पूरे शरीर पर घाव थे। श्रीधर को तकलीफ़ होने लगी, उसके शरीर में दर्द बढ़ने लगा। श्रीधर ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। वो एक ख़ाली जगह थी, वहाँ दूर एक तालाब था जिसके आसपास बस कुछ पेड़ थे। तभी श्रीधर को एक पेड़ के पास एक आदमी दिखा। श्रीधर उठने की हालत में नहीं था लेकिन उसने हिम्मत की और धीरे धीरे ख़ुद को आगे लेकर गया। श्रीधर कई बार गिरा और हर बार उठकर आगे बढ़ा। श्रीधर जब उस आदमी के करीब पहुँचा तो उसे देखकर श्रीधर वहीं ज़मीन पर एक बार फिर गिर पड़ा। वो आदमी, वो कोई और नहीं, स्वयं दुर्योधन था। श्रीधर ने देखा कि उसकी जंघा से खून बह रहा था। दुर्योधन ने आँखें खोली और श्रीधर को देखते ही उसकी गर्दन पकड़ ली। दुर्योधन को लगा था कि ये कोई हमलावर है लेकिन श्रीधर तो ख़ुद ही ज़ख़्मी था, उसकी हालत और उसका अलग तरह का हुलिया देखकर दुर्योधन ने उसे छोड़ दिया और पूछा कि वो कौन है? और कहाँ से आया है?
श्रीधर अभी भी हैरान था, वो समझ नहीं पा रहा था कि हृदय गुफ़ा में, उस दीवार से निकले हाथ ने उसे यहाँ लाकर क्यूँ छोड़ दिया। ज़रा तल्ख़ लहजे में, दुर्योधन ने अपना सवाल फिर से दोहराया। श्रीधर ने ख़ुद को संभाला और बताया कि वो किसी और समय से आया है और वो अपनी मर्ज़ी से भी नहीं आया। दुर्योधन ने आगे पूछा कि क्या वो भविष्य से आया है?... श्रीधर ने फ़ौरन ही हाँ में सिर हिला दिया। श्रीधर को लगा था कि दुर्योधन अब उससे भविष्य की दुनिया के बारे में पूछेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दुर्योधन ने उससे बस पानी माँगा। तालाब के पास आकर, श्रीधर ने पहले ख़ुद पानी पिया, उस तालाब का पानी पीते ही श्रीधर के सारे घाव भर गए और वो बिलकुल ठीक हो गया… फिर पेड़ के एक बड़े पत्ते में श्रीधर ने पानी भरा। दुर्योधन ने पानी पिया लेकिन उसके घाव नहीं भरे। श्रीधर को ये बात थोड़ी अजीब लगी… उसके पूछने पर दुर्योधन ने कहा कि उसके घाव इस पानी से नहीं, अब केवल मृत्यु से ही भर सकते हैं। दुर्योधन ने देखा कि सूर्य अस्त हो चुका है, उसने श्रीधर से अपने समय में वापस लौट जाने के लिए कहा। श्रीधर भी यही चाहता था लेकिन हृदय गुफ़ा में वापस लौटने के लिए उसे वहाँ कोई रास्ता नहीं दिखा…
उधर हृदय गुफ़ा के अन्दर, आदित्य ने किसी की बात न मानते हुए वापस से अपने टूल्स उठा लिए और इस बार दूसरे नंबर की चट्टान पर कील लगा दी। आदित्य अपनी रिसर्च के लिए चमकती हुई उस रॉक का एक टुकड़ा लेना चाहता था। हथौड़े से वार नहीं था। रुद्र ने आदित्य को ऐसा करने से मना किया लेकिन वो रुकने वाला नहीं था। आदित्य को रोकने के लिए, संध्या ने उसका हाथ पकड़ लिया और गुस्से से बोली…
संध्या: तुम्हें समझ नहीं आ रहा क्या? मत करो ये!!! इस गुफ़ा में दुनिया भर के रॉक्स हैं, किसी दूसरी रॉक का टुकड़ा ले लो। ज़िद पर अड़ना ज़रूरी है, एक बार गिर के सबक नहीं मिला?
आदित्य: मेरा हाथ छोड़ो!! मुझे मेरा काम करने दो संध्या। कुछ नहीं होगा मुझे। पिछली बार शायद ज़्यादा ज़ोर लगा दिया था, इस बार, मैं बहुत आराम से, बस एक टुकड़ा निकालूँगा बल्कि एक टुकड़े का भी चौथाई हिस्सा। इस चट्टान में जो भी ऊर्जा है, उसपर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। ये rocks बेशकीमती हैं। मैंने अगर टेस्ट के लिए इनका एक ज़रा सा टुकड़ा भी नहीं लिया सिर्फ़ इसलिए कि यहाँ तुम्हारे सप्तऋषि बैठे हुए थे तो मेरा यहाँ आना तो वेस्ट हो जायेगा ना… अब मेरा हाथ छोड़ दो, प्लीज़।
संध्या ने आदित्य का हाथ छोड़ दिया। आदित्य, कील पर हथौड़ा मारने ही वाला था कि तभी एक शेर की दहाड़ ने उसका हाथ रोक दिया। आदित्य, उस चट्टान से पीछे हट गया। जिस रास्ते से वे लोग इस हॉल में दाख़िल हुए थे, उसी रास्ते से एक सफ़ेद शेर अंदर आ चुका था। वो एक बार फिर से दहाड़ा और वहाँ सब कुछ एकदम शांत हो गया। रुद्र ने देखा कि उस शेर की नज़र आदित्य पर ही थी। रुद्र ने आदित्य को इशारा किया कि वो अपनी जगह से बिल्कुल हिले नहीं। शेर आगे बढ़ा तो आदित्य मारे डर के काँपने लगा। तभी संध्या, हिम्मत दिखाते हुए आदित्य के आगे आकर खड़ी हो गयी। उसने शेर के सामने हाथ जोड़ और माँ दुर्गा से रक्षा करने के लिए प्रार्थना करने लगी। तभी वो सफ़ेद शेर फिर से दहाड़ा। इसी बीच रूद्र ने संध्या को वहाँ से हटा दिया और ख़ुद उस शेर के सामने खड़ा हो गया। रुद्र को सामने देखते ही वो शेर हमला करने की जगह दो कदम पीछे हो गया। रुद्र उसके करीब गया और धीरे से बोला…
रुद्र: ये लोग, मेरे दोस्त हैं। जिसने तुम्हें यहाँ भेजा है, उससे कहना… रुद्र ज़िंदा है अभी।
रूद्र को देखकर वो शेर रुक क्यों गया?
किसने भेजा था वो सफ़ेद शेर?
रूद्र असल में है कौन?
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