कुछ देर पहले… इतिहास ने ख़ुद को दोहराया था… गदा युद्ध फिर हुआ। दो दोस्त आपस में लड़े, दो ऐतिहासिक नायकों की तरह। वो नायक एक दूसरे के भाई थे। एक विजयी हुआ था, तो दूसरा मौत के घाट उतारा गया। उन नायकों के अक्स को, उनकी मूर्ती को, गुफ़ा के उस हिस्से में छोड़कर, विजयी आदित्य तो बाहर आ गया था लेकिन जब हारा हुआ श्रीधर बाहर निकलने लगा तभी उसे मूर्ती की जगह वो हकीक़त में दिखा… प्राण त्यागता हुआ, परास्त महाबली दुर्योधन! श्रीधर से पानी माँग रहा था। अपनी आँखों के सामने असल दुर्योधन को देखकर श्रीधर घबरा गया और गुफ़ा के उस चैम्बर से निकल गया। बाहर निकला तो उसे ऐसा लगा मानो वो महाभारत की रणभूमि कुरुक्षेत्र से बाहर निकला हो।
गदा युद्ध बेशक ख़त्म हो गया था, पर श्रीधर के मन में जो युद्ध चल रहा था, वो अभी भी खत्म नहीं हुआ था। श्रीधर ने जो देखा वो उसका मतलब समझ नहीं पा रहा था। दुर्योधन की मूर्ति की जगह खून में लथपथ… ज़मीन पर गिरा हुआ… असली दुर्योधन कहाँ से आ गया। वो सच में था या ये सिर्फ़ एक इलुयन था? श्रीधर तय नहीं कर पा रहा था। और सबसे बड़ी बात, श्रीधर के भाग में दुर्योधन ही क्यों मिला?
चैम्बर से निकलकर सभी लोग गुफ़ा के अगले हिस्से में आ गए थे। ये एक बड़ा सा हाल था। यहाँ बहुत से ऊँचे खंबे लगे थे। उनके ऊपर अलग अलग निशान बने हुए थे।
आदित्य ने गिनती की, वो 7 पिलर थे और उनके ठीक नीचे 7 बड़ी चट्टानें थीं। आदित्य ने करीब आकर एक चट्टान को देखा। ये अलग तरह का पत्थर था। उसमें चमक थी। फिर उसने दूसरी चट्टान को देखा, फिर तीसरी, वो सब चट्टानें चमक रही थीं। आदित्य ने गौर किया कि वो चट्टानें बाहर से नहीं बल्कि अंदर से चमक रही थीं। श्रीधर ने फ़ौरन ही काव्या से अपना बैग माँगा। काव्या ने बताया कि उनके बैग्स यहाँ नहीं हैं, वो तो पीछे कहीं छूट गए। ये सुनकर आदित्य को गुस्सा आ गया, वो काव्या पर चिल्लाने ही वाला था लेकिन नहीं चिल्लाया। संध्या, उसका बैग लेकर आ रही थी। संध्या ने बैग आदित्य को थमा दिया। काव्या हैरानी से संध्या को देख रही थी। वो कुछ पूछती उससे पहले ही संध्या ने कहा…
संध्या: उधर एक ट्राली है, हमारा सारा सामान उसी में रखा है।
काव्या: ट्राली में? गुफ़ा में सामान रखने की ट्राली कहाँ से आ गई?
संध्या: ये हृदय गुफ़ा है काव्या - यहाँ प्रेत गली में हज़ारों प्रेत हो सकते हैं, महाभारत काल की मूर्तियाँ हो सकती हैं, एक ऋषि की मूर्ति के ऊपर एक शक्तिशाली मणि हो सकती है, एक होटल के कमरे से ज़्यादा शानदार कमरा हो सकता है, तो यहाँ एक ट्राली तो हो ही सकती है। है न?
संध्या ने जो भी कहा वो सब सही था, लेकिन तभी काव्या के मन में दूसरा सवाल आया। उनके बैग्स को ट्राली में लेकर आया कौन? काव्या ने सवाल मन में ही रखा क्यूंकि वो जानती है कि इसका ठीक-ठीक जवाब किसी के पास नहीं होगा। आदित्य ने अपने बैग से एक डिवाइस निकाला। ये एक छोटा सा यंत्र था, रॉक्स को स्कैन करने के लिए। आदित्य ने एक चट्टान को स्कैन करना शुरू कर दिया। उधर एक पिलर से टेक लगाकर बैठे श्रीधर की आँखों के सामने से वो दृश्य हट ही नहीं रहा था। उसे बार बार महाभारत काल में घटा वही एक मंज़र दिख रहा था, खून में लथपथ… ज़मीन पर गिरा हुआ… दुर्योधन। श्रीधर को कुछ समझ नहीं आ रहा था और इससे भी ज़्यादा वो इस बात से परेशान था कि उसे ख़ुद में कुछ बदला हुआ महसूस हो रहा था। यह कैसा बदलाव है? उसे अभी पता नहीं लग रहा था, लेकिन एक बात तो पक्की थी कि उसके अंदर कुछ तो बदला है।
तभी रुद्र वहाँ आया और श्रीधर के पास आकर बैठ गया। रुद्र ने देखा कि श्रीधर आँखें बंद करके बैठा है। रुद्र, कुछ देर तक उसे ऐसे ही देखता रहा। श्रीधर के माथे पर, बायीं आँख के ठीक ऊपर चोट का एक निशान था, ये एक सीधी खिंची हुई लकीर जैसा था। बचपन में श्रीधर, साइकिल से गिरा तो एक नुकीला पत्थर उसके माथे पर लगा था। उसी पत्थर ने श्रीधर को ये निशान दिया। रुद्र ने श्रीधर के कंधे पर हाथ रखा। श्रीधर आँखें खोली। रुद्र को देखकर श्रीधर बस मुस्कुरा दिया। उसके पास बताने को बहुत कुछ है लेकिन रुद्र को उसने कुछ नहीं बताया। अपने मन की बात को अपने मन में ही रखना, ये श्रीधर को अच्छे से आता है। श्रीधर के पिता जो एक स्कूल में प्रिंसिपल थे, वे बहुत ही स्ट्रिक्ट थे। श्रीधर 9 साल का था जब उसके पिता ने उसे बोर्डिंग स्कूल भेज दिया। श्रीधर को बोर्डिंग स्कूल नहीं जाना था, उसे घर में ही रहना था। घर में माँ तो नहीं थी लेकिन माँ की यादें तो थी। श्रीधर के लिए घर से दूर जाने का मतलब था, माँ से दूर जाना। उसे बोर्डिंग स्कूल नहीं जाना, श्रीधर ने अपने पिता से नहीं कहा। आने वाले सालों में जैसे जैसे श्रीधर की उम्र बढ़ी, पिता और बाकी लोगों के साथ भी उसका रिश्ता बिगड़ता ही चला गया। बोर्डिंग स्कूल और फिर कॉलेज में भी, श्रीधर किसी से बात नहीं करता था। कॉलेज में बस एक ही दोस्त बना उसका, आदित्य, वो भी इसलिए क्यूंकि वो उसे कुछ-कुछ अपने जैसा ही लगा था। जब श्रीधर इंडियन आर्मी में भर्ती हुआ तब कहीं उसने बात करना शुरू किया, हँसना शुरू किया, लेकिन अपने मन की बात, वो तब भी किसी के साथ शेयर नहीं करता था! या यूँ कहें कि शेयर कर नहीं पता था। फिर वो प्रीति से मिला और श्रीधर के मन के बंद दरवाज़े खुल गए लेकिन सगाई तोड़कर प्रीति के चले जाने के बाद से, श्रीधर ने अपने चारों तरफ़ फिर से एक दीवार खड़ी कर ली। उसी दीवार में, एक दरवाज़ा बनाने की कोशिश में, रुद्र ने श्रीधर से कहा…
रुद्र: किसी बात को मन में अगर लंबे वक़्त तक रख लिया जाए तो वो बात, ज़हर बन जाती है। ज़हर बनने से पहले ही, अपने मन का कह लेना चाहिए। ख़ुद की सेहत के लिए अच्छा होता है।
श्रीधर: जिसे ज़हर की बुरी आदत लग जाए, उसका क्या?
रुद्र: हम अगर चाहें तो एक सेकंड में अपनी बुरी आदतों को छोड़ सकते हैं। सिर्फ़ एक फ़ैसला लेने की देर है। अगर सिर्फ़ चाहो, तो तुम किसी के साथ भी अपने मन में चल रही कश्मकश को आसानी से बाँट सकते हो।
रुद्र की बातों का मतलब श्रीधर समझ चुका था लेकिन उसने अपने चारों तरफ़ बनाई हुई दीवार में दरवाज़ा नहीं बनने दिया। श्रीधर ने चैम्बर में जो भी देखा, उसने जो भी महसूस किया और अभी, जो वो महसूस कर रहा है, वो उसने रुद्र से नहीं कहा। श्रीधर कुछ नहीं बताने वाला, रुद्र ये समझ गया और उठकर वहाँ से जाने लगा तभी पीछे से श्रीधर ने कहा,
श्रीधर: तुम चाहो तो, अपने मन का कह सकते हो। आइ ऐम अ गुड लिस्नर.
रुद्र ने श्रीधर की तरफ़ देखा और मुस्कुरा के आगे बढ़ गया। उधर आदित्य अभी भी बारी-बारी से उन 7 बड़े rocks को स्कैन कर रहा था और साथ-साथ नोट्स बना रहा था। संध्या भी गौर से उन चट्टानों को देख रही थी। स्कैन करते हुए आदित्य ने संध्या को बताया कि ये रॉक्स जीवंत हैं।
आदित्य: इनमें एक ऊर्जा है, एक एनर्जी है जो इनको एक्स्ट्रा ऑर्डनेरी बनाते हैं। देखने में तो नॉर्मल रॉक्स की तरह हैं, पर अंदर से यह तो चमक है, वो किसी एनर्जी की वजह से है।सम सॉर्ट ऑफ स्टोरड़ एनर्जी.
आदित्य की नज़र में ये बहुत aएडवांस्ड साइंस थी लेकिन संध्या का मन कह रहा था कि ये सिर्फ़ साइंस नहीं है, कुछ और भी है। संध्या के पूछने पर आदित्य ने बताया कि ये सातों चट्टानें एक ही समय की हैं। फिर संध्या ने ख़ुद ही हिसाब लगा कर कहा कि उसे लगता ये चट्टानें कम से कम 5 हज़ार साल पुरानी होंगी। आदित्य ने बताया कि वो चट्टानें 5 हज़ार साल से भी ज़्यादा पुरानी है। दूसरी तरफ़ काव्या, रुद्र के पास आई और उसे अपनी अस्पताल वाली यादों के बारे में बताया। असल में जब वो अस्पताल में थी, तब रुद्र उसका डॉक्टर नहीं था, काव्या ने पूछा कि उसकी याद में रुद्र क्यूँ था और उसने काव्या को क्यूँ बचाया? कुछ सोचकर रुद्र बोला…
रुद्र: मैंने शायद पहले भी कहा था, फिर से कह रहा हूँ - मदद करना मेरा काम है और वो मैंने हमेशा किया है और हमेशा ही करता रहूँगा। वैसे तुम्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि ये हृदय गुफ़ा हमारे दिमाग और हमारे एमोशन्स के साथ खेलती है। यहाँ दिखने वाली हर चीज़ पर यकीन मत करो।
काव्या: रुद्र, क्या तुम, तुम किसी की… जान भी ले सकते हो? मतलब, गोली चला सकते हो, किसी पर?
रुद्र: नहीं, मैंने कभी किसी की जान नहीं ली है। अपने किसी दुश्मन की भी नहीं। लेकिन, तुम ये क्यूँ पूछ रही हो?
काव्या: ऐसे ही। मैं, मैं आती हूँ।
काव्या वहाँ से चली गयी। रुद्र ने देखा कि वो ट्राली की तरफ़ गयी और उसमें रखे अपने बैग से उसने पानी की बोतल निकाली। काव्या पानी पी रही थी और उसे देखते हुए रुद्र ने धीरे से कहा…
रुद्र: अगर आने वाले कल में, मेरी नियति में, ये लिखा है कि मैं किसी की जान लूँगा, किसी पर गोली चलाऊँगा, तो मैं उसके लिए भी तैयार हूँ काव्या।
उधर संध्या भी आदित्य की तरह एक चट्टान को बहुत करीब से देख रही थी, तभी उसे फिर से ऋषि की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने फिर से कहा कि अपने मन में देखो। संध्या ने एक गहरी साँस लेकर आँखें बंद की और चट्टान पर अपना बायाँ हाथ रखा। संध्या को कुछ दिखा और वो फ़ौरन ही दो कदम पीछे हो गयी। उसकी धड़कने बढ़ गयी थी, तभी आदित्य ने चट्टान का एक टुकड़ा लेने के लिए उस पर एक बड़ी कील लगा दी। संध्या ने उसे रुकने के लिए कहा लेकिन तब तक वो कील पे हथौड़ा मार चुका था। जैसे ही कील चट्टान को लगी, उसमें से एक तेज़ ऊर्जा की लहर निकली और आदित्य दूर जाकर गिरा। तभी संध्या को फिर से वही दृश्य दिखा जो उसने अभी बंद आँखों से देखा था… आदित्य से हुई गलती के लिए संध्या ने माफ़ी माँगी। रुद्र की मदद से आदित्य वापस से उठा। वो कुछ पूछता उससे पहले ही संध्या ने कहा…
संध्या: ये सात चट्टानें, ये सिर्फ़ चट्टानें नहीं हैं, ये आसन हैं। किसी और समय में, इन पर बैठकर वो सब एक साथ, यहाँ ध्यान किया करते थे।
आदित्य: कौन ध्यान किया करते थे?
संध्या: सप्तऋषि!
संध्या की बात सुनकर, आदित्य मुँह दबाकर हँसा। साफ़ ज़ाहिर था की आदित्य को संध्या की बात बेतुकी, बेबुनियाद और फनी लगा। वो संध्या की ओर देखता रहा, और संध्या भी एक टूक आदित्य को देख रही थी। बिना शब्दों के, दो अलग ज्ञान प्रवाह की लड़ाई देखते ही बनती थी। आदित्य कटाक्ष भरी नज़रों से देखता रहा, और संध्या की दृष्टि ऐसी थी जो ये जाता रही थी की आदित्य, जिसके साथ इतना कुछ हो चुका था ह्रदय गुफ़ा में, अब भी अविश्वास की डोर पकड़े हुए था। विज्ञान और विश्वास के बीच ये संघर्ष भी टाइमलेस है।
क्या संध्या का कहा सच है?
क्या आदित्य को अब दण्ड मिलेगा?
और कौन आएगा उसे दण्ड देने?
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