लाख कोशिश के बाद भी काव्या को याद नहीं आया कि उसके बच्चे का पिता है कौन! कुछ देर बाद, रुद्र ने काव्या को इस बारे में सोचने से मना कर दिया और उसे शांत रहने के लिए कहा। फिर रुद्र ने उसके सिर पर पट्टी बांध दी और काव्या को आराम करने की हिदायत दी।
अब आप ध्यान से सुनना.... किसी भ्रम में मत फँसना।
अगली सुबह, काव्या को छुट्टी मिल गयी। वो अस्पताल के बेड से बिना किसी का सहारे लिए उठ गयी। अब वो पहले से ज़्यादा ठीक महसूस कर रही थी। तभी काव्या का बॉयफ्रेंड रूम में आया और उसने रुद्र से काव्या की तबियत का पूछा। डॉक्टर रुद्र ने उसे बताया कि काव्या बिल्कुल ठीक है बस उसे कोई मेंटल स्ट्रेस नहीं होना चाहिए। उस लड़के ने पूरे यक़ीन से कहा कि उसके होते काव्या को कोई तकलीफ़ नहीं होगी। अपने बॉयफ्रेंड की ये बात सुनकर काव्या को गुस्सा आ गया। वो तेज़ आवाज़ में बोली…
काव्या: मेरी सारी तकलीफ़ों की जड़ तुम्हीं हो। जाओ यहाँ से, मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अकेले ख़ुद को संभाल सकती हूँ।
तभी काव्या के बॉयफ्रेंड ने तपाक से कहा कि तुम्हें ज़रूरत नहीं है मेरी? तो क्या हुआ?... मुझे तो ज़रुरत है तुम्हारी… मैं तुमको साथ लिए बिना यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला हूँ।
काव्या: मुझे तुम्हारे साथ नहीं जाना। भूल गए, अगर तुमने मुझे धक्का ना दिया होता तो मैं यहाँ अस्पताल में नहीं होती। आइ ऐम ब्रेकिंग उप विद यू ! अभी और इसी वक़्त… अब जाओ यहाँ से।
ब्रेकअप की बात सुनकर वो हँस पड़ा और बोला कि ऐसे ब्रेकअप तुम दो बार पहले भी कर चुकी हो। क्या ये ब्रैक उप फाइनल वाला है, या धमकी? और अगर धमकी है, तो मुझे धमकी मत दो।
काव्या को अपने बॉयफ्रेंड, जो उसके लिए अब एक्स बॉयफ्रेंड था… उसपर गुस्सा आ रहा था। उसका मन तो कर रहा था कि अभी यहीं, सबके सामने उसका मुँह तोड़ दे लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया और वो वापस बेड पर बैठ गयी। काव्या उसके जाने का वेट करने लगी लेकिन वो लड़का वहाँ से गया नहीं… वो भी ज़िद्दी था, उल्टा उसने काव्या का हाथ पकड़ा और उसे ज़बरदस्ती अपने साथ ले जाने लगा। काव्या ने साथ जाने से फिर मना किया लेकिन उसने सुना नहीं। तभी काव्या ने वहीं मौजूद रुद्र की तरफ़ देखा। रुद्र अपनी जगह पर ही खड़ा रहा।
रुद्र: जब मुझसे कोई कोई मदद माँगे, मैं तभी उसकी मदद कर पता हूँ।
काव्या ने मदद माँगी तो रुद्र ने उस लड़के का हाथ पकड़ा और एक ज़ोरदार मुक्का उसके मुँह पर जड़ दिया। बॉयफ्रेंड वाले भाई साहब मुक्का लगते ही ज़मीन पर गिर पड़ा। ये देखकर काव्या ने मुस्कुरा दिया। उसने रुद्र से कहा कि वो उसके एक्स बॉयफ्रेंड को एक और मुक्का मारे क्यूँकी वो मार खाने के लायक ही है। रुद्र ने एक की जगह उस लड़के को तीन मुक्के मारे, तीसरा मुक्का पड़ते ही वो बेहोश हो गया। रुद्र ने काव्या की तरफ़ देखा और दोनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। तभी काव्या के कंधे पर एक हाथ आया। उसने मुड़कर देखा कि ये संध्या थी।
संध्या: कुछ याद आया तुम्हें? ये आईने में देखकर, ऐसे क्यूँ हँस रही हो?
काव्या: आईने में? नहीं मैं तो वो…
अपनी बात कहते हुए काव्या ने मुड़कर रुद्र की तरफ़ देखा लेकिन रुद्र वहाँ नहीं था, ना ही काव्या का एक्स बॉयफ्रेंड, काव्या अब अस्पताल के बेड पर नहीं, उसी चैम्बर में थी जहाँ महाभारत काल की मूर्तियाँ रखी थी। उसके सामने दीवार में छोटा सा आईना था। इस बार देखने पर, काव्या को उसमें अपना ही चेहरा दिखा। संध्या ने काव्या से फिर पूछा कि वो किस बात पे हँस रही थी? काव्या ने बात को टाल दिया और देखा कि उस चैम्बर में श्रीधर यानी दुर्योधन और भीम यानी आदित्य अभी भी गदा युद्ध कर रहे थे। कुरुक्षेत्र का वह अंतिम युद्ध अभी भी चल रहा था। और युद्ध ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
श्रीधर और आदित्य अब पूरे जुनून के साथ लड़ रहे थे। वो मूर्तियाँ अब एक तरह से उनका कवच बन चुकी थी, उनका ख़ुद का हिस्सा बन चुकी थी। वो दोनों अब आदित्य और श्रीधर नहीं रह गए थे। वे भीम और दुर्योधन ही थे। दुर्योधन ने गदा चलाई लेकिन भीम पीछे हट गया। दुर्योधन ने अगला वार किया लेकिन भीम उससे भी बच गया। भीम ने जीतने के लिए एक नया पैंतरा लगाया, वो दुर्योधन के हर वार से बचके उसे फ्रसट्रेट कर रहा था। दुर्योधन का पेशेंस अब जवाब देने लगा, उसे और भी गुस्सा आ रहा था कि उसका हर वार ख़ाली जा रहा है। युद्ध ऐसे ही चलता रहा। तभी रुद्र दौड़ते हुए संध्या के पास आया
रुद्र: ये दोनों चैम्बरस पूरी तरह से बंद हैं। यहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। हमें इंतेज़ार ही करना होगा।
श्रीधर और आदित्य में से कोई एक तो जीतेगा, उसके बाद ही शायद कोई रास्ता खुले। किसी एक के जीतने की बात सुनकर संध्या सोच में पड़ गयी। फिर उसने कहा कि महाभारत के युद्ध में जब भीम और दुर्योधन के बीच आख़िरी गदा युद्ध हुआ था, उसमें जीत भीम की हुई थी। तो आज भी तो वैसा ही होना चाहिए। इतिहास का लिखा हम बदल नहीं सकते और हमें वो बदलना भी नहीं चाहिए। संध्या ने जो कहा वो बिल्कुल सही था, अगर इस युद्ध में आज दुर्योधन के भेस में श्रीधर जीता, तो हृदय गुफ़ा के अंदर इतिहास बदल जायेगा और अगर इतिहास बदला तो वर्तमान पर भी अपनी छाप छोड़ेगा। बदल जायेगा पूरा संसार ही। श्रीधर की जीत हुई तो ये जीत दुर्योधन की होगी, ये जीत होगी अधर्म की। अधर्म जीता और धर्म हारा तो पता नहीं इस हृदय गुफ़ा में क्या-क्या बदल जाए। संध्या, रुद्र और काव्या कोई risk लेने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने सोचा और इस नतीजे पर पहुँचे कि वे आदित्य की मदद करेंगे। थोड़ी देर पहले तक, दुर्योधन उर्फ़ श्रीधर हावी हो रहा था भीम उर्फ़ आदित्य पर।जीत के पॉइंट्स के हिसाब से वो आगे चल रहा था। आदित्य के पास केवल एक ही रास्ता था कि वो श्रीधर को नाकआउट कर दे। वैसे, अकेले करना तो ये मुश्किल था लेकिन उसके दोस्त उसके साथ थे। रुद्र ने उस चैम्बर से कुछ हथियार उठा लिए। एक-एक हथियार उसने काव्या और संध्या को दिया और उन्हें प्लान बताया कि वे तीनों श्रीधर के पैरों पर वार करेंगे ताकि वो ज़मीन पर गिर सके। काव्या ने रुद्र को टोका और कहा कि वो श्रीधर पर हमला नहीं करेगी।
रुद्र: उसे श्रीधर मत कहो। अभी के लिए वो सिर्फ़ दुर्योधन है और हमें इस युद्ध में भीम को जिताना है। उसकी मदद करनी है जैसे महाभारत में कृष्ण ने की थी।
काव्या ने रूद्र की बात मान ली और संध्या को दुर्योधन के चैम्बर में पीछे की तरफ़ जाने के लिए कहा। संध्या ने अपनी पज़िशन संभाल ली। रुद्र ने काव्या से दूसरी तरफ़ का मोर्चा संभालने के लिए कहा। काव्या जाने लगी लेकिन वापस रुद्र के पास आकर बोली…
काव्या: अस्पताल में तुमने मेरी मदद की, लेकिन क्यों?
रुद्र: अस्पताल में?... तुम क्या बोल रही हो काव्या?
काव्या: जब मेरे एक्स बॉयफ्रेंड ने झगड़ा करते वक़्त मुझे धक्का दिया था और मेरे सिर में चोट लगी थी तो वो मुझे अस्पताल ले गया था। मुझे अच्छे से याद है, जिस डॉक्टर ने मेरा इलाज किया था, वो तुम नहीं थे। वो तो कोई और था। फिर अपनी उस याद में आज मैंने उस डॉक्टर की जगह तुम्हें क्यूँ देखा?
रुद्र: अभी तुम अपनी जगह पर जाओ और भीम को ये युद्ध जीतने में मदद करो ताकि हम यहाँ से निकल पाएँ। इस चैम्बर से बाहर निकलने के बाद, मैं तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूँगा।
रुद्र की बात मानकर, काव्या ने अपना मोर्चा संभाल लिया। रुद्र, दोनों चैम्बर s के ठीक बीच में खड़ा हो गया। तभी आदित्य यानी भीम की नज़र बारी-बारी से उन तीनों पर पड़ी। रुद्र ने भीम को इशारा किया कि इस बार वो बचाव नहीं, दुर्योधन पर वार करे। भीम ने फ़ौरन ही गदा घुमा दी। दुर्योधन भी तैयार था, वो भी समझ चुका था कि यहाँ कुछ तो खिचड़ी पक रही है। दोनों योद्धाओं की गदा आपस में टकराई और भीम ने दुर्योधन का एक हाथ पकड़कर उसे एक ही जगह पर रोक लिया। तभी रुद्र का इशारा मिलते ही संध्या और काव्या ने पीछे से दुर्योधन के पैरों पर वार किया और रुद्र ने सामने से। पैरों पर एक साथ तीन तरफ़ा हमला हुआ तो दुर्योधन के पाँव लड़खड़ा गए और उसका ध्यान भी भटक गया। यही मौका था! भीम ने दुर्योधन का हाथ छोड़ा और एक कदम पीछे हटकर उसने पूरी ताकत के साथ अपनी गदा से दुर्योधन की जंघा पर वार किया। एक ही वार में दुर्योधन अपने घुटनों पर आ गया। भीम ने एक वार और किया और घुटनों पर बैठा दुर्योधन ज़मीन पर आ गिरा। श्रीधर, दुर्योधन की उस मूर्ति से बाहर निकल आया। वो सही सलामत था। भीम विजयी हुए। इतिहास नहीं बदला, जैसा महाभारत काल में हुआ था, हृदय गुफ़ा के अंदर भी वैसा ही हुआ। आदित्य बाहर आ गया और आते ही श्रीधर के गले लगा। श्रीधर ने मुस्कुराते हुए कहा…
श्रीधर: अच्छा लड़े तुम।
आदित्य: तुम भी दोस्त, तुमने भी कमाल की गदा चलाई।
अचानक ही एक तेज़ आवाज़ हुई, सबको लगा कि ये चैम्बर s गिरने वाले हैं लेकिन ऐसा नहीं था। दोनों चैम्बर s के बीच में जहाँ पहले शीशे की दीवार थी, वहाँ एक दरवाज़ा बन गया था। रुद्र ने दरवाज़ा खोला, ये बाहर निकलने का ही रास्ता था। रुद्र ने सबसे चलने के लिए कहा। एक एक कर, सारे लोग उस दरवाज़े से निकलने लगे। सबसे पीछे खड़े श्रीधर ने ज़मीन पर पड़ी दुर्योधन की मूर्ति को देखा, और चैम्बर से बाहर जाने लगा तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी - “पानी”। श्रीधर ने पीछे मुड़कर देखा लेकिन उसके अलावा चैम्बर में अब कोई नहीं था। उसके दोस्त भी बाहर जा चुके थे।
श्रीधर की नज़र जैसे ही ज़मीन की तरफ़ गयी वो घबरा गया और फ़ौरन ही, उस चैम्बर से निकल गया। श्रीधर को ज़मीन पर अभी जो दिखा था, वो था खून में लथपथ… एक योद्धा। श्रीधर ने जिसे देखा… वो कोई और नहीं, स्वयं… दुर्योधन था। मूर्ति की जगह पर असली दुर्योधन!
यह कैसी माया है?
क्यों दिखा श्रीधर को असली दुर्योधन?
अगला कौनसा मायाजाल इंतज़ार कर रहा है उन पाँचों का?
No reviews available for this chapter.