रूद्र असल में कौन है और हृदय गुफ़ा का नक्शा सीईओ को किसने दिया था?... समय आने पर, ये सब ख़ुद ही सामने आ जाएगा… अभी आप मेरे यानी अपने सूत्रधार के साथ वापस चलिए हृदय गुफ़ा के अन्दर, जहाँ कुछ देर पहले… दीवार पर बना हुआ ऋषि का चित्र जीवित हो उठा था… ऋषि ने आँखें खोली और संध्या से कहा था कि - “अपनी शक्ति को पहचानो संध्या। अपने मन में देखो, सारे जवाब, तुम्हारे अंदर ही हैं।” इतना कहने के बाद ऋषि ने फिर से आँखें बंद कर ली और वो वापस से पहले जैसे हो गए यानी दीवार पर अब केवल ऋषि का चित्र ही था, ठीक पहले जैसा। संध्या एकटक ऋषि के चित्र को ही देख रही थी। उसकी आँखें नम हो आई थी। तभी आदित्य वहाँ आ गया और बोला…
आदित्य: संध्या, तुम रुक क्यों गई?
संध्या: ये चित्र देख रही थी।
आदित्य: हाँ, मैंने देखा था इसे। बहुत ही सुंदर और बारीक काम है ये। ये lines देख रही हो? देखने में लग रहा है कि किसी प्रोफेशनल ब्रश का यूज़ किया गया है लेकिन ऐसा है नहीं, ये लाइंस हाथ की उंगलियों से बनाई गई हैं। ये चित्र किस तरह बनाया गया है, इसका अंदाज़ा लगाना थोड़ा मुश्किल है।
संध्या: मुझे पता है तुम यकीन नहीं करोगे लेकिन ये ऋषि, ये अभी चित्र से बाहर आ गए थे… और उन्होंने मुझसे बात भी की।
आदित्य: तुम फिर शुरू हो गई! ये सिर्फ़ एक तस्वीर है संध्या, तुम्हें वहम हुआ होगा…
संध्या: मुझे कोई “वहम-शहम” नहीं हुआ, सच और झूठ का अंतर पता है मुझे।
आदित्य: तुम हृदय गुफ़ा में हो संध्या, यहाँ सच और झूठ का अंतर किसी को पता नहीं चलता। स्पसिफिक्ली उन लोगों को जो तुम्हारी तरह दिमाग से नहीं दिल से सोचते हैं।
संध्या ने आगे कुछ नहीं कहा। वो आदित्य को बिना कोई जवाब दिये आगे बढ़ गई। संध्या को पता है कि अगर वो जवाब देगी तो बात, बहस में बदल जायेगी और संध्या का आदित्य से बहस या झगड़ा करने का कोई मूड नहीं था। सब लोग उस गलियारे से होते हुए आगे जा रहे थे… तभी गुफ़ा ने करवट बदली और वो गलियारा और छोटा होने लगा। दोनों तरफ़ की दीवार पास आने लगी। आदित्य ने सबको भागने के लिए कहा। सब लोग अपनी जान बचाने के लिए भागे तभी राइट साइड में कुछ दूरी पर, आदित्य को ज़मीन में हलचल होती दिखी। वो समझ गया कि नया रास्ता वहीं खुलने वाला है। रुद्र ने भी सबको उसी तरफ़ चलने के लिए कहा। काव्या ने लेफ्ट साइड में देखा, उधर भी ज़मीन पर सेम ही हलचल थी। काव्या को वहाँ हल्की सी रोशनी भी दिखी, उसने सबसे राइट की जगह लेफ्ट साइड में चलने को कहा। गलियारा बंद होने ही वाला था, फै़सले के लिए ज़्यादा वक़्त नहीं था। संध्या और रुद्र, आदित्य के बताये रास्ते की तरफ़ चले गए। काव्या ने एक नज़र रुद्र को गुस्से से देखा और लेफ्ट साइड में चली गयी। श्रीधर ने यहाँ काव्या का साथ दिया। वो नहीं चाहता था कि काव्या अकेली पड़ जाए। वो एक बार पहले भी इस गुफ़ा के मायाजाल में फँस चुकी है। लेफ्ट और राइट , दोनों ही तरफ़ ज़मीन का एक हिस्सा पीछे की तरफ़ खिसक गया। नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ लगी हुई थी। बाहर से देखने पर ये बेसमेंट जैसा दिख रहा था। काव्या के जाने के बाद श्रीधर सीढ़ियों से नीचे उतरा और उसने हैरानी से उस जगह को देखा। ये एक बहुत ही बड़ा चैम्बर था। वहाँ बिल्कुल बीच में एक लौ जल रही थी और कमाल ये था कि वो लौ हवा में थी, बिना किसी सपोर्ट के! वहाँ बहुत सारी मूर्तियाँ थी और कुछ बड़ी तस्वीरें भी। ये युद्ध करते हुए योद्धाओं की तस्वीरें और मूर्तियाँ थी… राइट साइड में भी हूबहू सेम चैम्बर था लेकिन वहाँ की मूर्तियाँ और तस्वीरें अलग थी। रूद्र ने गौर से उन्हें देखा… इतना शानदार काम, ऐसी कारीगरी उसने पहले कभी नहीं देखी थी। रूद्र को लगा कि अगर उसने किसी मूर्ती या तस्वीर को छू दिया तो कहीं वो टूट ना जाए या ज़िंदा ना हो जाए। थोड़ा आगे जाने पर संध्या को शिव की मूर्ती दिखी, एक तरफ एक तीरंदाज़ की मूर्ति थी… शायद अर्जुन थे, साधना करते हुए, ठीक शिव मूर्ती के सामने… संध्या शिव की मूर्ति के पास बैठ गयी। फिर उसने भी आँखें बंद की और अर्जुन की तरह ध्यान लगा लिया। कुछ देर तक वो शांति से बैठी रही, उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था तभी किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी। संध्या ने आँखें खोली तो देखा कि वो अपने कमरे में थी। ये उसके फॉस्टर पेरेंट्स का घर था। फिर से तेज़ दस्तक हुई, संध्या ने जल्दी से दरवाज़ा खोला। सामने माँ खड़ी थी, संध्या की असली माँ। संध्या ने हैरानी से उन्हें देखा, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी उसकी माँ अंदर आई और झल्लाते हुए बोलीं - “ये लोग ख़ुद को समझते क्या हैं? बात-बात पे ताने। ये नहीं किया, वो नहीं किया। शादी के बाद पैदा भी की तो एक बेटी, एक बेटा ही पैदा कर लेती। बुढ़ापे का सहारा तो बनता। मैं पूछती हूँ, ये लोग मुझे मेरे हिसाब से क्यूँ नहीं जीने देते। मेरी बर्दाश्त करने की लिमिट खत्म हुई ना, तो बाहर बैठे इन सबको गोली मार दूँगी मैं।”
संध्या: माँ, माँ मेरी तरफ़ देखो। आप... आप बैठो … शांत हो जाओ। ये बाहर बैठे सब लोग तो पागल हैं। आप इनकी बातों को दिल पे क्यूँ लेती हो?
संध्या ने अपनी माँ को समझाया लेकिन उन्होंने संध्या से बस ये कहा कि तू यहाँ क्या कर रही है? तू जा, तू बाहर जाके खेल। मैं ठीक हूँ। तू जा, और सुन… जाते हुए दरवाज़ा बंद कर देना और बाहर कोई मेरे बारे में पूछे तो कह देना कि माँ सो रही है। नहीं, कहना कि माँ, कुछ काम कर रही है। अब जा… अरे सुन, एक बात और, किसी को बताना नहीं, वो सच में है। यहाँ से बहुत दूर लेकिन है, वो मुझे आवाज़ देती है लेकिन मैं जा नहीं सकती। तुझे अकेले छोड़के कैसे जा सकती हूँ, है ना, नहीं जाऊँगी।
तभी संध्या ने पूछा कि माँ, आपको कौन आवाज़ देती है?
ये सुनकर संध्या की माँ धीरे से बोलीं - “अपना कान ला इधर… ध्यान से सुन, मुझे जो आवाज़ देती है, वो कोई इंसान नहीं है, एक गुफ़ा है… हृदय गुफ़ा”
अपनी माँ से हृदय गुफ़ा का नाम सुनते ही ध्यान में बैठी संध्या के पूरे शरीर में बिजली दौड़ गयी। उसने फ़ौरन ही आँखें खोल ली। वो गुफ़ा के अन्दर ही थी। संध्या उठी और आदित्य के पास आकर खड़ी हो गयी। उसने ध्यान में अभी अपनी माँ को देखा और उन्होंने हृदय गुफ़ा का नाम लिया… संध्या ने ये सब आदित्य को बताया लेकिन आदित्य ने कहा कि ये सब उसके मन का वहम है और कुछ नहीं। लेकिन यह उसका वहम नहीं था, उसके बचपन की एक याद थी जो आज इतने वक़्त बाद ध्यान में बैठते ही लौट आई थी। वहीं, आदित्य सब मूर्तियों की फोटो लेने लगा, फोटो लेते हुए ही उसने बताया कि मूर्तियों की बनावट से पता चल रहा है कि ये महाभारत काल की ही कारीगरी है। वहाँ बीच में जहाँ लौ जल रही थी, उसके नीचे पाण्डवों की मूर्तियाँ थी। लेकिन लेफ्ट साइड में ऐसा नहीं था। श्रीधर के हिस्से वाले चैम्बर में कौरवों की मूर्तियाँ थी। दोनों चैम्बरस के बीच में शीशे की एक दीवार थी! वहाँ जल रही लौ का रंग हरा हो गया और तभी शीशे की दीवार यकायक हट गयी। रुद्र समझ गया कि क्या होने वाला है। उसने आदित्य और श्रीधर से कहा कि मूर्तियों से दूर रहें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। श्रीधर ने दुर्योधन की मूर्ति को छू लिया और आदित्य ने भीम की मूर्ति को। अचानक ही दोनों ही मूर्तियाँ जाग उठीं। और आदित्य और श्रीधर को जीवित होतीं मूर्तियों ने अपने अंदर क़ैद कर डाला। और फिर वही हुआ, जो हज़ारों साल पहले हुआ था। इतिहास ख़ुद को फिर से दोहरा रहा था। वो दोनों योद्धा जो एक दूसरे के जानी दुश्मन थे, एक बार फिर से आमने-सामने थे। फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि वो वहाँ सच में नहीं थे, ये सिर्फ़ उनकी मूर्तियाँ थी जिनका कंट्रोल आदित्य और श्रीधर के हाथ में था। आदित्य और श्रीधर एक दूसरे से कभी नहीं लड़े। तभी उन दोनों के शरीर में बिजली का एक झटका लगा। एक साथ दोनों की चीख़ निकली तो रुद्र ने चिल्लाते हुए कहा…
रुद्र: तुम दोनों अब दोस्त नहीं, दुश्मन हो। तुम्हें ईमानदारी से लड़ना ही होगा, वरना मारे जाओगे।
आदित्य: ये पागलपन है। मैं श्रीधर को चोट नहीं पहुँचाने वाला। यहाँ से निकलने का रास्ता देखो रुद्र। जल्दी करो।
रुद्र: मैं कोशिश कर रहा हूँ लेकिन तुम्हें लड़ना पड़ेगा नहीं तो श्रीधर को ज़्यादा चोट पहुंचेगी।
रुद्र ने सही कहा था। इस बार आदित्य को कुछ नहीं हुआ लेकिन श्रीधर को फिर से तेज़ झटका लगा। श्रीधर फिर से चीखा तो आदित्य समझ गया कि उसके पास और कोई रास्ता नहीं है। उसने श्रीधर से लड़ने के लिए कहा और आगे बढ़कर, भीम बने आदित्य ने, दुर्योधन बने श्रीधर पर पहला वार किया। श्रीधर ने गदा उठाई और जवाबी वार किया। गदा लगते ही आदित्य दो कदम पीछे हो गया। अब युद्ध सही में शुरू हो चुका था। बाहर से देखने पर संध्या और काव्या को लग रहा था कि उनके सामने भीम और दुर्योधन गदा युद्ध कर रहे हैं। ये कैसी माया है?
रुद्र को उस जगह से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था, वो जिस सीढ़ी से आए थे, वो भी अब वहाँ नहीं थी। तभी काव्या की नज़र एक कोने में लगे छोटे से आईने पर पड़ी। काव्या को आईने में अपना नहीं अपने एक्स बॉयफ्रेंड का चेहरा दिखा जो उसपर चिल्ला रहा था। काव्या को अपने हिस्से की महाभारत याद आ गयी जो उसके बॉयफ्रेंड और काव्या के बीच हुई थी। वो दोनों लड़ रहे थे, लड़के ने काव्या को धक्का दिया और उसका सिर दीवार से जाकर लगा। काव्या के सिर खून निकला तो वो लड़का उसे हॉस्पिटल लेकर भागा… काव्या ने देखा कि डॉक्टर की ड्रेस पहने हुए, रूद्र उसके सामने खड़ा है… काव्या को लगा कि वो उसके बच्चे को मारने आया है… काव्या ने फ़ौरन पेट पर हाथ रखा लेकिन वो प्रेग्नेंट नहीं थी…
काव्या की आँखों में खून उतर आया, वो चीख़ते हुए बोली कि मेरा बच्चा कहाँ है?...
रुद्र: तुम प्रेग्नेंट नहीं थी, तुम्हारे पेट में कोई बच्चा नहीं था और अगर था तो ज़रा ये बताओ कि उस बच्चे का पिता कौन है?
रुद्र के इस सवाल पर, काव्या ने बहुत सोचा लेकिन उसे याद ही नहीं आया कि उसके बच्चे का पिता कौन है?
हृदय गुफ़ा की महाभारत में कौन जीतेगा गदा युद्ध?
और हृदय गुफ़ा से क्या रिश्ता था संध्या की माँ का?
क्या इस गुत्थी को कभी सुलझा पाएगी संध्या?
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