ऋषि ने संध्या को कहा की वो अपनी शक्ति को पहचाने! “अपने मन में झांको संध्या। सारे जवाब, तुम्हारे अंदर ही हैं।”, अपनी गमगमाती आवाज़ में बोले।  हृदय गुफ़ा के अंदर, जब ऋषि ने संध्या से ये शब्द कहे तो उसे सबसे पहले अपनी माँ याद आई। बचपन में जब संध्या किसी काम को नहीं कर पाती और हार मान लेती थी, तो माँ यही वाक्य दोहराया करती। तब वो इतनी छोटी थी कि उसे इन शब्दों के अर्थ समझ नहीं आता था। वो हर बार अर्थ पूछती, माँ अर्थ बताती लेकिन संध्या भूल जाती थी। ये शब्द इसी तरह से माँ ने इतनी बार कहे थे कि संध्या को याद हो गए। संध्या को अक्सर एक सपना आता था, माँ के जाने के कुछ वक़्त बाद, वो सपना भी चला गया। सपने में एक बूढ़ा व्यक्ति संध्या को रास्ता दिखाता है, ये कौन सा रास्ता है, ये रास्ता कहाँ लेकर जायेगा, संध्या को नहीं पता। बस वो रास्ते की तरफ़ देखती और चलने लगती, तब पीछे खड़ा वो बूढ़ा व्यक्ति संध्या से यही वाक्य कहता - “अपनी शक्ति को पहचानो संध्या। अपने मन में देखो, सारे जवाब, तुम्हारे अंदर ही हैं।”

संध्या को, काव्या ने कुछ महीनों पहले ही हृदय गुफ़ा के बारे में बताया था। काव्या ने जो भी बताया वो सुनकर, संध्या को हृदय गुफ़ा बहुत ही  दिलचस्प लगी। फिर जितना हो सकता था, संध्या ने हृदय गुफ़ा के बारे में पढ़ा और उस रोज़ तो वो काव्या के घर पर ही थी जब आदित्य का कॉल आया था। कॉल पर बात होने के बाद, काव्या ने ख़ुश होते हुए संध्या को बताया कि आदित्य को हृदय गुफ़ा तक जाने का रास्ता मिल गया है। इस बात पर संध्या को ज़रा भी यकीन नहीं आया क्योंकि उसकी रिसर्च के मुताबिक हृदय गुफ़ा का रास्ते जानने वाले लोग अब इस दुनिया में है ही नहीं। काव्या ने उसे यकीन दिलाया कि आदित्य का सोर्स  एकदम पक्का है, 

 

काव्या: और हम सब अगले हफ़्ते ही हृदय गुफ़ा को ढूँढने जा रहे हैं। 

 

काव्या ने संध्या को साथ चलने के लिए कहा, संध्या फ़ौरन ही मान गयी लेकिन तभी उसे आदित्य का ख्याल आया और फिर उसने साथ जाने से इनकार कर दिया। 

संध्या और आदित्य में ज़्यादा बनती नहीं है, दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। संध्या ईश्वर विश्वासी है।  और आस्तिक होने के साथ-साथ आध्यात्मिक भी है। वहीं आदित्य नास्तिक है, वो केवल तथ्य को सत्य मंटा है।  हर चीज़ का जवाब है साइंस  के पास। आदित्य को साइंस  की दुनिया में नाम कमाना है, केवल नाम कमाना। वो एक मशहूर जियोलॉजिस्ट बनना चाहता है। उसे पूरी दुनिया में अपना नाम करना है। हृदय गुफ़ा आदित्य का गोल्डन टिकट है। अगर हृदय गुफ़ा का रहस्य उसने जान लिया तो हर तरफ़ बस उसी के चर्चे होंगे। संध्या को फ़ेम और दौलत नहीं पड़ी, उसके लिए मन की शान्ति सबसे अहम् है। इस दुनिया में जो भी अच्छा है, संध्या उसी पर ध्यान देती है और कोशिश करती है कि वो ख़ुद को भी हर दिन पहले से बेहतर बनाए। ऑर्फनिज  से निकलने के बाद, एक कपल  ने उसे अडाप्ट  किया था। कुछ सालों बाद, उनका अपना बच्चा हुआ तो उन्होंने संध्या को काफ़ी निग्लेक्ट  किया। संध्या उनके लिए बेटी नहीं बस एक रिस्पांसिबिलिटी थी जिसे वो बस निभा रहे थे। कॉलेज खत्म करने के बाद संध्या एक योगा टीचर  बन गयी। एक दिन ऋषिकेश में, योगा क्लास  में, काव्या ने अपनी बर्थडे पार्टी में संध्या को आदित्य और श्रीधर से मिलाया। उसी पार्टी में किसी मुद्दे को लेकर आदित्य और संध्या में बहस हो गयी। तब से ही दोनों में 36 का आंकड़ा है। 

 

जब संध्या ने हृदय गुफ़ा के लिए साथ जाने से मना कर दिया तो काव्या ने आदित्य के सामने हाथ जोड़कर उसे मनाया कि वो संध्या से साथ चलने के लिए कहे। काव्या को यकीन था कि अगर आदित्य खुद से कहेगा तो संध्या साथ चलने से मना नहीं करेगी और काव्या इस एक्स्पिडिशन पर संध्या के बिना नहीं जाना चाहती थी। उसे कंपनी देने के लिए एक फीमैल फ्रेंड का साथ चाहिए था क्योंकि वो आदित्य और श्रीधर को जानती है… दोनों में से किसी को बात करना पसंद नहीं और काव्या को चुप रहना पसंद नहीं। काव्या ये चांस मिस  भी नहीं करना चाहती क्योंकि हृदय गुफ़ा में होने वाले अपने अनुभवों  पर काव्या एक किताब लिखना चाहती थी। तो आदित्य ने, ना चाहते हुए भी अपने बचपन की दोस्त काव्या की बात मान ली और संध्या को काल  करके कहा… 

 

आदित्य: काव्या चाहती है कि तुम भी इस एक्स्पिडिशन पर हमारे साथ चलो। 

 

संध्या: और तुम क्या चाहते हो? 

 

आदित्य: क्या फ़र्क़ पड़ता है? तुम चलोगी तो काव्या भी चलेगी। 

 

संध्या: अच्छा! तुम चाहते हो की काव्या चले, इसलिए मुझे इन्वाइट  कर रहे हो। वैसे, अगर तुम अपनी ख़ुशी से मुझे इन्वाइट  करते तो भी कुछ नुक्सान नहीं होता तुम्हारा। 

 

आदित्य: तुम साथ आओगी तो अच्छा लगेगा मुझे। हैप्पी? 

 

आदित्य ने कॉल करके सामने से बोला, संध्या के लिए इतना ही काफ़ी था। वैसे अगर आदित्य नहीं भी बोलता तो भी संध्या साथ ही जाती क्यूंकि वो हृदय गुफ़ा को सपने में देख चुकी थी।  संध्या को यकीन था कि वहाँ उसे अपने लिए, अपने हिस्से का, कुछ तो मिलेगा। वहीं श्रीधर भी आदित्य के कहने से ही साथ आया था। 2 साल पहले हुई एक जंग में, मेजर श्रीधर की कमांड के अंडर जो बटालियन थी, उसके बहुत से सिपाही मारे गए थे। आर्मी ने जंग तो जीत ली थी लेकिन श्रीधर अपना सब कुछ हार गया था, दोस्त भी और बहुत हद तक ख़ुद को भी। आर्मी से आने के बाद, श्रीधर शराब में डूब गया और उसने अपनी मंगेतर प्रीति के साथ अपनी सगाई भी तोड़ दी। बहुतों ने खूब समझाया लेकिन श्रीधर अपने लिए हुए फ़ैसले पर अड़ा रहता है। 

प्रीति ने रिंग  उतारने से पहले श्रीधर को एक बार फिर सोचने को कहा लेकिन श्रीधर बोला…   

 

श्रीधर: मैंने सोच-समझकर ये फै़सला किया है। तुम मेरे साथ सर्वाइव नहीं कर पाओगे। मैं वो श्रीधर नहीं जिसे तुमने पसंद किया था। और उस श्रीधर को ढूंढ निकालना इम्पॉसिबल है। 

 

प्रीति ने रिंग उतारकर टेबल पर रखी और उसके घर और जीवन, दोनों से, ना चाहते हुए भी, हमेशा के लिए चली गई। श्रीधर ने उसे रोकने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। 

श्रीधर ठीक से सो नहीं पाता। अगर कुछ देर को नींद लगती भी है तो श्रीधर को जंग के सपने आते हैं। जहाँ वो बार-बार अपनी एक गलती को ठीक करने की नाकाम कोशिशें करता रहता। जब आदित्य ने श्रीधर को साथ चलने के लिए कहा था तो उसने फ़ौरन ही हाँ कर दी क्योंकि वो जानता था कि अगर कुछ और दिन वो घर में अकेले रहा तो कहीं ख़ुद के साथ कुछ कर ना बैठे! अपने अकेलेपन और गिल्ट  से अपने-आप को बचाने के लिए श्रीधर इस एक्स्पिडिशन  पर साथ आया था। सफ़र शुरू होने से पहले तक श्रीधर को लेकर सबके मन में डाउट  था लेकिन जैसे ही वो आया उसे देखकर सबको बहुत ख़ुशी हुई। हृदय गुफ़ा तक जाने के लिए आदित्य ने कार स्टार्ट  की ही थी कि तभी संध्या ने एक सवाल किया… 

 

संध्या: हृदय गुफ़ा तक का रास्ता तुम्हें बताया किसने आदित्य?... इस रास्ते का तो किसी को पता नहीं है। 

 

आदित्य: जो कंपनी  हमारे इस एक्स्पिडिशन को स्पॉन्सर  कर रही है, उस कंपनी के सीईओ   सीईओ   ने खुद आकर मुझे पता बताया।  

 

संध्या: तुम मज़ाक कर रहे हो?...  सीईओ   को भला हृदय गुफ़ा का रास्ता कैसे पता चल गया? तुम्हें कुछ पता है इसके बारे में काव्या? रास्ता किसने बताया?

 

काव्या: आदि सच कह रहा है संध्या…  सीईओ   ने ख़ुद आकर एक बॉक्स  आदि को दिया था, मैं भी उस वक़्त वहीं थी। जब हमने वो बॉक्स  खोला… तो मेरे तो होश ही उड़ गए थे। 

 

संध्या: क्यूँ, ऐसा क्या था उस बॉक्स  में? 

 

काव्या: उसमें नक्शा था, एक बहुत ही पुराना नक्शा। वो भी हाथ से बनाया हुआ। उसी नक्शे पर बना हुआ था, हृदय गुफ़ा तक जाने का रास्ता। मुझे तो लगता है आदि, कि कहीं तो कोई तुमसे बहुत खुश है, तभी तो हृदय गुफ़ा का रास्ता इतनी आसानी से मिल गया, नहीं? 

 

आदित्य: हाँ ये तो है। चलो अच्छा ही है, कोई तो खुश है मुझसे। 

 

मीलों दूर, हृदय गुफ़ा के करीब रहने वाले रुद्र को, गोलू के बड़े भाई सोहम से इन चारों के बारे में पता चला था। सोहम हैरान था कि इतने सालों में ये पहला मौका था जब कोई हृदय गुफ़ा का पता जान पाया था। उसने रुद्र से पूछा भी कि उसे क्या लगता है, इन शहर वालों को यहाँ का रास्ता किसने बताया होगा?... रुद्र कुछ देर तक कुछ सोचता रहा फिर उसने सोहम से पूछा... 

 

रुद्र: जो लोग शहर से आ रहे हैं, हृदय गुफ़ा के अंदर उनका टूर गाइड कौन होगा? 

 

सोहम ने बताया कि वो ख़ुद ही उन्हें गाइड करेगा। रूद्र ने मना करते हुए कहा की इन शहरियों का टूर गाइड  वो खुद बनेगा। इस बात के लिए, पहले तो सोहम नहीं माना था लेकिन जब रुद्र ने टूर गाइड  बनने के बदले में उसे सारे पैसे रखने के लिए कहा तो वो फ़ौरन ही मान गया। वैसे, सोहम के पास रुद्र की बात मानने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था क्योंकि हृदय गुफ़ा कब सामने आती है और वो जंगल के अंदर असल में कहाँ पर है?... ये रुद्र को तो पता था लेकिन सोहम को नहीं। आदित्य और उसके दोस्तों को भी नहीं पता कि रूद्र के बिना, उनका हृदय गुफ़ा तक पहुंचना… असंभव था… 

 

 

तो सवाल ये उठता है कि आख़िर कौन है रुद्र? 

हृदय गुफ़ा के बारे में वो इतना सब कुछ कैसे जानता है? 

और हृदय गुफ़ा का नक्शा  सीईओ   को किसने दिया था? 


 

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