उस रोशनी के गायब होते ही गुफ़ा के उस हिस्से में फिर से अंधेरा छा गया। वहाँ लगी हुई निऑन लाइटस अब नहीं जल रही थी। रुद्र की आँखें अभी भी उसी गलियारे पर टिकी हुई थीं, वहाँ हल्की रोशनी ज़रूर थी। रुद्र को अपनी ही आँखों पर, अपने देखे पर यकीन नहीं आ रहा था।
यकीन करने के लिए वो उस दिव्य शक्ति को फिर से देखना चाहता है। रुद्र के पास अगर टाइम मशीन होती तो वो सबसे पहले यही करता, समय में पीछे जाकर फिर से देखता और पूरी तसल्ली से देखता कि उनकी जान बचाने वाला असल में कौन है! यही सवाल संध्या का भी था। रुद्र को देखकर, संध्या ने भी गलियारे की ओर देखा था कि रोशनी आ कहाँ से रही है? संध्या को भी यही दिखा था कि रोशनी के उस गोले के पीछे कोई खड़ा हुआ था।
आख़िर कौन थे वो, जिन्होंने बिना मदद माँगे, मदद की और बदले में कुछ चाहे बिना ही, गायब भी हो गए? इसका जवाब किसी के पास नहीं था, रुद्र और संध्या के पास तो बिल्कुल भी नहीं क्यूंकि रुद्र को ये लग रहा है कि उसे स्वयं नारायण दिखे थे और संध्या को यकीन है कि रोशनी के गोले के पीछे स्वयं देवी खड़ी थी।
सच क्या है? ये केवल हृदय गुफ़ा जानती है, वहाँ कौन आ रहा है, क्यों आ रहा है? सब हृदय गुफ़ा की अपनी मर्ज़ी से हो रहा है, हमेशा से ऐसा ही होता आया है। रुद्र और बाकी सभी अपनी जगह से उठ चुके थे। आदित्य को संध्या और रुद्र की तरह रोशनी के अलावा कुछ नहीं दिखा था। उसकी आँखें पूरी तरह बंद थी। आदित्य ने काव्या और श्रीधर को शुक्रिया कहा क्योंकि अगर वो सही कोड नहीं लगाते तो दीवार में रास्ता नहीं बनता और उन सबकी जान जाती। आदित्य और बाकी सब गलियारे की तरफ़ चल दिये। वे लोग जैसे ही गलियारे से निकल कर गुफ़ा के अगले हिस्से में आये, वो बड़ी दीवार वापस से बंद हो गयी। सब लोग आगे बढ़ रहे थे। यहाँ हल्की रोशनी थी। कहीं-कहीं पर पत्थरों के खिसकने की आवाज़ भी आ रही थी। लेफ्ट साइड की दीवार पर हाथ से बनाई हुई पेंटिंगस थी। अपने फोन से आदित्य पेंटिंगस की फोटो खींचने लगा तभी उसकी नज़र रुद्र पर पड़ी, आदित्य ने उसकी भी एक तस्वीर खींच ली। आदित्य ने फोटो रुद्र को दिखाई लेकिन उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया। आदित्य समझ गया कि रुद्र अभी भी शॉक में है। आदित्य ने संध्या से पूछा…
आदित्य: ये रुद्र को क्या हुआ है? खोया हुआ लग रहा है। अभी थोड़ी देर पहले जो हुआ, ये उसी के बारे में सोच रहा है क्या?
संध्या: हाँ, रुद्र का ध्यान वहीं अटका हुआ है। मैंने पूछा था उससे, रुद्र को लगता है कि उसने वहाँ रोशनी के पीछे नारायण को देखा था लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि मैंने तो वहाँ देवी को देखा।
आदित्य: नारायण!!! देवी!!!… तुम क्या बोल रही हो संध्या? पता है कितनी डेलूलू साउन्ड कर रही हो तुम! अरे, कुछ नहीं था वहाँ। वो लाइट थी केवल, हृदय गुफ़ा का स्ट्रक्चर ही कुछ ऐसा है। है यहाँ पर। सब कुछ केवल साइंस है और कुछ नहीं।
संध्या: (सार्कैस्टिकअली): शयूर !!!! सब साइंस ही तो है। अभी तक जो-जो हुआ है, वो सब साइंस एक्सपलेन कर देगी! याद दिलाऊँ तुम्हारे साथ क्या-क्या हुआ था? केयर टू एक्सपलेन थाट विद साइंस मिस्टर साइअन्टिस्ट?
साइंस और विश्वास के बीच की लड़ाई उतनी ही घमासान होता है जैसे देवताओं और असुरों की लड़ाई। जहाँ साइंस का पलड़ा भरी, वहाँ विश्वास नहीं पनपता। जहाँ विश्वास अपने पंख खोलता है, वहाँ विज्ञान फीका पड़ जाता है। अपने दिल में संध्या यही मान रही थी कि उनकी रक्षा पारलौकिक शक्ति ने ही की है, चाहे नारायण के स्वरूप में हो या चाहे देवी के स्वरूप में लेकिन आदित्य के शब्दों ने संध्या को गुस्सा ज़रूर दिला दिया था। तभी सबके कानों में एक आवाज़ पड़ी, जिससे सब लोग रुक गए, सिवाय श्रीधर के क्योंकि ये आवाज़ उसके कानों तक नहीं आई थी।
ये समुद्र की आवाज़ थी। ठीक ऐसी, जैसे समंदर में लहरें उठ रही हों। सबने इधर-उधर देखा लेकिन वहाँ समंदर तो क्या पानी का एक कुआँ भी नहीं था। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। समंदर की आवाज़ धीरे-धीरे तेज़ होने लगी। रुद्र ने सबसे कहा कि आवाज़ पर ध्यान मत दो, बस आगे बढ़ते रहो। सब लोग आगे की तरफ़ चलने लगे। आदित्य सोचने लगा कि अगर सच में आसपास समंदर हुआ तो? वो अपने आस-पास के पत्थरों को छू कर भांपने की कोशिश कर रहा था की कहीं पत्थरों के दूसरी ओर समुद्र का पानी तो नहीं है। या गुफ़ा में कोई ख़ुफ़िया रास्ता हो, जो सीधे समंदर में खुलता हो?
अगर ऐसा हुआ तो कमाल ही हो जायेगा, ये एक नई डिस्कवरी होगी क्योंकि हृदय गुफ़ा के बारे में जो भी लिखा हुआ है उसमें कहीं भी किसी समंदर के होने का ज़िक्र नहीं है। पर इसमें जान गंवाने के चांसेस भी थे!
समंदर में लहरें फिर उठी और आदित्य दीवार पे कान लगा के सुनने लगा कि शायद समझ आ जाए कि आवाज़ कहाँ से आ रही है। लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ, क्योंकि ध्यान देने पर आदित्य को ऐसा लगा जैसे वो पहले से समंदर के बीच में ही खड़ा है और पानी की लहर उसके ऊपर से होकर जा रही है। दूसरी तरफ़, श्रीधर बाकी लोगों से थोड़ा सा आगे निकल गया था क्योंकि उसे समंदर की आवाज़ नहीं आ रही थी, उसके कानों में एक अलग आवाज़ का शोर था। जंग के मैदान में, गोले-बारूद का शोर। दुश्मन को मारते हुए साथी फ़ौजियों की हुंकार का शोर।
अचानक ही सब शांत हो गया, सारा शोर कहीं गायब हो गया। श्रीधर ने देखा कि वो वापस जंग के मैदान में खड़ा है। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ। श्रीधर अपने साथी फौजियों के बीच था, उसने मेजर के नहीं एक सिपाही के कपड़े पहने हुए थे। उसका चेहरा भी अलग था और नाम भी - शर्ट पर नाम लिखा था - करमवीर। श्रीधर ने इस बार किसी सिपाही की जगह ले ली थी। उसे इसका मतलब समझ नहीं आया लेकिन उसने ज़्यादा सोचा नहीं, वो ये जंग पहले भी देख चुका है, वो जानता है कि क्या होने वाला है। और जो होने वाला है, श्रीधर उसे बदल देना चाहता है। वो ख़ुद को यानी मेजर श्रीधर को ढूँढने लगा, तभी उसकी नज़र दायीं तरफ़ गयी। मेजर श्रीधर वहीं पर था, सोल्जर उसके हुकुम का वेट कर रहे थे। उसके सुपिरियरस का ऑर्डर आ चुका था कि आगे खतरा है, अभी आगे नहीं जाना है। एक बटालियन और आ रही है, उसके आने तक रुके रहना है। मेजर श्रीधर, जो कभी किसी की नहीं सुनता बस अपने दिल की करता है, वो कुछ भी कर सकता है, इंतज़ार नहीं कर सकता। मेजर श्रीधर ने अपनी बटालियन को एड्रेस करते हुए कहा…
श्रीधर: इंतज़ार! वो चाहते हैं कि हम इंतज़ार करें। लेकिन, क्या दुश्मन इंतज़ार करेगा? हम ज़्यादा हथियारों के लिए यहाँ रुके रहेंगे और तब तक दुश्मन हमारे घर में घुस चुका होगा। हम जितने गिनती में हैं, हमारे पास उससे ज़्यादा हथियार हैं। एक फौजी को और क्या चाहिए? बस, हथियार और सीने में हौसला। हमारे पास दोनों हैं तो आज, आज हम इंतेज़ार नहीं करेंगे, दुश्मन के सीने पे सीधा वार करेंगे।
मेजर श्रीधर ने अपनी बटालियन को दुश्मन की तरफ़ कूच करने का हुक्म सुना दिया। हुक्म मिलते ही पूरी बटालियन अपने लक्ष्य को भेदने के लिए आगे बढ़ गयी। सब दुश्मन की तरफ़ जा रहे थे और श्रीधर जो अब सिपाही करमवीर था, वो सबसे अलग, दौड़ते हुए मेजर श्रीधर के पास आया। वहीं खड़े कैप्टन अजय ने उसे रोक दिया और कहा…
अजय: ये क्या तरीका है सोल्जर ? आगे मेजर खड़े हैं दिख नहीं रहा। क्या हुआ है, इतने घबराए हुए क्यों लग रहे हो? सब ठीक तो है? क्या नाम है? हाँ, करमवीर… मुझे बताओ करमवीर, क्या बात है?
अजय को अपने सामने देखकर श्रीधर यानी सिपाही करमवीर का कलेजा मुँह को आ गया था, वो रुंधे गले से बोला कि आगे ख़तरा है। मेजर से कहिये अपनी बटालियन को रोक लें, आज की इस जंग में हम जीत नहीं पाएंगे। मेजर श्रीधर ने सिपाही के कहे शब्द सुन लिए थे। उसने पास आकर सिपाही करमवीर को देखा और तल्ख़ लहजे में कहा…
श्रीधर: तुम हमारी तरफ़ हो या दुश्मन की तरफ़? अगर दोबारा अपनी ज़ुबान से कोई उल्टी बात की तो मैं अपनी बंदूक की पहली गोली पर तुम्हारा नाम लिख दूँगा।
ये सुनकर करमवीर बने श्रीधर को ख़ुद पर ही बहुत गुस्सा आया। उसने मेजर श्रीधर को समझाते हुए कहा कि आप समझ नहीं रहे हो, मैं सच कह रहा हूँ। हम आज की जंग हार जायेंगे। आपकी पूरी बटालियन खत्म हो जायेगी। दुश्मन जानता कि हम आ रहे हैं। वो तैयार बैठा है। आज जंग हुई तो कुछ ही लोग बचेंगे, और कोई नहीं बचेगा, अजय भी नहीं। रोक लो, सबको रोक लो। दूसरी बटालियन का इंतज़ार कर लो, उनके आने के बाद हम वैसे भी जीत ही जायेंगे। जंग नहीं हारेंगे लेकिन अपनों को खो देंगे, अपनों को खोकर जीते तो क्या जीते?
मेजर श्रीधर ने सामने खड़े एक सिपाही की पूरी बात सुनी और उसे ध्यान से देखने के बाद, उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दिया। फिर एक और उसके बाद एक और फिर एक और… गुस्से से आग-बबूला हुए मेजर ने बिना कुछ सोचे समझे, अपनी बंदूक निकाली और सिपाही करमवीर को डरपोक और गद्दार करार देकर गोली मार दी। गोली लगते ही श्रीधर की आँख खुली, वो वापस गुफ़ा के अंदर था। उसने ख़ुद को देखा, वो अब सिपाही करमवीर नहीं, श्रीधर ही था। श्रीधर ने अभी जो भी किया उसे याद करते हुए उसने ख़ुद से कहा…
श्रीधर: ये सब क्या था? उस रोज़ जब मैंने गलती की थी और बटालियन को लड़ने का ऑर्डर दिया था तब तो मुझे रोकने कोई सिपाही नहीं आया था। मैंने तो किसी पर गोली नहीं चलाई थी, फिर वो सब कैसे?
श्रीधर ने अभी जो भी देखा और किया, वो उसे समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी बाकी लोग जो पीछे रह गए थे, वहाँ आ गए। काव्या ने श्रीधर को देखा तो उसे लगा कि कुछ हुआ है? काव्या ने पूछा भी लेकिन श्रीधर ने कुछ नहीं बताया। सभी लोग फिर से साथ-साथ उसी रास्ते पर आगे बढ़ने लगे तभी सबसे पीछे चल रही संध्या, रोशनी के उस गोले के ठीक पीछे दिखी देवी की एक झलक के बारे में सोच रही थी। संध्या को फिर से एक लाइट दिखी, अपने लेफ्ट साइड की दीवार पर। लाइट में उन्हीं ऋषि का चित्र चमका जिनकी मूर्ति के ऊपर मणि घूम रही थी। अगले ही पल चित्र में मौजूद ऋषि की आँखें जो बंद थी, खुल गयी। उन्होंने संध्या को देखा और कहा - “अपनी शक्ति को पहचानो संध्या। अपने मन में देखो, सारे जवाब, तुम्हारे अंदर ही हैं।”
क्या श्रीधर ख़ुद अपने आप से, अपनी बटालियन को बचा पायेगा?
क्या वो अजय को बचा लेगा?
और कौन हैं ये ऋषि जो संध्या की मदद कर रहे हैं?
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