“पापा…!!!”
सुबह-सुबह अपनी मम्मी का कॉल सुनकर निहारिका चीख़ उठी। अपनी शादी के बाद निशांत और निहारिका कितने ख़ुश थे, लेकिन इस एक कॉल के बाद निहारिका की ख़ुशी, ग़म के काले साये में बदल गयी थी। एक ऐसा ग़म, जिससे निहारिका और निशांत की पूरी दुनिया बदलने वाली थी।
आख़िर निहारिका और निशांत है कौन? और ऐसा क्या हुआ था निहारिका के साथ, जिसके बाद हमेशा ख़ुश रहने वाली निहारिका ने अपने चेहरे पर उदासी की काली चादर ओड ली थी। निशांत और निहारिका को समझने के लिए हमें उनकी लाइफ में कुछ दिन पीछे जाना होगा, जब निशांत और निहारिका एक कैफ़े में एक-दूसरें का हाथ पकड़े बैठे थे।
निहारिका शादी को लेकर बहुत एक्साइटेड भी थी और थोड़ी डरी हुई भी, “निशांत मैं तो भगवान से यहीं प्रे कर रही हूँ कि हमारी शादी, प्लानिंग के अकॉर्डिंग हो जाए बस, वार्ना मेरी एक फ्रैंड की शादी में जो प्रॉब्लम हुई थी न, उसको देखकर तो आज भी डर लगता है मुझे” निहारिका ने थोड़ा सीरियस होकर कहा।
निशांत : “तुम कितनी टेंशन लेती हो न निहारिका? शादी की टेंशन छोड़ो और ये बताओ हम अपने हनीमून के लिए स्विजरलैंड चले या फिर पेरिस?”
निहारिका : नहीं निशांत, मुझे कोई पेरिस-वेरिस नहीं जाना। हमारे हनीमून के लिए हम एक ऐसे प्लेस पर जायेंगे, जहां आसपास ख़ूब सारें ग़ुलाब ही ग़ुलाब हो।
निहारिका की बात सुनकर निशांत पहले तो धीमें से मुस्कुरा दिया और फिर रोमांटिक होकर बोला,
निशांत : सीरियसली निहारिका? वैसे मुझे पता है, ग़ुलाब लव सिंबल होते हैं लेकिन तुम्हें ग़ुलाब इतने ज़्यादा पसंद है, कि अब हम अपना हनीमून भी गुलाबों के साथ में मनायेंगे?
निहारिका “हाँ निशांत”, निहारिका थोड़ी देर रुकी और एक लंबी सांस लेकर उसने आगे कहा, “शहर के शोरगुल और भीड़भाड़ से अब मुझे बेचैनी होने लगी है, निशांत। मुझे कुछ दिन शहर की इस भीड़भाड़ से दूर, नेचर के साथ रहना है और रही बात गुलाब की? वो तो बचपन से ही मेरे फेवरेट है निशांत।
निशांत : वैसे ग़ुलाब में काटें भी होते हैं निहारिका, चुभ जायेंगे”, बोलकर निशांत ज़ोर से हँस पड़ा।
निहारिका उसका इशारा समझकर शर्मा गयी और कैफ़े की विंडो से बाहर देखते हुए अपने आप में गुम हो गयी।
उसको देखकर लग रहा था जैसे निहारिका के भीतर एक अजीब सी बैचेनी हो, जैसे वो सब कुछ छोड़ कर कहीं भाग जाना चाहती हो। अब निहारिका गुलाबों के पास जाना चाहती थी या गुलाब ख़ुद ही निहारिका को अपने पास खींच रहे थे, ये मिस्ट्री तो बस वक़्त ही बता सकता था।
ख़ैर, वक़्त तेज़ी से गुज़रता गया। निशांत और निहारिका की शादी बिना किसी प्रॉब्लम के हो गयी और अगले ही दिन दोनों अपने हनीमून की तैयारी करने लगे।
निशांत ने पहले ही नौकुचियाताल के ऑउटस्कर्ट्स की ख़ूबसूरत वादियों में एक ऐसा होम स्टे बुक कर दिया था, जहां चारों तरफ़ ग़ुलाब ही ग़ुलाब थे।
निहारिका : “उठो निशांत, घोड़े बेचकर सो रहे हो, चलना नहीं है क्या?”
निहारिका ने निशांत को उठाने की कोशिश की, लेकिन निशांत बहुत गहरी नींद में था। उसने नींद में अपनी एक आंख खोलकर देखा, घड़ी में अभी रात के 2 बज रहे थे।
निशांत : निहारिका, अभी रात के 2 बज रहे हैं, और हमें सुबह 11 बजे निकलना है, अभी सो जाओ”
निशांत ने नींद में कहा, और करवट बदल कर फिर से सो गया लेकिन निहारिका की आँखों से नींद जैसे गायब ही हो गयी हो। वो फिर से पैकिंग करने में बिज़ी हो गयी। आज वो अपनी शादी वाले दिन से भी ज़्यादा ख़ुश लग रही थी, और भी क्यों न? निहारिका आज अपने फ़ेवरेट प्लेस पर जो जाने वाली थी।
घड़ी में सुबह के लगभग 8 बज रहे होंगे। निहारिका ने जस्ट पैकिंग ख़त्म करने के बाद अभी चाय का प्याला उठाया ही था कि तभी उसका मोबाइल वाइब्रेट हुआ। कॉल निहारिका की मम्मी का था।
निहारिका : इतनी सुबह मम्मी का कॉल? हैलो मम्मी….
उधर से माँ कि रोटी हुई आवाज़ आई, “बेटा तेरे पापा......उनको अचानक हार्ट-अटैक आया था और वो .....”
निहारिका अपनी मम्मी की आवाज़ सुनकर कांप गयी। उसने चीख़ते हुए पूछा
निहारिका : “मम्मी क्या हुआ पापा को?” आप कुछ बोल क्यों नहीं रही मम्मी?
निहारिका समझ गयी थी, उसके पापा अब नहीं रहे। निहारिका अपना होश-ओ-हवास खो चुकी थी। अपने पापा की मौत की ख़बर सुनकर वो थोड़ी देर तो पत्थर की तरह बैठी रही और फिर “पापा” कहकर ज़ोर से चीख़ पड़ी। निहारिका की चीख़ सुनके निशांत उसके पास आया और निहारिका को बेहताशा रोता देख बस उसे गले से लगा लिया। निहारिका पापा के अलावा कुछ कह ही नहीं पा रही थी. निशांत ने तुरंत कार निकली और निहारिका को लेकर नोएडा से दिल्ली, निहारिका के घर पहुंचा। निहारिका के घर का पूरा माहौल बदला हुआ था, अभी 4 दिन पहले ही तो निशांत इस घर में बारात लेकर आया था। जहां कुछ दिन पहले शादी की खुशियां थी, वहां आज हर तरफ़ मातम पसरा हुआ था और जिस आंगन से निहारिका की डोली उठी थी, वहां अब उसके पापा की डेड बॉडी रखी थी। निहारिका ने जैसे ही अपने पापा को देखा, उसकी चीख निकल गयी।
निहारिका: “पापा ..... उठो पापा ..... पापा आपके बिना मैं भी नहीं रह पाऊँगी पापा, देखो अभी तो मेरी मेहंदी भी नहीं निकली पापा।
निहारिका लगातार अपने पापा को उठाने की कोशिश करती रही और थोड़ी देर बाद बेहोश होकर एक तरफ़ गिर पड़ी।
निहारिका अपने पापा के बहुत करीब थी पर आज वे ही उसको छोड़कर जा चुके थे। उसे इतना गहरा सदमा लगा था की वो बेहोश हो चुकी थी, और लगभग 4-5 घंटे के बाद होश में आई थी। होश में आने के बाद से ही निहारिका बदली-बदली लग रही थी।
अब वो अपनी शादी में मेहंदी की खुश्बू बिखेरती दुल्हन नहीं थी, बल्कि अपने पापा की अचानक मौत से अंदर तक गहरे सदमें और दुःख से टूट चुकी एक ऐसी बेटी हो गयी थी , जो हर वक़्त अपनी उदास आँखों से बैठी-बैठी शून्य में देखती रहती थी।
निशांत: “निहारिका?”
निशांत ने उसको धीमें से आवाज़ लगाई लेकिन निहारिका अपनी ही दुनिया में कहीं खोई थी। निशांत ने उसको फिर से आवाज़ दी लेकिन फिर से उसने निशांत की आवाज़ को इग्नोर कर दिया।
निशांत: निहारिका?
इस बार निशांत ने उसको अपने हाथ से झंझोड़ते हुए तेज़ आवाज़ दी। निशांत की आवाज़ से निहारिका बुरी चौंकी, जैसे उसको किसी ने बहुत गहरी नींद से उठा दिया हो। उसने अपनी उदास और लाल आँखों से निशांत की तरफ़ देखा।
अचानक उसकी लाल आँखें देखकर निशांत के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गयी थी। वो डर कर निहारिका से थोड़ा पीछे हट गया। वो अपने मन में सोच रहा था,
निशांत : निहारिका के साथ कुछ तो अजीब हो रहा है। निहारिका अब पहले जैसी निहारिका नहीं रही। ऐसा लगता है, जैसे वो कोई और ही हो। और..... और इसकी ये इतनी लाल-लाल आंखें, ऐसी लग रही है, जैसे आंखें नहीं भट्टी में गर्म किया हुआ सुर्ख़ लोहा हो। o my god, कहीं निहारिका के पापा की आत्मा तो.... “नहीं, नहीं….मैं भी कितनी ज़्यादा सोच रहा हूँ।”
निशांत ने तुरंत अपनी थिंकिंग चेंज की और निहारिका के पास बैठकर उसको कंसोल करने लगा।
*****
निहारिका के पापा की आज तेहरवीं थी, इसलिए सुबह से ही घर में मेहमानों का आना-जाना लगा था। निशांत सुबह से शाम तक उनकी ख़ातिरदारी में भाग-दौड़ करते-करते थक गया था, इसलिए रात को थककर जल्दी ही सो गया।
निहारिका भी उसके साइड में लेटकर अपने पापा की याद में धीमें-धीमें सिसक रही थी। तभी अचानक, निहारिका ज़ोर से चीख़ी। उसकी चीख़ इतनी तेज़ थी कि उसके पास में सोया निशांत डर के मारें उठकर बैठ गया।
निशांत: “निहारिका, आंखें खोलो निहारिका, क्या हो गया तुम्हें?
निहारिका की चीख़ सुनकर उसके घर के लोग भागकर उसके कमरें में आये लेकिन निहारिका अपने होश में नहीं थी। “जल्दी पानी लेकर आओ” किसी ने कहा।
उसको पानी पिलाने की कोशिश की लेकिन उसने अपने दाँतों को ऐसे जोड़ लिया था, मनो किसी ने गम से चिपका दिया हो । निशांत, निहारिका की ऐसी हालत देखकर बहुत घबरा गया था। उसने उसी वक़्त डॉक्टर को बुलाने की कोशिश की लेकिन उस घर के बड़े-बुजुर्गो ने उसे यह कहकर रोक दिया कि कोई बात नहीं, किसी अपने के खो जाने के गम में ऐसा हो जाता है, घबराओ नहीं, निहारिका सुबह तक अपने आप ही ठीक हो जाएगी।
निहारिका अपने पापा की मौत के सदमें में थी, लेकिन उससे ज़्यादा सदमें में निशांत था। उसको समझ नहीं आ रहा था, आख़िर निहारिका के साथ हो क्या रहा है? निहारिका को ऐसी हालत में अकेली छोड़कर, निशांत दिल्ली अपने घर वापस जाना तो नहीं चाहता था, लेकिन उसको बिज़नेस के सिलसिले में वापस दिल्ली जाना पड़ा।
*****
रात को ऑफिस से घर आने के बाद निशांत अपने कमरे में बिस्तर में लेटा हुआ निहारिका के बारे में सोच रहा था, तभी उसके मोबाइल पर उसके एक दोस्त “आर्यन” का कॉल आया।
आर्यन : “और भाई..... ऑल सेट फॉर द हनीमून?”
आर्यन ने निशांत से एक्साइटेड होकर पूछा।
निशांत : कैसा हनीमून भाई? हम लोग हनीमून पर जा ही नहीं पाए यार आर्यन।
आर्यन : “क्यों?”भाई क्या हो गया?”
निशांत ने उसको निहारिका के पापा की डेथ का इंसिडेंट बताया। ये इंसिडेंट सुनकर आर्यन दंग रह गया था।
आर्यन : ओह! आई एम सो सॉरी... भाभी का ध्यान रखना।
निशांत: अच्छा सुन, मैं बुकिंग वेस्ट नहीं करना चाहता। तेरा कोई प्लान नहीं है तो तू चला जा में वहां बात कर लेता हूँ।
आर्यन : “भाई.. मैं यही सोच रहा था, पर मुझे लगा, ऐसे टाइम पर पूछना सही रहेगा या नहीं लेकिन अगर तू कह रहा है तो चला जाता हूँ? तू अपना फर्स्ट हनीमून इंजॉय नहीं कर पाया पर मैं तो अपना सेकंड हनीमून, नौकुचियाताल की हसींन वेली में मना सकता हूँ भाई?
क्या निशांत, का आर्यन को अपनी जगह भेजना निहारिका को पसंद आएगा? क्या निशांत जान पायेगा की निहारिका को क्या हुआ है? क्या वाकई निहारिका सिर्फ अपने पापा के जाने के सदमे में थी या कोई और बात थी ? जानने के लिए बने रहिये “सूखे-गुलाब” के अगले एपिसोड में।
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