शाम का वक़्त था, सूरज धीरे-धीरे पहाड़ियों के पीछे छिप रहा था, और आसमान पर लालिमा पसरी हुई थी। भूषण के कमरे में हल्की रौशनी का बल्ब जल रहा था। हर तरफ़ हल्की-हल्की ठंडक महसूस हो रही थी लेकिन वह पसीने से तर-ब-तर था, जैसे अभी-अभी किसी डरावने सपने से जागा हो। उसकी आँखों में एक अजीब सा भय था, और उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। सपने में उसने जो देखा था, वह बहुत साफ़ था, लेकिन उसका मतलब समझने की हालत में अभी भूषण था नहीं… उसे लगा जैसे कोई पुराना राज़ उसके सामने आ खड़ा हुआ हो। तभी उसकी नज़र सामने पड़ी, सामने राघव था, जो भूषण को पसीना-पसीना हुआ देख उसे संभालने लगा। उसके बाद राघव ने प्रिया और शौर्य के एक्सीडेंट के बारे में बताते हुए कहा

राघव- वैसे आज सब बहुत अजीब है। पहले एक्सीडेंट हुआ और अब प्रिया की pregnancy की खबर..


राघव की बात सुनकर भूषण ने हैरानी से राघव की तरफ देखा और उसके बाद भूषण  की आवाज़ में थरथराहट थी, क्या..? “ उसकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि तभी बाहर से एक हलचल की आवाज़ सुनाई दी, जिसे सुन राघव ने कहा

राघव- बाहर क्या हो रहा है? चलो, देखते हैं...


राघव ने दरवाज़ा खोला और भूषण को इशारा किया। दोनों तेजी से हॉल की ओर बढ़े। जैसे ही वे हॉल पहुंचे, उन्होंने देखा कि वहाँ बहुत सारे लोग जमा हो चुके थे। जवान लड़के और लड़कियों का एक बड़ा समूह रिसॉर्ट में दाखिल हो रहा था। उनकी हंसी, शोर और बातचीत पूरे हॉल में गूँज रही थी। भूषण की नज़र जैसे ही भीड़ पर पड़ी, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। उसे पैरों के तले से ज़मीन खिसकती सी महसूस हुई। वहाँ भीड़ के बीच, एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा,

भूषण- (हैरानी से फुसफुसाते हुए) निकुंज? यह यहाँ क्या कर रहा है?

राघव-(भूषण की ओर पलटते हुए)  क्या? तुम इस लड़के को जानते हो?

भूषण ने अपनी नज़रें निकुंज से हटाकर राघव की ओर घुमाईं। उसकी आँखों में हैरानी और गुस्से का मिला-जुला भाव था। भूषण ने हल्के से हामी भरते हुए कहा

भूषण- हाँ... जानता हूँ। यह ... यह निकुंज है…

राघव-(मुस्कुराते हुए)- वाह! यह तुम्हारा कोई दोस्त निकला? लगता है तुम्हारी ज़िंदगी में पुराने दोस्तों का रियूनियन चल रहा है....


इतना कहते हुए राघव ने निकुंज को आवाज़ दी। भूषण उसे रोकता रहा लेकिन राघव कहाँ रुकने वाला था। राघव ने चिल्लाते हुए कहा

राघव- अरे, सुनो! निकुंज!..

भूषण ने राघव को रोकने की कोशिश की, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राघव की आवाज़ सुनकर निकुंज ने सिर घुमाया। उसकी नज़र सीधे भूषण पर जा टिकी। भूषण  के चेहरे पर तनाव साफ झलक रहा था, जबकि निकुंज की आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वह चमक किसी शिकारी की तरह थी, जिसने अभी-अभी अपना शिकार देखा हो। उसने दूर से ही भूषण की ओर हाथ हिलाया। भूषण ने मजबूर होकर हल्की सी मुस्कान दी, मगर उसके अंदर हलचल मच चुकी थी। थोड़ी देर बाद, हॉल में उन नए मेहमानों का इंडक्शन कार्यक्रम शुरू हो गया। भूषण  और राघव वहाँ से चुपचाप अपने कमरे की ओर लौट आए। भूषण को परेशान देख, राघव ने कहा

राघव- (भूषण  की ओर देखते हुए) क्या हुआ, यार? तुम इतने चुप क्यों हो गए? कोई पुराना जानने वाला मिल गया, तो ऐसा बर्ताव क्यों?

भूषण ने राघव की बात को सुना, मगर उसकी आँखों में अब भी अतीत की परछाइयाँ तैर रही थीं। भूषण ने bed पर बैठते हुए कहा

भूषण- (थोड़ी देर बाद) कुछ नहीं। बस, मैं उसे जानता हूँ, पर वह मेरा दोस्त नहीं है…

राघव- फिर कौन है वो?

भूषण- "वह... वह मेरी एक्स-गर्लफ्रेंड का ऑफिस का जूनियर था, हमेशा उसकी चापलूसी करता रहता था.. जब देखो तब उसके आगे-पीछे घूमता रहता था। रिनी उससे काफी बातें करती थी, और मुझे हमेशा लगता था कि उसमें कुछ गड़बड़ है, मगर रिनी को कभी उसकी हरकतों में कुछ अजीब नहीं लगता था। वह तो उसे बहुत अच्छा मानती थी..वह लड़के होते हैं न ऑफिस में, सब लड़कियों के best friend..


राघव ने भूषण की बात ध्यान से सुनी, फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा

राघव- ओह, तो यह मामला है, लेकिन वह यहाँ क्यों है? क्या उसे भी तुम्हारी एक्स से धोखा मिला है? सही बंदी थी तुम्हारी…

राघव की बात सुनकर भूषण की आँखों में नाराज़गी उमड़ आई, फिर उसने हल्के गुस्से के साथ सोचते हुए कहा

भूषण- (थोड़ा गुस्से में) पता नहीं। रिनी की तो शादी होने वाली है, तो उसका इससे क्या लेना-देना? असली सवाल यह है कि यह यहाँ आया कैसे? इस रिज़ॉर्ट में आना इतना सस्ता नहीं है..और इस फटीचर के पास इतने पैसे कहाँ से आये होंगे?

राघव ने भूषण की बात पर गहराई से सोचना शुरू किया, लेकिन बहुत दिमाग चलाने के बाद भी राघव कुछ ज्यादा सोच नहीं पाया। उसने रिनी के बारे में सोचते हुए भूषण से कहा

राघव - हम्म... वैसे मेरा तुम्हारी एक्स के बारे में कुछ कहना ठीक नहीं लगता, लेकिन एक बात कह सकता हूँ… तुम्हारी एक्स-गर्लफ्रेंड को लड़कों को अपना प्यादा बनाने की आदत थी, है ना?

राघव की बात सुनकर भूषण ने गुस्से में राघव की ओर देखा, और अचानक उसे अतीत का वह कड़वा लम्हा याद आ गया। वह दिन, जब रिनी ने बेवजह उस पर गुस्सा किया था। भूषण ने उसे मनाने की कोशिश की थी, मगर जब वह उसे ढूंढ़ता हुआ निकुंज के घर पहुँचा, तो जो उसने देखा, वह उसके दिल को चीर गया। रिनी और निकुंज एक कमरे में थे। भूषण ने रिनी को देखकर पूछा

भूषण- रिनी, यह क्या कर रही हो तुम यहाँ? मैंने कितना फ़ोन try किया.. और तुम..मैं ऑफिस गया और तुम यहाँ...

रिनी- (गुस्से से) क्या मतलब तुम्हारा? तुम मुझे ट्रैक कर रहे हो? मेरा पीछा कर रहे हो?


रिनी की बात सुनकर भूषण के चेहरे पर दर्द और गुस्सा एक साथ उमड़ आया। रिनी का ऐसा बर्ताव उसने पहले कभी नहीं देखा था। भूषण ने फिर भी अपनी आवाज़ धीमे रखते हुए कहा

भूषण- मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा था, मुझे बस तुम्हारी फ़िक्र थी, इसलिए मैं तुम्हें लेने ऑफिस गया था। मुझे नहीं पता था कि तुम इस तरह अपने ऑफिस जूनियर के साथ उसके घर पर मिलोगी..

रिनी- how dare you?  निकुंज मेरा ऑफिस जूनियर होने के साथ-साथ मेरा दोस्त भी है, और अगर मैं उससे मिल रही हूँ, तो तुम्हारा क्या हक़ बनता है सवाल पूछने का? मैं तो तुमसे कभी नहीं पूछती, तुम्हारी कितनी दोस्त हैं? तुम्हें हमेशा शक करने की आदत है, भूषण, इसलिए अब मुझे तुमसे डर लगने लगा है। पता नहीं क्यों मैं तुम्हें झेल रही हूँ। तुम्हें मुझसे इतनी दिक्कत है तो मुझे छोड़ क्यों नहीं देते?

भूषण को समझ नहीं आया कि वह क्या कहे। उसे ऐसा लगा, जैसे रिनी उसे जानबूझकर नीचा दिखा रही हो। भूषण ने अपनी इन भावनाओं को एक तरफ रखते हुए रिनी को मनाने के लिए आगे कदम बढ़ाये, लेकिन रिनी ने उसके मुंह पर दरवाज़ा बंद कर दिया। भूषण ने और कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप वहाँ से चला गया, मगर उस दिन से उसकी दुनिया बदल गई। रिनी की बातें और उसका व्यवहार उसके दिल पर गहरा घाव छोड़ गए..ऐसे घाव जिन्हें मिटाने के लिए भूषण यहाँ एक अनजान जगह, कुछ अनजान लोगों के बीच आ गया था। उसने एक सफ़र शुरू कर दिया था, लेकिन इस सफ़र के हर मोड़ पर कुछ अजीब उसका इंतज़ार कर रहा था। ऐसा ही कुछ आज भी उसके साथ हुआ, अपने अतीत से जुड़े एक शख्स को यहाँ देखना भूषण पचा नहीं पा रहा था.. उसने राघव को निकुंज के बारे में सब बताया और फिर कहा

भूषण- उस दिन के बाद मैंने कभी रिनी से बात नहीं की, और अब यह लड़का यहाँ कैसे पहुँच गया, मुझे समझ नहीं आ रहा।


राघव ने भूषण की बात सुनी और हल्की मुस्कान देकर कहा

राघव- तुम ज़्यादा मत सोचो..हो सकता है उसका दिल भी दुखा हो..

जहाँ एक तरफ भूषण और राघव निकुंज के बारे में बात कर रहे थे, वहीं रिज़ॉर्ट  से कुछ दूर बने मेडिसिनल डिपार्टमेंट की इमारत में हल्की खामोशी थी और उसी ख़ामोशी को चीर रहे थे, मंदिरा के कदम। वह शौर्य से मिलने जा रही थी, शौर्य का कमरा ऊपर की मंज़िल पर था, जहां एक्सीडेंट के बाद उसे आराम करने के लिए रखा गया था। मंदिरा और विराज, दोनों धीरे-धीरे कमरे में दाखिल हुए। मंदिरा के चेहरे पर चिंता और गुस्से का मिलाजुला भाव था, जबकि विराज चुपचाप उसके पीछे चल रहा था। कमरे के अंदर तेज़ रौशनी थी, शौर्य बिस्तर पर लेटा हुआ था। उसकी हालत ठीक लग रही थी, लेकिन उसकी आंखों में थकावट साफ दिख रही थी। मंदिरा शौर्य के पास जाकर खड़ी हुई और फिर हल्के गुस्से से बोली

मंदिरा- तुम्हें गाड़ी थोड़ा संभलकर चलानी चाहिए थी। अगर प्रिया को चोट लग जाती, तो?

मंदिरा की डाँट सुनकर शौर्य हल्का मुस्कुराया और फिर अपना सिर तकिये पर टिकाते हुए, लापरवाही भरे लहज़े में बोला, “डॉक्टर, अब मैं ठीक हूं, और प्रिया को भी कोई चोट नहीं लगी। कल तक यह दर्द भी खत्म हो जाएगा।” शौर्य की बात सुनकर मंदिरा ने उसे घूरकर देखा, जैसे उसकी लापरवाही को समझ नहीं पा रही हो। विराज ने मंदिरा की ओर देखा और माहौल को समझते हुए धीरे से कमरे से बाहर चला गया। मंदिरा ने उसके जाने के बाद, एक गहरी सांस लेकर कहा

मंदिरा (गहरी सांस लेते हुए)- मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।

शौर्य ने उसकी ओर देखा, उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी  जैसे वह पहले से सब जानता हो, उसने खुद को बहुत शांत रखते हुए कहा, “डॉक्टर, मुझे पहले से पता है, प्रिया प्रेग्नेंट है।” शौर्य की बात सुनकर मंदिरा चौंक गयी, मंदिरा कुछ आगे कह पाती उससे पहले ही शौर्य थोडा सीधा होकर बैठा और कहा, ”मुझे सब पता है, प्रिया ने बताया था मुझे, लेकिन मैंने उसे पहले ही समझा दिया था कि हम serious नहीं होंगे, और अब भी मैं यही कहूंगा…”

शौर्य की बात सुनकर मंदिरा के चेहरे पर गुस्सा आ गया, उसने नाराज़गी के साथ शौर्य से कहा

मंदिरा (सख्ती से)- क्या? तो अब तक तुम उसके साथ क्या कर रहे थे? उसका इस्तेमाल?

मंदिरा के सवाल पर शौर्य ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ”ऐसा मत कहो, डॉक्टर। जो भी हुआ, वह दोनों की मर्जी से हुआ। मैं यह मानता हूं कि मैं इस हालात के लिए जिम्मेदार हूं, लेकिन मैं प्रिया के साथ कोई फ्यूचर नहीं देखता। हम वैसे भी 21वीं सदी में है..हम इन सब से normally डील कर सकते हैं…”। मंदिरा ने शौर्य की बात सुनकर उसे गुस्से से झिडकते हुए कहा  

मंदिरा- तुम्हें शर्म आनी चाहिए, शौर्य। प्रिया तुम्हें लेकर कितना सीरियस है, यह तुम्हें पता भी है?

मंदिरा की बात सुनकर शौर्य ने उसे घूरकर देखा, और फिर अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेरकर कहा, “मैं उसकी इज्जत करता हूं, डॉक्टर। लेकिन मैं उसके... उसके साथ अपनी ज़िंदगी नहीं बिता सकता। वह हर चीज़ में बहुत नासमझी दिखाती है।” शौर्य की यह बात सुनकर मंदिरा का सब्र जवाब दे गया, उसकी आंखों में अब गुस्से के साथ दर्द भी झलक उठा। वह गुस्से से बोली

मंदिरा- तो तुमने उसके जज्बातों के साथ खेला? तुम्हें पता भी है, यह उसके लिए कितना बड़ा झटका होगा?

मंदिरा की बात पर शौर्य ने कुछ नहीं कहा, मंदिरा ने उसकी तरफ एक आखिरी बार देखा, फिर तेजी से कमरे से बाहर निकल गयी। कमरे के बाहर विराज खड़ा था, उसने मंदिरा के चेहरे पर परेशानी देखी और तुरंत सवाल किया। “क्या हुआ? उसने क्या कहा?” मंदिरा ने  विराज की तरफ देखा। उसकी आंखों में अब भी गुस्सा भरा था, उसने विराज के साथ आगे बढ़ते हुए कहा

मंदिरा (कठोर स्वर में)- कल की शाम होने से पहले, किसी भी बहाने से इस लड़के को यहाँ से निकाल दो।

मंदिरा की बात सुनकर विराज की आँखों में सवाल चमक उठे, लेकिन वह मंदिरा के गुस्से को देखकर समझ गया कि आखिर मंदिरा ने ऐसा क्यों कहा। मंदिरा ने विराज की आँखों में उठ रहे सवालों को देखकर, एक गहरी सांस लेकर कहा

मंदिरा- मैं प्रिया को संभाल लूंगी, लेकिन तुम इसे यहां से जाने को कह दो। प्लीज, मेरे लिए।

मंदिरा अपने ऑफिस पहुंची, वह थकी हुई लग रही थी। ऑफिस में घुसते ही उसने दरवाजा बंद किया और अपनी कुर्सी पर बैठ गई। उसकी आंखों में गुजरा हुआ वक्त तैरने लगा, उसके बचपन की एक धुंधली याद अचानक उसके सामने आने लगी। कमरे में गहमागहमी थी। मंदिरा के माँ-बाप के बीच जोरदार बहस चल रही थी। उसके पापा गुस्से में चिल्लाते हुए कह रहे थे, “मुझे और बच्चे नहीं चाहिए! तुम मेरी बात क्यों नहीं समझती?” मंदिरा की मां अपने पेट पर हाथ रखे खड़ी थी। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वहीँ मंदिरा के पापा ने उनके सामने एक कांच का गिलास तोड़ते हुए कहा, “अगर तुमने यह बच्चा रखा, तो सब खत्म हो जाएगा!” मंदिरा उस वक्त कमरे के एक कोने में खड़ी थी। वह कुछ नहीं समझ पा रही थी, लेकिन माहौल की घुटन उसे साफ महसूस हो रही थी।

कुछ दिनों बाद, उसकी मां अस्पताल में गयी, लेकिन वहां से वापस नहीं आई. उसी दिन छोटी सी मंदिरा के सामने ही उसकी दुनिया बिखर गई थी। मंदिरा की आँखों के सामने आज भी वह पल अचानक ज़िंदा हो गये… उसे अपनी माँ और प्रिया के चेहरे में अंतर दिखना बंद हो गया और तभी मंदिरा ने अपनी आँखें खोल ली। उसे ऐसा लगा जैसे उसे किसी ने पुकारा, मंदिरा अचानक अपनी कुर्सी पर सीधी बैठ गई। उसकी आंखों में आंसू थे। उसने पास रखी पानी की बोतल उठाई और एक लंबा घूंट लिया। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। मंदिरा ने सिर उठाकर दरवाजे की तरफ देखा।दरवाजे के उस पार खड़े शख्स को देखकर उसकी आंखें चौड़ी हो गईं, उसने हैरानी के साथ कहा

मंदिरा (हैरानी से)- तुम? तुम यहाँ क्यों आये, अजय?

आखिर कौन है अजय? क्या मंदिरा प्रिया को परेशानी से निकाल पाएगी? क्या निकुंज भूषण को पहुंचाएगा नुकसान?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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