काव्या ने अंकन के साथ नंबर exchange कर लिया था। उसके बाद से उन दोनों की बातें डेटिंग app को छोड़कर whatsapp की गलियों में होने लगीं थीं।
बातों बातों में काव्या ने अपने बारे में काफी कुछ अंकन को बता दिया था क्योंकि अंकन हर एक सवाल को बड़े curiosity के साथ पूछ रहा था। इन सारी बातों के बीच में अंकन ने एक बार भी sexual बात नहीं की थी जो काव्या के लिए बड़ी ताज़्जुब और अच्छी बात थी। क्योंकि उसे हमेशा लगता था लड़के dating app पर नॉर्मल बातों की आड़ में हमेशा सेक्सुअल बातों पर आ जाते हैं। पर अंकन ने अभी तक कोई भी ऐसी हरकत नहीं की थी जिसकी वजह से वो बात करते हुए comfortable होती जा रही थी और अपने बारे में हर एक बात आसानी से share करने लगी थी।
बातों का सिलसिला यूं ही चलता गया और तभी घड़ी ने बारह बजा दिए। और बारह बजते ही अंकन का बातों के बीच में ही गुडनाइट टेक्स्ट आ गया। और उसके बाद अंकन की तरफ से एक भी मैसेज नहीं आया। काव्या को ऐसा लगा जैसे मेले में बड़ा सा गोल गोल घुमने वाला झूला बीच में ही रुक गया हो।
और उससे मिलना वाला fun अचानक खत्म हो गया।
काव्या को ये चीज बड़ी अजीब सी लगी पर इस बारे में ज़्यादा न सोच कर वो कल अंकन के साथ अपनी date के बारे में सोचने लगी। तभी आशीष अपने कमरे से बाहर हॉल में तकिया ले कर आया।
काव्या ने तकिए के साथ देख कर तुरंत उसे टोकते हुए कहा,
काव्या: “नहीं आशीष! तुझे अब से अकेले सोना सीखना पड़ेगा। इस तरह हम रोज साथ में नहीं सो सकते!”
ये बात सुनकर आशीष थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा फिर टेढ़ी मुस्कान के साथ बोला,
आशीष: “मुझे पता है, इसलिए मैं यहां हॉल में सोने आ रहा हूं। मुझे अपने कमरे में नींद नहीं आती। इसलिए बाहर सो कर देख रहा हूं। Don't worry मैं इतना भी चेप नहीं हूं।”
आशीष की भोली सी सूरत देखकर काव्या को उस पर तरस आ रहा था। पर उसने हॉल में आशीष के सोने के लिए जगह खाली कर दी थी। जैसे ही काव्या वहां से उठकर जाने लगी तो आशीष ने उसे रोकते हुए कहा,
आशीष: “अच्छा सुनो! मुझे कुछ तुमसे ज़रूरी बात कहनी थी।”
ये सुनते ही काव्या अपनी जगह रुक गई। और उसने serious होते हुए आशीष से कहा,
काव्या: “हां, कहो!”
इसके बाद काव्या ने देखा आशीष टमाटर जैसा लाल होता जा रहा था। उसने पहली बार आशीष को इतना शरमाते हुए देखा था। काव्या को लगा शायद वो कोई बात करने में हिचकिचा सा रहा हो। तो उसने आशीष को comfortable कराते हुए पूछा,
काव्या: “हां बोल, क्या हुआ? तुझे यहां रहने में कुछ issue है?”
आशीष ने ज़ोर से तीन चार बार सिर न में हिलाया। पर आगे की बात कहने के लिए फिर टमाटर जैसा लाल हो गया। ऐसा लग रहा था, जैसे पुराने जमाने की कोई एक्ट्रेस डायलॉग बोलने से पहले एक लंबा शर्माने वाला टेक दे रही हो।
काव्या ने जब देखा आशीष का टेक लंबा होता रहा था उसने तुरंत उस पर चिल्लाते हुए कहा,
काव्या: “अबे! ये क्या शर्माए जा रहा है! जल्दी बता बात क्या है?”
इस पर आशीष ने अपना चेहरा तकिए में छुपा लिया। काव्या के मन में एक शक पैदा हो गया कि कहीं आशीष उसे पसंद तो नहीं करने लगा। साथ में रहते रहते उसके अंदर feeling आने लगीं। ये सोचते ही काव्या के पसीने छूटने लगे थे।
उसने सख्ती से आशीष से कहा,
काव्या: “सुन! जो बात बतानी है जल्दी बता। बरना मैं कमरे में जा रही हूं। मेरे पास रात भर जगने का time नहीं है।”
इस पर आशीष ने तुरंत काव्या से बोला,
आशीष: कोई नहीं। तुम सो जाओ। मैं तुमसे कभी और बात कर लूंगा। क्योंकि अभी जल्दबाजी में शायद मैं अपनी बात, अपनी फीलिंग एक्सप्रेस न कर पाऊं।”
जैसे ही काव्या ने आशीष के मुंह से feeling express करने की बात सुनी, उसका शक और गहरा होता चला गया कि कहीं सच में आशीष काव्या को like करने लगा हो। काव्या ने मन में सोचा कि कहीं किसी लड़के के साथ दोबारा फ्लैट शेयर करना गलत decision तो नहीं था?
काव्या आशीष को गुडनाइट बोल कर अपने कमरे में आ गई।
कमरे में आने के बाद ही काव्या के मन में यही सवाल चल रहे थे कि कहीं एक रात आशीष काव्या के पास सो गया था, इसके बाद से उसके मन में फीलिंग आ गई हों। लेकिन अब वो इस बारे में क्या करे? क्या उसे अब थोड़ा और सख्ती से पेश आना चाहिए? ये सब कुछ काव्या के दिमाग में चल रहा था।
अगले दिन दुर्गा अष्टमी थी। अंकन भट्टाचार्य जो एक बंगाली परिवार से था, उसने काव्या को डेट पर आने के लिए दुर्गा पूजा पांडाल पर बुलाया था। काव्या को उम्मीद ही नहीं थी कि कोई लड़का dating app पर उसे किसी मंदिर में बुलाएगा। काव्या को ये सोचते हुए हंसी भी आ रही थी और इस सोच में भी थी कि अब जब किसी ने उसको मंदिर बुलाया था तो उसे western कपड़े पहन कर जाने चाहिए थे या traditional indian। कभी उसने सोचा नहीं होगा कि वो साड़ी पहन कर किसी के साथ डेट पर जायेगी। उसने प्रॉपर bengali साड़ी पहनने का ही डिसाइड किया। पर उसके पास साड़ी तो एक भी ऐसी नहीं थी, जिसे वो पहन कर काव्या डेट पर जा सकती थी। तभी उसके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न अपनी माता श्री को याद किया जाए। काव्या ने बचपन से अपनी मॉम के पास साड़ियों का बहुत सारा कलेक्शन देखा था।
साड़ी लेने के लिए काव्या अपने घर ही पहुंच गई थी। घर पहुंचते ही जैसे ही उसने मॉम से कोई साड़ी देने की बात कहीं। काव्या की मॉम की आंखें दिए की तरह जल उठी थी। एक मां के लिए तो ये golden moment होता है जब बेटी इंडियन culture के कपड़ों के लिए मां के पास आती है।
काव्या की मॉम ने तुरंत सरोजिनी बाजार काव्या के सामने खोल दिया था। उनके पास एक से बढ़ कर एक साड़ियों का कलेक्शन था। उसकी मॉम की आंखों में मोमबत्ती जलाए काव्या की तरफ ही देख रहीं थीं। उन्होंने काव्या से पूछ ही लिया,
काव्या की मॉम: “वैसे ये साड़ी पहन कर तू कहां जा रही है?”
काव्या समझ गई थी कि उसकी मॉम के दिमाग में शादी की घंटियां बजने लगी थीं। उसने मॉम को जब बताया कि वो किसी लड़के से मिलने जा रही थी तो काव्या की मॉम ने खुशी से उसका माथा चूम लिया।
माथा चूमते हुए बोलीं,
काव्या की मॉम: “इसे कहते हैं बेटा संस्कार! अब तूने की है, भारतीय लड़की वाली बात! ये छिछोरे से लड़कों को छोड़कर तू अब एक सच्चे आदमी से मिलने जा रही है वो भी हमारे कल्चर के हिसाब से! सुन, उस लड़के के सामने अपने फिजूल के सवाल जवाब मत करियो। और उससे बोलियो जल्द से जल्द अपने परिवार से मिलाए। अगर किसी लड़के ने अपने परिवार से मिला दिया तभी जा कर तय होता है कि लड़का सीरियस है!”
मॉम का भाषण सुनकर काव्या ने आंखें रोल कीं और कहा,
काव्या: “मॉम मैं उससे पहली बार मिलने जा रही हूं, डेट है हमारी।”
काव्या की मॉम ने ऐसा react किया जैसे काव्या की बात उन के कान में पड़ी ही न हो। उनके दिमाग में तो शादी के सपने सजने लगे थे। इन्हीं सपनों को सजाते हुए उन्होंने काव्या को एक लाल सफेद रंग की साड़ी पहनने को दी।
काव्या को शुरू में अजीब लगा कि कहीं वो डेट के लिए कुछ over तो तैयार नहीं हो रही थी। पहली बार में ही काव्या को इस तरह देवदास की पारो बने आते देख कर कहीं अंकन भाग न जाए। ये सब सोचने के बाद भी जब काव्या ने साड़ी पहनी तो उसे खुद को इस तरह देख कर अच्छा लग रहा था।
अचानक से हवा के एक झोंके की तरह आर्यन का ख्याल काव्या के दिमाग में दौड़ गया था। काव्या के दिल की मायूसी चेहरे पर जैसे ही दिखने लगी, तभी उसकी मॉम ने आ कर काव्या की बहुत तारीफ़ की। उन्होंने इमोशनल हो कर काव्या के माथे को चूमते हुए कहा,
काव्या की मॉम: “तुझे तो अब जल्दी शादी कर लेनी चाहिए!”
हालांकि काव्या हमेशा शादी की बात सुनकर irritate हो जाती थी पर इस बार उसने ज्यादा रिएक्ट नहीं किया। उसे अच्छा लग रहा था कि अपनी जिंदगी में उसने कुछ अलग try किया था।
वहीं दूसरी तरफ आर्यन अपनी ट्रिप को एंड करके वापिस दिल्ली आने की तैयारी में लगा था। सुबह पांच बजे ही जग कर उसने जो खुशी अपने अंदर महसूस की थी वो काफ़ी समय से उसकी जिंदगी में गायब थी। उसने तय कर लिया था कि वो यहां से जाने के बाद सबसे पहले काव्या के पास जायेगा।
क्या काव्या के फ्लैट का उसका कमरा अभी भी खाली होगा? या काव्या ने किसी और को रख लिया होगा? उसके दिमाग़ में सारे सवाल कुलबुला रहे थे। वहीं प्रज्ञा के दिमाग में अलग प्लानिंग चल रही थी। चुटकी में उसकी सारी साजिश fail होने वाली थी। प्रज्ञा को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर अचानक आर्यन के दिमाग में ऐसी कौन सी बत्ती जागी जिससे उसे वापिस काव्या की याद आ गई थी।
इस बारे में सोचते हुए प्रज्ञा का दिमाग खराब होता जा रहा था। इसके लिए वो जब meditation के टाइम शांति से नहीं बैठ पा रही थी तो आश्रम के शिष्यों ने उससे शांत से ध्यान लगाने को कहा। तो झुंझलाहट में उसने ऐसा react कर दिया जिससे आस पास के सब लोग हैरान रह गए थे। एक मिनट के लिए प्रज्ञा के अंदर का असली चेहरा सबके सामने आ गया था। प्रज्ञा को लगा जैसे उसके मुंह पर लगा मुखौटा गिर गया हो।
उसने तुरंत खुद को शांत किया। वो ज़रा सी आई परेशानी में, अपने character को छोड़ नहीं सकती थी। उसे थोड़ा patience से सोचना होगा। पर प्रज्ञा के पास ज्यादा वक्त नहीं था क्योंकि आर्यन कुछ ही देर में वहां से निकलने वाला था।
तभी थोड़ी देर बाद प्रज्ञा के खुरापाती दिमाग में एक आइडिया आया और वो आंखों में आसूं लिए आर्यन के पास पहुंची।
आर्यन अपने कमरे में सामान पैक कर रहा था, वहां प्रज्ञा को इस तरह रोता हुआ देखकर वो हैरान रह गया। हालांकि अब जब वो आश्रम से जाने ही वाला था तो यहां के नियम तोड़ने में उसे कोई दिक्कत नही थी। उसने प्रज्ञा से पूछा,
आर्यन: “क्या हुआ? तुम इस तरह रो क्यों रही हो?”
प्रज्ञा ने मौके का फायदा उठाया और रोते हुए आर्यन के गले लग गई थी। उसने आर्यन को कस कर गले लगा लिया जिसके बाद आर्यन को थोड़ा अजीब लगा पर प्रज्ञा की हालत देख कर उसने भी अच्छे से उसे पकड़ लिया था। प्रज्ञा लगातार रोए जा रही थी। पता नहीं कहां से उसने रोने की एक्टिंग सीखी थी, क्योंकि अच्छे खासे एक्टर भी emotional scene में आसूं नहीं निकाल पाते। पर प्रज्ञा ने चुटकी में ये कर दिखाया था। उसने आर्यन को कस कर पकड़ते हुए कहा,
प्रज्ञा: “आर्यन! मैं भी तुम्हारे साथ अभी दिल्ली वापिस चलूंगी। मॉम को कुछ हो गया है। मुझे पता लगा कि अचानक से उनकी तबियत काफ़ी खराब है और उनके पास कोई है भी नहीं। मुझे जल्दी मॉम के पास पहुंचना है। प्लीज़ मुझे जल्दी से घर पहुंचा दो, आर्यन! मॉम को कुछ हो गया तो मैं मर जाऊंगी!”
प्रज्ञा को इस तरह रोते हुए देख कर आर्यन को अच्छा नहीं लगा। भले प्रज्ञा ने रो कर पहले भी कई नाटक कर रखे थे पर अब उसका इस तरह से रोना अलग लग रहा था। उसने प्रज्ञा को समझाते हुए कहा,
आर्यन: “तुम इतनी tension क्यों ले रही हो? सब ठीक हो जायेगा! हम अभी साथ में यहां से निकल लेंगे। और तुम्हारी मॉम के आस पास उनके काम के लोग तो होंगे ही, तो इतना डरने वाली कोई बात नही। लेकिन तुम्हे इस बारे में पता कैसे चला क्योंकि हमारे phones तो हमारे पास हैं नहीं?”
प्रज्ञा जानती थी कि आर्यन ये सवाल कर सकता था इसलिए उसने पहले से ही इसके जवाब के बारे में सोच रखा था। उसने सिसकते हुए कहा,
प्रज्ञा:“कोई भी emergency situation के लिए मैंने मॉम को यहां का नंबर दिया था। तो मुझे आश्रम के लोगों ने ही ये खबर दी। और फिर मैने मॉम को कॉल लगाया तो वो बात भी नहीं कर पा रही थीं। मुझे समझ नही आ रहा कि आखिर उनको हुआ क्या है? इसलिए और भी घबराहट हो रही है।”
आर्यन ने प्रज्ञा को संभाला और उसे ज़्यादा कुछ सोचने से मना किया। उसने प्रज्ञा की टिकट के लिए भी फिर ऑफिस के लोगों से बात कर ली थी। हालांकि ये ट्रिप प्रज्ञा ने ही suggest की था अब बीच में ही उसको यूं छोड़ के जाते देख कर बॉस के साथ कई ऑफिस के लोगों को अच्छा नहीं लग रहा था। उनमें से एक गगन भी था। जो प्रज्ञा को छुपके से like करने लगा था। प्रज्ञा ने उससे एक दो बार बातें की थी क्योंकि वो आर्यन के पर्सनल life के बारे में चीजें जानना चाहती थी। आर्यन हालांकि ऑफिस में किसी से इतना खुलता नहीं था पर गगन के साथ फिर भी उसकी बातचीत अच्छी हो जाती थी। इसलिए प्रज्ञा ने गगन को ही अपना निशाना बनाया। पर अब ये निशाना गलत जगह लग रहा था जहां प्रज्ञा को इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था। प्रज्ञा को वहां से आर्यन के साथ जाते देख कर उसने भी साथ चलने के लिए कहा।
(गगन): “एक काम करता हूं प्रज्ञा, मैं भी तुम्हारे पास चलता हूं। इस वक्त में तुम्हारे साथ किसी और का भी होना जरूरी है।”
प्रज्ञा के दिल में आया कि वो गगन के सिर पर ज़ोर का मुक्का मार दे। पर अपने character को निभाते हुए उसने कहा,
प्रज्ञा: “नहीं कोई परेशान होने की ज़रूरत नही। आर्यन है मेरे साथ। वो संभाल लेगा।”
ये सुनकर गगन को बुरा तो लगा पर उसने इसको छोटी सी बात समझ कर, जाने दिया।
उधर काव्या बंगाली लाल सफेद साड़ी पहन कर अंकन से मिलने दुर्गा पूजा पांडाल की तरफ़ पहुंच चुकी थी। वहां पहुंच कर उसने आस पास जैसे ही अंकन को ढूंढने की कोशिश की। तभी अंकन उसे दुर्गा मूर्ति के पास नज़र आया। पर ज़ोर का झटका काव्या को तब लगा जब उसने देखा अंकन वहां अकेला नहीं था, वो सपरिवार वहां आया हुआ था। अंकन को पूरे परिवार के साथ डेट पर आए हुए देख कर काव्या की आंखें फटी की फटी रह गईं थीं। काव्या के कान में मॉम की कही बात सुनाई देने लगी थी, “अगर किसी लड़के ने अपने परिवार से मिला दिया तभी जा कर तय होता है कि लड़का सीरियस है!”
पर काव्या को ये उम्मीद नही थी कि लड़का date पर आने से पहले ही सीरियस हो जायेगा। अंकन जैसे ही अपनी फैमिली के साथ काव्या के पास आया, काव्या इतनी nervous हुई कि तुरंत वहीं बेहोश हो गई।
क्या काव्या और अंकन की पहली मुलाक़ात आखिरी मुलाक़ात होगी? क्या होगा जब आर्यन वापिस काव्या से मिलने आएगा? आखिर आशीष काव्या से कौन सी feeling express करना चाहता था?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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