डिसक्लेमर: "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएं पूरी तरह से काल्पनिक हैं. किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है."

धनबाद की कोयला खदानें, जो कभी मज़दूरों के काम करनें की जगह थी. आज वहां सिर्फ खौफ और अंधकार का साया मंडरा रहा है. मजदूरों ने काम करना बंद कर दिया था. किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि, वो कोयले की खदानों के अंदर पैर रखे. हर तरफ बस एक ही बात थी—फैंटम. लोग कह रहे थे कि अजीबो गरीब साया, चमकती आंखों वाला एक फैंटम, अब हर जगह दिखने लगा है।

मजदूरों का एक बड़ा समूह खदान के बाहर इकट्ठा हुआ था. उनके चेहरे पर साफ़ दिख रहा था कि वो काम करनें को तैयार नहीं हैं. इतने लोगों की मौत नें उनपर गहरा असर किया था. फैंटम के असली नकली का डिसिशन तो अभी तक नहीं हो पाया था, मगर मज़दूर जो मर रहे थे, उनका कारण फैंटम ही थे.

माधव एक अनुभवी और सीनियर माइनर है, जिसनें कोयला खदानों में कई सालों तक काम किया है. उसका व्यक्तित्व एक मजबूत और ज़िम्मेदार नेता का है, जिसे बाकी मज़दूरों का सम्मान और भरोसा हासिल होता है. उसे अपने काम के ख़तरों का ज्ञान है. हालांकि, हाल के हादसों ने माधव के दिल और दिमाग में एक गहरी दरार डाल दी है.

माधव ने व्यक्तिगत रूप से "फैंटम" को देखा है. वह पहले तो इसे मन का वहम मानता था, लेकिन अपनी आंखों से फैंटम की झलक देखने के बाद उसको यकीन हो गया. अब वह इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता, और वह अपने डर को खुलकर स्वीकार करता है.

माधव के लिए अब संघर्ष सिर्फ बाहरी नहीं, बल्कि खुद से भी है. वह जानता है कि मजदूरों को काम पर वापस लाना जरूरी है, लेकिन उसका खुद का डर उसे रोक रहा है.

वो अपने साथी मजदूरों के लिए हमेशा खड़ा रहा है. माधव को सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि पूरे मजदूर ग्रुप के भविष्य की चिंता है. वह जानता है कि अगर खदानें बंद होती हैं, तो सबकी रोज़ी-रोटी पर संकट आ जाएगा. इस कारण से उसका डर और भी गहरा हो गया है.

माधव का डर उस दिन और बढ़ गया जब उसने फैंटम की आंखों में चमकती रोशनी देखी. इस डर ने उसकी आत्मा को झकझोर कर रख दिया है, और वह इस ख़ौफ़नाक साए बच कर बाहर आया था. पसीने में तर-ब-तर होकर माधव बोल रहा था…

माधव: "मैंने अपनी आंखों से देखा है उस साये को. वो कोई सपना नहीं था. उसकी आंखों से अजीब सी चमक निकल रही थी...मैं अब काम नहीं कर सकता"

माधव की आवाज़ में डर साफ झलक रहा था. मज़दूरों में दहशत फैल चुकी थी. कोई किसी कीमत पर खदान में जाने को तैयार नहीं था. दूसरी ओर, कंपनी के रिप्रेज़ेनटेटिव  प्रसाद के चेहरे पर ये सुनते ही बेचैनी छा थी. कंपनी को करोड़ों का नुकसान हो रहा था. अगर काम शुरू नहीं हुआ, तो हालात और बिगड़ सकते थे. माधव का काम छोड़ना उसके लिए बड़ा झटका था. वो जनता था उसके साथ साथ मज़दूरों का ग्रुप भी काम नहीं करेगा. उसने बनावटी आवाज़ में गुस्साते हुए कहा… "ये सब बकवास है. फ़ैंटम जैसा कुछ नहीं होता. तुम सब सिर्फ अफवाहों का शिकार हो रहे हो. वैसे भी कंपनी अब सबकी तनख़्वाह बढ़ाने वाली है. जिसको जाना है जाओ."

प्रसाद की आवाज़ में साफ झलक रहा था कि, वो बस फुसलाने की बातें कर रहा है. उसे अब हालात हाथ से निकलते लग रहे हैं. वो मजदूरों को किसी भी तरह काम पर लौटने के लिए मनाना चाहता था.

प्रसाद का गुस्सा और मजदूरों का डर आमने-सामने थे. एक तरफ खदान का अंधेरा और फैंटम की कहानियां थी, तो दूसरी ओर कंपनी का दबाव और मुनाफे की चिंता. लेकिन मज़दूरों का डर उनके जज़्बात पर हावी था. किसी ने अपनी जान जोख़िम में डालने की हिम्मत नहीं की. फ़ैंटम अब सबके दिल-ओ-दिमाग पर छा गया था.

 दूसरी ओर, डॉ. निखिल झा, जो एक जाने-माने पेरनॉर्मल इन्वेस्टिगेटर  थे. कंपनी की ओर से इस बार उनको जाँच के लिए भेजा गया था. उनकी चाल में निडरता थी. वो अकेले खदान के आसपास घूम रहे थे. उनके हाथ में एक हाई-टेक कैमरा था. जिससे वो हर कोने को बारीकी से रिकॉर्ड कर रहे थे. फ़ैंटम के कारण काफी लोग परेशान हो रहे थे. मज़दूरों के परिवार इसका शिकार हो रहे थे. उनकी कोशिश थी कि, वो इस फैंटम की सच्चाई को किसी भी तरह उजागर कर सकें. अचानक उनके कैमरे में एक अजीब सी छवि कैद हुई. निखिल ने चौकते हुए कहा...

"क्या… ये क्या है? ये तो वही साया है जिसके बारे में मज़दूर बात कर रहे थे"

निखिल ने कैमरे की स्क्रीन पर देखा एक लंबा साया, जिसकी आंखों में अजीब सी चमक थी. उसने तुरंत यह तस्वीर मीडिया के कुछ लोगों को भेज दी. देखते ही देखते ये खबर पूरे धनबाद में फैल गई.

यह तस्वीर अब सिर्फ एक खदान के डर की कहानी नहीं रही थी. यह अब पूरे शहर का मुद्दा बन गई थी. मीडिया ने इस तस्वीर को सिरियस लिया और हर तरफ चर्चा शुरू हो गई. लोग अब अपने-अपने अंदाज में फैंटम की कहानियां गढ़ने लगे थे.

धनबाद के आस-पास के गांवों में एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया था. वहां के लोग अब इस फैंटम की कहानी को सच मानने लगे थे. हर कोई अपने-अपने तरीके से इससे बचनें की भी तैयारी कर रहा था. गांव के बड़े-बुजुर्ग कह रहे थे कि, फ़ैंटम को इतनी ताक़त इसलिए है, क्यूंकि ये सिर्फ किसी एक व्यक्ति की आत्मा नहीं, बल्कि उन सभी लोगों की आत्माएं हैं, जिन्हें इस खदान की वजह से अपनी ज़मीन और ज़िंदगी खोनी पड़ी थी. ये फैंटम उन सबकी आवाज़ है, जिन्हें ज़बरदस्ती बेघर किया गया था. उनकी आत्माएं अब इस खदान में बसी हुई हैं.

ऐसा लग रहा था कि धनबाद के कोयला खदानों के इर्द-गिर्द सिर्फ़ अंधेरा ही नहीं, बल्कि बरसों पुरानी POWERFULL कहानियां भी मंडरा रही थीं. उन कहानियों में खोए हुए गांव के गांव और उनकी आत्माएं थीं, जो अब भी न्याय की मांग कर रही थीं. गाँव के सभी लोगों ने खान में काम करना तो बंद कर ही दिया था. साथ ही शाम ढ़लते ही उस तरफ जानें से कतराते थे. गाँव वालों ने प्रेग्नेन्ट औरतें, बुजुर्ग, बच्चें, उनके लिए खान में किसी भी समय जाना बंद करवा दिया था.

अब तक काफ़ी लोगों की जान उस खान ने ले ली थी. वो मज़दूरों के लिए काम की नहीं, मौत की जगह बन गयी थी. पूरा धनबाद इस बात को मान रहा था की , वहां कोई प्रेत है जो ये सब कर रहा है. वो प्रेत किसका है, इस बात से अभी भी सब लोग अनजान थे.

आज फिर कंपनी के लोगों ने मज़दूरों की मीटिंग  बुलवाई थी. निखिल भी वहीँ खड़ा था. माधव मज़दूरों के ग्रुप को लीड करता हुआ, सबसे आगे खड़ा था. निखिल ने कैमरे से फोटो निकली. उसनें जो तस्वीर खींची थी, वो सिर्फ़ एक फ़ैंटम का प्रमाण नहीं थी. वो एक ऐसी कहानी की शुरुआत थी, जो अब और भी रहस्यमयी और डरावनी होती जा रही थी. तस्वीर को देखते ही मजदूरों का डर उनके सामने आ गया. अब तो कोई भी खदान में घुसने को तैयार नहीं था. प्रसाद जो माइनिंग रिप्रेज़ेनटेटिव है, उन्होंने इरिटेट होते हुए कहा… "तुम सब पागल हो गए हो. ये सब बस एक अफवाह है. ये तस्वीर कोई सबूत नहीं है. फ़ैंटम होता तो तस्वीर धुंधली क्यों होती? मेरी मानों और काम पर आ जाओ”

मजदूरों ने उसकी एक नहीं सुनी. सुनते भी कैसे, उन्होंने तो प्रेत को अपनी आँखों से देखा था. माधव जो अब तक चुप था, बोल पड़ा…

माधव: "मैंने उस साये को देखा है. उसकी आंखों की चमक अब भी मेरी आंखों में बसी हुई है. हम नीचे जाकर काम करते है, आप नहीं. काम नहीं होगा, हम मरना नहीं चाहते"

निखिल जो की जानता था, कुछ तो है जिसनें सबकी नींद उड़ा रखीं है. उसके पास कोई प्रूफ नहीं था. उसकी भी हालत अब और खराब हो गई थी. कंपनी का दबाव उस पर बढ़ रहा था, और मजदूरों का डर कम होने का नाम नहीं ले रहा था. वो कोई भी ऐसा कदम नहीं लेना चाहता था, जिससे मज़दूरों की जान को फिर से ख़तरा हो. आज भी प्रसाद मज़दूरों को फुसलाने में कामयाब नहीं हो पाया था.

रात हो चुकी थी. खदान खाली हो चूका था. सभी खदान से दूर अपने घरों में सहमे से सोए हुए थे. बस कहीं दूर से कुत्ते की भोंकनें की आवाज़ आ रही थी. तभी एक और चौंकाने वाली घटना घटी. गाँव में हल्ला हो गया की, एक मज़दूर की लाश खदान के दरवाज़े के पास मिली है. लाश की हालत इतनी डरावनी लग रही थी, की लोग डर से देख भी नहीं रहे थे. उसकी आंखें खुली थीं, और उसका पूरा शरीर सिकुड़ा हुआ था. जैसे उसने मरने से पहले कुछ बेहद डरावना देखा हो.

धनबाद की खदानों का ये रहस्य अब और भी गहरा होता जा रहा था. मजदूरों के बीच फैंटम का खौफ और भी बढ़ गया था. कंपनी के लिए हालात संभालना मुश्किल होता जा रहा था. और अब, निखिल झा के सामने भी चुनौती थी कि वो इस रहस्य से पर्दा कैसे उठाए. रात के अंधेरे में खदान के दरवाज़े पर पड़ी उस लाश ने सभी के मन में एक ही सवाल छोड़ दिया, की उसका अगला शिकार कौन होगा?

क्या फैंटम ने एक और जान ले ली थी? क्या वाकई ये खदान किसी रहस्यमयी ताकत के कब्ज़े में थी? या फिर ये सब महज एक संयोग था? इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

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