डिसक्लेमर: "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएं पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।"

धनबाद, जहां की कोयला खदानें कभी रोज़गार और मेहनत की पहचान थीं. अब वहां रहस्यमयी मौतें और डर का माहौल है. अब तक काफ़ी मज़दूरों की मौत की ख़बर भी सामनें आई है. खान की खुदाई भी बंद हो गयी है. कई मज़दूरों ने फ़ैंटम देखनें का भी दावा किया है. जिसको अब तक उस आदिवासी नेता की प्रेत आत्मा बताया जा रहा था.

फ़ैंटम की कहानियों ने मज़दूरों के दिलों में खौफ़ भर दिया है. पेरनॉर्मल इंवेस्टिगेटर के अनुसार भी, खान के नीचे किसी एनर्जी के होने की ख़बर दी जा रही है. माइनिंग रिप्रेज़ेनटेटर्स इस बात को मानने को तैयार ही नहीं हैं, की वहां कुछ भी है. उनके हिसाब से बस ये सब कहानियां और मन का वहम है.

मगर एक आदमी है जो इस ख़ौफ़नाक साये के पीछे छुपे सच को उजागर करने के लिए तैयार है. अरविंद सिंह एक अनुभवी 35 साल का मेहनती और निडर पत्रकार है, जिसने अपना करियर सच्चाई की खोज में बिता दिया. उसे पत्रकारिता के शुरुआती दिनों से ही अनदेखे और छिपे हुए मुद्दों को उजागर करने में रुचि रही है. धनबाद में रहकर, उसनें खदानों और मज़दूरों की दिक्कतों को नज़दीक से देखा है. उसकी लेखनी में हमेशा एक ईमानदारी और समाज के प्रति ज़िम्मेदारी का भाव रहा है, जिससे उसकी पहचान एक सच्चे खोजी पत्रकार के रूप में होती है.

अरविंद का दिमाग हर चीज़ की तह तक जाने को मजबूर करता है. चाहे फ़ैंटम जैसी अजीबो-गरीब कहानियां हो या ख़तरनाक गैंग्स, उसे सच्चाई जाननें की जिद रहती है. एक बात जो उसे दूसरों से अलग बनती है वो है, उसके सीधे और तीखे सवाल.

अरविंद का उद्देश्य फ़ैंटम के पीछे की सच्चाई को उजागर करना और उस माफिया जाल को तोड़ना है, जो धनबाद के खदानों और गरीब मजदूरों की ज़िंदगी को तबाह कर रहा है. उसने ठान लिया था कि वो इन मौतों के पीछे की असली वजह का पता लगा कर ही रहेगा.

अरविंद को यकीन है कि फ़ैंटम सिर्फ एक अफवाह है, और असल सच्चाई इन खदानों के पीछे चल रहे इल्लीगल माइनिंग में छिपी है. उसकी खोज उसे धनबाद के काले अंडरवर्ल्ड तक ले जाती है, जहां हर खेल में गैंग्स का दबदबा है. अरविंद के हिसाब से इन गैंग्स ने अपने काम को छुपाने के लिए शायद फ़ैंटम की कहानी फैलाई हो.

अरविंद ने बिना देर करते हुए, अपनी जांच शुरू कर दी थी. वो शहर की तंग गलियों और खदानों के आसपास के इलाकों में घूमता रहता था. उसे लग रहा था कि ये हादसे बस किसी प्राकृतिक कारण से नहीं हो रहे. इसके पीछे कोई और ही साजिश छुपी है. खदानों में हो रहे इल्लीगल एक्टिविटीज़ को लेकर डाउट उसे यहां तक खींच लाया था.

अरविंद को एक गुप्त सूचना मिली कि इस सबके पीछे एक ख़तरनाक गैंग है, जिसको लीड गणेश ठाकुर करता है. ठाकुर का दबदबा पूरे इलाके में फैला हुआ था. उसकी पहुंच इतनी गहरी थी कि पुलिस भी उससे डरती थी. उसके काम के बीच में आना मौत के मुंह में हाथ डालने जैसा है. अरविंद अपने इसी डेरिंग के लिए फेमस है. उसने फैसला कर लिया कि वो इस ठाकुर से खुद जाकर मिलेगा.

अरविंद एक सुनसान जगह पर पहुंचा, जहां उसे गणेश ठाकुर से मिलना था. चारों तरफ अजीब सा सन्नाटा था. तभी एक लंबी गाड़ी आकर रुकी. गाड़ी से उतरा गणेश ठाकुर, एक हट्टा-कट्टा आदमी, जिसकी चेहरे से एरोगेन्स टपक रही थी. गणेश ने अपनी पावर दिखाते हुए पूछ…

"तो, तुम हो वो पत्रकार जो फ़ैंटम के पीछे की सच्चाई जानने की कोशिश कर रहा है? तुम क्या सोचते हो, जो मैं करता हूं, वो फ़ैंटम की कहानियों से जुड़ा है?"

अरविंद ने भी हिम्मत से जवाब दिया और कहा...

अरविन्द: "मैंने सुना है कि ये मौतें तुम्हारे गैंग की अवैध खनन से जुड़े हैं. फ़ैंटम एक अफवाह है, जिसका इस्तेमाल तुम कर रहे हो, ताकि लोग डरकर खदानों से दूर रहें और तुम अपना काम आराम से कर सको"

गणेश भी एक पल के लिए सोच में पड़ गया. उसने तुरंत अपने चेहरे पर एक निडर मुस्कान बैठा ली और कहा...

"तुम क्या सोचते हो? हम यहां मौतें करवा रहे हैं? ये सब बकवास है. फ़ैंटम एक सच्चाई है, और तुम उससे ज़्यादा दूर नहीं रहेंगे. और अगर तुम मेरे काम में टांग अड़ाओगे... तो तुम भी उनमें से एक हो सकते हो जो खदानों से जिंदा बाहर नहीं आते."

अरविंद को एहसास हुआ कि गणेश ठाकुर किसी भी कीमत पर सच को सामने आने से रोकने की कोशिश करेगा. लेकिन अरविंद अब पीछे हटने वाला नहीं था.

काम के सिलसिले में जब अरविंद पुलिस स्टेशन गया तो, उसकी मुलाकात इंस्पेक्टर राघव से हुई. नाम: राघव सिंह, पद: इंस्पेक्टर, धनबाद पुलिस, उम्र: 40 के लगभग.

इंस्पेक्टर राघव सिंह एक अनुभवी पुलिस अधिकारी हैं, जिन्होंने पिछले 20 वर्षों से पुलिस सेवा में रहते हुए कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. धनबाद में काम करते हुए, उन्होंने इस क्षेत्र की कठिनाइयों, माफिया के प्रभाव और भ्रष्टाचार को नज़दीक से देखा है.

राघव सिंह को उन्हें लगता था कि वो समाज में बदलाव ला सकते हैं और अपराध को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं. जैसे-जैसे उनका करियर आगे बढ़ा, उन्होंने सिस्टम की ख़ामियों और धनबाद के शक्तिशाली माफिया का दबदबा महसूस किया.

धनबाद में आकर, राघव ने देखा कि यहाँ के गैंग्स और माइनिंग माफिया कितने ताकतवर हैं. माफिया और सत्ता का गठजोड़ इतना मजबूत था कि पुलिस चाहकर भी उन पर हाथ नहीं डाल पाती. कई बार राघव ने बड़े ऑपरेशन चलाने की कोशिश की, लेकिन या तो उन्हें रोक दिया गया या फिर उन्हें ऊपर से दबाव आ गया. अब राघव जानते हैं कि गैंग्स के खिलाफ सीधी लड़ाई छेड़ना उनके लिए मुमकिन नहीं है, क्योंकि पॉलिटिकल और डिपार्ट्मेन्ट का दबाव हमेशा बना रहता है. इसका असर उनके काम पर भी पड़ा है, और वो चाहकर भी इस मामले की जांच नहीं कर पाते थे. वो जानते हैं कि धनबाद के खदानों में जो हो रहा है, वो सही नहीं है, लेकिन उनके पास इसे रोकने की ताकत नहीं बची.

उनके जीवन में एक समय ऐसा भी था जब उनका परिवार उनकी ईमानदारी पर गर्व करता था, लेकिन अब उनके जीवन में निराशा और तनाव ने घर कर लिया है.

धनबाद में काम करते हुए राघव ने यहाँ के लोगों की तकलीफों को करीब से देखा है. वो जानते हैं कि खदानों में काम करने वाले मजदूरों के साथ कितना अन्याय हो रहा है, और उन्हें इस बात का गहरा दुख भी है कि, वो उनकी मदद नहीं कर पा रहे. यहाँ के गैंग्स और माइनिंग माफिया के सामने राघव की स्थिति एक ‘फंसे हुए इंसान’ जैसी है, जो सही और गलत के बीच झूल रहा है.

राघव का असली उद्देश्य बस इतना है कि वो सही समय पर सही कदम उठा सके और जितना हो सके, उतनी सच्चाई सामने ला सके. हालाँकि वो सीधा टकराव नहीं कर सकता, लेकिन वो उन लोगों का साथ देना चाहता है जो सच की लड़ाई लड़ रहे हैं, जैसे अरविंद सिंह.

राघव के मन में अरविंद के लिए एक सम्मान भी है, क्योंकि वो खुद भी कभी वैसा ही जोशीला और निडर पत्रकार बनना चाहता था, जैसा अरविंद है. उन्होंने अरविंद को समझाते हुए कहा...

राघव: "अरविंद, तुम्हें समझ नहीं आ रहा कि तुम किससे टकरा रहे हो. ये लोग सिर्फ माफ़िया नहीं हैं, इनके हाथ हर जगह हैं. मैंने खुद भी कई बार इन्हें रोकनें की कोशिश की, लेकिन मेरा हर कदम बेकार गया. क्यों तुम अपनी जान खतरे में डाल रहे हो"

अरविंद ने राघव की बातों को सुना. वो जानता था कि राघव सही कह रहा है. मगर अरविंद के भी अपने असूल है. उसने बातों को समझाते हुए कहा...

अरविन्द: "अगर मैंने इस मामले को नहीं उठाया, तो कौन उठाएगा? मैं एक पत्रकार हूँ. सच का पता लगाकर ही रहूंगा, चाहे कुछ भी हो जाए."

जैसे-जैसे अरविंद की जांच आगे बढ़ी, उसे पता चला कि धनबाद में अवैध खनन की गतिविधियां कितनी गहरी हैं. शहर के मशहूर इलाके जैसे झरिया और कतरास इन अपराधों के अड्डे बने हुए हैं. वहां के मज़दूरों को धमकाया जाता था, और फ़ैंटम की झूठी कहानी के ज़रिए उन पर दबाव डाला जा रहा था कि, वो खदानों से दूर रहें. जिससे माफ़िया अपना काम आसानी से कर सके.

अरविंद अब एक ऐसे मोड़ पर आ पहुंचा था, जहां उसका सामना सीधे उन शक्तियों से हो रहा था, जो हमेशा से शहर के अंधेरे में छुपी हुई थी. ये लोग कोयले की धूल की तरह हर जगह फैले हुए है. इनका सामना करना, मौत को बुलावा देना जैसा ही है. अरविंद को सारी बातें पता थी. मगर इस बार वो पीछे नहीं हटने वाला था.

अरविंद को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब उसे एक अनजान कॉल आई. सामनें से किसी ने गहरी आवाज़ में कहा… "फ़ैंटम सिर्फ एक परदा है. इसके पीछे जो सच्चाई है, वो तुम्हारी सोच से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है. अगर तुम आगे बढ़े, तो तुम्हारी ज़िंदगी भी ख़तरे में पड़ सकती है. लेकिन अगर सच जानना चाहते हो, तो इस जगह आओ…"

कॉल कट गया. अरविंद के मन में हजारों सवाल थे. कौन था ये अनजान आदमी? क्या सचमुच फ़ैंटम की कहानी के पीछे कोई बड़ी साजिश छिपी है? और क्या वो अब इस रहस्य से पर्दा उठा पाएगा?

धनबाद के खदानों का ये रहस्य अब और भी गहरा हो चुका था, और अरविंद के सामने थी एक खतरनाक चुनौती—जिसका सामना करने के लिए उसे अपने डर और हिम्मत के बीच संतुलन बिठाना था.

क्या फ़ैंटम की कहानी एक धोखा है? अरविंद को आया मिस्टिरियस कॉल किसका था? इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

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