अनिका एक पुरानी तंग गली के कोने में खड़ी थी। सामने दो छोटी लड़कियाँ हंसी-खुशी से "लंगड़ी" खेल रही थीं। उनके चेहरे पर मासूमियत और अनगिनत सपनों की चमक थी। उनकी किलकारियों में एक अजीब सा सुकून था। उनकी आवाज़ें अनिका के मन में किसी भूले-बिसरे संगीत की तरह गूंज रही थी। कटक की ये गालियां, जहां का हर कोना एक सांस्कृतिक धरोहर के साथ अनिका की यादें सँजोये हुए था, वहाँ आने वक्त में कुछ ऐसा होने वाला था जिससे अनिका और उससे जुड़े सभी लोगों की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदलने वाली थी। उन बच्चियों की हंसी की किलकारियों के बीच जैसे ही अनिका ने अपनी आँखें बंद की, उसे लगा जैसे वह एक पल के लिए अपने बचपन में लौट गई। ठीक ऐसे ही तो वह और मीरा भी खेला करती थीं। उन गलियों में दौड़ती-भागती, बिना किसी फिक्र के। अनिका ने अपनी आँखें बंद किये हुए खुश होते हुए कहा 

अनिका- हम हमेशा साथ रहेंगे... यही कहती थी ना तुम मुझसे और मैं तुमसे, पर क्या अब ऐसा मुमकिन हो पाएगा। जब तुम्हें पता चलेगा कि मेरी ज़िंदगी में इन चार महीनों में कितना कुछ बदल गया, सच में तुम्हें कितना अजीब लगेगा। 

अनिका की आँखों में चमक थी, उसने यह बात कहते हुए अपने हाथ में बंधे एक धागे को देखा और कुछ याद करते हुए बोली 

अनिका- तुमसे ये सब छिपाना अच्छा नहीं लग रहा मीरा, पर क्या करुँ? तुम्हें कुछ बता नहीं सकती। मजबूर हूँ... पर  एक दिन सब बता दूँगी। 

अनिका ने हल्की मुस्कान के साथ उन दोनों बच्चियों को देखा, लेकिन वह मुस्कान जल्द ही धुंधली पड़ गई। अनिका के चेहरे पर अजीब सी परेशानी आ गई। अनिका एक जगह पर खड़ी हुई थी, मानों वक्त को रोक देना चाहती हो। तभी अचानक उसके कानों में मीरा की पायलों की आवाज़ पड़ी, अनिका ने धीरे से मुड़कर देखा—मीरा वहाँ खड़ी थी, उसके चेहरे पर वैसी ही मुस्कान थी जैसी अनिका से मिलने के बाद होती थी, लेकिन उसकी आँखें आज कुछ और ही बयां कर रही थी। अनिका उसे हैरान सी होकर देख रही थी, जिसपर मीरा ने अपने बालों की लटों को माथे से हटाया और चौंकते हुए कहा  

मीरा- क्या हुआ? तुम अब तक यहीं हो? मुझे लगा तुम आगे बढ़ गई होगी। मैं थोड़ा लेट हो गई ना? मैंने तुम्हें बताया तो था कि मैं आज देर से आऊँगी, फिर तुम यहाँ... 

अनिका ने कुछ देर तक बिना बोले उसे देखा, जैसे उसके कानों में मीरा की आवाज़ जा ही ना रही हो। वह अब भी अपने किसी कशमकश में उलझी हुई थी, मीरा के चेहरे की चमक देखकर हैरान थी। वहीं मीरा खुद भी अनिका को सवालिया नज़रों से देख रही थी। कुछ देर बाद अनिका ने धीमी आवाज़ में कहा 

अनिका- हाँ, मुझे तुम्हारा मैसेज मिला था मीरा, लेकिन तुम्हारे बिना कॉलेज जाना अच्छा नहीं लगता। तुम बताओ, तुम आ कहाँ से रही हो? रास्ते में आंटी मिली थी, उन्होंने बताया कि तुम 1 घंटा पहले ही कॉलेज के लिए निकल गई। क्या बात है? कहीं किसी खास.... 

अनिका अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही मीरा ने उसे बीच में रोकते हुए कहा 

मीरा- नहीं, नहीं ऐसा कुछ नहीं है। मुझे बैंक में काम था, अम्मा को बताकर आती तो वह भाई को साथ भेज देती। तुम तो जानती हो ना, उसके साथ आना कैसा होता है। बाज़ार में आकर भी लगता है, जैसे किसी जेल में आ गए हों। 

अनिका ने शक की निगाहों से मीरा को देखा और फिर उसकी बात मानते हुए कहा 

अनिका- कह तो सही रही हो, पर मुझे बता देती, मैं तुम्हारे साथ चलती। 

मीरा(तंज कसते हुए)- अच्छा, तुम मेरे साथ चलती? फिर तुम्हें रात के वक्त क्या हो गया था, जब तुम गोल चौक के पास खड़ी थी, तुमने मुझे वहाँ से जाने को क्यों कहा? मैं भी तो तुम्हारे साथ डॉक्टर के यहाँ चल सकती थी। 

मीरा का सवाल सुनकर अनिका सोच में पड़ गई। वह बातें, जो पहले एक झटके में कह दी जाती थीं, अब गले में अटकने लगी थीं। दोनों सहेलियाँ एक-दूसरे के सामने खड़ी थीं, लेकिन दोनों की ही आँखों में सच और झूठ उभर रहे थे। उन्हें एक दूसरे पर पूरा भरोसा था, पर वे अपने दिल में ऐसा राज़ छिपाए थी जिसे वे दोनों जानती तो थी, लेकिन कहने से डर रही थीं। मीरा ने इस चुप्पी को तोड़कर पहल करते हुए कहा 

मीरा- अच्छा, अच्छा, ठीक है। अब हिसाब बराबर हो गया, हम दोनों ने ही एक दूसरे की मदद नहीं ली। अब लेकिन हमें चलना चाहिए, वरना कॉलेज में हम दोनों की ही कोई मदद नहीं करेगा। 

मीरा ने धीरे से अनिका का हाथ पकड़ा और आगे बढ़ने लगी। दो कदम रखते ही मीरा ने एक बार पीछे मुड़कर देखा, मानों वह किसी से आँखों ही आँखों में कुछ बात कर रही हो। अनिका ने मीरा को देखकर कहा 

अनिका(पीछे देखते हुए)- क्या हुआ? पीछे कोई है क्या? 

मीरा(हिचकते हुए)- नहीं तो, वह बस माँ ने कहा था कि आजकल चोरियाँ बहुत बढ़ गई हैं ना, तो चौकन्ना होकर आगे पीछे देखती चलूँ। चलो, सब ठीक है... 

मीरा ने अनिका का हाथ पकड़ा और दोनों धीरे-धीरे गलियों में चलने लगीं। अनिका और मीरा दोनों के ही चेहरों पर ऐसी मुस्कान थी जैसे आज सबकुछ पहले जैसा तो था, लेकिन उसे देखने का उनका नज़रिया बदल चुका था। तभी मीरा को कुछ याद आया और उसने अनिका की ओर देखकर कहा 

मीरा- वैसे तुमने छुट्टियों में क्या किया? तुम जयपुर गई थी ना, तुमने तो बताया नहीं लेकिन आंटी ने कहा कि तुम जयपुर गई हो। तुमने वहाँ से एक बार मुझे फोन भी नहीं किया...

मीरा के सवाल पर अनिका के दिल में एक अजीब सी हलचल उठने लगी। उसकी आँखों के सामने वे मंज़र जिंदा होने लगे जब वह गुलाबी शहर जयपुर की गलियों में एक शख्स का हाथ थामे चल रही थी। उस छुअन का एहसास मानों अनिका के ज़ेहन में फिर से ज़िंदा हो गया था। फिर उसने आँखों में एक चमक के साथ मीरा की ओर देखा और कहा 

अनिका- कैसी बातें कर रही हो तुम? ऐसा हो सकता है कि अनिका को मीरा की याद ना आए! वहाँ मेरे सब कज़िन थे तो उनके साथ वक्त कब बीत जाता था, पता नहीं चला। वैसे सच बताऊँ तो वह शहर बहुत अलग है, मैं पहले वहाँ जाना नहीं चाहती थी, लेकिन वहाँ जाकर पता चला कि अगर नहीं जाती तो कितने अहसासों से अनजान रह जाती। 

मीरा : कोई ख़ास एहसास????

मीरा ने अनिका और उसके बीच आई असहजता को हटाने के लिए यह सवाल किया था। 

अनिका- अम्म... कुछ खास नहीं। बस जो भी काम अधूरा है, वह पूरा करना है। 

मीरा(हैरान)- अधूरा काम, कैसा अधूरा काम? कॉलेज का नया सेमेस्टर तो आज से शुरू हो रहा है, क्या काम पहले से आ गया?

मीरा का सवाल सुनकर अनिका सहम गई, उसे एहसास हुआ कि उसने गलती से कुछ ऐसा कह दिया था जो उसे नहीं बोलना चाहिए था। अनिका ने बात पलटते हुए कहा 

अनिका- अरे! तुम भी हर चीज़ को कॉलेज से जोड़ देती हो। मैं घर के काम की बात कर रही थी, वैसे तुमने क्यों पूछा कि मैं शाम को क्या कर रही हूँ? क्या तुम शाम को कुछ नया करने वाली हो? 

अनिका के सवाल पर मीरा ने अनचाही हंसी के साथ कहा 

मीरा- नहीं, नहीं... ऐसा कुछ नहीं। मुझे भी बहुत काम है, बस आदत हो गई है तुमसे ये सवाल करने की, इसलिए पूछ लिया। चलो कॉलेज भी आ गया। क्लास में चलते हैं। 

मीरा और अनिका दोनों अपनी क्लास की तरफ बढ़ गई। उनके कदम एक सीट के पास जाकर रुके लेकिन मीरा ने कुछ सोचते हुए अपना बैग अनिका के पास ना रखकर उससे आगे वाली सीट पर रख लिया। उसे ऐसा करता देख सब लोग हैरान थे, क्लास में खुसफुसाहट शुरू हुई, पर दोनों ने ही इस बात पर ध्यान नहीं दिया। दोनों बीच-बीच में एक दूसरे को देखती, दोनों के बीच हल्की-फुलकी बातचीत होती, पर दोनों ही एक दूसरे से कुछ छिपा रही थी। इस बात का एहसास भी दोनों को था। कॉलेज खत्म होने के बाद मीरा और अनिका एक पुरानी चाय की दुकान के पास पहुंची। वहाँ बैठकर चाय पीने का उनका रिवाज सालों से चला आ रहा था, लेकिन आज वो रिवाज़ भी बदला-बदला सा लग रहा था। मीरा ने अनिका की तरफ मुस्कुराकर देखा और कहा 

मीरा- चाय का मन है?

अनिका ने हाँ में सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में अजीब सी बेचैनी थी। उसने चाय का कुल्हड़ हाथ में लिया और चाय पीने से पहले उसमें फूँक मारी। मीरा ने अनिका को ऐसा करते देख हैरानी से पूछा 

मीरा(हैरानी से)- अनिका तुम ऐसे चाय कबसे पीने लगी? तुम तो हमेशा कहती थी कि गर्म चाय पीने में मज़ा आता है। फिर आज इस तरह? क्या जयपुर से चाय पीने का नया ढंग भी सीख आई हो? 

मीरा की बात पर अनिका ने उसे ऐसे देखा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई। अनिका ने हिचक भरी हंसी हँसते हुए कहा 

अनिका- क्या तुम भी,कुछ भी! बस आज लगा कि चाय थोड़ी ज़्यादा गर्म है।

मीरा- ना जाने क्यों तुम्हें देखकर लग रहा है कि तुम बदल गई हो। आज पूरा दिन तुम बाहर ही देख रही थी, क्लास में तो ध्यान ही नहीं था। 

अनिका- क्लास में ध्यान तो तुम्हारा भी नहीं था। 

मीरा- क्या मतलब?

अनिका- जब तुम पूरी क्लास में मुझे ही देख रही थी, तो इसका मतलब हुआ कि तुम्हारा भी ध्यान नहीं था। 

अनिका की बात सुनकर मीरा ने हँसना शुरू कर दिया, उसे देखकर अनिका भी हंसने लगी। दोनों हंस तो रही थी, लेकिन अब उनकी बातों में वो पुराना अपनापन नहीं बचा था। हर घूंट में जैसे एक नई झिझक घुल गई थी। अनिका ने अपनी चाय का स्वाद लिया, लेकिन उसका ध्यान बार-बार मीरा की ओर जा रहा था। क्या मीरा भी वही महसूस कर रही थी? क्या उसके दिल में भी वही सवाल थे? मीरा ने अपने मन में सोचते हुए कहा 

मीरा- क्या हो गया है मुझे? क्यों मैं अपने लिए सब कुछ इतना मुश्किल बना लेती हूँ। मैं अगर अनिका को सब बता दूँगी तो क्या ही हो जाएगा? 

चाय खत्म होते ही दोनों उठकर फिर चल पड़ीं। गली की मोड़ पर पहुँचते ही मीरा ने अनिका की ओर देखा और अनिका से पूछा 

मीरा- तुम सुबह से मुझसे कुछ कहना चाहती हो, है ना? 

मीरा के सवाल पर अनिका ने उसे देखा और बड़ी हिम्मत के साथ चेहरे पर एक मुस्कान लिए कहा 

अनिका (धीमी आवाज़ में-)- मीरा,  यही सवाल तो मैं भी तुमसे पूछना चाहती हूँ, तुमने कभी कुछ छिपाया है मुझसे? सच-सच बताना, तुम्हें दोस्ती का वास्ता। 

मीरा ने चौंक कर अनिका की ओर देखा। उसकी आँखों में कुछ अजीब सी अजीब सी बेचैनी उमड़ आई, जैसे वह खुद इस सवाल का जवाब नहीं जानती हो। मीरा ने अपने चेहरे पर आई लट को पीछे करते हुए कहा 

मीरा(थोड़ी घबराहट में)- छिपाया? नहीं..मैं तुमसे भला क्यों कुछ छिपाऊँगी। क्या तुमने मुझसे कुछ छिपाया है?

मीरा के सवाल पर अनिका सोच में पड़ गई, उसके सामने जयपुर की वो शामें घूमने लगी जिनमें वह खुश थी, पर चाहकर भी वह अपनी यह खुशी मीरा के साथ नहीं बाँट सकती थी। अनिका ने अपने दिल में अफसोस और अपने होंठों पर मुस्कान लिए कहा 

अनिका- क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुमसे कभी कुछ छिपाऊँगी। तू मेरी बेस्ट फ्रेंड है, और हमारे रिश्ते की नींव ही यही है कि नो सीक्रेट्स!

अनिका की बात सुनकर मीरा का चेहरा पल भर के लिए गंभीर हो गया, फिर उसने एक नकली मुस्कान लिए अनिका को देखा। मीरा अनिका से कुछ कहने को हुई कि तभी अनिका ने उससे हड़बड़ाते हुए कहा 

अनिका- अच्छा, अब तुम जाओ। मैं भी अंदर जाती हूँ, हम कल मिलेंगे। बाय ….

मीरा अनिका की कोई बात नहीं समझ पाई। उसने अनिका को रोकना चाहा लेकिन फिर कुछ सोचते हुए खुद को रोक लिया। वह अनिका को जाते देख मन ही मन बोली 

मीरा- इसे अचानक क्या हुआ? कोई बात तो ज़रूर है... 

मीरा सोचते हुए अपने घर की तरफ मुड़ गई। वहीं अनिका ने पीछे मुड़कर मीरा को जाते हुए देख एक राहत की सांस ली। अनिका ने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ इधर-उधर देखा और फिर घर की तरफ ना मुड़कर एक अंधेरी गली में मुड़ गई। 

कुछ देर बाद अनिका अपने कमरे की खिड़की से चाँद को निहार रही थी। उसकी आँखों में प्यार की चमक थी, अनिका अपने हाथ में बंधें धागे को मीठी सी मुस्कान लिए देख रही थी। अनिका ने कुछ सोचते हुए अपनी डायरी खोली और उसके पन्नों को पलटते हुए एक खाली पन्ने पर जाकर रुक गई। उस खाली पन्ने को देखकर अनिका के मन में एक अजीब सा भाव उमड़ रहा था। उसने कलम उठाकर लिखना शुरु किया 

अनिका(प्रेम से )- आज वह मुझसे मिलने आया था, यूं तो हमें बिछड़े बस दो ही दिन हुए थे, लेकिन उसके आगोश में जाकर लगा जैसे हम सालों से एक दूसरे से नहीं मिले। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह सब महसूस करूंगी, क्या इसे ही प्यार कहते हैं? अगर वह लेकिन मुझसे प्यार करता है, तो हमारे रिश्ते के बारे में छिपाने को क्यों कहता है। आज भी उसने मुझे मीरा से कुछ भी कहने के लिए मना किया, लेकिन मैं नहीं जानती कि मैं कब तक इस राज़ को राज़ रख पाऊँगी।  

डायरी में यह सब बातें लिखते वक्त अनिका के मन में एक घबराहट आ गई। जहां एक तरफ अनिका डायरी को अपने दिल का हाल बयान कर रही थी तो वहीं दूसरी ओर मीरा भी अपनी डायरी लिए बैठी थी। मीरा भी चाँद को देख रही थी, लेकिन उसकी आँखों में चमक थी। ऐसी चमक, जो सपनों की होती है.. मीरा ने कलम उठाकर डायरी में लिखना शुरू करते हुए कहा 

मीरा- हर बार जब मैं उससे मिलती हूँ, तो उसकी आँखों में कुछ ऐसा देखती हूँ, जो मुझे उसके और करीब खींचता है। उसका मुझे छूना, मेरे बालों को सहलाना, मेरी हर बात पर उसकी वह हल्की सी मुस्कान, मुझे छिप-छिपकर देखना, जैसे मेरी रखवाली कर रहा हो। क्या उसे मुझसे प्यार हो गया है या यह बस मुझे लग रहा है? क्या मुझे उससे प्यार हो गया है?

 यह बातें लिखते वक्त मीरा की आँखों में एक शर्म सी उमड़ आई थी, उसके होंठ खिल उठे थे, लेकिन तभी मीरा को अनिका का वो सवाल याद आया, 

“क्या तुमने मुझसे कुछ छिपाया है मीरा?”

 यह सवाल याद आते ही मीरा की आँखों की चमक गायब हो गई। उसने अपनी डायरी की ओर देखा और बेचैनी से लिखते हुए कहा 

मीरा- ना जाने आज अनिका से बात करते वक्त मुझे अजीब सा लगा। क्या वह जान गई है कि मैं उससे कुछ छिपा रही हूँ? क्या वह भी मुझसे कुछ छिपा रही है? 

आखिर कब तक अनिका और मीरा छिपा पायेंगी अपने प्रेम का राज़? क्या सच सामने आने के बाद दोनों की दोस्ती रह पाएगी पहले जैसी? क्यों मुड़ी थी अनिका उस अंधेरी गली में? जानने के लिए पढ़ें अगला चैप्टर

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