अनिका और हर रोज़ की तरह आज भी गली के उसी मोड़ पर मिली। अनिका और मीरा दोनों के चेहरों पर अलग ही रौनक थी, दोनों ने ही इत्र से खुद को सराबोर किया हुआ था। अनिका ने आज एक गुलाबी रंग का चूड़ीदार सूट पहना था, वहीं मीरा ने चिकनकारी से बनी पीले रंग की कुर्ती पहनी थी। मीरा ने अनिका को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उसे छेड़ते हुए कहा 

मीरा- क्या बात है, आज तो तुम बहुत चहक रही हो। मुझे जहां तक याद है, तुम्हें गुलाबी रंग पहनना पसंद नहीं था, क्या जयपुर की गुलाबी दीवारों ने तुम्हें इन्सपायर कर दिया है?

अनिका ने मीरा को घूरते हुए देखा, फिर अपने सूट को सही करते हुए बोली 

अनिका- और तुम्हें किसने इन्सपायर किया है, सरसों के खेत ने? तुम भी तो पीला रंग पहनने से परहेज़ करती थी, फिर आज क्यों पहना? और यह ब्रेस्लेट ? यह कब लिया तुमने और कहाँ से?

अनिका का सवाल सुनकर मीरा सहम गई, उसने हँसते हुए अपना ब्रेस्लेट देखा, फिर बात को इधर-उधर करते हुए बोली 

मीरा- यह तो मैंने... वह मेला लगा था ना पिछले महीने, वहाँ से लिया। 

अनिका(शक से)- मुझे तो यह चांदी का लग रहा है, दिखाना ज़रा। 

अनिका के हाथ आगे करने पर मीरा ने जल्दी से अपने हाथ से ब्रेस्लेट उतार कर अपने बैग में रख लिया। अनिका को मीरा का यह बर्ताव बहुत अजीब लगा, उसने चौंकते हुए कहा 

अनिका- मीरा, तू कैसे कर रही है यार? नहीं दिखाना है, मत दिखा पर इस तरह छुपा मत, मैं कोई चोर थोड़ी हूँ, जो तेरे मेले वाले ब्रेस्लेट को चुरा लूँगी। 

अनिका तंज कसते हुए मीरा को वहीं छोड़ आगे भाग गई। मीरा ने उसे जाते देख, अपने नाखून चबाते हुए बड़बड़ाकर कहा 

मीरा- अरे! मैं अनिका को कैसे बताऊँ कि मैंने यह ब्रेस्लेट खरीदा नहीं, इसपर मेरा और किसी का नाम लिखा है..  अब यह नाराज़ हो गई। इसे कैसे मनाऊँ? 

अनिका मीरा से नाराज़ होते हुए आगे-आगे क्लास में आ गई। रास्ते में मीरा ने अनिका को रोकने की कोशिश की लेकिन अनिका ने उसकी एक नहीं सुनी। वहीं अनिका ने कल की बात याद करते हुए अपना बैग मीरा की सीट से आगे की सीट पर रख दिया। मीरा ने अनिका को ऐसे करते देखा तो परेशान सा होकर बोली 

मीरा- अनिका, मेरी बात तो सुन.... 

अनिका(हाथ झटकते हुए)- मुझे तेरी कोई बात नहीं सुननी, वैसे भी तू मुझसे सब कुछ छिपाने लगी है। बेहतर यह है कि हम दोनों एक-दूसरे से थोड़ी दूरी बनाएं।

मीरा- अनिका, मैं तुझसे कुछ नहीं छिपा रही हूँ, बस कोई बात ऐसी है जो मैं चाहते हुए तुझे नहीं बता सकती। मैं तुझे कैसे समझाऊँ? 

अनिका मीरा से कुछ कहने ही वाली थी कि तभी उनके हिन्दी साहित्य के प्रोफेसर क्लास में आ गए। जिन्हें देखकर सभी लड़के-लड़कियां खड़े हो गए। अनिका ने मीरा की ओर देखकर कहा  

अनिका- जाओ, अपनी सीट पर जाकर बैठ जाओ। क्लास के बाद बात करेंगे। 

 मीरा अपना सा मुंह लेकर वहाँ से चली गई। अनिका ने उसकी तरफ देखा, तभी अचानक अनिका के फोन पर एक मैसेज आया। मैसेज भेजने वाले का नाम देखकर अनिका की आँखें चमक उठी। उसने प्रोफेसर की नज़रों से बचते हुए अपना फोन खोला और मैसेज पढ़ते हुए बोली 

अनिका- “तेरी आहट के साए में दिल धड़कता है, तेरी यादों का कारवां मेरे संग चलता है। 

आ के मिल जा मुझसे, अब और ना तड़पा, तेरे बिना यह इंतजार हर रोज़ मेरा क़त्ल करता है। 

मैं वहीं हूँ जहां तुमने मुझे छोड़ा था, आ जाओ एक बार, मैं तेरी राहों में नजरें बिछाए बैठा हूँ। 

कुछ जरूरी बात है, जल्दी आओ। "

मैसेज पढ़कर अनिका की आँखें चमक उठी, वह शायरी में लिपटी बात का मतलब समझ गई थी। उसने उत्सुकता के साथ अपने हाथ पर बंधी घड़ी को देखा, लेकिन फिर मायूस होकर मन ही मन बोली 

अनिका- अभी तो क्लास शुरू ही हुई है, मैं कैसे जाऊँ? 

अनिका खुद से यह सवाल कर ही रही थी कि तभी सामने खड़े प्रोफेसर ने किताब खोलने का ऑर्डर दिया। अनिका ने अनमने ढंग से किताब खोलकर अपनी सीट पर रख ली। वहीं मीरा की नजरें अब भी अनिका पर टिकी हुई थी। उसने अफसोस के साथ मन में कहा 

मीरा- मैंने आज अनिका का दिल दुखा दिया, अब बहुत हो गया। मैं आज अनिका को सब सच बता दूँगी।  

 मीरा यह बात सोच ही रही थी कि तभी उसके साथ भी कुछ वैसा ही हुआ जो अनिका के साथ हुआ था। मीरा के फोन पर मैसेज आया, जिसे पढ़ते हुए मीरा की आँखें चमक उठी। 

मीरा- तेरी आहट के साए में दिल धड़कता है,तेरी यादों का कारवां मेरे संग चलता है। 

आ के मिल जा मुझसे, अब और ना तड़पा, तेरे बिना ये इंतजार हर रोज़ मेरा क़त्ल करता है। 

मैं वहीं हूँ जहां तुमने मुझे छोड़ा था, आ जाओ एक बार, मैं तेरी राहों में नजरें बिछाए बैठा हूँ। 

कल गौरा तीज है, मेरे नाम का व्रत रखोगी ना? मैं तुम्हें वहीं मिलूँगा.. जहां पहली बार मिला था। ठीक शाम के 6 बजे..

मीरा मैसेज पढ़कर बेचैन हो उठी, उसने बाहर खिड़की की तरफ देखा मानो वह अभी के अभी यहाँ से भाग जाना चाहती थी, लेकिन फिर मीरा ने खुद को रोक लिया, और अपनी किताब खोलकर बैठ गई। क्लास की खिड़की के पास बैठी अनिका, खामोश थी लेकिन उसके दिल में हलचल मची हुई थी। उसकी आँखें किताबों पर थीं, पर उसका मन कहीं और था। मीरा अनिका से कुछ दूर एक सीट पर बैठी थी, उसके चेहरे पर भी वही खामोशी थी, पर उसका दिमाग भी किसी और दिशा में ही दौड़ रहा था। दोनों कॉलेज के एक ही क्लासरूम में बैठीं, पर आज उनके दिलों में छिपे राज़ ने उन्हें अजनबी बना दिया था। प्यार उनकी ज़िन्दगी में दस्तक दे चुका था, पर वे यह बात एक-दूसरे से छिपा रही थीं।

वैसे तो क्लास में दोनों का ही मन नहीं लग रहा था लेकिन जैसे ही प्रोफेसर ने "प्यार" और "समर्पण" की बात छेड़ी तो  मीरा और अनिका दोनों का ही ध्यान प्रोफेसर की बातों पर चला गया। उनकी आँखों में कुछ चमक आई, जैसे यह बात उनके दिल की हो। वे हर शब्द को ध्यान से सुनने लगी, बिल्कुल उस तरह जैसे कोई उनकी ही ज़िंदगी की कहानी सुना रहा हो। अनिका और मीरा तब सोच में पड़ गए जब प्रोफेसर ने कहा 

प्रोफेसर : प्यार एक ऐसा अहसास है, जिसमें विश्वास और समर्पण सबसे ज़रूरी है। समर्पण का मतलब है, एक दूसरे पर पूरा विश्वास, यह जानना कि सामने वाला आप पर विश्वास करता है और आप उस पर। तभी आप एक दूसरे को सारी बातें बता पाएंगे।

मीरा ने मन में सोचा : एक दूसरे पर पूरा विश्वास और समर्पण।। क्या वाक़ई यही प्यार  की परिभाषा है और अगर हाँ तो क्या उसके और मेरे रिश्ते में यह दोनों चीज़ें हैं? 

प्रोफेसर की बात पर एक स्टूडेंट ने खड़े होकर कहा, "लेकिन सर, एक दूसरे पर पूरी तरह विश्वास तो दोस्ती में ही किया जा सकता है। कहीं आप भी तो ये नहीं कह रहे हैं, कि दोस्ती ही प्यार है”

स्टूडेंट की बात सुनकर सभी लोग हंसने लगे, प्रोफेसर ने भी हँसकर जवाब देते हुए कहा

प्रोफेसर : दोस्ती प्यार से भी ज़्यादा कीमती होती है। प्यार में माफ़ करना मुश्किल होता है, लेकिन दोस्ती में माफ़ करना, एक दूसरे को समझना आसान होता है। आपको एक-दूसरे की मजबूरी समझ आती है, इसलिए कहा जाता है कि प्रेम के शिखर पर पहुँचने की पहली सीढ़ी दोस्ती है। यही आपको प्रेम और समर्पण के असली मायने समझाएगी, अगर आप अच्छे दोस्त होंगें तो ही आप अच्छे प्रेमी बन पाएंगे और यही बात आगे चलकर आपको बताएगी कि क्या आपका प्यार सच्चा है? 

प्रोफेसर की बात सुनकर अनिका ने चुपचाप अपने नोट्स में कुछ लिखा। वहीं, मीरा की उंगलियाँ डायरी के कोने से खेल रही थीं। दोनों एक-दूसरे से कुछ नहीं कह रही थीं, लेकिन उनकी आँखों में जो सवाल थे, वह एक ही थे—क्या उनका प्यार सच्चा है? क्या उनके बॉयफ्रेंड्स भी उन पर उतना ही भरोसा करते हैं?

घंटी बजते ही मीरा और अनिका ने अपना सामान उठाया और तेज़ी से क्लास से बाहर निकलीं। दोनों के मन में कुछ जल्दी थी, जैसे उन्हें कहीं जाना हो, पर एक-दूसरे से कुछ कहना नहीं चाह रही थीं। मीरा ने पहल करते हुए कहा 

मीरा- अनिका मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है। सुबह जो भी कुछ हुआ, मैं उसके लिए माफ़ी मांगना चाहती हूँ, मैं वह नहीं करना चाहती थी, लेकिन... 

मीरा आगे कुछ बोल पाती उससे पहले ही अनिका ने अपनी घड़ी की तरफ देखा और फिर मीरा के कंधों पर हाथ रख उसे समझाते हुए बोली 

अनिका- कोई बात नहीं मीरा, गलती मेरी भी थी। मैंने ओवररिऐक्ट  किया, सॉरी। अच्छा चल, अभी मुझे देर हो रही है, बहुत ज़रूरी काम है। मैं तुझसे परसों मिलूँगी... 

अनिका मीरा से यह बात कहकर आगे बढ़ने को हुई कि मीरा ने उसे रोकते हुए कहा 

मीरा- परसो क्यों? कल क्यों नहीं? क्या तुम कल कहीं जा रही हो? 

अनिका(बात घुमाते हुए)- कल, कल... दरअसल कल मेरी मौसी आने वाली है तो मुझे घर पर रहना है, पर हम परसो मिलेंगे। 

मीरा(हामी भरते हुए)- हाँ, ठीक है। तू, पर, अभी कहाँ जा रही है? आज की 4 क्लासेस बाकी हैं।  

मीरा का सवाल सुनकर अनिका फ्रस्ट्रेट हो गई, उसने खुद पर काबू रखते हुए मीरा से कहा  

अनिका- हाँ, लेकिन मैंने कहा ना, कल मौसी आ रही हैं, तो उनकी खातिरदारी की भी तैयारी करनी है।चल मैं चलती हूँ, इससे पहले कि प्रोफेसर आ जाएं, मुझे जाना होगा। तू नोट्स  बना लेना।  

अनिका मीरा को अलविदा कहकर बहुत जल्दी में वहाँ से निकल गई। मीरा उसे असमंजस के साथ जाते हुए देखती रही। फिर मीरा ने अपने हाथ में पकड़े हुए ब्रेस्लेट को देखा और एक गहरी सांस लेकर बोली 

मीरा- मैं तो तुम्हें सब बताना चाहती थी, पर तुम्हारे पास ही वक्त नहीं। लगता है, बहुत खास मौसी हैं। खैर अच्छा ही है,  कल तो मैं भी नहीं आऊँगी, अब मुझे तुमसे झूठ भी नहीं बोलना पड़ेगा। 

मीरा यह बात सोचते हुए क्लास में चली गई। अपनी सीट पर जाकर बैठी ही थी कि तभी उसके पास ज्योति नाम की एक लड़की आई और बोली, “मीरा, अनिका कहाँ गई? मैंने उसे बहुत जल्दी में जाते हुए देखा, तुम दोनों का झगड़ा हुआ है क्या?”

मीरा (नकारते हुए)- नहीं तो, हम क्यों झगड़ेंगे। दरअसल कल उसके घर पर मेहमान आने वाले हैं, तो वह बाज़ार गई है। 

मीरा की बात सुनकर ज्योति सोच में पड़ गई, उसने कुछ सोचते हुए मीरा से कहा, “बाज़ार गई है, लेकिन बाज़ार तो कॉलेज के दाईं तरफ है और अनिका सीधे गई है। वह भी ऑटो से... मैंने उसे अपनी आँखों से जाते हुए देखा। मुझे लगता है वह किसी से मिलने गई है... उसकी चाल ही बता रही थी।” 

ज्योति की बात सुनकर मीरा हैरान रह गई। उसने अपनी नजरें नीची कर ली और फिर गुस्से में बोली 

मीरा- तुम्हारे पास कोई और काम नहीं है, दूसरों की जासूसी करती रहती हो। कौन कहाँ जा रहा है, कहाँ से आ रहा है। तुम्हें क्या मतलब? पढ़ाई पर ध्यान लगाओ, आगे वही काम आएगी ना कि यह जासूसी। 

मीरा की डांट सुनकर ज्योति अपना सा मुंह लेकर रह गई। उसने नाराज़गी के साथ मीरा को देखा और कहा, “मुझे कोई शौक़ नहीं है किसी की जासूसी करने का, बस सोचा कि तुम्हें बता दूँ,  क्योंकि कल तुम्हें किसी और से अनिका के बारे में कुछ पता चलेगा तो तुम्हें ही बुरा लगेगा। भलाई का ज़माना ही नहीं रहा।”  

ज्योति मीरा को ताना मारकर अपनी सीट पर जाकर बैठ गई, वहीं मीरा ने ज्योति के जाने के बाद अपना फोन निकाला और अनिका का नंबर मिलाने को हुई, लेकिन फिर अचानक रुक गई और फोन बंद कर वापस बैग में रख दिया। मीरा ने एक बार अपने ब्रेस्लेट को देखा और एक बार उस सीट को जिसपर अनिका बैठी थी और फिर ज्योति की बात को अपने दिमाग में दोहराते हुए कहा 

मीरा- क्या सच में, अनिका मुझसे झूठ बोल रही है? क्या वह किसी से मिलने गई है... पर फिर मुझसे क्यों छिपा रही है। 

जहां एक तरफ मीरा अनिका के चले जाने को लेकर डाउट में थी तो वहीं दूसरी तरफ अनिका नदी के किनारे पर खड़ी हुई किसी का इंतज़ार कर रही थी। अनिका बेचैन होकर इधर-उधर देख रही थी कि तभी उसके कानों में कदमों की आहट सुनाई दी, अनिका ने मुड़कर देखा तो उसके होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई, क्योंकि उसके सामने वह शख्स खड़ा था, जिसने अनिका को प्यार के एहसास से वाकिफ कराया था। अनिका उसे देखकर फूली ना समाई और भागते हुए उसे गले से लगा लिया। अनिका को उस शख्स की बाहों में महफ़ूज महसूस हो रहा था, उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गई थी। अनिका ने खुद को अलग करते हुए उसकी आँखों में देखा और कहा 

अनिका- तुम अचानक गायब कहाँ हो जाते हो अमन? कल रात भी ना जाने तुम मुझे चकमा देकर कहाँ चले गए। जानते हो मैं बहुत देर तक वहीं खड़ी रही, इंतज़ार करती रही कि तुम शायद लौटकर आओगे। पर तुम नहीं आए!

अनिका का सवाल सुनकर अमन ने उसे मुस्कुराते हुए देखा फिर उसके माथे को चूमते हुए कहा  

अमन- बहुत जरूरी काम आ गया था, एक खास दोस्त से मिलना था, वरना तुमसे तो मैं एक पल के लिए भी अलग नहीं रह सकता। 

अनिका (शक से)- क्या काम? तुमने कहा था कि तुम यहाँ मेरे अलावा किसी को नहीं जानते, अब यह खास दोस्त कौन है?

अनिका का सवाल सुनकर अमन के चेहरे पर परेशानी आ गई, उसने अनिका को देखा और उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर बोला 

अमन- वक्त आने पर मैं तुम्हें सब बता दूंगा...इस शहर से बहुत गहरा रिश्ता है। धीरे-धीरे तुम सब समझ जाओगी... फ़िलहाल के लिए तुम बस मुझपर ध्यान दो। 

अमन की बात अनिका को अटपटी लगी, वह समझ गई कि अमन उससे कुछ छिपा रहा था, लेकिन अनिका ने इस बात से ध्यान हटाते हुए अमन के हाथों को कसकर पकड़ा और कहा 

अनिका- वैसे तुमने कहा था, तुम्हें मुझसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। जल्दी बताओ क्या ज़रूरी बात है? 

अमन ने अनिका की बात सुनकर अपनी जेब में हाथ डाला और फिर अनिका से आँख बंद करने को कहा। अनिका के आँख बंद करने के बाद अमन ने उसका हाथ आगे करते हुए, अनिका के हाथ पर एक चीज़ रखी...और कहा 

अमन- अब आँखें खोलो.... 

अमनके कहने पर अनिका ने आँखें खोली, लेकिन जैसे ही अनिका ने अपने हाथ पर रखी चीज़ को देखा, वह हैरान रह गई, क्योंकि अमन ने उसके हाथ पर एक ब्रेस्लेट रखा था जोकि दिखने में  हूबहू मीरा के ब्रेस्लेट जैसा था। अनिका ने चौंकते हुए अमन की तरफ देखा। वहीं अमन ने हँसते हुए उसे देखा और कहा 

अमन- क्या हो गया? अच्छा नहीं लगा? मैं पहना दूँ। 

अमन ने अनिका से वह ब्रेस्लेट लिया और उसे अनिका के हाथ में पहनाने लगा। अमन के चेहरे पर खुशी थी, लेकिन अनिका के चेहरे पर अब भी  हैरानी और असमंजस का भाव था। अमन ने ब्रेस्लेट पहनाकर उसे देखने को कहा 

अमन- देखो, कैसा लग रहा है। जानती हो, बहुत ढूँढने पर मिला है, इसपर हम दोनों का नाम भी है। 

अमन की बात सुनकर अनिका ने ब्रेस्लेट को देखा और फिर कहा 

अनिका- क्या तुमने यह मेले से लिया है? जो पिछले महीने लगा था? 

अमन (मुंह बनाकर)- क्या? मेले से? अरे इसे मैं जयपुर से लाया हूँ, वहीं के जोहरी बाज़ार में मिलता है और आज ही लाया हूँ ! पिछले महीने? भूल गई, पिछले महीने तुम और मैं दोनों ही जयपुर में थे पर तुम यह सब क्यों पूछ रही हो? 

अमन के सवाल ने अनिका के मन में हलचल पैदा कर दी। उसने मन ही मन फैसला किया कि वह अमन को मीरा और ब्रेस्लेट के बारे में कुछ नहीं बताएगी। अनिका ने इन सब विचारों को एक तरफ करते हुए अमन की ओर देखा और उसके हाथ पकड़ते हुए कहा 

अनिका- ऐसे ही पूछ रही थी, आजकल मेलों में भी यह सब बिकता है। मैंने शायद देखा था, खैर तुम यह सब छोड़ो। यह बताओ, कल कितने बजे मिलोगे? कल गौरा तीज है, मैं तुम्हारे लिए व्रत रखूंगी...शाम 6 बजे ठीक रहेगा ना? यहीं पर... 

अनिका के सवाल पर अमन ने थोड़ा सोचते हुए कहा 

अमन- अम्म... नहीं, मैं कल 6 बजे नहीं आ पाऊँगा। एक काम करते हैं, हम 4 बजे मिल लेते हैं। ठीक रहेगा... 

अनिका ने अमन की बात पर हामी भर दी। और उसे गले से लगा लिया लेकिन रह-रहकर अनिका के मन में ब्रेस्लेट की बात घूम रही थी। अनिका ने उसको देखते हुए मन ही मन कहा 

अनिका- अगर यह जयपुर में ही मिलता है, तो मीरा को यहाँ कैसे मिला? क्या यह कोई इत्तेफाक है या मीरा ने मुझसे झूठ कहा? 

क्या है मीरा और अनिका के प्यार की सच्चाई? क्या दोनों के साथ हो रहे हैं इत्तेफाक या है यह कोई गहरी साजिश? 

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