कमरे के भीतर अजीब-सी ख़ामोशी पसरी हुई थी। मीरा अपने कमरे में इधर से उधर घूम रही थी। उसकी नज़रें रह-रहकर दीवार पर टंगी घड़ी पर बार-बार जातीं। दिल की धड़कनें तेज़ होती जा रही थीं, जैसे कोई अनहोनी का अहसास हो रहा हो। उसने अभी-अभी अनिका से मिलने का फ़ैसला किया था, लेकिन अचानक मेहमानों के आजाने की वजह से घर से इस वक्त निकलना उसके लिए मुमकिन नहीं था। उसने दरवाज़े पर कान लगाते हुए बाहर अपने पापा और मेहमानों क बीच हो रही बातचीत को सुनते हुए कहा नाराज़ होते हुए कहा
मीरा : “आखिर ये लोग कब जाएंगे, मुझे अनिका से मिलने जाना है और ये लोग हैं कि बस यहाँ पैर पसार कर बैठ गए हैं। ऐसे कपड़ों में बाहर जाऊँगी तो भी ठीक नहीं”
मीरा ने कुछ देर और रुकने का फैसला किया, लेकिन हर गुजरते लमहें के साथ एक अजीब सी बेचैनी उसकी रगों में दौड़ रही थी, मानो कुछ छिपा हुआ सच अब सामने आने वाला हो। मीरा कुछ सोचते हुए अपनी अलमारी की तरफ गई और वहाँ से कपड़ें निकालते हुए बोली
मीरा- “कपड़ें बदलकर जाना सही रहेगा, अगर ये सब बस मेरा शक हुआ तो कम से कम अनिका को कुछ अटपटा नहीं लगेगा”
कुछ देर बाद मीरा बाथरूम से कपड़ें बदलकर बाहर निकली और फिर से कमरे में इधर से उधर घूमने लगी। मीरा को जैसे ही लगा कि मेहमान चले गए, वो अपना बैग उठाकर धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़ी। मीरा को हर कदम भारी लग रहा था, जैसे वक़्त ने अपनी सुइयों को रोक को रोक लिया हो। उसके हाथ ने दरवाज़े का हैंडल पकड़ा ही था कि तभी अचानक खिड़की के शीशे पर कुछ टकराने की आवाज़ आई। मीरा घबराकर पीछे मुड़ी और भागते हुए खिड़की के पास पहुंची। उसने टूटे हुए कांच को देखा और फिर घबराते हुए कहा
मीरा- ये सब क्या हो रहा है?
मीरा ने पहले बंद खिड़की में से ही इधर-उधर देखने की कोशिश की, उसकी आँखों में डर था, क्योंकि दिन-दहाड़े उसके साथ कुछ अजीब घट रहा था। मीरा का दिन ज़ोरों से धडक रहा था, उसकी सांसें फूली हुई थी, फिर उसने हिम्मत करके धीरे से खिड़की खोली और नीचे झाँका। मीरा को वहाँ दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आया, मीरा ने हैरान होते हुए इधर-उधर देखा और कहा
मीरा- यहाँ कोई नहीं है, और इतनी ऊपर कोई आ भी नहीं सकता है फिर.....
मीरा ने वापस खिड़की बंद करने के लिए अपने हाथ बाहर निकाले कि तभी उसकी नज़र एक पत्थर पर पड़ी, जिस पर रबरबैंड के ज़रिए एक छोटा-सा कागज़ का टुकड़ा लिपटा हुआ था। मीरा ने जल्दी से वो पत्थर उठाया और कागज़ को खोला। मीरा की आँखों में अब तक हैरानी थी, लेकिन कागज़ में लिखी हुई बात पढ़कर मीरा के चेहरे पर शक और मायूसी दोनों तरह के भाव उभरने लगे, उसने कागज़ पर लिखी बात पढ़ते हुए कहा
मीरा- मैं आज नहीं आ पाऊँगा, पर तुम मंदिर के पीछे वाले खंडहर में आना, वहाँ तुम्हारे लिए एक सरप्राइज़ है।
ये बात पढ़कर मीरा के हाथ काँपने लगे। उसने कागज़ के टुकड़ें को अपने हाथ में इस तरह जकड़ लिया मानों वो कुछ होने से रोकना चाहती हो। अचानक से उसके दिल में एक अजीब-सी घबराहट दौड़ पड़ी। मीरा ने एक बार फिर वो बात पढ़ते हुए कहा
मीरा- कहीं अनिका नदी किनारे जिसके लिए गई है, वो ये ही तो नहीं। और आज शायद अनिका कुछ और देर रुकने की ज़िद की होगी, इसलिए वो नहीं आ पाएगा। नहीं, नहीं, ये सब क्या सोच रही है मीरा, इतनी जल्दी कोई भी फैसला ले लेना, ये तो अनिका करती है। तुझे पूरी तरह श्योर होने के बाद कुछ कहना चाहिए, ऐसा भी तो हो सकता है कि ये लेटर किसी और ने भेजा हो, शायद जिसने वो मैसेज भेजा। मंदिर जाकर देखना होगा.... उसके बाद ही आगे कुछ पता चलेगा।
खत पढ़ने के बाद मीरा उलझन में पड़ गई थी। अनिका से मिलने का फ़ैसला फिलहाल के लिए उसने टाल दिया। उसने मंदिर जाने का फैसला करते हुए वो खत और पत्थर अपने बैग में डाला और बहुत तेज़ी के साथ बाहर निकल गई।
मीरा मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी। शाम का ढलता हुआ सूरज, शाम की ठंडी हवा उसके चेहरे पर हल्की-सी थपकी दे रही थी। मंदिर की घंटियों की आवाज़ के साथ उसके मन की उलझन बढ़ती जा रही थी। एक तरफ़ अनिका के पास जाने की जल्दी, दूसरी ओर इस ख़त के पीछे छिपे सच को जानने की बेचैनी। जब वह मंदिर के पीछे वाले खंडहर में पहुँची, तो वहाँ फैले सन्नाटे ने उसे एक पल के लिए डरा दिया। ये खंडहर मंदिर से सटा हुआ था, लेकिन यहाँ दिन के उजाले में भी कोई नहीं आता था। लोगों का मानना था कि यहाँ मंदिर बनाने के लिए दो प्रेमी जोड़ों की बलि दी गई थी। मीरा ने इधर-उधर देखते हुए गहरी साँस ली और खंडहर में अंदर की तरफ़ बढ़ने लगी। उसकी घबराहट उसके चेहरे से साफ़ झलक रही थी। मीरा ने आगे कदम बढ़ाते हुए कहा
मीरा- आगे तो बिल्कुल अंधेरा है.. यहाँ क्या सरप्राइज़ होगा. मुझे और आगे नहीं जाना चाहिए, क्या पता किसी ने मज़ाक ही किया हो...
अब मीरा को लग रहा था कि उसे मंदिर की घंटियों की आवाज़ भी बहुत दूर से आ रही थी। मीरा ने अपना मन बदलते हुए आगे ना जाने का फैसला किया और वहाँ से बाहर निकलने के लिए मुड़ी तभी अचानक किसी ने उसका हाथ पकड़ा और झटके से उसे खींच लिया। वह लगभग गिरते-गिरते बची, उसके होंठों से एक हल्की चीख़ निकल गई। सामने देखा, अंधेरे में खड़ा हुआ एक शख्स, जो अब धीरे-धीरे रोशनी में आने लगा, जैसे ही वो शख्स मीरा के सामने आया, मीरा ने हैरानी के साथ कहा
मीरा- अर्जुन.....
उसके सामने वही था, उसका बॉयफ्रेंड, लेकिन उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी। मीरा के दिल में डर और उलझन की लहरें तेज़ हो गईं। यह सब क्या हो रहा था? उसने अर्जुन की तरफ़ देखा, जो अब उसे ध्यान से घूर रहा था, अर्जुन ने हँसते हुए कहा
अर्जुन- क्या हुआ तुम्हें? इतना घबरा क्यों गई? और ऐसे घूर-घूरकर क्यों देख रही हो, जैसे पहली बार देखा हो? क्या हुआ बोलो ना?
मीरा ने अपने दिल को संभालने की कोशिश की, लेकिन उसकी आँखों में डर साफ़ नज़र आ रहा था। वह अर्जुन के सामने खड़ी थी, अर्जुन जो उसका प्यार था, लेकिन आज मीरा के दिल में उस प्यार से इतर भी हज़ारों सवाल थे। उसे सबकुछ बहुत उल्टा-पुल्टा लग रहा था। अर्जुन सवालियाँ नज़रों से उसे देख रहा था, मीरा की जुबान से शब्द बाहर आना मुश्किल हो रहे थे, पर उसने हिम्मत जुटाकर कहा
मीरा- वो... वो तुमने वो खत भेजा कि तुम नहीं आओगे, फिर अचानक तुम आ गए, सब कुछ इतना अजीब क्यों हो रहा है?
अर्जुन ने उसकी बात बीच में ही काट दी, और उसे गले से लगाकर बोला
अर्जुन- बस मैं देखना चाहता था कि क्या तुम आओगी, या नाराज़ हो जाओगी। तुम्हारी बेचैनी देखना चाहता था, माफ करना पर मेरा प्यार करने का तरीका थोड़ा अलग है।
मीरा ने खुद को अर्जुन से अलग किया और फिर वही पुराना सवाल दोहराते हुए बोली
मीरा- प्यार... क्या तुम सच में मुझसे प्यार करते हो? फिर मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो? अनिका भी मुझसे कुछ छिपा रही है, मैंने आज उसके हाथ में वैसा ही ब्रेसलेट देखा जैसा तुमने मुझे दिया... क्या तुम... मुझे...
मीरा ने संकोच के साथ अर्जुन से ये बात कही, वहीं अर्जुन की आँखों की चमक अब गायब हो चुकी थी। उसने चौंकते हुए मीरा को देखा फिर उससे दो कदम दूर हटते हुए बोला
अर्जुन- क्या बोले जा रही हो तुम? जैसा ब्रेसलेट मैंने तुम्हे दिया, वैसा... तुम्हारी दोस्त के पास है...
मीरा- हाँ, मैंने खुद देखा, अगर वो अपने जैसा बस एक था तो वैसा ही bracelet अनिका के पास कैसे हो सकता है?
अर्जुन(गुस्से में)- यानी तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं, ठीक है, अगर ऐसा है तो मुझे सबूत दिखाओ.. जिसकी बिना पर तुम मुझ पर शक कर रही हो।
मीरा ने जल्दी से अपना फ़ोन निकाला और फोटो दिखाने की कोशिश की, पर फ़ोन से वो फोटो और वो मैसेज ग़ायब थे। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसने हैरान होते हुए अपने फोन को देखा और कहा
मीरा- ये कैसे हो सकता है? फोटो तो मैंने ख़ुद देखी थी।
उसने दोबारा चेक किया, पर फ़ोटो गायब थी। अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे। अर्जुन नाराज़गी भरी नज़रों से मीरा को देख रहा था, मीरा ने अफ़सोस के साथ उसे देखा और कहा
मीरा- मेरा यकीन करो, मैंने सच में वो तस्वीर देखी।
अर्जुन- अच्छा, तो अब वो कहाँ गई? मीरा, मुझे नहीं पता था कि तुम मुझपर शक करोगी। मैं अपना सारा काम छोड़कर तुमसे मिलने आया, ये सुनने के लिए कि मैं जिस लड़की से प्यार करता हूँ, उसे लगता है कि मेरा अफेयर उसकी बेस्ट फ्रेंड के साथ भी है, उसके साथ जिससे मैं आजतक मिला भी नहीं।
मीरा(हिचकते हुए)- वो ब्रेसलेट…..
अर्जुन(चिल्लाकर)- वैसा और भी बेसलेट हो सकता है मीरा, जयपुर के ज़ोहरी बाज़ार में हजारों मिल जाएंगे उस डिजाइन के.... मैंने अपने एक दोस्त से स्पेशली तुम्हारे लिए मंगाया था। तुम्हें स्पेशल फ़ील कराना था इसलिए कह दिया कि ये अपने जैसा एक है, लेकिन कोई बात नहीं, आज तुमने साबित कर दिया कि तुम्हें मुझपर भरोसा नहीं... प्यार का दूसरा नाम विश्वास होता है, तुमने ही कहा था ना... पर तुम्हें तो मुझपर वो विश्वास है ही नहीं। मैं चलता हूँ...
अर्जुन ये बात कहते हुए बाहर की तरफ बढ़ गया, मीरा ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन अर्जुन नहीं रुका, मंदिर के पीछे वाले रास्ते पर अर्जुन ने अपनी बाइक पार्क की थी, मीरा उसके पीछे वहाँ तक आई। मीरा अर्जुन को समझाने की कोशिश कर रही थी, और उससे माफ़ी मांग रही थी, लेकिन अर्जुन ने उसकी एक नहीं सुनी। वहीं मंदिर के पास कोई और भी था जो चुपचाप ये सब खड़ा होकर देख रहा था। ये शख्स कोई और नहीं अनिका थी। जिसने हैरान होते हुए मीरा और अर्जुन को देखा और कहा
अनिका- मीरा के साथ ये लड़का कौन है?
अनिका आगे बढ़ने को हुई कि तभी मीरा भी उस लड़के के पीछे बाइक पर बैठ गई और जल्दी में वहाँ से निकल गई। वहीं अनिका को कुछ समझ नहीं आया, उसने मीरा को फोन करना चाहा, लेकिन फिर रुक गई और बोली
अनिका- मीरा से मिलकर बात करना ठीक रहेगा..अब चाहे जो हो, मैं मीरा को सबकुछ बताऊँगी और उससे सबकुछ जानूँगी।
सुबह का सूरज धीरे-धीरे अपनी किरणें फैला रहा था, और हवा में हल्की सी ठंडक थी। कॉलेज जाने के लिए अनिका और मीरा दोनों ही गली के उस मोड की तरफ आ रही थी, जहां से वो कॉलेज तक का रास्ता एक साथ तय करती थी। दोनों ही पिछले कुछ दिनों से अपने-अपने विचारों में उलझी हुई थीं। उनकी मुलाकात से पहले ही दोनों के मन में कई सवाल खड़े हो चुके थे, जिनका जवाब पाना अब ज़रूरी था। आज की सुबह सिर्फ़ एक और दिन नहीं बल्कि एक मोड़ था, जहाँ से उनकी दोस्ती की दिशा बदल सकती थी।
मीरा जल्दी-जल्दी अपने कदम रख रही थी, लेकिन उसका दिल अब भी कल रात मंदिर के पीछे हुए अजीब वाक़ये में अटका हुआ था। अर्जुन से मिली तो थी, लेकिन उसकी बातें अब भी रहस्यमयी और उलझी हुई लग रही थीं। जैसे कि वो कुछ छिपा रहा हो। मीरा की उलझन तब और बढ़ गई थी जब अर्जुन ने उसे सबूत दिखाने की बात कही थी, और जब उसने फ़ोन में वो फ़ोटो देखनी चाही, तो वह फ़ोटो कहीं ग़ायब हो चुकी थी। आज उसे अनिका से यह सब बातें करनी थीं। उसे ये भी समझना था कि जो कुछ भी हो रहा था, क्या वैसा ही कुछ अनिका भी महसूस कर रही है?
दूसरी तरफ़, अनिका के ज़हन में भी सवालों का अंबार था। कल रात उसने मीरा को मंदिर से एक अनजान लड़के के साथ निकलते देखा था, लेकिन वो लड़के का चेहरा साफ़ नहीं देख पाई थी। उसके मन में शक ने जन्म ले लिया था। वो भी ये ही जानना चाहती थी कि क्या उसका ये रिश्ता भी उतना ही उलझा हुआ है जितना कि अनिका का खुद का? दोनों गली के मोड पर आमने सामने थी, पल भर के लिए दोनों चुप रही, फिर मीरा ने पहल करते हुए कहा
मीरा- मुझे तुमसे बहुत सारे सवाल पूछने हैं।
अनिका- हाँ, मुझे भी....
मीरा और अनिका आज कॉलेज ना जाकर उसके पास बने एक छोटे से गार्डन में आ गई। मीरा की आँखों में सवाल थे, और अनिका की आँखों में भी वही उलझन थी। दोनों ने एक-दूसरे को देखा, कुछ पल के लिए उनकी आँखों में वही पुरानी दोस्ती की चमक थी, लेकिन उस चमक के पीछे अब कई राज़ भी छिपे हुए थे। मीरा ने बहुत हिम्मत जुटाकर अपने हाथ में पहना ब्रेसलेट उतारा और नीचे रखते हुए बोली
मीरा- इस पर उस शख्स का नाम लिखा हुआ है, जिसे मैं पिछले कुछ महीनों से जानती हूँ, मुझे उससे प्यार है, लेकिन कल मैंने ऐसा ही ब्रेसलेट तुम्हारे पास देखा। क्या ये सच है या मेरा वहम.... क्या तुम ये जानने में मेरी मदद करोगी....
अनिका इस सवाल से थोड़ी चौंकी, उसकी आँखों में भी वही डर था, जो मीरा की आँखों में था। उसने अपने बैग से वो ब्रेसलेट निकाला और उसे मीरा की तरफ करते हुए बोली
अनिका- मुझे ये ब्रेसलेट उस शख्स ने दिया है, जिस पर मैंने खुद से ज़्यादा विश्वास किया, लेकिन उस विश्वास की परीक्षा है। इस पर उसका और मेरा नाम लिखा हुआ है... तुम देख लो....
अनिका और मीरा के सवालों से ये साफ था कि उन्हें उनके बॉय फ़्रेंड्स पर शक था। उन्हें कहीं ना कहीं ये लग रहा था कि शायद वो एक ही इंसान से प्यार करती हैं। क्या सच हो जाएगा मीरा का वहम? क्या टूट जाएगा अनिका का विश्वास? क्या होगा इन दोनों की दोस्ती का अंजाम?
जानने के लिए पढ़ें अगला चैप्टर।
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