अनिका और मीरा एक दूसरे से अपने बॉय फ़्रेंड्स की सच्चाई छिपा रही थी। ऐसा करने के पीछे उनकी क्या वजह थी, इस बात का पता चलना अभी बाकी था, लेकिन अनिका और मीरा के बीच गलतफहमियों ने जन्म लेना शुरू कर दिया था। एक तरफ अनिका अमन पर आँख बंद करके भरोसा कर रही थी और दूसरी तरफ मीरा पर शक कर रही थी। उसे मीरा की बातों में छिपे झूठ का एहसास हो रहा था और इसकी वजह थी वो ब्रेसलेट। वहीं दूसरी तरफ मीरा अनिका के आज के बर्ताव के बारे में सोचते हुए परेशान हो रही थी। मीरा अकेले घर की तरफ लौट रही थी कि मोड पर उसने अनिका को एक ऑटो से उतरते हुए देखा। अनिका की नज़र जैसे ही मीरा पर पड़ी वो चौंक गई, वहीं मीरा ने उसे देखकर अनदेखा करने का नाटक किया और आगे चल दी। अनिका ने उसे पुकारते हुए कहा
अनिका- मीरा, मीरा, रुक जा...मैं भी आ रही हूँ।
मीरा आगे बढ़ती रही कि अनिका उसके सामने जाकर खड़ी हो गई और बोली
अनिका (हांफते हुए)- मैं आवाज़ दे रही हूँ तुझे, तू सुन क्यों नहीं रही?
मीरा- मैंने ध्यान नहीं दिया..
अनिका- अच्छा हुआ तू मुझे यहीं मिल गई, मुझे तुझसे कुछ कहना था।
अनिका अपनी बात पूरी कर पाती उससे पहले ही मीरा ने उसे बीच में रोकते हुए तेज़ आवाज़ में कहा
मीरा- जानती हूँ, तुझे मुझसे क्या कहना है? ये ही ना कि तेरे घर पर आऊं, तो गलती से ये ना बोल दूँ कि आज तूने कॉलेज बंक किया। नहीं बोलूँगी, खुश।
अनिका- अरे, पर तू मेरी बात तो सुन ले।
मीरा- क्या बात सुनूँ, कॉलेज में मैंने तुझे रोका, तुझसे कुछ कहना चाहती थी। लेकिन तू निकल गई, तुझे कहीं जाने की जल्दी थी। मुझे तो तुमने बाज़ार बताया था, लेकिन तुम गई कहाँ ये मुझे नहीं पता। मुझे क्लास में किसी और से पता चला कि तुम बाज़ार तो गई नहीं, कहीं और गई हो। अनिका मुझे ये जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि तुम कहाँ, किस से मिलने जा रही हो? पर मुझे बुरा लगा, जब मुझे तीसरे इंसान ने आकर बताया कि तुमने मुझसे झूठ कहा। ये ही दोस्ती है हमारी? जब से जयपुर से आई हो, बदल गई हो। अगर इतना ही मन लग गया था तुम्हारा वहाँ, तो यहाँ आती ही नहीं। कम से कम मुझे गलतफहमी ना रहती कि तुम अब भी मेरी वही दोस्त हो।
मीरा ने एक सांस में अनिका पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया और फिर पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई। अनिका बस वहीं खड़े रहकर मीरा को देखती रही, उसे कुछ देर तक समझ ही नहीं आया कि आखिर मीरा को ये सब इतनी बड़ी बात क्यों लगी। फिर अनिका ने कुछ सोचते हुए अमन को फोन किया। अमन के फोन उठाते ही अनिका ने कहा
अनिका- मेरे इस नए रिश्ते की वजह से मीरा के साथ मेरी दोस्ती खराब हो रही है। अब मैं इस बात को और नहीं छिपा सकती, मैं मीरा को सब बता रही हूँ।
अमन (अनिका को रोकते हुए)- क्या? तुम्हें मैंने समझाया था ना कि अपनी दोस्ती और प्यार को अलग रखो। ये क्या बच्चों जैसी बातें हैं?
अनिका- अमन, लेकिन मैं क्या करुँ? मैं अब अपने दिल में ये सब नहीं रख पा रही हूँ, ऐसा लग रहा है मैं बहुत बड़ा झूठ बोल रही हूँ। तुम प्लीज मेरी बात को समझने की कोशिश करो...
अमन (एक गहरी सांस लेकर)- मैं तुम्हारी तरह बच्चा नहीं हूँ अनिका, समझदार हूँ, इसलिए कह रहा हूँ कि हमारे रिश्ते के बारे में किसी से कुछ मत कहो। मैं नहीं चाहता कि कोई प्रॉब्लम हो... और अगर तुम फिर भी अपनी ज़िद पर अड़ी रहना चाहती हो तो ठीक है, फिर तुम्हें मुझे भूलना होगा.... क्योंकि मैं अपनी प्रिवसी नहीं खो सकता।
अमन की बात सुनकर अनिका के पाँव तले से ज़मीन खिसक गई। उसकी आँखों में आँसू आ गए, उसने हैरान होते हुए कहा
अनिका- ये तुम क्या कह रहे हो अमन ? क्या इतनी सी बात के लिए तुम मुझसे रिश्ता तोड़ लोगे? तुम हमारे बारे में क्यों किसी को कुछ नहीं बताना चाहते? क्या तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो?
अमन - लगता है तुम आजकल सीरियल ज़्यादा देखने लगी हो, तभी शायद तुम्हें मुझपर भरोसा नहीं, तुम बार-बार ऐसी बात बोलती हो। खैर, मैंने तुम्हें रास्ता बता दिया, चुनना तुम्हें है, दोस्ती या प्यार। दोस्ती चुनोगी तो मैं तुम्हारी ज़िंदगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा, लेकिन अगर प्यार चुनोगी तो दोस्ती को भी निभा पाओगी। वक्त आने पर तुम मेरी हर बात का मतलब समझ जाओगी अनिका...अब फैसला तुम्हारा....
अमन ने इतना कहते हुए फोन रख दिया। अनिका ने दो-तीन बार अमन का नाम पुकारा लेकिन कोई जवाब ना मिलने पर उसने अपने कान से फोन हटा लिया। अनिका ने एक बार उस रास्ते की तरफ देखा जहां से मीरा गई थी, फिर एक बार अपने फोन को देखा। आँसू पोंछते हुए अनिका अपने घर की तरफ बढ़ गई, घर पहुंचते ही अनिका सीधे अपने कमरे में गई और रोते हुए बेड पर लेट गई। उसके दिल में मानों तूफ़ान आया हुआ था, अनिका खुद को एक ऐसे दोराहे पर खड़ा महसूस कर रही थी, जहां से एक रास्ता लेकर आगे बढ़ना अपनी ज़िंदगी के एक अहम हिस्से को खोने जैसा था। अनिका इस सोच में इतना डूबी हुई थी कि उसे पता भी नहीं चला कि कब रात हो गई। अनिका ने अपनी डायरी उठाकर उसमें लिखना शुरू करते हुए कहा
अनिका- आज मेरे लिए एक बहुत अच्छा दिन था, वो मेरे लिए एक तोहफा लेकर आया था। जो उसने खुद मुझे पहनाया, लेकिन आज उसके पास होने पर भी एक अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। वो चाहता है कि मैं हर काम वैसे करुँ जैसे वो चाहे, वो मुझसे हर सवाल के जवाब की उम्मीद रखता है, लेकिन मेरे किसी सवाल का जवाब उसके पास नहीं होता। उसने मेरे सामने एक शर्त रखी, मीरा और उसमें से एक को चुनने की... और मैं आज उसे चुन रही हूँ।
अनिका ने एक रास्ता चुन लिया था। हालांकि उस रास्ते को चुनकर अनिका पूरी तरह खुश नहीं थी, लेकिन उम्र के हाथों मजबूर अनिका ने दोस्ती को प्यार से कम आंक लिया था। वहीं ऐसा ही कुछ हाल मीरा का भी हो रहा था, वो दोराहे पर ना सही लेकिन एक ऐसे रास्ते पर ज़रूर खड़ी थी, जहां वो अनिका के साथ अपनी दोस्ती के बारे में किसी फैसले पर नहीं आ पा रही थी। मीरा के सामने उसकी डायरी खुली हुई थी, मीरा उसके कोरे पन्ने को ध्यान से देख रही थी, उसके दिल और दिमाग दोनों में इस वक्त सुबह उसकी और उस शख्स की मुलाकात के लम्हे घूम रहे थे, जब वो कॉलेज जाने से पहले मंदिर के पीछे उससे मिली थी। उस शख्स ने मीरा को एक तोहफा दिया था, तोहफा था एक ब्रेसलेट, जिसे देखकर मीरा की आँखों में चमक आ गई उसने उत्सुकता के साथ कहा
मीरा- ये क्या मेरे लिए है?
मीरा की बात के जवाब में उस शख्स ने कहा, “हाँ, इसे देखकर तो लग रहा है कि ये सिर्फ लड़कियों के लिए बना है, और लड़कियों में भी एक स्पेशल लड़की के लिए। जानती हो, मैं इसे एक खास जगह से लाया हूँ। इसपर हमारा नाम भी लिखा है...”
मीरा ने खुश होते हुए उस ब्रेसलेट को अपने हाथों में पकड़ा, फिर अचानक उसके चेहरे की खुशी गायब हो गई। उसने उसे वापस करते हुए कहा
मीरा- लेकिन मैं इसे नहीं रख सकती, ये बहुत महंगा है, और अगर किसी ने इसे मेरे हाथ में देख लिया तो बवाल हो जाएगा। तुम इसे वापस कर दो... मुझे इस तोहफे की ज़रूरत नहीं, मेरे लिए तो तुम ही मेरा गिफ्ट हो।
मीरा के लाख कहने पर भी उस शख्स ने वो ब्रेसलेट वापस नहीं लिया, और मीरा को पहना दिया। कुछ देर बाद मीरा ने बहुत हिम्मत करके उस शख्स से पूछा
मीरा- वैसे मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात पूछनी है। पहले की बात और थी, लेकिन अब मैं कॉलेज में ज़्यादातर वक्त अनिका के साथ रहती हूँ। मैं पूछना चाहती हूँ कि क्या मैं अनिका को हमारे बारे में बता दूँ....?
मीरा के सवाल पर उस शख्स ने मीरा के हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा, “ये बताने वाला मैं कौन होता हूँ, कि तुम क्या करो क्या नहीं? हाँ, लेकिन किसी को भी, उसमें तुम्हारी दोस्त हो या कोई और, हमारे बारे में कुछ भी बताने से पहले ज़रा सावधान रहना। देखना, कहीं वो तो तुमसे कुछ नहीं छिपा रहे। अगर वो भी सामने खुली किताब हैं, तो तुम भी बन जाओ.....”
उस शख्स की बात सुनकर मीरा सोच में पड़ गई। तभी अचानक एक तेज़ हवा का झोंका आया, जिससे मीरा की डायरी के पन्ने सरसर करते हुए पलटने लगे। उनकी आवाज़ से मीरा का ध्यान टूटा और वो वापस रात में आ गई। मीरा ने बाहर की ओर देखा और फिर अपनी डायरी में लिखना शुरू करते हुए बोली
मीरा- आज मैं अनिका को अपने बारे में सब बताना चाहती थी, लेकिन वो भी तो मुझसे कितना कुछ छिपा रही है। तब मेरा उसे अपने कुछ भी बताना सही नहीं। “अगर वो भी तुम्हारे सामने खुली किताब हैं, तो तुम भी बन जाओ” उसने शायद लोगों को समझने का ये तरीका सही ही बताया था। कभी-कभी लगता है, जैसे वो मुझे और मेरे हालातों को मुझसे बेहतर जानने लगा है, लेकिन मुझे खुद के लिए लगता है कि मैं उसे बिल्कुल नहीं जानती। क्या सच में उसे मुझसे प्यार है?
मीरा अपने ख्यालों में खोई हुई थी, कब नींद आई और वो कब सो गई, ये उसे खुद नहीं पता चला। चिड़ियों की चहचहाहट के साथ उसकी आँखें खुली। देवी मंदिर पर सुबह का शंखनाद हो चुका था, मीरा ने अंगड़ाई तोड़ते हुए अपनी आँखें खोली और जम्हाई लेते हुए इधर-उधर देखा, मीरा फिर से लेटने वाली थी कि तभी उसे कुछ याद आया, वो एक झटके के साथ बेड से उठी और घड़ी में वक्त देखते हुए बोली
मीरा(सिर पर हाथ मारकर)- अरे नहीं, नहीं..... मीरा, मीरा... इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकती है? आज गौरा-तीज है, सुबह-सुबह मंदिर जाना था। अब जाएगी तो सब क्या सोचेंगे, नहीं, नहीं, अब मैं मंदिर नहीं जा सकती। माँ को पता लगा कि मैंने व्रत रखा है तो वो मेरी खाल उधेड़ देंगी। एक काम करती हूँ, व्रत रख लेती हूँ, मंदिर शाम को हो आऊँगी। 6 बजे नदी पर भी तो जाना है...
नदी पर जाने की बात सोचते हुए मीरा के चेहरे पर एक शरमाई सी मुस्कान आ गई। उसने शरमाते हुए आईने में देखा फिर मन में सोचते हुए कहा
मीरा- आज मैं उसके फेवरिट रंग का सूट पहनूँगी।
मीरा हँसते-खिलखिलाते शाम की तैयारी करने में जुट गई। वो बेसब्री से शाम का इंतज़ार कर रही थी। उसने आज एक हल्के नीले रंग का सूट और उसी से मिलती चूड़ियाँ पहनी थी, माथे पर एक छोटी सी बिंदी लगाकर मीरा किसी हीरोइन से कम नहीं लग रही थी। आज मीरा ने एक बार भी अनिका को कॉल नहीं किया था, ना ही अनिका का कोई कॉल मीरा के पास आया। जब मीरा के ज़हन में अनिका का ख्याल आया तो उसने अपने फोन की तरफ देखा, मानों वो अनिका से बात करना चाहती हो, लेकिन फिर उसने नाराजगी के साथ खुद में बड़बड़ाते हुए कहा
मीरा- मैं क्यों करुँ फोन ? वो भी तो कर सकती थी....
मीरा खुद से ये बातें बोल ही रही थी कि तभी उसके फोन पर एक अनजाने नंबर से मैसेज आया। मीरा ने बेफिक्री से अपना फोन उठाया लेकिन जैसे ही उसने अनजान नंबर देखा तो वो हैरान होकर बोली
मीरा- ये किसका नंबर है? और इसने मुझे तस्वीरें भेजी हैं....
मीरा ने फोन अनलॉक करते हुए उस मैसेज पर क्लिक किया, और जैसे ही मीरा के सामने वो फोटो आई, मीरा की आँखें फटी की फटी रह गई। क्योंकि फोटो में अनिका थी, जो नदी किनारे खड़ी हुई थी। अनिका ने बिल्कुल वैसे ही रंग की साड़ी पहनी थी, जिस रंग का मीरा ने सूट पहना था। मीरा ने हैरान होते हुए फोटो को बार-बार ज़ूम किया फिर अपने मुंह पर हाथ रखते हुए बोली
मीरा- ये अनिका वहाँ क्या कर रही है? इसके हाथों में आरती की थाली भी है, और ये क्या.... इसने ये हाथ में मेरे जैसा ही ब्रेसलेट पहना है....
मीरा को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। उसकी आँखों के सामने वो सब घूमने लगा, जो पिछले कुछ दिनों में घटा था। मीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था, मीरा ने बार-बार उस नंबर पर कॉल किया लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। टेंशन के मारे मीरा ने अपने नाखून चबाते हुए कहा
मीरा- मुझे अभी अनिका के पास जाना होगा, ये सब क्या चल रहा है... इसका पता लगाना होगा। सब कुछ एक जैसा कैसे हो सकता है? वो ही रंग, वो ही ब्रेसलेट? कहीं कोई हमारे साथ खेल तो नहीं खेल रहा? मुझे अभी अनिका के पास जाना होगा....
क्या मीरा और अनिका के सामने आएगा उनके बॉयफ़्रेंड्स से जुड़ा कोई राज़? क्या ये खेल हो जाएगा यहीं खत्म, या अब इसमें जुड़ जाएंगी राज़ की नई परतें।
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